जानलेवा दिल्ली की हवा, 75 प्रतिशत बच्चों को सांस लेने में परेशानी

सर्दी शुरू होने के साथ ही दिल्ली की हवा प्रदूषित होने लगती है। इससे दिल्लीवासियों को सांस संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। द इनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टिच्यूट (टेरी) द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया है कि यहां 75 प्रतिशत बच्चों को सांस लेने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
विभिन्न वायु प्रदूषण पारिस्थितिकी के साथ यह अध्ययन भारत भर के छह शहरों दिल्ली (मेगासिटी), लुधियाना (अधिक औद्योगिकृत शहर), पटियाला (कृषि और बायोमास जलने वाला शहर), पंचकुला (पीएम2.5 वाला शहर), विशाखापत्तनम (तटीय क्षेत्र) और जैसलमेर (रेगिस्तान) में किया गया था। शोधकर्ताओं ने अक्टूबर 2019 में वायु गुणवत्ता के स्तर का विश्लेषण किया।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार 413 बच्चों पर स्वास्थ्य सर्वेक्षण किया गया जिसमें से 75.4% ने सांस फूलने की शिकायत की, 24.2% ने आंखों में खुजली, 22.3% बच्चों ने नियमित तौर पर छींकने या नाक बहने की शिकायत की और 20.9% बच्चों ने सुबह के समय खांसी होने की शिकायत की।
सर्वे में 14-17 साल के बच्चे शामिल
टेरी की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दिल्ली की हवा में प्रमुख प्रदूषक पीएम2.5 की उच्च सांद्रता है जिसको लेकर दावा है कि यह दिल्लीवासियों विशेष रूप से बच्चों में श्वसन और हृदय संबंधी बीमारियों का कारण है।
शोधकर्ताओं ने भारी धातुओं को पीएम2.5 के एक प्रमुख घटक के रूप में भी पहचान की है जिसके परिणामस्वरूप संभावित स्वास्थ्य प्रभाव हो सकते हैं। अक्टूबर 2019 में शहर के पीएम 2.5 में जिंक की सांद्रता 379 एनजी/एम3 (नैनोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) थी। सितंबर 2020 में यह बढ़कर 615 एनजी/एम3 (नैनोग्राम प्रति घन मीटर) हो गया।
इसी तरह, दिल्ली की हवा में लेड की मात्रा 2019 में 233 एनजी/एम3 (नैनोग्राम प्रति घन मीटर) थी जो 2020 में बढ़कर 406 एनजी/एम3 (नैनोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) हो गई। इसमें आर्सेनिक कंटेंट 3 एनजी/ एम3 था।
हवा में कैडमियम और आर्सेनिक
विशेषज्ञों के अनुसार, इनमें से कुछ धातुएं मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हैं और इनके नियमित संपर्क में आने से स्वास्थ्य के लिए घातक परिणाम हो सकते हैं। हवा में कैडमियम और आर्सेनिक की बढ़ी हुई मात्रा ने स्थानीय लोगों को गुर्दे की समस्याओं, कैंसर और उच्च रक्तचाप, मधुमेह व हृदय रोगों जैसे जोखिम में डाल दिया।
टेरी एसोसिएट फेलो (एन्वायरमेंट एंड हेल्थ) कन्हैया लाल के हवाले से लिखा गया कि "पीएम 2.5 का स्तर - 60 ug/m3 से कम- एक स्वीकार्य मानदंड माना जाता है लेकिन अगर हवा में जहरीली धातुओं की उच्च सांद्रता है तो इससे आपका स्वास्थ्य खतरे में पड़ सकता है।"
विशेषज्ञों के अनुसार, दिल्ली की हवा में धातुओं के प्राथमिक स्रोत वाहनों से निकलने वाली हवा, खुले स्थानों पर आग जलाना और पड़ोसी राज्यों में औद्योगिक संचालन से निकलने वाले धुएं हैं। कन्हैया लाला ने कहा, "दिल्ली में अत्यधिक ट्रैफिक और इसके आसपास के क्षेत्रों में औद्योगिक गतिविधियों जैसे कारकों से हवा में भारी धातुओं का अंश बढ़ जाता है। आप जिस प्रदूषक के संपर्क में आते हैं उसके रासायनिक संरचना को समझना बहुत महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, आपके शहर में पीएम 2.5 का स्तर 60ug/m3 से कम हो सकता है जिसे एक स्वीकार्य मानक माना जाता है, लेकिन अगर हवा में जहरीली धातुओं की उच्च सांद्रता है तो आपका स्वास्थ्य अत्यधिक जोखिम में है।”
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