भारत की परमाणु नीति पर जन आयोग ने जताई गहरी चिंता, सरकार से पुनर्विचार की अपील

देश की उभरती परमाणु नीति को लेकर "पीपुल्स कमीशन" (जन आयोग) ने गहरी चिंता ज़ाहिर की है। सोमवार को जारी एक विस्तृत बयान में आयोग ने केंद्र सरकार की हालिया नीतिगत पहलों को आत्मनिर्भर परमाणु कार्यक्रम के विरुद्ध बताया है और कहा है कि इससे देश की सामरिक स्वतंत्रता, वित्तीय सुरक्षा और सार्वजनिक जवाबदेही पर गंभीर खतरा पैदा हो सकता है।
जन आयोग के संयुक्त संयोजक और AIBOC के पूर्व महासचिव थॉमस फ्रैंको की ओर से प्रेस को जारी बयान में
जन आयोग ने विशेष तौर पर केंद्रीय वित्त मंत्री के बजट भाषण में परमाणु ऊर्जा क़ानूनों—एटॉमिक एनर्जी एक्ट और सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट (CLNDA)—में संशोधन की मंशा जताने पर आपत्ति जताई है। आयोग का मानना है कि यदि CLNDA को कमज़ोर किया गया, तो परमाणु दुर्घटना की स्थिति में विदेशी आपूर्तिकर्ताओं को ज़िम्मेदारी से बच निकलने का रास्ता मिल जाएगा। आयोग ने ज़ोर देकर कहा कि इस क़ानून को संसद की स्थायी समिति की सिफारिशों के अनुसार और मज़बूत किया जाना चाहिए ताकि डिज़ाइन दोष, घटिया निर्माण या लापरवाही की स्थिति में आपूर्तिकर्ता जवाबदेह हों।
आयोग ने सरकार की विदेशी परमाणु रिएक्टरों और यूरेनियम ईंधन पर बढ़ती निर्भरता को भी गंभीर चिंता का विषय बताया। केंद्र सरकार द्वारा 100 गीगावॉट की परमाणु क्षमता जोड़ने की योजना, जो विदेशी तकनीक पर आधारित होगी, आयोग के अनुसार डॉ. होमी भाभा की आत्मनिर्भर थोरियम-आधारित तीन-चरणीय परमाणु नीति से स्पष्ट विचलन है। आयोग ने कहा कि यह न केवल बिजली की लागत बढ़ाएगा, बल्कि देश को अपारदर्शी समझौतों और अस्थिर वैश्विक ईंधन बाज़ारों में बाँध देगा।
इसके साथ ही आयोग ने परमाणु ऊर्जा उत्पादन में 49% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दिए जाने की खबर पर भी सवाल उठाए हैं। उसने आगाह किया है कि इससे विदेशी कंपनियों को परमाणु संयंत्रों की संवेदनशील गतिविधियों तक प्रभाव और पहुंच मिल सकती है।
जन आयोग ने 2023 के खनिज क़ानून संशोधन के तहत निजी कंपनियों को समुद्री तटों की रेत खनन की छूट देने पर भी आपत्ति जताई है। इसके ज़रिए मोनाज़ाइट और टाइटेनियम जैसे परमाणु खनिजों के नियंत्रणहीन निर्यात का रास्ता खुल सकता है, जो थोरियम आधारित तीसरे चरण की परमाणु नीति के लिए अत्यंत आवश्यक संसाधन हैं। आयोग ने कहा कि पूर्व में ऐसे खनन से व्यापक पर्यावरणीय क्षति और भ्रष्टाचार के मामले सामने आए हैं, इसलिए इस संशोधन को वापस लिया जाना चाहिए।
परमाणु सुरक्षा की निगरानी के लिए आयोग ने स्वायत्त विनियामक निकाय के गठन की भी मांग की है। फ़ुकुशिमा त्रासदी के 13 साल बाद भी भारत में परमाणु सुरक्षा की निगरानी वही संस्था कर रही है जो परमाणु ऊर्जा विभाग के अधीन है—यह व्यवस्था न तो विश्वसनीय है, न ही स्वतंत्र। आयोग ने 2012 की संसदीय सिफारिशों के अनुसार स्वतंत्र नियामक संस्था के गठन की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया।
आयोग ने अपने बयान में यह व्यापक आलोचना भी दर्ज की है कि भारत की परमाणु नीति अब आत्मनिर्भरता, सार्वजनिक जवाबदेही और रणनीतिक दूरदृष्टि जैसे बुनियादी सिद्धांतों से दूर जा रही है। उसने आगाह किया कि विदेशी तकनीक पर आधारित परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं से आने वाली पीढ़ियों पर भारी वित्तीय बोझ पड़ेगा और जनता को स्वास्थ्य और पर्यावरण संबंधी ख़तरों का सामना करना पड़ेगा। आयोग ने वैश्विक वैज्ञानिक सहमति का हवाला देते हुए कहा कि परमाणु संयंत्र से 80 किलोमीटर तक रेडिएशन का खतरा होता है, जबकि भारत में अभी तक बहुत सीमित सुरक्षा क्षेत्र तय किए गए हैं।
आख़िर में जन आयोग ने सरकार से अपील की है कि वह इन नीतिगत बदलावों पर रोक लगाए और व्यापक सार्वजनिक विमर्श के ज़रिए भारत की परमाणु नीति को आत्मनिर्भर, सुरक्षित और टिकाऊ दिशा में फिर से केंद्रित करे। साथ ही उसने नागरिक समाज, विशेषज्ञों और मीडिया से अपील की है कि वे इन विषयों पर सरकार से पारदर्शिता और ज़वाबदेही की माँग करें।
मूल अंग्रेज़ी में जारी बयान पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें–
Govt Should Not Rush Into 49% FDI in Nuclear Power, Warns People’s Commission
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