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तिरछी नज़र: अब मंत्री जी कहेंगे– प्रदूषण तुझे जाना होगा

रेखा गुप्ता जी की “कूड़े के पहाड़– तुझे जाना होगा” वाली तरक़ीब बेहतरीन है। यह गड्ढों, मैली यमुना और प्रदूषण पर भी आज़माई जा सकती है। और प्रदूषण तो दो-तीन महीने में उनकी बात मान भी लेगा।
delhi pollution

देश में एक राजधानी है और उस राजधानी में दो सरकार जी रहते हैं। एक तो पूरे देश के सरकार जी हैं और दूसरे, सॉरी दूसरी एनसीटी दिल्ली की सरकार जी हैं। सरकार जी हैं तो प्रॉब्लमस भी हैं, देश में भी और दिल्ली में भी। नहीं, नहीं, प्रॉब्लमस इसलिए नहीं हैं कि सरकार जी हैं। प्रॉब्लमस हैं इसीलिए तो सरकार जी हैं। 

तो एन सी टी दिल्ली में बहुत सारी दिक्कतें हैं जिनके लिए दिल्ली के सरकार जी हैं। वायु प्रदूषण है। सड़कें टूटी फूटी हैं, उनमें गड्ढे हैं और सड़कों पर लगने वाला ट्रैफिक जाम है। गंदगी से भरी नालियां हैं और ओवर फ्लो करते सीवर हैं। प्रदूषित यमुना है और जल बोर्ड की गंदे पानी की सप्लाई है। और बहुत ऊँचे ऊँचे कूड़े के पहाड़ हैं।

सच में, बहुत ऊँचे ऊँचे कूड़े के पहाड़ हैं। दिल्ली में पहाड़गंज और पहाड़ी धीरज में पहाड़ नहीं हैं पर गाज़ीपुर, भल्सवा और ओखला में पहाड़ हैं। वहाँ पर कूड़े के ऊँचे ऊँचे पहाड़ हैं। हर अच्छी बुरी चीज पर गर्व करने वाले हम लोग इस बात पर गर्व कर सकते हैं कि ये पहाड़ प्रकृति ने नहीं, हमने स्वयं बनाए हैं, हमारी सरकारों ने बनाए हैं और हमारे द्वारा पैदा किए कूड़े से बने हैं। पता नहीं कूड़े के पहाड़ की ऊंचाई का विश्व रिकॉर्ड क्या है। क्या पता दिल्ली के ये कूड़े के पहाड़ ही वह विश्व रिकॉर्ड धारक हों।

अब एन सी टी दिल्ली की भाजपा सरकार कूड़े के पहाड़ के पीछे पड़ी है। पीछे पड़ी है कि तुझे जाना ही होगा। वैसे तो भाजपा सरकार जिसके पीछे पड़ जाती है ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स सब उसके पीछे पड़ जाते हैं और उसको जाना ही पड़ता है पर इन कूड़े के पहाड़ों के पीछे दिल्ली सरकार सचमुच में ही पड़ी है और बहुत अच्छी तरह पड़ी है। खुद मुख्यमंत्री महोदया के शब्दों में सुन लीजिये— 

दिल्ली सरकार कूड़े के पहाड़ों को हटाने के लिए क्या कर रही है?

मुख्यमंत्री महोदया के शब्दों में– "अब हर पंद्रह दिन में हमारा मंत्री कूड़े के पहाड़ पे जाता है और उसको बोलता है, खड़ा हो के (बोलता है) कि तेरे को जाना पड़ेगा भई। हर बार, हर पंद्रह दिन में (कूड़े के पहाड़ को बोलते हैं) कि तेरे को जाना पड़ेगा भई, तो रोजाना वो कूड़े के पहाड़ कम हो रहे हैं"। तो भाई, इस तरह से हो रहा है काम।

इस तरह से काम का बहुत लाभ है। एक तो कम रिसोर्स में काम हो जाता है, पैसा बच जाता है। यह बचा हुआ पैसा अपने पास रखा जा सकता है या फिर चुनाव आने पर खुले आम भी बांटा जा सकता है। लाभार्थियों के अकाउंट में डायरेक्ट ट्रांसफर हो सकता है। हाँ जी, चुनाव संहिता लागू होने पर भी हो सकता है। और अगर यह काम सरकार जी करें तो इसे चुनाव आयोग रोकता भी नहीं है। 

मुझे लगता है यह विधि, कूड़े के पहाड़ के सामने जा कर बोलने की यह विधि और चीजों में भी अपनाई जा सकती है। जैसे सड़क के गड्ढे भरने में। इस काम के लिए तो मंत्री की भी जरूरत नहीं है। कोई विधायक या निगम पार्षद ही गड्ढे के सामने खड़े हो कर बोल सकता है, अब तुझे भरना ही होगा। गड्ढे की लम्बाई चौड़ाई के अनुसार दो चार बार बोलने में नहीं तो आठ दस बार बोलने में तो गड्ढा भर ही जायेगा। और मिलने वाला फंड भी अपनी पॉकेट में रखा जा सकता है।

इसी तरह से मुख्यमंत्री स्वयं यमुना किनारे जा सकती हैं, यमुना नदी को बोल सकती हैं, अब तो आपको साफ होना ही होगा। मैं बार बार आ रही हूँ, बार बार बोल रही हूँ, बार बार प्रार्थना कर रही हूँ, अब तो आपको साफ होना ही पड़ेगा। और यमुना साफ हो जाएगी। सारे काम सरकार इसी तरह कर सकती है।

दिल्ली में सर्दी भी अच्छी खासी पड़ती है। शीत लहर चलती है हर साल कुछ लोग शीत लहर की चपेट में आ जान गंवाते हैं। और सर्दियों में वायु प्रदूषण भी नए रिकॉर्ड बनाता है। इस मामले में जरूर मुख्यमंत्री जी यह कर सकती हैं, शीत लहर या वायु प्रदुषण को बोलें कि तुझको अब जाना ही होगा, तुझको अब जाना ही होगा। तो दो चार महीने में शीत लहर भी चली जाएगी और वायु प्रदूषण भी कम हो जायेगा। और मुख्यमंत्री जी ही क्यों, कोई मंत्री, विधायक, पार्षद, या आम जनता का कोई आदमी भी सर्दी को, वायु प्रदूषण को यह बोले कि आप अब चले जाओ, आपको अब जाना ही पड़ेगा तो तीन चार महीने में सर्दी आपकी बात से पिघल कर, वायु प्रदूषण आपकी अपील मान कर चला ही जायेगा। यकीन न हो तो कर के देख लो।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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