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मो० अब्दुल कासिम अली शेख: जहां सड़कों का कोई नाम नहीं है

क्या कासिम को अब शांति मिल सकती है? क्या शहर और उसके लोग उसे सांत्वना और खुद के बारे में बोलने के लिए जगह देंगे?

"मैं जितना बुरा दिखाई दूंगा, मेरे लिए उतना ही अच्छा होगा। कोई मुझसे संपर्क नहीं करेगा।" दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में रिक्शा चालक मोहम्मद अब्दुल कासिम अली शेख  हैं। बचपन में उनका बार-बार यौन दुर्व्यवहार, कासिम सड़कों पर बड़े हुए है   बेघर, अकेले  और एचआईवी पॉजिटिव। 

आज उनके पास दिल्ली में सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज द्वारा संचालित एक रिकवरी शेल्टर में भोजन, आश्रय और दवाएं मिलती है । क्या कासिम को अब शांति मिल सकती है? क्या शहर और उसके लोग उसे सांत्वना और खुद के बारे में बोलने के लिए जगह देंगे?
 

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