अहमदाबाद विमान हादसा और मौत के साए में जीते हुए हम

डर पहले भी लगता था लेकिन अब ज्यादा लगता है। घर से बाहर निकले और पता नहीं कौन वाहन आपको कुचल जाए। ट्रेन से यात्रा कर रहे हैं तो पता नहीं कब ट्रेन किसी दूसरी ट्रेन से टकरा जाए। इधर बीच इतने रेल हादसे हुए कि लोग ट्रेन से जाने में कतराने लगे। रेल में अव्यवस्था के कारण जिस तरह से ट्रेन में जनरल क्लास वाले स्लीपर में और स्लीपर क्लास वाले एसी 3 में यात्रा करने लगे हैं, उसी तरह से बढ़ते रेल हादसों को देखते हुए लोग विमान यात्रा को तरजीह देने लगे थे। लेकिन अब तो विमान यात्रा भी सुरक्षित नहीं रही।
अहमदाबाद के विमान हादसे ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। यह देश का दूसरा सबसे बड़ा विमान हादसा है। करीब 270 लोगों की मौत हो गई है। इसमें 229 यात्री, 12 चालक दल के सदस्यों सहित और 29 वो लोग हैं जो विमान गिरने के दौरान उसकी चपेट में आये। इनमें से पांच डॉक्टर हैं। क्योंकि विमान डॉक्टरों के एक हॉस्टल से जा टकराया था। मरने वालों में गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी भी हैं।
इससे पहले 1996 में यानी आज से 29 साल पहले हरियाणा के चरखी दादरी में बड़ा विमान हादसा हुआ था, जिसमें 349 लोग मारे गए थे। तब सऊदी अरब एयरलाइंस की फ्लाइट नंबर 763 की हवा में ही कजाखिस्तान एयरलाइंस की फ्लाइट नंबर 1907 से टक्कर हो गई थी।
देश में इतनी मौतें हो रही हैं कि आम आदमी भले ही दुखी हो रहा हो लेकिन नेता और अधिकारी लगता है जैसे संवेदनहीन हो गये हैं। चाहे जितने सड़क हादसे हों, रेल दुर्घटनाएं हों या अब विमान दुर्घटना उनकी प्रतिक्रिया ऐसी ही कुछ होती है। जैसे लोग इस भारत भूमि की धरती पर हादसों से ही मरने के लिए आये हैं। यही वजह है कि सड़क हादसों पर परिवहन मंत्री नितिन गडकरी आंकड़े बताते हैं और कहते हैं कि इन्हें कम करने की कोशिश की जा रही है। रेल दुर्घटनाओं पर अश्विनी वैष्णव खामोश रहते हैं। जब उनसे नैतिकता के नाम पर इस्तीफा मांगा जाता है तो वे लोगों को ऐसे देखते हैं जैसे उसने बहुत बड़ा पाप कर दिया है।
अब अहमदाबाद के विमान हादसे पर भी केंद्रीय गृह मंत्री का रवैया ऐसा ही है। उन्होंने इसे हादसा बताया और कहा कि हादसों को हम रोक नहीं सकते। सवाल यह है कि अगर हादसों को आप रोक नहीं सकते तो किसलिए मंत्री बने बैठे हैं? लेकिन यह भी सच है कि वे जिम्मेदारी कबूल करने लगें तो सचमुच कभी का उन्हें पद से हट जाना चाहिए था।
मणिपुर पिछले दो साल से ज्यादा समय से जल रहा है, हाल ही में पहलगाम में 26 लोगों की आतंकवादियों ने सामूहिक हत्या कर दी, बदले में जब भारत ने पाकिस्तान पर कार्रवाई की तो जवाबी कार्रवाई करके पाकिस्तानी सैनिकों ने जम्मू सीमा पर करीब तीस लोगों को मार डाला, और अब इस विमान हादसे ने कम से कम 270 लोगों की जान ले ली है। लेकिन अमित शाह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। यहां किसी हादसे के लिए किसी की जिम्मेदारी तय नहीं होती। यही वजह है कि ऐसे हादसे दिन ब दिन बढ़ते ही जा रहे हैं।
अगर रेल हादसे पर अश्विनी वैष्णव का इस्तीफा होता तो आगे बनने वाला रेल मंत्री ज्यादा जिम्मेदारी से काम करता। अगर मणिपुर और पहलगाम जैसी घटनाओं का जिम्मेदार मानते हुए अमित शाह को उनके पद से हटाया जाता तो इनकी जिम्मेदारी संभालने वाला दूसरा नेता ज्यादा जिम्मेदारी से काम करता। लेकिन अगर जिम्मेदारी तय होगी तो प्रधानमंत्री इससे कैसे बचेंगे? उन्हें भी तो इस्तीफा देना पड़ता? उन्होंने तो और बड़े-बड़े कमाल किये हैं। नोटबंदी से लेकर लॉक डाउन लगाने और कोरोना में ऑक्सीजन की कमी से लाखों लोगों की मौत तक।
विमान दुर्घटना और सोशल मीडिया
सच कहिये तो इस समय सोशल मीडिया ही मुख्य धारा की मीडिया हो गया है। मुख्य धारा की मीडिया तो सत्ता के चारण का कार्य कर रहा है। अब इसी विमान हादसे के मामले में देखिये न मुख्य धारा का मीडिया क्या कर रहा है - सत्ता की दलाली। उसकी खबर है - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हादसे पर दुख जताया, पीएम ने गृह मंत्री अमित शाह को घटना स्थल पर भेजा, मोदी ने गुजरात के चीफ मिनिस्टर से घटना की जानकारी ली, खुद घटना स्थल पर पहुंचे और मौके का जायजा लिया, एयरपोर्ट पर ही अधिकारियों की बैठक ली। आदि..आदि। जबकि सोशल मीडिया सवाल पूछ रहा है। घटना कैसै घटी ? क्या वजह है ? विमान में क्या कमी थी? कमी थी तो इसका जिम्मेदार कौन है ? क्या जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई होगी ?
सोशल मीडिया की इस तरह की प्रतिक्रियाएं सत्ता पक्ष को पसंद नहीं आतीं। लेकिन उससे भी ज्यादा उन लोगों को चुभती हैं जिनका काम सवाल उठाना है ओर वो सवाल उठाने की बजाय सरकार की चमचागिरी में लगे हुए हैं। लेकिन वे सोशल मीडिया की भूमिका को लेकर कोई सवाल नहीं उठा पाते क्योंकि उनकी अपनी चादर बहुत मैली है। ऐसे सवाल उठाने के लिए मीडिया के अन्ना हजारे टाइप के लोग सामने आते हैं। वे समय की मर्यादा और गरिमा की बात करते हैं और कहते हैं कि ये वक्त संवेदना जताने का है सवाल पूछने का नहीं। राहुल देव बड़े पत्रकार हैं। कई प्रतिष्ठित संस्थानों में संपादक रहे हैं। कई मामलों पर उनका नजरिया निष्पक्ष भी नजर आता है। लेकिन पत्रकार बिरादरी में वे मूल रूप से बीजेपी और संघ समर्थक पत्रकार कहे जाते हैं। अपनी निष्पक्ष पत्रकारिता का आवरण बचाये रखने के लिए वे बीच-बीच में बीजेपी और संघ के कार्यों और उनकी कार्यप्रणाली पर भी कुछ सवाल उठा देते हैं। विमान हादसे के मामले में ही चर्चित लोक गायिका नेहा सिंह राठौर ने जब सवाल उठाए तो ये बड़ा होने के नाते उन्हें डांटने के अंदाज में सलाह देते नजर आये। लेकिन अब ऐसे लोगों की पहचान भी सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों ने कर ली है। लोगों ने राहुल देव को ही निशाने पर ले लिया।
विमान दुर्घटना की वजहें
सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने इस विमान को लेकर अपने अनुभव शेयर किये हैं। विमान दिल्ली से अहमदाबाद पहुंचा था और अहमदाबाद से लंदन के लिए उड़ान भरी थी। जो लोग उस विमान से दिल्ली से अहमदाबाद आये थे उनका कहना है कि विमान में एसी काम नहीं कर रहा था। एक पत्रकार हैं एस प्रदीप। उन्होंने इस विमान हादसे के बारे में सोशल मीडिया पर लिखा है। महान पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा के पुत्र और पत्रकार राजीव बहुगुणा ने अपनी फेसबुक वाल पर उनका लिखा पेश किया है। उनके अनुसार एस प्रदीप लिखते हैं कि क्या आप जानते हैं कि एविएशन कवर करने वाले ज़्यादातर पत्रकार एयर इंडिया से यात्रा करने को सबसे लास्ट (आखिरी) ऑप्शन रखते हैं। पिछले पंद्रह सालों में (जब से मैंने एविएशन कवर करना किया) मेरी भी सबसे लास्ट च्वाएस एयर इंडिया ही रही।
ये जो अहमदाबाद में बोइंग 787 ड्रीमलाइनर क्रैश हुआ इससे कोई भी पुराना एविएशन रिपोर्टर हैरान नहीं है। बस ये घटना इतने सालों बाद क्यों हुई, ये मेरे लिए सरप्राइज़ था। एयर इंडिया में बोइंग 787 ड्रीमलाइनर आने के दो साल बाद ही इसके महँगे मेंटेनेंस को लेकर सवाल उठने लगे थे। पायलटों की हड़ताल और एयर इंडिया के ख़स्ताहाल के बीच जो सबसे हैरानी वाली बात निकलकर आई थी, जिसे कोई पत्रकार हिम्मत करके भी नहीं छाप पाया था वो ये है कि एयर इंडिया की इंजीनियरिंग टीम ने एक रिपोर्ट तैयार की थी जिसमें साफ़ लिखा गया था कि कंपनी के पास अपने एयर क्राफ़्ट्स के नए स्पेयर पार्ट्स ख़रीदने तक के पैसे नहीं है। और कई सालों तक तो पुराने घिसे पिटे पार्ट्स को ठीक करके ही प्लेन उड़ाए गए। शायद आज भी वैसा ही हो रहा है।
पिछले दो दशकों में ऐसी कई घटनाएँ हुई, जिसमें आम यात्रियों को ये बोला जाता रहा कि कुछ टेक्निकल कारणों से एयर इंडिया की फ़्लाइट रद्द हो गई है। लेकिन एयर इंडिया के पायलट और इंजीनियर दोस्त बताते रहे कि फटे-पुराने टायरों या फिर घटिया स्पेयर पार्ट्स की वजह से प्लेन नहीं उड़ पाए। मुझे ये बताने में बिलकुल भी हिचक नहीं है कि जब भी मुझे मजबूरन एयर इंडिया की फ़्लाइट लेनी पड़ी, मैंने हर फ़्लाइट से पहले प्लेन के टायरों की तरफ़ देखा कि कहीं ये घिसे हुए तो नहीं हैं?
2013 में मैंने अपनी आख़िरी बार बोइंग 787 ड्रीमलाइनर में दिल्ली से लंदन तक की यात्रा की. लेकिन उस वक़्त भी प्लेन की हालत बेहद ख़राब थी। इंजन काफ़ी वाइब्रेट कर रहे थे और लैंडिंग इतनी हार्ड थी कि लगा किसी थर्ड हैंड फ़्लाइट में सफ़र कर रहे हों।
ज़िम्मेदार कौन?
अब सवाल ये है कि अहमदाबाद की घटना क्यों हुई और ज़िम्मेदार कौन? तो इसे सीधे शब्दों में समझिए। सरकार एयर इंडिया बेचना चाहती थी और ये टाटा समूह को ही बेचना चाहती थी। रतन टाटा की दिली ख्वाहिश भी थी कि एयर इंडिया एक बार फिर टाटा समूह के पास आ जाए। लेकिन अगर एयर एशिया और सिंगापुर एयरलाइंस के पेच को हटा भी दें तो भी टाटा की मैनेजमेंट एयर इंडिया की ख़स्ताहाल की वजह से इसे ख़रीदने से कतराती रही। मौजूदा सरकार ने एक तरह से जबरन करोड़ों रुपए के रीबेट के साथ एयर इंडिया को टाटा समूह की झोली में डाल दिया।
टाटा समूह को एयर इंडिया के कबाड़ में तब्दील हो रहे फ्लीट की चिंता सता रही थी। लेकिन नए प्लेन ख़रीदना मारूति या हुंडाई की कार ख़रीदने जितना आसान भी नहीं है। टाटा ने एयर इंडिया के लिए जिन नए प्लेन्स का ऑर्डर दिया उन्हें आने में अभी भी लगभग 2-3 साल लगेंगे। ऐसे में कंपनी बेचारी क्या करती? सबसे आसान तरीक़ा यही था कि यात्रियों को लुभाने का लोगो बदल दीजिए, एयर होस्टेस की ड्रेस अप़डेट कर दीजिए और प्लेन के सीट कवर बदल दीजिए। कंपनी ने वही किया। लेकिन इंजन उसी तरह ठीक कराते रहे जैसे कोई अपनी कार को शोरूम में ठीक करवाने की जगह नज़दीकी कार मार्केट में ठीक करा लेता है।
एक विमानन कंपनी में काम करने वाले पराग वर्मा ने विमान दुर्घटना के कारणों को अपने ढंग से जानने की कोशिश की है। उनके लिखे को प्रसिद्ध हिंदी कवि कात्यायनी ने अपनी वॉल पर डाला है। पराग वर्मा लिखते हैं, “बोइंग 787 ड्रीमलाइनर विमान ने उड़ान भरी पर वह अपेक्षित ऊंचाई तक नहीं चढ़ पाया। इस में पहला संदेह तो जहाज के इंजन पर होता है। इस बोइंग जहाज में जीई कंपनी के ट्विन इंजन लगते हैं। यदि किसी कारणवश एक इंजन के कंप्रेसर में या सेंसर में कोई तकनीकी समस्या आई होती और उससे थ्रस्ट मिलना कम हो जाता तो जहाज दूसरे इंजन के थ्रस्ट के कारण घूमने लगता। पर जहाज की जो तस्वीरें और वीडियो देखे हैं उनमें ऐसा कुछ नहीं लग रहा और जहाज क्रेश होने के पहले भी एकदम सीधा ही उड़ रहा है।
तो क्या दोनों ही इंजन एक साथ फेल हो गए ? ये होना बहुत दुर्लभ है। हालांकि कभी कभी जब बड़ी चिड़िया इंजन में फंस जाती है तब इंजन में आग पकड़ लेती है और दोनों इंजन भी एक साथ बंद हो जाते हैं। पर बोइंग के इस हवाई क्रेश में इंजन में कोई विस्फोट या आग नहीं दिखाई देती। इसके अलावा कोई बड़े मैकेनिकल फेलियर से भी अचानक से दोनों इंजन बंद हो सकते हैं पर उस समय विमान तेज़ी से नीचे गिरेगा। इस केस में तो विमान के क्रेश होने तक भी इंजन में फारवर्ड थ्रस्ट मौजूद लग रहा है। इसलिए ये इंजन फेल्योर का मामला नहीं लगता है।
फिर सवाल ये उठता है कि जब दोनों इंजन काम कर रहे थे तो लिफ्ट क्यों नहीं मिल रही थी। अपेक्षित लिफ्ट नहीं मिलने के कारण ही संभवतः पायलटों ने 600 फीट की ऊंचाई से एटीसी से मदद भी मांगी थी। ऐसा हो सकता है कि चढ़ाई के समय विमान के विंग पर लगे फ्लेप सर्फेस का जो कान्फिगरेशन होना चाहिए वह सेट नहीं किया गया हो। ये विमान को तैयार करने वाले और उसका निरीक्षण करने वाले ग्रुप की ग़लती हो सकती है। या फिर चढ़ाई के कान्फिगरेशन को पायलट ने ठीक से जांचा नहीं, गलत सेट कर दिया और आटो वार्निंग को भी नज़रंदाज़ कर दिया। इंजन के सही काम करने के बावजूद यदि विंग पर लगे सर्फेस ठीक से काम ना करें या उन्हें सही से सेट ना किया गया हो तो अपेक्षित लिफ्ट नहीं मिलेगी।
लिफ्ट नहीं मिलने के कारण चालू होता है क्रू मेंबर्स का पेनिक। क्यूंकि जहाज ज्यादा ऊंचा नहीं उड़ा है, इसलिए चीजों को समझने और सही करने का समय कम रहता है। शायद इस पैनिक में ही क्रैश के वक्त भी जहाज का लैंडिंग गियर खुला हुआ था जिससे और ड्रेग पैदा हुआ होगा और लिफ्ट बाधित हुई होगी।
या ये भी मुमकिन है की लैंडिंग गियर में कोई तकनीकी त्रुटि आई हो, जिसको सही करने में जुटे क्रू के बीच पैनिक शुरू हुआ हो और इस सबमें पायलट विमान के सर्फेस वाली समस्या पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाए जो मुख्य समस्या थी। अक्सर ऐसा भी होता है कि लिफ्ट ना मिलने की सूरत में पायलट पहले इंजन के आटो थ्रोटल वगैरह को सही करने में लग जाते हैं जबकि समस्या कहीं और रहती है जैसे विंग कान्फिगरेशन में अथवा लैंडिंग गियर में।
कुल मिलाकर फिलहाल तो यह मामला ओवर स्ट्रेस्ड क्रू, ट्रेनिंग की कमी, विमान मेंटेनेंस और रेडीनेस में लापरवाही, स्टाफ द्वारा कुछ जरूरी चेक्स स्किप करना और अंततः पैनिक के समय समस्या कहीं और इलाज कहीं और वाला दिखाई पड़ता है।”
इसी तरह से सोशल मीडिया पर कुछ दूसरे लोगों ने विमान दुर्घटना में साजिश की भी आशंका जताई है।
मार्मिक कहानी
दैनिक हिंदुस्तान के पूर्व संपादक प्रमोद जोशी ने अपनी वॉल पर घटना से जुड़ा एक बहुत ही मार्मिक प्रसंग प्रस्तुत किया है। उन्होंने अपनी पोस्ट पर प्रतीक जोशी और उनके परिवार की मार्मिक कहानी प्रस्तुत की है। उसे पढ़कर आंखें भर आती हैं। लिखते हैं–
प्रतीक जोशी छह साल से लंदन में रह रहे थे। सॉफ्टवेयर पेशेवर जोशी, लंबे समय से अपनी पत्नी और तीन छोटे बच्चों के लिए विदेश में जीवन बनाने का सपना देख रहे थे, जो भारत में ही रहते थे। कई साल तक उचित मंजूरी के इंतजार के बाद आखिरकार सपना सच होने जा रहा था। अभी दो दिन पहले उनकी पत्नी डॉ कोमी व्यास ने,जो उदयपुर की एक प्रसिद्ध डॉक्टर हैं,अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। बैग पैक हो चुके थे,अलविदा कह चुके थे, भविष्य हाथ में था। कल सुबह,उम्मीद और उत्साह से भरा पाँच लोगों का परिवार लंदन जाने वाली एयर इंडिया की फ्लाइट 171 में सवार हुआ। उन्होंने एक सेल्फी क्लिक की। इसे रिश्तेदारों को भेजा। एक नई ज़िंदगी की एकतरफा यात्रा। लेकिन वे कभी नहीं पहुँच पाए। विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। कोई भी जीवित नहीं बचा। कुछ ही पलों में, जीवन भर के सपने राख में बदल गए। यह स्टोरी ट्विटर यानी एक्स पर भी है। वहां इसे एक करोड़ 70 लाख से ज्यादा लोग पढ़ चुके हैं। ऐसी कई कहानियां सोशल मीडिया पर इधर-उधर बिखरी पड़ी हैं। और शायद यही सवाल पूछ रहीं हैं कि ऐसा क्यों हुआ, कौन है ज़िम्मेदार, कौन देगा जवाब?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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