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इज़रायल–ईरान: मिडिल ईस्ट नहीं पश्चिमी एशिया कहिए जनाब!

Middle East — नाम अमेरिका और यूरोप के औपनिवेशिक नक़्शे और पश्चिम-केंद्रित दृष्टिकोण पर आधारित है।
West Asia map
पश्चिमी एशिया का नक़्शा। गूगल से साभार

 

इज़रायल–ईरान की जंग शुरू हो चुकी है। और ऐसे हर मौके पर हर बहस, विश्लेषण में पत्रकार मिडिल ईस्ट या मध्य पूर्व शब्द का धड़ल्ले से प्रयोग करते हैं। अगर आम लोग जाने-अनजाने इस शब्द का प्रयोग करें तो कोई ख़ास बात नहीं है। लेकिन ख़ुद को जियोपॉलिटिक्स (Geopolitics) का विशेषज्ञ और विद्वान बताने वाले लोग ऐसा करें तो पूछना वाजिब है कि साहब ये मिडिल ईस्ट क्या है और किसके लिए है? इसी एक शब्द से पता चल जाता है कि हम देश–दुनिया के भूगोल, इतिहास और राजनीति को कितना जानते–समझते हैं। 

हम लोग इज़रायल, ईरान, सऊदी अरब, इराक, सीरिया, तुर्की आदि देशों के लिए बिना सोचे-समझे मिडिल ईस्ट की संज्ञा का इस्तेमाल करते हैं। जबकि देश-दुनिया के नक़्शे के हिसाब से सभी लोगों ख़ासकर भारतीयों के लिए तो यह मिडिल ईस्ट नहीं बल्कि वेस्ट एशिया (West Asia) या  पश्चिमी एशिया ही है।

अभी एक बातचीत में न्यूज़क्लिक के चीफ़ एडिटर प्रबीर पुरकायस्थ ने इसको लेकर टोका तो मेरा इस ग़लती की तरफ़ ध्यान गया और फिर मैंने इस बारे में और पढ़ा और इंटरनेट से भी जानकारी जुटाई।  

और समझा कि हम जैसे लोग भी ‘विशेषज्ञ’ कहे जाने वाले लोगों से प्रभावित होकर यही ग़लती दोहराए जाते हैं। जबकि तथ्य यही है कि अमेरिका और यूरोप के लिए यह इलाका मिडिल ईस्ट है, हमारे लिए नहीं। 

आप सोचेंगे कि नाम में क्या रखा है। नाम से क्या फ़र्क़ पड़ता है। लेकिन फ़र्क़ पड़ता है साहिब। तभी तो नाम बदलने की राजनीति चल रही है। हालांकि अपने सियासी फ़ायदे के लिए सड़क और शहरों के स्थापित नामों को बदलने वाले कथित ‘राष्ट्रवादियों’ को भी पश्चिमी एशिया को मिडिल ईस्ट कहने से कोई गुरेज़ नहीं है। यानी ऐसे मुद्दों पर उनकी भावनाएं आहत नहीं होती, जबकि मध्य पूर्व या मिडिल ईस्ट कहना सिर्फ़ भौगोलिक दृष्टिकोण से ही ग़लत नहीं है बल्कि इस बात की निशानी है कि हम अभी तक ग़ुलामी की मानसिकता से बाहर नहीं निकले हैं।  

Middle East — नाम अमेरिका और यूरोप के औपनिवेशिक नक़्शे और पश्चिम-केंद्रित दृष्टिकोण पर आधारित है।

यही वजह है कि CNN, BBC जैसी संस्थाएँ “Middle East” शब्द का उपयोग करती हैं क्योंकि उनका परिप्रेक्ष्य यूरोप या अमेरिका-केंद्रित होता है।

ख़ैर कुछ वरिष्ठों से बात करके और इंटरनेट पर खोजबीन और chatgpt से सवाल-जवाब करके मैंने जो तथ्य और कथ्य जुटाए वो आपके सामने हैं–

ये नाम कैसे बने? 

19वीं और 20वीं सदी में जब ब्रिटेन और फ्रांस जैसे यूरोपीय देशों का दुनिया के बड़े हिस्से पर उपनिवेशवादी शासन था, तब उन्होंने दुनिया को अपने दृष्टिकोण से नक्शों में बांटना शुरू किया:

उन्होंने एशिया के इलाकों को कई नाम दिए– जैसे Near East, Middle East और Far East

Near East यानी यूरोप से बहुत पास का पूर्वी इलाका — जैसे बाल्कन, तुर्की ब्रिटेन/फ्रांस से

Middle East – यूरोप से थोड़ा और दूर — ईरान, अरब, फारस की खाड़ी

Far East सबसे दूर — चीन, जापान, कोरिया

यानी यह "पूर्व (East)" यूरोप से देखा गया पूर्व था।

भारत, इंडोनेशिया, जापान, ईरान — सब "पूर्व" हैं क्योंकि यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियाँ अपने को केंद्र मानती थीं।

ब्रिटिश नौसेना और राजनयिकों ने 19वीं सदी के अंत में “Middle East” शब्द का इस्तेमाल करना शुरू किया, खासकर फारस की खाड़ी और भारत के बीच के इलाके के लिए।

1902 में अमेरिकी नौसेना अधिकारी ने “Middle East” शब्द को रणनीतिक लेखन में प्रयोग किया, जिससे यह नाम अमेरिकी विदेश नीति में रच-बस गया।

उद्देश्य था – भारत और ब्रिटिश उपनिवेशों तक पहुंचने का वह इलाका जो सामरिक रूप से अहम था।

“पश्चिम एशिया” क्यों सही है?

भारत से देखा जाए तो ईरान, इराक, सऊदी अरब, इज़रायल आदि देश पूर्व में नहीं, बल्कि पश्चिम में हैं।

इसीलिए भारत सरकार (MEA), भारतीय शिक्षाविद्, और भूगोल/अंतरराष्ट्रीय संबंध की पाठ्यपुस्तकें अक्सर “पश्चिम एशिया” शब्द का प्रयोग करती हैं।

UPSC, UGC, IGNOU, NCERT में भी यही शब्द मिलता है।

इस तरह 

  • "Middle East" एक राजनैतिक शब्द है, जो अमेरिका-यूरोप के कूटनीतिक एजेंडे को दर्शाता है।
  • "West Asia" या हिंदी में पश्चिमी एशिया एक भोगौलिक शब्द है, जो भारत जैसे एशियाई देशों के दृष्टिकोण से सटीक है।

निष्कर्ष यही है कि "Middle East" कोई प्राकृतिक या सार्वभौमिक नाम नहीं है — यह औपनिवेशिक ज़माने की सोच और सत्ता की दिशा से पैदा हुआ नाम है।

इसी तरह हम जो ख़ुद को पूरब वाले कहते हुए गौरान्वित होते हैं। यह भी उन्हीं का दिया नाम है। यूरोप ने ख़ुद को केंद्र में रखकर अपना नक्शा बना दिया और दुनिया को पश्चिम और पूरब में बांट दिया। 

  • 15वीं–19वीं सदी में यूरोप उपनिवेश बनाने लगा, और उसने नक़्शे भी उसी तरह बनाए।
     
  • उन्होंने अपने आप को "West" नहीं, बस "Center" माना — और बाकी दुनिया को पूर्व (East), दक्षिण (Global South), आदि कहा।

राजनीतिक उद्देश्य से बना नक्शा

"Western Civilization" = यूरोप + अमेरिका

"Eastern World" = एशिया, मध्य एशिया, अरब, भारत, चीन, जापान

यह सिर्फ भूगोल नहीं, विचारधारा थी।

"West" मतलब प्रगतिशील, वैज्ञानिक, लोकतांत्रिक

"East" मतलब रूढ़िवादी, आध्यात्मिक, रहस्यमयी या तानाशाही

इस तरह इन साम्राज्यवादियों के लिए उनके पूरब में जो भी है, वो पिछड़ा, रहस्यमय, और उपनिवेश यानी ग़ुलाम बनाने योग्य है।

इसी को हमने भोगा है और आज भी भोग रहे हैं। आज भी अमेरिका और यूरोप हम सबको नियंत्रित करना चाहता है। 

"पश्चिमी देश" की परिभाषा क्यों ग़लत है?

अमेरिका पश्चिम में है चीन से, पर भारत के पश्चिम में नहीं है।

ऑस्ट्रेलिया यूरोप से "पूर्व" है, लेकिन फिर भी "Western World" में गिना जाता है।

तो पश्चिम क्या है? भूगोल नहीं, एक शक्ति संरचना।

इसलिए भारत को हमें अपने भूगोल से परिभाषित करना चाहिए, न कि पश्चिमी लेंस से।

पश्चिम से देखें तो पूर्व (East), चीन से देखें तो दक्षिण-पश्चिम, ख़ुद के लिए — दक्षिण एशिया का केंद्र

इस तरह भारत— दक्षिण एशिया का देश, भारतीय उपमहाद्वीप का केंद्र, एशिया के मध्य-दक्षिण हिस्से में स्थित, हिमालय से हिंद महासागर तक फैली एक भौगोलिक इकाई है। 

तो आप समझ गए होंगे कि “West” और “East” कोई प्राकृतिक, सार्वभौमिक सच नहीं हैं। ये औपनिवेशिक शक्तियों के नक्शों, भाषाओं और हितों से बनाए गए दृष्टिकोण हैं — भूगोल नहीं।

और इसलिए आज जब हम "Middle East", "Eastern world", या "Western civilization" कहते हैं — तो हम न केवल उनकी भाषा बोलते हैं, बल्कि उनका दृष्टिकोण भी दोहराते हैं।

 

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