जेईजेएए NDA सरकार के ख़िलाफ 16 मई से राष्ट्रव्यापी अभियान चलाएगा

क़रीब 100 से ज़्यादा प्रगतिशील संगठनों का प्रतिनिधित्व कर रहे जन एकता जन अधिकार आंदोलन (जेईजेएए) ने सप्ताह भर चलने वाले राष्ट्रव्यापी अभियान का आह्वान किया है। इस अभियान के लिए जेईजेएए "एनडीए सरकार की चार साल, पोल खोल, हल्ला बोल" का नारा दिया है। ये अभियान 16 मई से 22 मई तक चलेगा।
एक बयान में जेईजेएए ने कहा कि इस अभियान का उद्देश्य देश के हर एक नागरिक तक पहुंचना है और "नीतियां बदलो या लोग सरकार बदल देंगे" के नारे के साथ एनडीए सरकार के सांप्रदायिक और लोक-विरोधी एजेंडे का पर्दाफाश करना है।
जेईजेएए ने कहा कि 23 मई को 24 से अधिक राज्य की राजधानियों में इस सरकार के ख़िलाफ़ लाखों लोग 'हल्ला बोल' के लिए रैली में इकट्ठा होंगे। "यह न सिर्फ एनडीए सरकार के अंत की शुरुआत है बल्कि लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, समतावादी और आधुनिक भारत के निर्माण के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए राष्ट्रव्यापी लोगों के आंदोलन का भी शुभारंभ है।"
इस अभियान में जेईजेएए भाजपा/एनडीए सरकार द्वारा पूरे न किए गए वादे के साथ-साथ नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार की नीतियों और सांप्रदायिक विभाजनकारी एजेंडे को उजागर करेगा। इस अभियान में निम्नलिखित मुद्दे उठाए जाएंगे।
नव-उदार नीतियां
एनडीए सरकार "अच्छे दिन" और "सबका विकास" का वादा करके सत्ता हासिल की थी लेकिन इसके शासन "विकास" केवल कुछ चुनिंदा कॉर्पोरेट कंपनियों और उनके बिचौलियों का हुआ। आज आबादी का केवल एक प्रतिशत हिस्सा देश की 53 प्रतिशत संपत्तियों पर क़ब्जा कर चुका है।
बेरोजगारी
इस एनडीए ने हर साल दो करोड़ रोज़गार का वादा किया था लेकिन युवाओं को रोज़गार देने में बुरी तरह असफल रहा। यहां तक कि प्रति वर्ष दो लाख भी नहीं पहुंचा। श्रम ब्यूरो के अनुसार साल 2014 और 2015 के बीच स्नातक युवाओं (18 से 29 वर्ष) के बीच बेरोज़गारी दर 28 प्रतिशत से बढ़कर 35 प्रतिशत हो गई। इसके अलावा नोटबंदी के परिणामस्वरूप अक्टूबर 2016 और अक्टूबर 2017 के बीच नौ मिलियन नौकरियों का नुकसान हुआ।
क़ीमत वृद्धि
वर्तमान एनडीए शासन में आवश्यक वस्तुओं की क़ीमतें आसमान छू रही है और फंड की कमी के चलते पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) की स्थिति ख़राब हो चुकी है। आधार लिंक करने को अनिवार्य करने और लाभार्थियों के छंटनी करने के परिणामस्वरूप भूख से मौत के कई मामले सामने आए हैं।
निजीकरण
ये एनडीए सरकार सार्वजनिक क्षेत्र को विनिवेश, प्रत्यक्ष और रणनीतिक बिक्री के माध्यम से देश की संपत्ति के निजीकरण को लेकर बड़ा अभियान चलाए हुए है।
ये सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों के निजीकरण को बढ़ावा दे रही है, इस प्रकार बजट आवंटन को नज़रअंदाज़ कर सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों के व्यावसायीकरण की इजाज़त दे रही है।
किसानों की पीड़ा
एनडीए सरकार ने सभी फसलों के उत्पादन लागत से 50 प्रतिशत अधिक एमएसपी और व्यापक ऋण छूट किसानों को देने का वादा पूरा नहीं किया। एनडीए सरकार में वर्ष 2014-2015 में किसानों की आत्महत्या में 42% की वृद्धि हुई है और अभी भी किसान आत्महत्या कर रहे हैं।
इसने कृषि में 100% एफडीआई की अनुमति भी दी है और अनुबंध खेती की घोषणा की है जो बहुराष्ट्रीय कृषि कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर कृषिगत अधिग्रहण की सुविधा प्रदान करेगी,इस प्रकार यह किसानों को अपनी ही ज़मीन का अनुबंधित कृषक बनाता है। खुदरा क्षेत्र में 100% एफडीआई देश भर में असंख्य छोटे व्यापारियों और छोटे उत्पादकों के अस्तित्व को खतरे में डाल देगा।
सांप्रदायिक हिंसा
जाति और सांप्रदायिक घृणा और हिंसा को बढ़ावा देकर बीजेपी और आरएसएस भय का माहौल बनाते रहे हैं। आरएसएस के कार्यकर्ताओं द्वारा लोकतांत्रिक और शैक्षणिक संस्थानों पर क़ब्ज़ा किया जा रहा है और देश भर में लोकतांत्रिक स्थानों पर व्यवस्थित तरीक़े से हमला किया जा रहा है।
उपर्युक्त मुद्दों के अलावा, ये अभियान एनडीए शासन के ख़िलाफ़ देश भर में आदिवासियों, दलितों, किसानों, छात्रों, महिलाओं और श्रमिकों के नेतृत्व में विभिन्न आंदोलनों को भी उठाएगा। ये अभियान न्यायपालिका संकट और एनडीए सरकार द्वारा श्रम अधिकारों को कमजोर करने के मामले को भी उठाएगा।
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