इतवार की कविता: मॉब लिंचिंग का शिकार होने तक

वीना, एक बेबाक, जुझारू युवा पत्रकार तो थीं ही, साथ ही एक बेख़ौफ़ व्यंग्य लेखक और कवि भी थीं। अभी 21 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के बागपत में ट्रेन की चेपट में आकर उनकी असमय मौत हो गई। आज इतवार की कविता में पढ़ते हैं उनकी हिंदी और पंजाबी में दो बेख़ौफ़ कविताएं। जी हां, उन्होंने पंजाबी में भी लिखने की कोशिश की, जिसमें उनकी मदद की उनकी दोस्त ने। उन्होंने ख़ुद लिखा- पंजाबी शब्द सुधारने के लिए साक्षी नागपाल (हेमा) का शुक्रिया।
मॉब लिंचिंग का शिकार होने तक
राह चलते बेइज़्ज़त होने के लिए
यूं तो काफ़ी है मेरा औरत होना
फिर भी लगता है आजकल
किसी ख़ास लिबास में निकलूं
जय श्री-राम और भारत माता की जय के इस युग में
महसूस करुं जज़्बात
बुर्के वाली अल्लाह की बंदी के
किसी दिन संसद की सड़क पर निकल जाऊं
फटे-पुराने चीथड़े से आधे ढके, आधे दीखते बदन
थामकर हाथ किसी पूरी तरह नंग-धड़ंग
भूख से बिलखते आदिवासी बालक का
ख़ून से सना कश्मीरी चोगा पहनकर
विलाप से दहला दूं किसी दिन
तख़्तनशीनों की आलीशान कोठियों के सन्नाटे को
सिर पर मैले की टोकरी, हाथ में झाड़ू लेकर
बजाऊं राष्ट्रपति के द्वार की सांकल
और मांगू हिसाब
सीवर की सड़न में जानवर की तरह गर्त होने वाली
आदमज़ात की जानों का
आवाज़ दूं दिल्ली की मुर्दा पड़ी औरत ज़ात को
आओ जसोदाबेन अकेली है, घरेलू हिंसा की शिकार
चलो खड़का दे थाने-कचहरियों के दरवाज़े
है तुमको-मुझको क़ानूनी अधिकार
जसोदा के पति की करतूत से परदा उठाने का
भटकती रहूं यूं ही इस दिल्ली की गली-गली, सड़क-सड़क
राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री निवास, महलों, झोंपड़ियों से गुज़रती जाऊं
किसी मॉब लिंचिंग का शिकार होने तक
…….
फिर औन्दा ए सैयाद
फिर औन्दा ऐ सैयाद, माँए नी की करिये
जे होया मेरा नंबर इस वार, माएँ नी की करिये
रातां नू उठ-उठ बैनदियां
वेरा नी कद चीर ते डाका पै जावे
ओ राम दे रथ चढ़ आवणंगे
गाँधी नू ढाल बनावणंगे
किवें किशन मदद नू पोंचेगा
ओ ते मुंसिफ ओहनादी सरकारां दा
हजे तक भवरी दी इज़्ज़त रूलदी ऐ
ऐनादी कोट्टा दे गलियारां विच
जय माता दी केहन्दे न
अस्सी दी बेबे छड़दे नई
छः म्हीने दी न्याणी लुटदे न
मेरे दलित-मज़दूर बापू डरदे न
आदिवासी- मुल्ला बापू डरदे न
कुछ बोल माँए नी की करिये
जो वीर भगत सिंह कहदां सी
उस इंक़लाब दी लौ ला लै
चल धीएं फड हसिया, उठा हथौड़ा नी
जे सैयाद बाज़ नी ओणा
ओने मुड़-मुड़ आतंक मचोणा
ते फोडाँगे मत्था उसदा, कट्टागें गर्दन नी
चल धीएं फड हसिया, उठा हथौड़ा नी
- वीना
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