किससे पूछूँ, बहारें किधर खो गयीं...?”
“काश! ये बेटियां बिगड़ जाएं...” ये दुआ है उर्दू के मशहूर शायर और वैज्ञानिक गौहर रज़ा की। इसी के साथ वे पूछते हैं कि “नाम किसके करूँ/ इन ख़िज़ाओं को मैं/ किस से पूछूँ/ बहारें किधर खो गयीं/ किससे जाकर कहूँ/ ज़र्द पत्तों का बन, अब मेरा देस है/ दर्द की अंजुमन, अब मेरा देस है।
“काश! ये बेटियां बिगड़ जाएं...” ये दुआ है उर्दू के मशहूर शायर और वैज्ञानिक गौहर रज़ा की। इसी के साथ वे पूछते हैं कि “नाम किसके करूँ/ इन ख़िज़ाओं को मैं/ किस से पूछूँ/ बहारें किधर खो गयीं/ किससे जाकर कहूँ/ ज़र्द पत्तों का बन, अब मेरा देस है/ दर्द की अंजुमन, अब मेरा देस है।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।
