इज़राइल स्थित एनएसओ ग्रुप के मालवेयर ने पत्रकारों, कार्यकर्ताओं को बनाया निशाना

इजराइल स्थित ‘एनएसओ ग्रुप’ द्वारा दुनियाभर के पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और राजनीतिक असंतुष्टों की जासूसी कराए जाने की ख़बरों के बाद भारत समेत अन्य देशों में हड़कंप है।
आपको बता दें कि एनएसओ ग्रुप का दावा है कि वह केवल अधिकृत सरकारी एजेंसियों को ही ‘‘आतंकवादियों और प्रमुख अपराधियों’’ के खिलाफ इस्तेमाल के लिए इस प्रौद्योगिकी बेचती है, लेकिन यही दावा सबसे बड़ा सवाल खड़ा करता है कि क्या सरकारें अपने पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की भी जासूसी करा रही हैं। हालांकि भारत सरकार ने भी इससे इंकार किया है और दावा किया है कि तय मानकों और कानूनी आधार पर ही एक स्थापित प्रक्रिया के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर इलेक्ट्रॉनिक संवाद को केन्द्र या राज्यों की एजेंसियों द्वारा कानूनी रूप से हासिल किया जाता है।
सरकार कुछ भी कहे लेकिन इस खुलासे ने भारत की राजनीति और पत्रकारिता जगत में अच्छी-खासी हलचल मचा दी है। यह रिपोर्ट ऐसे वक्त में आई है जब सोमवार से संसद का मानसून सत्र शुरू हो गया है। पूरी संभावना है कि यह मुद्दा संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में उठाया जा सकता है। विपक्ष के कुछ नेता इस मुद्दे पर चर्चा के लिए स्थगत प्रस्ताव भी पेश कर सकते हैं।
बोस्टन से जारी एपी की ख़बर के अनुसार लीक हुए आंकड़ों के आधार पर की गई एक वैश्विक मीडिया संघ की जांच के बाद यह साबित करने के लिए और सबूत मिले हैं कि इजराइल स्थित ‘एनएसओ ग्रुप’ के सैन्य दर्जे के मालवेयर का इस्तेमाल पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और राजनीतिक असंतुष्टों की जासूसी करने के लिए किया जा रहा है।
पेरिस स्थित पत्रकारिता संबंधी गैर-लाभकारी संस्था ‘फॉरबिडन स्टोरीज’ एवं मानवाधिकार समूह ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ द्वारा हासिल की गई और 16 समाचार संगठनों के साथ साझा की गई 50,000 से अधिक सेलफोन नंबरों की सूची से पत्रकारों ने 50 देशों में 1,000 से अधिक ऐसे व्यक्तियों की पहचान की, जिन्हें एनएसओ के ग्राहकों ने संभावित निगरानी के लिए कथित तौर पर चुना।
वैश्विक मीडिया संघ के सदस्य ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ के अनुसार, जिन लोगों को संभावित निगरानी के लिए चुना गया, उनमें 189 पत्रकार, 600 से अधिक नेता एवं सरकारी अधिकारी, कम से कम 65 व्यावसायिक अधिकारी, 85 मानवाधिकार कार्यकर्ता और कई राष्ट्राध्यक्ष शामिल हैं। ये पत्रकार द एसोसिएटेड प्रेस, रॉयटर, सीएनएन, द वॉल स्ट्रीट जर्नल, ले मोंदे और द फाइनेंशियल टाइम्स जैसे संगठनों के लिए काम करते हैं।
एमनेस्टी ने भी बताया कि उसके फोरेंसिक अनुसंधानकर्ताओं ने पता लगाया है कि 2018 में इस्तांबुल में सऊदी वाणिज्य दूतावास में पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के ठीक चार दिन बाद उनकी मंगेतर हातिस चंगीज के फोन में एनएसओ समूह के अपना पेगासस स्पाइवेयर सफलतापूर्वक डाला गया था। कंपनी को पहले खशोगी पर एक अन्य जासूसी मामले में आरोपी बनाया गया था।
एनएसओ ग्रुप ने एपी द्वारा पूछे गए सवालों का ईमेल के जरिए जवाब देते हुए इस बात से इनकार किया कि उसने "संभावित, पिछले या मौजूदा लक्ष्यों की कोई सूची" बना रखी है। एनएसओ ने एक अन्य बयान में ‘फारबिडन स्टोरीज’ की रिपोर्ट को "गलत धारणाओं और अपुष्ट सिद्धांतों से पूर्ण’’ बताया।
कंपनी ने अपने दावे को दोहराया कि वह केवल अधिकृत सरकारी एजेंसियों को ‘‘आतंकवादियों और प्रमुख अपराधियों’’ के खिलाफ इस्तेमाल के लिए प्रौद्योगिकी बेचती है, लेकिन उसके आलोचकों का कहना है कि कंपनी के ये दावे झूठे हैं। उनका कहना है कि पेगासस स्पाइवेयर का बार-बार दुरुपयोग निजी वैश्विक निगरानी उद्योग के विनियमन के पूर्ण अभाव को उजागर करता है।
भारत में मंत्रियों,पत्रकारों एवं अन्य के 300 से अधिक फोन नंबर हो सकते हैं हैक: रिपोर्ट
नयी दिल्ली (भाषा): मीडिया संस्थानों के अंतरराष्ट्रीय संगठन ने खुलासा किया है कि केवल सरकारी एजेंसियों को ही बेचे जाने वाले इजराइल के जासूसी साफ्टवेयर के जरिए भारत के दो केन्द्रीय मंत्रियों, 40 से अधिक पत्रकारों, विपक्ष के तीन नेताओं और एक न्यायाधीश सहित बड़ी संख्या में कारोबारियों और अधिकार कार्यकर्ताओं के 300 से अधिक मोबाइल नंबर हो सकता है कि हैक किए गए हों।
यह रिपोर्ट रविवार को सामने आई है। हालांकि सरकार ने अपने स्तर पर खास लोगों की निगरानी संबंधी आरोपों को खारिज किया है। सरकार ने कहा,‘‘ इसका कोई ठोस आधार नहीं है या इससे जुड़ी कोई सच्चाई नहीं है।’’
सरकार ने मीडिया रिपोर्टों को खारिज करते हुए कहा,‘‘ भारत एक मजबूत लोकतंत्र है और वह अपने सभी नागरिकों के निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के तौर पर सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। साथ ही सरकार ने ‘‘जांचकर्ता, अभियोजक और ज्यूरी की भूमिका’’ निभाने के प्रयास संबंधी मीडिया रिपोर्ट को खारिज कर दिया।
रिपोर्ट को भारत के न्यूज पोर्टल ‘द वायर’ के साथ-साथ वाशिंगटन पोस्ट, द गार्डियन और ले मोंडे सहित 16 अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रकाशनों ने पेरिस के मीडिया गैर-लाभकारी संगठन फॉरबिडन स्टोरीज और राइट्स ग्रुप एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा की गई एक जांच के लिए मीडिया पार्टनर के रूप में प्रकाशित किया है।
यह जांच दुनिया भर से 50,000 से अधिक फोन नंबरों की लीक हुई सूची पर आधारित है और माना जाता है कि इजरायली निगरानी कंपनी एनएसओ ग्रुप के पीगैसस सॉफ्टवेयर के माध्यम से संभवतया इनकी हैकिंग की गई है।
द वायर ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि मीडिया जांच परियोजना के हिस्से के रूप में किए गए फोरेंसिक परीक्षणों में 37 फोन को पीगैसस जासूसी साफ्टवेयर द्वारा निशाना बनाए जाने के स्पष्ट संकेत मिले हैं, जिनमें से 10 भारतीय हैं।
द वायर ने कहा कि इन आंकड़ों में भारत के जो नंबर हैं उनमें 40 से अधिक पत्रकार, तीन प्रमुख विपक्षी हस्तियां, एक संवैधानिक अधिकारी, नरेन्द्र मोदी सरकार के दो मंत्री, सुरक्षा संगठनों के वर्तमान और पूर्व प्रमुख और अधिकारी,एक न्यायाधीश और कई करोबारियों के नंबर शामिल हैं।
सरकार ने रिपोर्ट का जवाब देते हुए, मीडिया संगठन को दिए गए अपने जवाब का उल्लेख किया और कहा कि भारत द्वारा व्हाट्सएप पर पेगासस के उपयोग के संबंध में इस प्रकार के दावे अतीत में भी किए गए थे और उन रिपोर्ट का भी कोई तथ्यात्मक आधार नहीं था और भारतीय उच्च न्यायालय में व्हाट्सएप सहित सभी पक्षों ने इससे इनकार किया था।
सरकार ने कहा कि एक स्थापित प्रक्रिया है जिसके जरिए राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर इलेक्ट्रॉनिक संवाद को केन्द्र या राज्यों की एजेंसियों द्वारा कानूनी रूप से हासिल किया जाता है और यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि किसी भी कंप्यूटर संसाधन से सूचना को हासिल करना,उसकी निगरानी करना तय कानूनी प्रक्रिया के तहत हो।
द वायर के अनुसार लीक आंकडों में बड़े मीडिया संगठनों हिंदुस्तान टाइम्स, इंडिया टुडे,नेटवर्क 18, द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस के अनेक जाने माने पत्रकार के नंबर शामिल हैं।
इस रिपोर्ट के आने के बाद पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने अपना गुस्सा व्यक्त करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया।
द वायर के लिए लिखने वालीं पत्रकार रोहिणी सिंह ने ट्वीट किया-
I was targeted through the Pegasus spyware after my Jay Shah and Nikhil Merchant stories and while researching my story on @PiyushGoyal’s shady dealings. I would urge the government to stop reading my conversations and instead read my stories and try to get it’s house in order!
— Rohini Singh (@rohini_sgh) July 18, 2021
रोहिणी सिंह अपनी बात कहने के लिए प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की पंक्तियों का भी सहारा लेती हैं-
तानाशाह एक डरपोक आदमी होता है। अगर पांच गधे भी साथ-साथ घास खा रहे हों तो तानाशाह को डर पैदा होता है कि गधे भी मेरे खिलाफ़ साजिश कर रहे हैं।
- हरिशंकर परसाई
— Rohini Singh (@rohini_sgh) July 18, 2021
स्वतंत्र पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी लिखती हैं-
I was targeted because I investigated Doval’ son & Ram Madhav’s India foundation, broke the “Rajan list” of billionaire defaulters, broke Modi’s visit to court no I in the Supreme Court, ended the media omertà by reporting Jaitley’s kidney transplant & cancer
— Swati Chaturvedi (@bainjal) July 18, 2021
इसी तरह पत्रकार रुपेश कुमार सिंह लिखते हैं-
हाँ, #pegasusproject में मेरा भी नाम है और मेरा भी फोन टेप हुआ है। इसपर मेरा यही कहना है कि फोन सर्विलांस पर रखो या जेल में डाल दो। जब तक जिंदा रहूँगा, जनपक्षीय लेखन जारी रहेगा ✊✊#pegasus
— Rupesh Kumar Singh (@RupeshKSingh85) July 18, 2021
कई पत्रकारों ने टीवी डिबेट में अपना पक्ष रखा
“I wasn’t aware that my phone is being watched. I had my phone forensically analysed by The Wire team. They have found traces of hacks being attempted on my phone”: Vijaita Singh (@vijaita), Journalist, The Hindu, on Indian journalists being targeted by #Pegasus spyware pic.twitter.com/s9tndVsmm0
— NDTV (@ndtv) July 18, 2021
पत्रकार आरफ़ा ख़ानम शेरवानी पूछती हैं-
चौकीदार चोर है या जासूस ?
अब ये तय हो ही जाना चाहिए।— Arfa Khanum Sherwani (@khanumarfa) July 19, 2021
वरिष्ठ लेखक पुरुषोत्तम अग्रवाल लिखते हैं-
छप्पन इंच के सीने का दावा करने वाले भीतर से कितने डरे हुए हैं। तानाशाह मिज़ाज की खास पहचान है यह डर। #Pegasus
— Purushottam Agrawal (@puru_ag) July 19, 2021
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