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ग्राउंड रिपोर्ट: खोड़ा को सबने ‘अनाथ’ छोड़ा, बिन पानी के जीना दूभर

खोड़ा कॉलोनी में दिल्ली-ग़ाज़ियाबाद-नोएडा सबका हिस्सा फिर भी कोई ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं। बरसों से पानी को तरस रहे लोग।
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दिल्ली-नोएडा से सटी खोड़ा कॉलोनी का एक दृश्य। साभार गूगल

 

दिल्ली के मयूर विहार फेज़ 3 के बिलकुल निकट बसी खोड़ा कॉलोनी मूलतः गाजियाबाद जिले के अंतर्गत आती है। दिल्ली नोएडा गाजियाबाद के मजदूर, टेक्नीशियन, बिजली, पानी और मकान के कामगारों का ठिकाना यही खोड़ा कॉलोनी है। सबकुछ है, बस पानी नहीं है। कुछ लोग इसे एशिया की सबसे बड़ी अवैध कॉलोनी बता देते हैं। 

खोड़ा रेजिडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष दीपक जोशी कहते हैं, “ 3500-4000 टीडीएस का भू-जल है। 800-1200 फिट की गहराई पर बोरिंग करने पर पानी मिलता है। इस पानी से लोगों को लीवर की बीमारी, पीलिया, कैंसर जैसी घातक बीमारियाँ हो रही हैं। किडनी फेल हो रही है और लोग पलायन के लिए मजबूर हैं। उ.प्र. के नगर विकास मंत्री से लेकर सांसद, विधायक सब बस आश्वासन देते हैं। सरकार के दफ्तर में इधर-उधर मामला लटकता रहता है। बिजली,फोन का सिस्टम नोएडा से है। सेक्टर 62 में बिजली बिल भरते हैं। 

लोनी, गाजियाबाद हमारा ब्लाॅक है और मकान की रजिस्ट्री गाजियाबाद से होती है। कई लोगों के मकान की रजिस्ट्री नोएडा के दादरी से है। ऐसे में हमें यह भी पता नहीं, कि यह कालोनी अवैध या है क्या? हाउस टैक्स खोड़ा को देते हैं। यहाँ नगर पालिका की बिल्डिंग है, लेकिन हाउस टैक्स भी नकद लिया जाता है, चेक से आप जमा नहीं कर सकते। बच्चे दिल्ली में पढ़ते हैं और इलाज की सुविधा के लिए दिल्ली जाते हैं। अंतिम संस्कार गाजीपुर में हो जाता है।” 

यहीं पर रहने वाले कवि और लेखक कमलेश कमल कहते हैं, “खोड़ा का क्षेत्रफल कोई 12.5 किमी के क्षेत्र में फैला है। अब यह अवैध कालोनी नहीं है, गाजियाबाद नगर निगम के अधीन है। 34 वार्ड हैं, पार्षद चुने जाते हैं, इसके सामने नेशनल हाई-वे के दूसरी तरफ गाजियाबाद के इंदिरापुरम की अट्टालिकाएँ हैं। बिल्डरों की विकसित की तमाम सोसाइटियाँ हैं, लाखों की संख्या में फ्लैट हैं। खोड़ा के एक तरफ दिल्ली एनसीआर का विकसित और योजनागत तरीके से विकसित नोएडा शहर शुरू होता है। नोएडा और गाजियाबाद के अलावा खोड़ा खालोनी दिल्ली की मयूर विहार फेज़-3, न्यू कोंडली से सटा हुआ है। तीनों शहरों के घरेलू कामगार, कंपनियों में काम करने वाले लोग, दिहाड़ी मजदूर सब खोड़ा से ही निकलकर जाते हैं। खोड़ा की आबादी भी 15 लाख से अधिक है। मकानों की बात करें, तो इनकी संख्या भी 55-60 हजार के करीब होगी। 60 प्रतिशत से अधिक मकान तीन से चार मंजिला हैं।”

सोचिए ! 55-60 हजार मकान, बेतरतीब बसी कालोनी, पतली-पतली सड़कें, मंगल बाजार, बुद्ध बाजार समेत तमाम कालोनियों के नाम के आगे जुड़ा शब्द विहार, रहने वाले भी अधिकांश उ.प्र. और बिहार के लोग, ऐसे में मकानों का पता ढूँढना भी किसी कसरत से कम नहीं है। 

2020 में पूर्व केन्द्रीय मंत्री और गाजियाबाद के सांसद वी के सिंह तथा साहिबाबाद के विधायक सुनील शर्मा ने खोड़ा के हर मकान को नंबर आवंटित करने का वादा किया। काम शुरू हुआ। योजना है,कि 10 सेक्टर में खोड़ा को बाँटकर, गूगल मैपिंग के साथ हर मकान को एक नंबर मिल जाएगा, लेकिन कहा जाता हैं कि यह शुरू होता है और फिर अटक जाता है। ऐसा बसा है खोड़ा, कि किधर से शुरू करें और किसे कौन सा नंबर दें? सब तिलिस्मी खेल जैसा है। दिलचस्प है, कि खोड़ा में कुल चार सरकारी प्राइमरी स्कूल हैं, इसके बाद न कोई सरकारी स्कूल है, न अस्पताल, न प्राथमिक उपचार केंद्र और न कुछ।

विनय मिश्र नोएडा की एक फैक्ट्री में काम करते हैं। 35 गज के प्लाट में किसी तरह से मकान बनाया था, लेकिन पानी के लिए बेजार हैं। बताते हैं पहले 750 फीट की बोरिंग की कराई थी। अब 800 फीट से अधिक की बोरिंग हुई है, लेकिन पानी नहीं मिल पा रहा है। जो पानी आ रहा है, उसका रंग लाल है, पीना तो दूर, नहाने के लायक नहीं है। सीवर की भी समस्या विकराल है। कपड़े भी नहीं साफ किए जा सकते। पहले खोड़ा की हालत बड़ी नारकीय थी। खोड़ा में सड़के नहीं थी। बारिश में भारी जल जमाव हो जाता था। गलियों में तार लटके रहते हैं। बिजली कटौती भी खूब होती थी। छोटे-छोटे माचिस की डिब्बियों से मकान। यही खोड़ा था। अब खोड़ा में सड़के हैं। रंग-बिरंगे, अच्छे मकान हैं। सड़क है, बिजली है, लेकिन जीवन का आधार पानी गायब। 

अनवर सिलाई का काम करते हैं। अनवर का भी छोटा सा 50 गज के प्लाट में मकान है। तीन मंजिला बना रखा है। मकान में बिजली है, सामने सड़क है, लेकिन साफ पानी की बूँद दूभर है। वे बताते हैं, कि 30 रुपये के हिसाब से रोज 20 ली. पानी की तीन-चार केन खरीदते हैं। इसी से खाना बनता है। हफ्ते में परिवार के लोग दो दिन ही नहा पाते हैं। 

सीमा यादव बुद्ध विहार में मिलीं, सीमा के पति ई-रिक्शा चलाते हैं, बेटी नोएडा की गारमेंट फैक्ट्री में काम करती है और बेटा 12वीं पास हो गया है, लेकिन पानी की किल्लत ने जीना दूभर कर रखा है। मकान बेच कर वह हिंडन के किनारे छजारसी जाना चाहती हैं, लेकिन सीमा को पानी के संकट के कारण खरीददार भी नहीं मिल पा रहे हैं।

एटा के संजय भी परेशान हैं, जो सेक्टर 62 से दिल्ली के पटपड़गंज, आनंद विहार तक आटो चलाते हैं। संजय की पत्नी घर में बच्चों को संभालती हैं, लेकिन रोज की कमाई का 22-25 प्रतिशत हिस्सा पानी में चला जाता है। 

रोहन बताते हैं, कि कभी टैंकर का पानी आ गया, तो पूरे महाभारत की फिल्म चलने लग जाती है, कारण बस एक है, एक टैंकर पानी आता है और एक अनार के 100 बीमार, सिर फुटौव्वल शुरू कर देते हैं। पलक झपकते ही टैंकर का पानी भी ऊँट के मुँह में जीरा की तरह खत्म हो जाता है। बताते हैं विधायक जी आए थे। वादा कर गए थे, कि गंगा नदी की पाइप लाइन आएगी। सबको पीने का साफ मिलेगा। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी खोड़ा में पानी की आपूर्ति बड़ा मुद्दा था, लेकिन चुनाव हो गया, तो अब नेता जी भी नहीं आते। बताते हैं, इन दिनों कोई बड़ा नेता, चाहे वह केन्द्र का हो या राज्य सरकार का खोड़ा कालोनी में नहीं आना चाहता। उसे पता है, कि एक सुर में बस पानी की माँग की उठेगी।

सुरेन्द्र गुप्ता ठीक-ठाक काम धंधे के सिलसिले में बलिया से आए थे। मकानों में पीओपी करते हैं। मजबूरी में लाल पानी पीना पड़ा। तीन महीने भी नहीं बीते और उनके पाचन तंत्र अब कड़ी चेतावनी दे रहा है। 

अनिल कुमार का कहना है कि बोरिंग का पानी खारा है, इसके अलावा कोई और पानी की पाइप लाइन नहीं है। जो इस पानी को मजबूरी में इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें लीवर और कैंसर जैसी घातक बीमारी का शिकार होना पड़ रहा है।

इस सम्बन्ध में यहीं पर रहने वाले विजेन्द्र कुमार ; जो नोएडा की एक फैक्टरी में काम करते हैं और ट्रेड यूनियन नेता भी हैं,उनका कहना है, कि “यहाँ पर जल संकट इतना भयावह है, कि लोग यहाँ के अपने बसे-बसाए घर को छोड़कर अन्यत्र बसने के लिए विवश हो रहे हैं।” 

पिछले दिनों नोएडा अथाॅरिटी ने नलों के जरिए खोड़ा तक गंगाजल पहुँचाने की योजना बनाई थी। 187 करोड़ की योजना से यहाँ रहने वाले लगभग तीन लाख लोगों को पानी मिलने की उम्मीद थी, लेकिन अब नोएडा ने पानी देने से इंकार कर दिया है। यह फैसला उस वक्त सामने आया जब खोड़ा के निवासियों को लग रहा था कि उनकी दशकों पुरानी लड़ाई अब अंजाम तक पहुँचने वाली है, लेकिन नोएडा अथॉरिटी के एक इंकार ने उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। लोगों का आरोप है, कि नोएडा अथॉरिटी और प्रशासनिक गुटबाज़ी के चलते उनके हक़ पर डाका डाला गया। अब वे इसको लेकर दिल्ली में प्रदर्शन की योजना बना रहे हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

 

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