फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट : झारखंड में अदानी द्वारा 'जबरन ज़मीन अधिग्रहण’

झारखंड की बीजेपी नेतृत्व वाली राज्य सरकार निजी कंपनी अदानी के हाथों ज़मीन बेचने को आतुर लग रही है, मगर झारखंड के ग्रामीण जबरन इस अधिग्रहण के ख़िलाफ़ बहादुरी से लड़ाई लड़ रहे हैं।
राज्य सरकार ने अपने उद्योग-समर्थक दृष्टिकोण को मज़बूत करने के क्रम में साल 2016 में अदानी समूह के साथ गोड्डा ज़िले में बिजली संयंत्र स्थापित करने के लिए एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे। कोयला आधारित इस बिजली संयंत्र से 1,600 मेगावाट बिजली उत्पन्न करने की संभावना थी। पूरी तरह क्रियाशील बनाने के क्रम में अदानी गोड्डा ज़िले में दो प्रखंड के 10 गांवों में फैले 1,364 एकड़ भूमि अधिग्रहण करना चाहता है। दिलचस्प बात यह है कि ये कंपनी गोड्डा संयंत्र से उत्पन्न बिजली बांग्लादेश को निर्यात करने की योजना बना रही है, हालांकि झारखंड क़ानूनी रूप से उत्पन्न कुल बिजली का 25 प्रतिशत ख़रीदने का हक़दार है। जबकि सरकार और अदानी का दावा है कि यह संयंत्र 'शून्य' विस्थापन के साथ एक सार्वजनिक उद्देश्य परियोजना है जो रोज़गार और आर्थिक विकास को प्रगति देगा लेकिन धरातल पर वास्तविकता काफी अलग दिखाई देती है।
30 से अधिक जनसंगठनों के नेटवर्क वाले झारखंड जनअधिकर महासभा के सदस्यों ने हाल ही में एक फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट में पाया कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 द्वारा निर्धारित प्रक्रियाओं का घोर उल्लंघन करके इस परियोजना के लिए ज़मीन का जबरन अधिग्रहण किया जा रहा है। इस अधिनियम के अनुसार निजी परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण के लिए प्रभावित परिवारों के कम से कम 80 प्रतिशत लोगों की सहमति और संबंधित ग्राम सभा से अनुमति की आवश्यकता है। लेकिन, यहां के आदिवासी और कई गैर-आदिवासी भू-स्वामियों ने इस परियोजना को आरंभ करने का विरोध किया है।
न्यूज़़क्लिक से बात करते हुए झारखंड जनाधिकार महासभा के विवेक ने बताया, "प्रक्रियात्मक उल्लंघनों के साथ आदिवासी लोगों के ज़ेहन में डर पैदा किया जा रहा है। अब तक, चार गांवों का बलपूर्वक भूमि अधिग्रहण पहले ही हो चुका है, इन गांवों के लोग आदिवासी है जो खेती पर निर्भर हैं।"
इस कॉर्पोरेट की रणनीतियों पर प्रकाश डालते हुए वे कहते हैं, "किसानों की फसलों को पॉपलेन मशीन का इस्तेमाल करके नष्ट कर दिया गया। इसके अलावा, कुछ ग्रामीणों को उनके ख़िलाफ़ झूठा मामला दायर करने को लेकर डराया जा रहा है।"
मोतिया गांव के रामजीवन पासवान की ज़मीन को बलपूर्वक अधिग्रहण करने के दौरान अदानी के अधिकारियों ने उन्हें धमकी दी कि "अगर कंपनी को ज़मीन नहीं दी तो उसी ज़मीन में गाड़ देंगे" वे कहते हैं, पुलिस ने उनकी शिकायत दर्ज कराने से इनकार कर दिया है।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि सरकारी मशीनरी इस कॉर्पोरेट कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए इस मुद्दे को अलग कर रही है, और इसलिए स्थानीय लोगों के ख़िलाफ़ इन अपराधों में उनकी मिलीभगत लगती है। चार गांवों में अधिग्रहण की गई ज़मीन क़रीब 500 एकड़ है और इसने 40 परिवारों की ज़िंदगी को ख़तरे में डाल दिया है। प्रभावित गांवों के लोग दावा करते हैं कि यदि कुल 10 गांवों में ज़मीन अधिग्रहित की जाती है तो 1,000 से अधिक परिवारों को विस्थापन का सामना करना पड़ेगा।
ज़मीन को बलपूर्वक हासिल करने के अपने प्रयास में स्थानीय पुलिस की सहायता से इस कंपनी ने कथित रूप से माली गांव के पांच अन्य आदिवासी परिवारों सहित मैनेजर हेमब्रम के 15 एकड़ भूमि पर खड़े फसलों, वृक्षों, कब्रिस्तान और तालाबों पर बुलडोज़र चलवा दिया। जब माली के लोगों ने उनकी सहमति के बिना उनकी भूमि के जबरन अधिग्रहण के ख़िलाफ़ डिप्टी कमिश्नर (डीसी) से शिकायत की तो डीसी ने कोई भी कार्रवाई करने से इंकार कर दिया और इसके बजाय उनसे कहा कि चूंकि उनकी भूमि अधिग्रहण की गई है तो उन्हें मुआवज़ा लेना चाहिए। इस तरह गुस्साए स्थानीय लोगों का कहना है कि इसे तुरंत बंद किया जाना चाहिए।
इस फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट ने ग्राम सभा द्वारा जन सुनवाई की प्रक्रिया में बिजली संयंत्र के गठजोड़ का खुलासा किया। साल 2016 और 2017 में सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन (एसआईए-सोशल इंपैक्ट असेसमेंट) तथा पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए-एनवायरमेंट इंपेक्ट असेसमेंट) के लिए जन सुनवाई की गई थी। इस संयंत्र का विरोध करने वाले कई भू-स्वामियों को कथित तौर पर इस सुनवाई में भाग लेने के लिए अदानी समूह के अधिकारियों और स्थानीय प्रशासन ने अनुमति नहीं दी थी। स्थानीय लोगों ने दावा किया कि उक्त स्थल में प्रवेश के वक़्त उनसे पूछा गया कि क्या वे अपनी ज़मीन छोड़ने के लिए तैयार हैं। अगर उन्होंने इनकार कर दिया तो उन्हें इसके आयोजकों द्वारा बाहर कर दिया गया। कुछ मामलों में स्थानीय लोगों को "अदानी कार्ड" या हरे/पीले कार्डों को कथित रूप से उन लोगों की पहचान करने के लिए जारी किया गया था जो उनके ख़िलाफ़ किए गए कार्यों पर निर्णय लेने के लिए कौन इच्छुक या अनिच्छुक हैं।
मोतिया और रंगानिया गांवों के कई लोगों ने बताया कि जून में की गई जन सुनवाई में क़रीब 2,000 पुलिसकर्मी मौजूद थें। स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि पुलिस ने लाठीचार्ज शुरू किया, आंसू गैस के गोले छोड़े, और यहां तक कि कुछ लोगों को मारते हुए ग्रामीणों के घरों में घुस गए।
यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि संथाल परगना टेनेंसी एक्ट की धारा 20 के अनुसार, जो संथाल परगना क्षेत्र में कृषि भूमि पर लागू होती है कि कुछ अपवादों या सार्वजनिक उद्देश्यों को छोड़कर किसी भी सरकारी या निजी परियोजनाओं के लिए भूमि स्थानांतरित या अधिग्रहण नहीं की जा सकती है।
झारखंड सरकार इस क़ानून का पूरी तरह उल्लंघन कर "विकास" के नाम राज्य के लोगों का दमन कर रही है। बेहद भयावह स्थिति यह है कि इस परियोजना से संबंधित कोई भी दस्तावेज़ ज़िला प्रशासन की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है।
आदिवासियों की भूमि और आजीविका के नुकसान की चिंताओं के बीच ये परियोजना पर्यावरण के प्रतिकूल हैं। ईआईए रिपोर्ट के अनुसार, हर साल इस संयंत्र द्वारा 14-18 एमटी कोयले का इस्तेमाल किया जाएगा जो स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा। इस संयंत्र को प्रति वर्ष 36 एमसीएम पानी की आवश्यकता होगी जिसे जीवन रेखा कही जाने वाली वर्षा वाली स्थानीय चिर नदी से पूरा करने की संभावना है। पानी का मार झेल रहा गोडडा ज़िले के सीमित श्रोत को यह और तबाह करेगा।
शायद अदानी के लिए भारी मुनाफा सुनिश्चित करने के लिए साल 2016 में बीजेपी सरकार ने अदानी समूह से उच्च दर पर बिजली ख़रीदने के लिए अपनी ऊर्जा नीति बदल दी थी, जिसके चलते अगले 25 वर्षों में राजकोष को 7000 करोड़ रुपये का घाटा हो सकता है।
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