श्रद्धांजलि सभा : “तैयब हुसैन ने भोजपुरी साहित्य को समृद्ध किया”

पटना में हिंदी-भोजपुरी के साहित्यकार तैयब हुसैन 'पीड़ित' की श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। इस मौके पर तैयब हुसैन पीड़ित की दो पुस्तकों 'लोकलय' और 'बदलती परिस्थिति में लोक संस्कृति' का लोकार्पण भी किया गया।
इस श्रद्धांजलि सभा का आयोजन प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ, जन संस्कृति मंच, इप्टा, प्रेरणा, अभियान सांस्कृतिक मंच, अखिल भारतीय भोजपूरी साहित्य सम्मेलन और बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था।
इस मौके पर बड़ी संख्या में हिंदी- भोजपुरी के साहित्यकार, रंगकर्मी आदि मौजूद थे। सबसे पहले 'प्राच्य प्रभा' के सम्पादक और जनवादी लेखक संघ से जुड़े विजय कुमार सिँह ने तैयब हुसैन का संक्षिप्त परिचय दिया।
प्रगतिशील लेखक संघ के अनीश अंकुर ने अपने संबोधन में कहा " तैयब हुसैन ने इस मिथ को खत्म किया कि भिखारी ठाकुर के आगे बढ़ने में महेन्द्र मिश्र का हाथ था। तैयब हुसैन के अनुसार भिखारी ठाकुर मज़दूरों, गरीबों के बीच लोकप्रिय थे जैसे 'दिनभर सीधारी/कमहिये खेसारी/आ रात के हरिके/ले जईहैँ भिखारी' जबकि महेन्द्र मिश्र के गीत मुख़्यतः वेश्याओं के बीच लोकप्रिय थे। तैयब हुसैन के अनुसार भिखारी पर तुलसी का गहरा प्रभाव था। लेकिन कुछ रैडिकल पदों जैसे '' बभना के पोथी जरे /हजमा के पूत मरे " को रचनावाली से हटा दिया गया। उन्होंने सारण क्षेत्र के एक और बड़े रचनाकर भक्त कवि मास्टर अजीज पर काम किया जो कीर्तन गाते थे और जिनकी मौत पर हिन्दू-मुसलमानों के बीच उनके अंतिम संस्कार को लेकर विवाद हुआ था। खुद प्रलेस, इप्टा, 'विकल्प' जैसे संगठनों के साथ काम किये, नाटकों के प्रदर्शन किये। वामपंथी विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध रहे।"
हिंदी के चर्चित कथाकार ह्रषीकेश सुलभ के अनुसार " मेरा परिचय तैयब हुसैन से 1975 के आसपास से ही था। भिखारी ठाकुर पर जिनलोगों ने ईमानदारी से काम किया उनमें तैयब हुसैन थे। भिखारी ठाकुर का जीवन बहुत अलग था। महेन्द्र मिश्र और भिखारी ठाकुर के बीच जमीन आसमान का अंतर था। भिखारी ठाकुर अंततः तुलसीदास बनना चाहते थे। साहित्य अकादमी पर मोनोग्राफ लिखना बहुत बड़ी बात मानी जाती है। तैयब हुसैन का समुचा लेखन एक तरफ और भिखारी ठाकुर पर मोनोग्राफ एक तरफ। मैं पचास साल से संस्कृति की दुनिया में सक्रिय हूं। लेकिन ऐसा व्यक्ति नहीं देखा। तैयब हुसैन को लेखक संगठनों ने भी बिसार दिया। यह अच्छी बात नहीं। उन्हें इस बात का गहरा दुख था। कई अंतरंग बातचीत में रखा। ऐसा बड़प्पन और ऐसी उदारता बहुत काम देखने को मिलती है। भोजपुरी में वर्तनी, क्रिया आदि को लेकर संकट है। लेकिन तैयब जी को कोई संकट नहीं था। अपने नाटकों के संग्रह के लिए नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशित हुई थी।"
जन संस्कृति मंच के अध्यक्ष जितेंद्र कुमार ने उनकी रचनाओं के कई उदाहरण देते हुए बताया " तैयब हुसैन का भोजपुरी में जो योगदान है वह अप्रतिम है। तैयब हुसैन के भोजपुरी में दो कहानी संग्रह है जो 1974 में प्रकाशित हुआ था। उन्होंने चौदह कहानियों का विदेशी से भोजपुरी से अनुवाद कराया था। भोजपुरी साहित्य पर भी उनका काम था। हमलोगों की उनपर केंद्रित एक अंक निकालने की योजना है उनसे मिलने पर लगता था कि किसी बड़े लेखक से नहीं बल्कि एक किसान से मिल रहे हैं। तैयब हुसैन ने भोजपुरी साहित्य को समृद्ध किया। "
प्रगतिशील लेखक संघ के राज्य अध्यक्ष वरिष्ठ कथाकार संतोष दीक्षित ने श्रद्धांजलि सभा में कहा " मेरी तैयब हुसैन से उनकी मृत्यु के पूर्व लम्बी बातचीत हुई थी। उन्होंने काफी काम किया। काम करने की लोगों को प्रेरणा दी। मुझे इस बात का दुख है कि करीब रहने के बावजूद उनसे मुलाक़ात न हो सकी। "
संस्कृतिकर्मी संजय श्याम ने उन्हें साहित्यकार से अधिक कार्यकर्ता बताते हुए कहा " मुझे उनकी मृत्यु से तीन चार दिन पहले तक सम्पर्क बना रहा। तैयब हुसैन के साथ 'जनज्वार' पत्रिका में काम करने का मौका मिला। एक बार मोतिहारी में एक कार्यक्रम के दौरान पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। उस वक्त तैयब हुसैन हमलोगों के साथ थे। लेकिन उन्होंने ऐसी विपरीत परिस्थिति में भी जिस ढंग से हमलोगों का हौसला बढ़ाया वह दुर्लभ है। हम लोग प्रेमचंद जयंती के अवसर पर गाँवों में ले जाया करते थे। एक बार बीएचयू में जब कार्यक्रम करने के दौरान भी पुलिस द्वारा उनसे पूछताछ की गई थी।"
भोजपुरी साहित्यकार सुनील पाठक ने कहा " मेरा तैयब हुसैन पीड़ित से 1979 से परिचय रहा है। प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से प्रेमचंद की शताब्दी समारोह का आयोजन किया जा रहा था। उसमे तैयब हुसैन जी भी शामिल थे। तैयब हुसैन भोजपुरी में नये ढंग के आस्वाद की बात किया करते थे। अच्छा हुआ रिटायरमेंट के बाद वे पटना चले आये जिससे कई महत्वपूर्ण काम वे कर पाए। मैनेजर पांडे द्वारा सम्पादित किताब 'सीवान की कविता' में अंतिम कवि थे तैयब हुसैन। उन्हें किसी भी किस्म को लेकर परहेज नहीं था लेकिन अपने विचारों को दृढ़ता से रखा करते थे। वे कहा करते कि कविता में राजनीति क्यों नहीं करेंगे? तैयब हुसैन कहा करते थे कि भोजपुरी में भावना की तरलता और कल्पना की उड़ान तो है लेकिन विचार का अभाव है। वे भोजपुरी साहित्य में विचार को लाना चाहते थे। वे यह भी कहा करते थे कि भोजपूरी क्षेत्र में बुद्ध का काफी आना जाना था।"
वरिष्ठ रंगकर्मी विनोद कुमार वीनू ने भोजपुरी में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा " तैयब हुसैन से भेंट इप्टा के सीवान में होने वाले सम्मेलन में मुलाक़ात हुई थी। भिखारी ठाकुर के नाटक 'गबरघिचोर' में मुझे अभिनय करने का मौका मिला। तैयब हुसैन की याद को बरकरार रखना एक क्रांतिकारी काम है।"
जानवादी लेखक संघ के मंजुल कुमार दास ने याद करते हुए कहा " तैयब हुसैन लोक संस्कृति की बात किया करते थे जबकि आज चारों ओर अपसंस्कृति की बात कर रहे हैं। डिजिटल लैंडस्केप आज बर्बाद किया जा रहा है। "
श्रद्धांजलि सभा को तैयब हुसैन के भतीजे परवेज, जमील, अब्दुल्ला अंसारी, दिलीप कुमार, राम रक्षा मिश्र विमल, श्वेता सागर ने भी संबोधित किया। इस दौरान साहित्यकार कर्मन्दु शिशिर का शोक संदेश पढ़कर सुनाया गया।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के कार्यकारी अध्यक्ष महमाया प्रसाद सिंह विनोद ने कहा " तैयब हुसैन साहित्यकार से भी अधिक बहुत बड़े इंसान थे। भोजपुरी साहित्य सम्मेलन की ओर से हमने दो किताबों का प्रकाशन कराया था। देश विदेश के कई बड़े साहित्यकारों से भोजपुरी भाषी लोगों को परिचित कराया। "
श्रद्धांजलि सभा में मौजूद लोगों में प्रमुख थे– राकेश रंजन, समता राय, कुलभूषण गोपाल, सुजीत, विनोद कुमार वीनू, जया, मीर सैफ अली, राम जी, सुमन, चितरंजन भारती, प्रीति प्रभा, रवीन्द्र कुमार सिन्हा, अरुण नारायण, सुशील कुमार, यशवंत आदि
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