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ख़बरों के आगे–पीछे: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का साझा दुख

वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन अपने साप्ताहिक कॉलम में लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के हालात की बात कर रहे हैं। साथ ही चिंदबरम और वसुंधरा की राजनीति की चर्चा कर रहे हैं।
SONAM

लद्दाख में बिगड़ती जा रही है बात

केंद्र सरकार की हठधर्मिता के चलते सीमावर्ती केंद्र शासित लद्दाख में हालात बिगड़ते जा रहे हैं। एपेक्स बॉडी लेह (एबीएल) के सह-अध्यक्ष चेरिंग दोरजे लाकरुका ने केंद्र के साथ बातचीत करने से इनकार करते हुए कहा है, ''हमें राष्ट्र विरोधी कहना हमारा और हमारी देशभक्ति का अपमान है। हम बंदूक की नोक पर बातचीत नहीं कर सकते।’’ उन्होंने बातचीत से पहले राष्ट्र-विरोधी का आरोप वापस लेने और पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक सहित सभी गिरफ्तार लद्दाखियों की रिहाई की मांग की है। 

लाकरुक ने एक मीडिया इंटरव्यू में कहा, ''लेह के लोग अनुच्छेद 370 को अभिशाप समझते थे, क्योंकि यह लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिलने की राह में रुकावट था। लेकिन अब हम मानते हैं कि इस अनुच्छेद ने 70 साल तक हमें संरक्षण दिया। इसके ना होने के बाद ये सारा इलाका बाकी देश के लोगों के लिए खुल गया है और स्थानीय लोगों की सुरक्षा घट गई है।’’ 

ऐसी बातें लोग सामान्यत: घोर निराशा की हालत में कहते हैं। अब सवाल केंद्र से है कि अगस्त 2019 में लद्दाख के लोगों में जो उम्मीदें पैदा हुईं, उन्हें पूरा क्यों नहीं किया गया? हकीकत यह है कि केंद्र की समझ और लद्दाख-वासियों के एहसास में गहरी खाई बन चुकी है। 24 सितंबर की हिंसक घटनाओं ने इसे और गहरा दिया है। यह मौका है कि केंद्र सरकार लद्दाख-वासियों के मन की बात को संजीदगी से सुने। लद्दाख सीमाई इलाका है, जिस पर चीन की नज़र रहती है। वहां के लोगों में असंतोष गहराना भारत के लिए नई चुनौतियां पैदा कर सकता है। 

जम्मू-कश्मीर: सत्यपाल मलिक का दावा सही साबित होगा!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह बार-बार कहते है कि सही समय आने पर जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल हो जाएगा। लेकिन अब ऐसा लगता है कि जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक का यह दावा ही सही साबित होता दिख रहा है। सत्यपाल मलिक ने अपनी मृत्यु से कुछ दिनों पहले अपने कुछ करीबी मित्रों को बताया था कि जम्मू-कश्मीर को मोदी के प्रधानमंत्री रहते कभी भी पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिलेगा। 

उनके दावे के मुताबिक मोदी ने खुद उन्हें कहा था कि ''मेरे रहते हुए जम्मू-कश्मीर को कभी भी पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिलने वाला है।’’ अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी हुए और जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बने पांच साल से ज्यादा हो गए हैं। अब लद्दाख की ताजा घटनाओं से तो हालात और ज्यादा बदल गए हैं। गौरतलब है कि लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर प्रदर्शन हुआ तो बड़ी हिंसा हुई और चार लोग मारे गए। उसके बाद जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेताओं ने कहा कि लद्दाख के आंदोलन को देखते हुए सरकार को सोचना चाहिए कि जम्मू कश्मीर के लोगों के मन में क्या चल रहा होगा। जाहिर है जम्मू कश्मीर में ज्यादा खदबदाहट है। लेकिन लद्दाख के घटनाक्रम से सुरक्षा की चिंताएं बढ़ गई हैं। केंद्र सरकार लद्दाख में विदेशी ताकतों खास कर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के सक्रिय होने की बात कह रही है। जाहिर है कि इसी बहाने जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को टाला जाएगा।

असम में भाजपा को बड़ा झटका

असम में अगले साल अप्रैल में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा को बहुत बड़ा झटका लगा है। बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल यानी बीटीसी के चुनाव में भाजपा बुरी तरह से हारी है। बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट यानी बीपीएफ ने कमाल का प्रदर्शन करते हुए अकेले दम पर बड़ा बहुमत हासिल किया। 40 सीटों के बीटीसी चुनाव में हागरामा महलारी की पार्टी बीपीएफ को 28 सीटें मिली हैं। गौरतलब है कि पहले भाजपा का बीपीएफ के साथ गठबंधन था। लेकिन बाद में उसकी विरोधी पार्टी यूपीपीएल के साथ मिल कर भाजपा ने बीपीएफ को निबटा दिया था। लेकिन पांच साल के बाद बीपीएफ ने बाउंस बैक किया है। इसका बड़ा नुकसान भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टी को हुआ है। 

महलारी खुद दो सीटों से लड़े थे, जिसमें से एक सीट पर जीते हैं और यूपीपीएल के नेता प्रमोद बोडो भी दो सीटों से लड़े थे और एक ही सीट पर जीते हैं। इस मामले में दोनों बराबरी पर हैं लेकिन महलारी की पार्टी ने भाजपा और यूपीपीएल को दोनों को जमीन दिखा दी है। अब विधानसभा चुनाव में नए समीकरण बनाने की जरूरत पैदा हो गई है। 

पिछले यानी 2021 के विधानसभा चुनाव में बीपीएफ ने कांग्रेस के बनाए गठबंधन महाजोत के साथ चुनाव लड़ा था। बदरूद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ भी महाजोत का हिस्सा थी। हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव में सब अलग हो गए थे लेकिन अब कहा जा रहा है कि अगले साल के चुनाव में एक बार फिर विपक्ष का बड़ा गठबंधन बनेगा। 

चिदंबरम ने कांग्रेस को मुश्किल में डाला

कांग्रेस में कई ऐसे नेता हैं जो अक्सर जाने-अनजाने ऐसे बयान देते रहते हैं जो कांग्रेस के लिए असहज स्थिति पैदा करते हैं। इस सिलसिले में मणिशंकर अय्यर, शशि थरूर, दिग्विजय सिंह, आनंद शर्मा आदि नेताओं के बयानों को याद किया जा सकता है। अब कतार में पी. चिदंबरम भी शामिल हो गए हैं। चिदंबरम काफी पढ़े लिखे नेता हैं और जनाधार न होने के बावजूद वर्षों तक केंद्र सरकार में अहम मंत्रालयों के मंत्री रहे हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों से भी वे अछूते नहीं रहे हैं। इस सिलसिले में वे और उनके बेटे कार्ति दोनों जेल में भी रह चुके हैं। अब भी उनके पूरे परिवार पर केंद्रीय एजेंसियों की तलवार लटक रही है। इसके बावजूद कांग्रेस आलाकमान ने पिता, पुत्र दोनों को एडजस्ट किया है। पी. चिदंबरम राज्यसभा में हैं तो उनके बेटे को उनकी पारंपरिक शिवगंगा सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ाया गया था, जहां गठबंधन के बूते वे जीत गए। 

पी. चिदंबरम ने कांग्रेस को बहुत गहरा घाव दिया है। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा है कि 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले के बाद अमेरिका के दबाव में कांग्रेस सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की थी। उनके इस बयान के बाद हंगामा मचा जो कि स्वाभाविक था। भाजपा इसको लेकर कांग्रेस को घेर रही है और कांग्रेस के लिए इसका जवाब देना मुश्किल हो रहा है। बहरहाल यह समझना मुश्किल नहीं है कि भ्रष्टाचार के मामले में मुकदमों का सामना कर रहे चिदंबरम ने यह बयान क्यों दिया होगा।

वसुंधरा की सक्रियता से क्या बदलेगा?

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सक्रियता के किस्से चर्चा में हैं। वे अचानक राजनीतिक बियाबान से निकल कर सत्ता के गलियों में चहलकदमी करने लगी हैं। सवाल है कि इससे क्या बदलेगा? उनकी दो इच्छा है। पहली राजस्थान का मुख्यमंत्री बनना और दूसरी अपने बेटे दुष्यंत सिंह को केंद्र में मंत्री बनवाना, जो लगातार चार बार से लोकसभा का चुनाव जीत रहे हैं। वसुंधरा राजे की उम्र 72 साल है और वे राजस्थान विधानसभा की सदस्य भी हैं। वे इशारों में खुद के राजनीतिक वनवास में होने की बात भी कह रही हैं। वे नि:संदेह राजस्थान में भाजपा की सबसे बड़ी और स्वाभाविक नेता हैं और शायद इसी वजह से पार्टी के मौजूदा शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें हाशिए पर डाल रखा है। इसलिए सवाल है कि क्या उनका वनवास खत्म होगा? अफवाहबाज मीडिया कुछ दिन पहले उन्हें उप राष्ट्रपति बनवा रहा था। फिर कहा गया कि वे भाजपा की पहली महिला अध्यक्ष हो सकती हैं। लेकिन यह भी संभव नहीं लगता है। 

संसद के मानसून सत्र के दौरान वसुंधरा ने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की। इसके अलावा जोधपुर में जब संघ के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए संघ प्रमुख मोहन भागवत पहुंचे तो उनसे भी वसुंधरा की आधे घंटे की मुलाकात हुई। कहा जा रहा है कि इतनी सक्रियता से राजस्थान मंत्रिमंडल में उनके कुछ करीबी नेताओं को जगह मिल जाएगी। लेकिन वसुंधरा की सक्रियता निश्चित रूप से इतने भर के लिए नहीं है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

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