किसान आत्महत्या: महाराष्ट्र सरकार के आंकड़े डराने वाले, वास्तविकता और भी भयावह

महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस सरकार किसानों की बेहतरी को लेकर भले ही तमाम दावे करे लेकिन हकीकत इससे जुदा ही नजर आ रही है। राज्य में फडणवीस सरकार आने के बाद सन् 2015 से 2018 तक 12,021 किसानों ने आत्महत्या की है। इस साल जनवरी से मार्च तक ही 610 किसानों ने आत्महत्या की है।
शुक्रवार को विधानसभा में एनसीपी के अजित पवार, जितेंद्र आव्हाड सहित कई विधायकों ने किसान आत्महत्या से संबंधित प्रश्न पूछा था। प्रश्नों का लिखित उत्तर देते हुए मदद व पुनर्वसन मंत्री सुभाष देशमुख ने स्वीकार किया कि राज्य में किसान आत्महत्या थम नहीं रही है। उनके जवाब के हिसाब से पिछले चार सालों में हर साल औसतन 3,005 किसानों ने आत्महत्या की है।
विधानसभा में मंत्री सुभाष देशमुख ने कहा कि 4 सालों में आत्महत्या करने वाले किसानों में से 6,888 किसान (लगभग 57 फीसदी) सरकार द्वारा दिए जाने वाले मुआवजे के दायरे में थे। इनमें से 6,845 किसानों को एक लाख तक का मुआवजा दिया जा चुका है। उन्होंने सदन को ये भी जानकारी दी कि इस साल जनवरी से लेकर मार्च तक राज्य में 610 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। इनमें से 192 मुआवजे के दायरे में आ रहे थे।
देशमुख ने कहा कि किसानों को लोन वेबर देने का किया गया वादा सरकार निभाएगी। अब तक लोन वेबर स्कीम से 50 लाख किसान लाभान्वित हो चुके हैं। उन्होंने कहा, “मैं किसानों को विश्वास दिलाता हूं कि सरकार उनके साथ है। मैं किसानों से अपील करता हूं कि वे आत्महत्या न करें।” महाराष्ट्र सरकार के एक दूसरे मंत्री अनिल बोंडे ने भी किसानों से आत्महत्या जैसे गलत ख्याल दिमाग में न लाने की अपील की है।
कृषि मंत्री अनिल बोंडे ने किसानों से कहा, यह सच है कि राज्य में कृषि संकट है तथा अभी तक 19,000करोड़ रुपये किसानों के खातों में स्थानांतरित कर दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि बाकी बचे किसानों को भी आने वाले हफ्तों में कर्जमाफी का लाभ मिलेगा।
उन्होंने किसानों से कहा कि मैं किसानों से अपील करता हूं कि वे अपने दिमाग में आत्महत्या करने का विचार न लाएं। यह कठिन समय है क्योंकि राज्य में अभी तक बारिश नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि हम सभी को मिलकर इसका मुकाबला करने की जरूरत है।
हालात हैं बदतर
सरकार और विशेषज्ञों के मुताबिक, इस दु:खद घटना के पीछे सबसे बड़ा कारक वर्षा की कमी रही है। इसने उत्पादन और लागत को प्रभावित किया है। गौरतलब है कि किसानों और विपक्षी दलों के विरोध के दबाव में फडणवीस सरकार ने पिछले साल 47 लाख किसानों को 21,500 करोड़ रुपये के ऋण की छूट दी थी।
आपको बता दें कि महाराष्ट्र में पिछले मानसूनी सीजन में सामान्य से कम बारिश होने के कारण राज्य के कई जिलों को सूखे जैसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। महाराष्ट्र के चार बड़े जलाशयों में भी महज 2फीसदी पानी बचा है। वहां के छह बड़े जलाशयों का पानी के इस्तेमाल के लायक नहीं बचा है।
फरवरी 2019 में महाराष्ट्र सरकार के अनुसार महाराष्ट्र के 358 में से 151 तालुका सूखे की चपेट में थे। अगर गांवों के लिहाज से देखें तो इतने तालुका में तकरीबन 28524 गांव आते हैं। यानी महाराष्ट्र के तकरीबन 28524 गांवों में पानी की भीषण समस्या है। मराठवाड़ा के औरंगाबाद, उस्मानाबाद, जालना,नांदेड, परभणी, बीड, लातूर, व उत्तर महाराष्ट्र के धुले, नांदुरबार जलगांव अहमदनगर जिलों और पश्चिमी महाराष्ट्र में स्थिति बहुत गंभीर है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि उसने स्थिति को अच्छी तरह से संभाला है और आत्महत्या की संख्या में कमी आई है। हालांकि अब भी यह चिंता का विषय है। वहीं सरकार ने पीड़ितों को मुआवजा देने के अलावा जलयुक्त शिवार अभियान भी चला रखा है। इस योजना का उद्देश्य जल संसाधनों को संग्रहित करना और प्रबंधन करना है और उन क्षेत्रों पर उन इलाकों में उपयोग करना है जहां किसानों को कम बारिश की गिरावट और सिंचाई की समस्या से पीड़ित हैं।
दूसरी ओर कृषि मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार पी. साईनाथ सरकार के आंकड़ों और दावों को खारिज करते हैं। न्यूज़क्लिक से बातचीत में उन्होंने कहा,'सरकार द्वारा आत्महत्या को लेकर जारी आंकड़े बोगस हैं। ये आंकड़े एनसीआरबी ने नहीं जारी किए हैं। ये आंकड़े राजस्व विभाग के हैं। वास्तविकता में इससे कही ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है। 2014 के बाद से ही वास्तविक आत्महत्या का आंकड़ा पता नहीं चल रहा है। सरकार ऐसा मुआवजा देने से बचने के लिए कर रही है।जिन 12 हजार किसानों की मौत को स्वीकार कर रही है, उसमें से भी सिर्फ आधे लोगों को मुआवजा दिया गया है।'
वो आगे कहते हैं,' इसका सीधा कारण वही है जो पिछले 20 सालों से चला आ रहा है। यानी कृषि संकट। महंगाई बढ़ने से कृषि लागत बढ़ गई है। न्यूनतम समर्थन मूल्य भी किसानों को नहीं मिल पा रहा है। किसानों को बैंक से क्रेडिट नहीं मिल रहा है। मजबूरन साहूकारों की चपेट में किसान आ जाते हैं। अब सरकार में बैठे लोगों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह वास्तविक कारण जानना ही नहीं चाह रहे हैं। समस्या का हल निकालना तो दूर की बात है।'
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