यात्रा प्रतिबंधों के कई चेहरे

दक्षिण अफ़्रीका के वैज्ञानिकों ने नवंबर के आख़िर में जब कोविड-19 के ओमिक्रॉन वैरिएंट की पहचान को लेकर स्वास्थ्य समुदाय को सचेत किया था, तो अमीर देशों ने अपने यात्रा केंद्रों और स्वाज़ीलैंड, लेसोथो, मलावी और नामीबिया जैसे दक्षिणी अफ़्रीका के उन कई देशों के बीच अपनी उड़ानें बंद कर दी थी, जिनमें से कई देशों में तो उस समय ओमिइक्रॉन का कोई मामला भी दर्ज नहीं था। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और जर्मनी में ओमिइक्रॉन के मामलों की पुष्टि के बावजूद ग्लोबल नॉर्थ, यानी विकसित देशों के बीच यात्रा को लेकर इस तरह के प्रतिबंध लागू नहीं किये गये थे। कार्यकर्ताओं और स्वास्थ्य पेशेवरों, दोनों ने ही इस नये यात्रा उपायों के नस्लवादी आयाम के मामले को उठाया था।
हालांकि, मुमकिन है कि इस सख़्त यात्रा नियंत्रण ने महामारी के शुरुआती चरणों में कोविड-19 के फ़ैलने की गति को धीमा कर दिया हो, लेकिन इस बात के बहुत कम सुबूत मिलते हैं कि महामारी की शुरुआत के तक़रीबन दो साल बाद भी ऐसा किया जाना जारी है। ऑस्ट्रेलिया के पीपल्स हेल्थ मूवमेंट (PHM) के प्रोफ़ेसर डेविड लेगे के मुताबिक़, इन यात्रा प्रतिबंधों के साथ एक समस्या यह है कि मौजूदा महामारी से पहले या उसके दौरान बतौर सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय इनकी उपयोगिता की पर्याप्त जांच-पड़ताल नहीं की गयी है। वह कहते हैं, "हमें यात्रा प्रतिबंधों की सार्वजनिक स्वास्थ्य उपयोगिता की कहीं ज़्यादा जाच-पड़ताल को लेकर कोविड-19 की शुरुआती चरणों का इस्तेमाल करना चाहिए था, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ।"
लेगे बताते हैं कि इस वजह से और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संस्थानों और कंपनियों की ताक़त को देखते हुए इन यात्रा प्रतिबंधों का इस्तेमाल अनिवार्य रूप से इस समय भी ताक़तवर देशों और मुट्ठी भर दूसरे आर्थिक हितधारकों के हितों पर निर्भर करता है,यानी कि वे सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों के मुक़ाबले व्यापार विनियमन तंत्र के रूप में ज़्यादा कार्य करते हैं। लेगे कहते हैं, "इसलिए ये आर्थिक हितधारक इन सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों का किसी भी रूप में विरोध नहीं कर रहे हैं; उनका विरोध महज़ इस बात तक ही सीमित है कि उनके आर्थिक फ़ायदे को सरकारी स्वास्थ्य सलाह में किस तरह समाहित किया जाता है और फिर उसे किस तरह लागू किया जाता है।"
सबूतों की कमी
स्वीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों के तौर पर यात्रा पर लगाये जा रहे प्रतिबंध और बॉर्डर को बंद किया जाना कोई नयी अवधारणा नहीं है। 19वीं सदी का हैजा हो या 1918 की फ़्लू महामारी, प्रभावित इलाक़ों से की जाने वाली यात्रा पर लगाये जाने वाले प्रतिबंधों के इस उपाय को अपनाया गया था, हालांकि, जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है कि ऐसा करना उस देश के कारोबारियों की लॉबी पर भी निर्भर करता है। जहां पिछली महामारियों के दौरान 25% देशों ने इस तरह के उपायों को अपनाया था, वहीं कोविड-19 के दौरान लगभग सभी देशों ने इसे लागू किया था। हालांकि, महामारी से पहले या उसके दौरान यात्रा पर लगाये जाने वाले प्रतिबंध और बॉर्डर को बंद किये जाने के असर का कोई व्यवस्थित विश्लेषण नहीं किया गया है। इस तरह के प्रतिबंध लगाने के मानकीकरण की भी कमी है, जिसके चलते अलग-अलग देश अपनी मर्ज़ी और पसंद के मुताबिक़ अपने-अपने उपाय निर्धारित करते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के इंटरनेशनल हेल्थ रेगुलेशन्स (2005) देशों को उन तरीक़ों से कार्य करने को लेकर प्रतिबद्ध करते हैं, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिमों के अनुरूप हों और जो "अंतर्राष्ट्रीय यातायात और व्यापार के साथ अनावश्यक हस्तक्षेप" से बचे। अगर दूसरे उचित विकल्प उपलब्ध हों, तो आईएचआर देशों को इस तरह के प्रतिबंध लगाने से हतोत्साहित करता है। सुबूत के अभाव में ऐसे विकल्पों का तर्कसंगत विश्लेषण कर पाना मुश्किल है। शोधकर्ताओं की मांग इस तरह के सबूत विकसित करने की है कि विकासशील देशों में वायरस के प्रसार को रोकने के नाम पर किसी तरह का भेदभाव न किया जाये।
पारदर्शिता नदारद, पूर्वाग्रह को हवा
ओमिइक्रॉन पर दी गयी अपनी पहली गाइडलाइन के ब्योरे में डब्ल्यूएचओ ने अपने सदस्य राष्ट्रों को यात्रा पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने से बचने की सलाह देते हुए कहा था कि इससे "अंतर्राष्ट्रीय प्रसार को नहीं रोका जा सकेगा, और इससे जीवन और आजीविका,दोनों पर भारी बोझ पड़ता है।" इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र की इस एजेंसी ने चेतावनी देते हुए कहा था कि इस तरह से यात्रा पर लगाये जा रहे प्रतिबंधों से "महामारी विज्ञान और सिक्वेंस डेटा दर्ज करने और साझा करने वाले देशों को हतोत्साहित करके किसी महामारी के दौरान वैश्विक स्वास्थ्य प्रयासों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं",जबकि इस तरह के डेटा को साझा करना किसी महामारी के दौरान अहम होता है।
आंशिक रूप से एचआईवी/एड्स महामारी के तजुर्बे के चलते कम से कम दक्षिण अफ़्रीका के वैज्ञानिक अपने वैज्ञानिक सहयोग और डेटा साझा करने की अहमियत को ख़ूब समझते हैं, और इसी तजुर्बे ने उन्हें दूसरे देशों के वैज्ञानिकों के साथ ओमिक्रॉन को लेकर मिली अपनी जानकारी को साझा करने के लिए प्रेरित किया है। लेकिन,उनकी इस विशेषज्ञता और अच्छी मंशा का नतीजा यही रहा कि न सिर्फ़ यात्रा प्रतिबंध लगा दिये गये हैं, बल्कि उनके काम पर भी सवालिया निशान लग गये हैं।
दक्षिण अफ़्रीका के वैज्ञानिकों की इस विशेषज्ञता के बावजूद कई अमीर देशों ने पहले ही यह ऐलान कर दिया था कि वे उनके ओमाइक्रोन सार्वजनिक स्वास्थ्य मार्गदर्शन को अन्य स्रोतों पर कसेंगे। मसलन, नये जर्मन स्वास्थ्य मंत्री और महामारी के जानकार कार्ल लॉटरबैक ने टेलीविज़न पर अपनी बात रखते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य अधिकारी दक्षिण अफ़्रीका के बजाय यूके और इज़राइल से मिलने वाले डेटा पर भरोसा करेंगे। उनकी दलील थी कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि दक्षिण अफ़्रीका के उलट यूके और इज़राइल "शीर्ष गुणवत्ता वाले डेटा" देते हैं और दक्षिण अफ़्रीका के मुक़ाबले वहां टीकाकरण की दर भी ऊंची हैं, जिससे वे जर्मनी से ज़्यादा मिलते जुलते होते हैं,यानी कि वह यह भी क़ुबूल नहीं कर पा रहे हैं कि ट्रिप्स छूट प्रस्ताव के विरोध के चलते जर्मनी का इन अविकसित देशों की कम टीकाकरण दर से बहुत कुछ लेना-देना भी है, या फिर यह कि यह दक्षिण अफ़्रीकी डेटा ही था,जिसके ज़रिये पहली बार ओमिइक्रॉन की बात सामने आयी थी।
वैश्विक और सार्वजनिक स्वास्थ्य डोमेन में हाई-प्रोफाइल विशेषज्ञों ने यह भावना भी क़ायम कर दी है कि वैश्कि स्तर पर अविकसित देशों से आने वाले शोध पश्चिमी विज्ञान के उच्च मानकों को पूरा नहीं कर पाते हैं। हालांकि, दक्षिण अफ़्रीका के अनुसंधान संस्थानों की ओर से एकट्ठे किये गये डेटा के इस्तेमाल करने में उन्हें कोई गुरेज नहीं था, लेकिन उन्होंने स्थानीय शोधकर्ताओं के साथ आगे की कार्रवाई की संभावना को पूरी तरह से अनदेखा कर दिया, जिसका नतीजा यह रहा कि उन्हें अधूरी व्याख्याओं, या फिर पूरी तरह ग़लत सूचना तक को साझा करना पड़ा।
On developed country privilege, and the marginalisation of the global South in much of what passes as Covid public science: a view from the South. A thread. 1/20
— Tom Moultrie (@tomtom_m) November 29, 2021
महामारी के अंत को कम आंकना
मगर, ओमिक्रॉन यात्रा प्रतिबंध न सिर्फ़ दुनिया के अविकसित देशों के प्रति पूर्वाग्रह के संकेत देते हैं, बल्कि वे इस बात के भी सबूत हैं कि अमीर देश अब भी यह समझने में नाकाम हैं कि महामारी का अंत बॉर्डरों को बंद करने और संसाधनों की जमाखोरी के बजाय एकजुटता और साझा किये जाने पर निर्भर करता है। यात्रा प्रतिबंधों की शुरूआत के बाद के दिनों में दक्षिण अफ़्रीका कोविड-19 से जुड़े अनुसंधान को जारी रखने के लिए ज़रूरी आपूर्ति की कमी पर नज़र रख रहा था।
दक्षिण अफ़्रीका के स्टेलनबोश स्थित सेंटर फ़ॉर एपिडेमिक रिस्पांस एंड इनोवेशन (CERI) के ट्यूलियो डी ओलिवेरा ने कई बार चेतावनी दी थी कि इन यात्रा प्रतिबंधों का मतलब है कि सीईआर जल्द ही सिक्वेंसिंग और अनुसंधान के लिए ज़रूरी रासायनिक क्रिया उत्पन्न करने वाले पदार्थो यानी रिएजेंट्स से बाहर निकल सकता है। इस नौबत को आख़िरकार टाल दिया गया, लेकिन यह आसानी से अमीर देशों की ओर से महामारी के ख़िलाफ़ की जारी कोशिशों को अवरुद्ध करने की एक और मिसाल बन सकता था।
भले ही सबसे खराब हालात से बचा लिया गया हो, लेकिन जैसा कि फ़ातिमा हसन, लेस्ली लंदन और ग्रेग गोंजाल्विस ने कहा है, “ओमिक्रॉन वैरिएंट का उभार वैक्सीन की असमानता से पैदा होने वाले जोखिमों को दर्शाता है, और वैश्विक स्तर पर विकसित देशों की प्रतिक्रिया अविकसित देशों के साथ और ज़्यादा भेदभाव बरते जाने और अलग-थलग करने की रही है।"
जहां यूके ने ओमिक्रॉन यात्रा प्रतिबंध को हटाने का फ़ैसला कर लिया है, वहीं यह देखना अभी बाक़ी है कि विकसित देश आख़िरकार पूरी दुनिया में टीके उपलब्ध कराने की अपनी ज़िम्मेदारी को कब क़ुबूल कर पाते हैं और इस काम में एकजुटता दिखाते हुए ट्रिप्स छूट प्रस्ताव को कब अपना पाते हैं।
साभार : पीपल्स डिस्पैच
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