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ख़बरों के आगे–पीछे: भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अन्य ख़बरें

वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन अपने साप्ताहिक कॉलम में कई ज्वलंत मुद्दों पर बात कर रहे हैं।
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पाकिस्तान के बाद बांग्लादेश को भी मदद

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ ने पाकिस्तान के बाद अब बांग्लादेश को भी कर्ज देने का ऐलान किया है। पाकिस्तान को 1.3 अरब डॉलर यानी 11 हजार करोड़ रुपए से कुछ ज्यादा के कर्ज की घोषणा पिछले दिनों हुई। भारत ने इसका विरोध किया था। 1.3 अरब डॉलर के कर्ज के अलावा पहले से तय एक अरब डॉलर का कर्ज भी पाकिस्तान को मिलना है। यानी कुल मिला कर उसे 2.3 अरब डॉलर का कर्ज मिल रहा है। उसके बाद उस बांग्लादेश को भी 1.3 अरब डॉलर का कर्ज देने का फैसला हुआ है, जहां अल्पसंख्यकों यानी हिंदुओं पर जुल्म की लगातार ख़बरें हैं। लेकिन आईएमएफ और अमेरिका को यह नहीं दिख रहा है। अमेरिका ने पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों को कर्ज दिलाने में भूमिका निभाई है। उसे भारत से ज्यादा इस बात की चिंता है कि कहीं ये दोनों देश पूरी तरह चीन के साथ न चले जाएं। 

बताया जा रहा है कि बांग्लादेश को मदद के बदले अमेरिका म्यांमार तक एक कॉरिडोर बनाने जा रहा है। मानवीय मदद के नाम पर यह कॉरिडोर असल में म्यांमार के सैन्य शासन से लड़ रहे रखाइन की आराकान आर्मी की मदद के लिए बनाया जा रहा है। इससे भारत की सीमा पर संघर्ष बढ़ेगा, जिसका भारत को बड़ा नुकसान होगा। गौरतलब है कि आराकान आर्मी से पीड़ित होकर ही रोहिंग्या मुसलमानों का पलायन हो रहा है। संघर्ष बढ़ने पर वह पलायन बढ़ेगा और पूर्वोत्तर से बंगाल की खाड़ी तक पहुंचने का भारत का रूट भी प्रभावित होगा।

ग़लती सरकार की, गालियां विक्रम मिस्री को 

भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री सोशल मीडिया पर भाजपा समर्थकों के निशाने पर हैं। उनके साथ-साथ उनकी पत्नी और बेटी की तस्वीरें लगा कर उन पर भी अशोभनीय और अश्लील टिप्पणियां की जा रही हैं। मामला इतना बढ़ गया कि विक्रम मिस्री को अपना अकाउंट प्राइवेट करना पड़ा ताकि दूसरे लोग नहीं देख सके। लेकिन इससे भी ज्यादा लाभ नहीं हुआ है। उन पर हमले जारी हैं। विदेश सचिव विक्रम मिस्री पर हमला सीजफायर को लेकर हो रहा है, जैसे सीजफायर का फैसला विदेश सचिव ने किया और उनकी वजह से भारतीय सेना को पाकिस्तान के खिलाफ अपनी कार्रवाई रोकनी पड़ी। आम जनता के बीच इस किस्म का मैसेज इसलिए बना क्योंकि भारत सरकार ने खुल कर नहीं कहा कि सीजफायर का फैसला देश के सर्वोच्च राजनीतिक नेतृत्व का है। सूत्रों के हवाले से इतना भर बताया गया कि भारत और पाकिस्तान के बीच सीधी बात हुई थी। अगर सीधी बात हुई थी तो विदेश मंत्री एस. जयशंकर, रक्षा मंत्री या राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पूरी कहानी बताएं। इसमें विदेश सचिव को बलि का बकरा बनाने का क्या मतलब है

हैरानी की बात यह भी है कि जब विदेश सचिव को निशाना बनाया गया तो भाजपा या सरकार की ओर से उनका बचाव नहीं किया गया। कांग्रेस के सचिन पायलट, एमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी और देश का आईएएस एसोसिएशन सामने आया और उसने विक्रम मिस्री को ट्रोल किए जाने की निंदा की। कायदे से यह काम देश के विदेश मंत्री को करना चाहिए था। सरकार को हिम्मत करके देश के सामने यह कहना चाहिए सीजफायर का फैसला उसने किया है।

राफ़ेल को लेकर रहस्यमयी चुप्पी

आधुनिक दौर में किसी भी युद्ध में लड़ाकू विमान क्षतिग्रस्त होना कोई नई या बड़ी बात नहीं है और ऐसा होना कोई शर्म की बात भी नहीं है। लेकिन 'ऑपेशन सिंदूरके दौरान भारत का राफ़ेल विमान क्षतिग्रस्त होने के सवाल को पता नहीं क्यों जान बूझकर टाला जा रहा है। सेना की प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी इस बारे में पूछे जाने पर इतना ही कहा गया कि समय आने पर इसकी जानकारी दी जाएगी और सारे पायलट सुरक्षित लौट आए हैं। इस तरह भारतीय सेना ने सभी पायलटों के सुरक्षित होने की बात तो कही लेकिन सभी विमानों के सुरक्षित होने का दावा नहीं किया। सभी पायलट इसलिए सुरक्षित है क्योंकि भारतीय विमानों ने सीमा पार नहीं की थी। इसका मतलब है कि अगर कोई विमान क्षतिग्रस्त हुआ है तो भारत की सीमा में ही गिरा है। मीडिया में इस बात की चर्चा है कि कम से कम एक राफ़ेल विमान क्षतिग्रस्त हुआ। 

डिजिटल मीडिया में 'द वायरने इसकी स्टोरी की थी, जिस पर पाबंदी लगा दी गई थी। अब पाबंदी हटा दी गई है। इसी तरह 'द टेलीग्राफकी एक रिपोर्ट में भी दावा किया गया है कि चीन ने पाकिस्तान को ऐसी तकनीक दी है, जिसे राफ़ेल विमान नहीं भेद पाया और एक विमान क्षतिग्रस्त हुआ। फ्रांस के सूत्रों के हवाले से भी सोशल मीडिया में इस बात की जानकारी दी जा रही है। सरकार और सेना को इस मामले में वास्तविक स्थिति बतानी चाहिए। 

असली भाजपा प्रवक्ता तो सब बाहरी हैं!

देश के तमाम राजनीतिक पार्टियों में भाजपा ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसके पास मीडिया में अपना पक्ष रखने के लिए काबिल प्रवक्ताओं का टोटा है। इसीलिए उसने कांग्रेस और दूसरी पार्टियों के नेताओं को लाकर अपना प्रवक्ता बनाया है। भाजपा के कुल 30 प्रवक्ता है। इनमें से उसके अपने लोग जितने प्रवक्ता है उससे कहीं ज्यादा प्रवक्ता दूसरी पार्टियों से लाए गए हैं। टीवी चैनलों पर गौरव भाटिया से लेकर गौरव वल्लभ, शहजाद पूनावाला, जयवीर शेरगिल, प्रेम शुक्ला, टॉम वडक्कन, शाजिया इलमी, अनिल एंटनी, अजय आलोक, सीआर केसवन तक भाजपा का पक्ष रखने वाले उसके तमाम प्रवक्ता दूसरी पार्टियों से लाए गए हैं। 

लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष शुरू हुआ तो इन सबके मुकाबले बाहर के लोगों ने भाजपा का पक्ष रखा। सबसे कायदे से भाजपा और केंद्र सरकार का पक्ष मीडिया मे कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने रखा। वे लगातार इंटरव्यू देते रहे और उन्होंने कांग्रेस की तरह सिर्फ सरकार के साथ खड़े होने की बात नहीं कही, बल्कि आगे बढ़ कर सरकार के हर कदम को मास्टरस्ट्रोक बताया। इसके बाद जब सीजफायर हुआ तो उनकी पार्टी कांग्रेस ने इंदिरा गांधी की तस्वीरें लगा कर कहा कि 1971 मे इंदिरा गांधी अमेरिका के दबाव में नहीं झुकी थी। तब भी थरूर ने ही आगे बढ़ कर सीजफायर को सही ठहराया और 1971 की उपलब्धि को कमतर बताते हुए कहा कि उस समय की स्थितियां अलग थी और अभी की स्थिति अलग है।

झारखंड में 'जैसे को तैसा’ 

केंद्र और राज्यों में भाजपा की सरकारें बाकी कामकाज के अलावा नाम बदलने का काम भी जोर-शोर से करती हैं। इस सिलसिले में शहरों, गांवों, रेलवे स्टेशनों, सड़कों, हवाई अड्डों, स्टेडियमों आदि के अलावा शैक्षिक व शोध संस्थानों के नाम बदले गए हैं और बदले जा रहे हैं। इसके मुकाबले विपक्षी पार्टियों की सरकारें आमतौर पर नाम बदलने का काम नहीं करती हैं। परंतु झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 'जैसे को तैसाकी तर्ज पर काम शुरू कर दिया है। उन्होंने अपने राज्य की डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी का नाम बदल दिया है। अब इस यूनिवर्सिटी का नाम वीर शहीद बुद्धू भगत यूनिवर्सिटी कर दिया गया है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारतीय जनसंघ के संस्थापक और हिंदुत्व की राजनीति के विचारक रहे हैं। दूसरी ओर शहीद वीर बुद्धू भगत उरांव आदिवासी समुदाय के नायक हैं, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कोल विद्गोह का नेतृत्व किया था। 

1857 की लड़ाई से दशकों पहले 1831-32 में बुद्धू भगत ने कोल विद्रोह का नेतृत्व किया था। इसलिए उनके नाम पर यूनिवर्सिटी का नाम रखे जाने का कोई विरोध नहीं कर पा रहा है। भाजपा के नेता भी बहुत संभल कर प्रतिक्रिया दे रहे हैं। दूसरी ओर हेमंत सोरेने पूरी शिद्दत से अपने वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं। उन्हें पता है कि आदिवासी, मुस्लिम और ईसाई वोट के दम पर वे झारखंड में राज करते रह सकते हैं। दूसरी ओर भाजपा गैर आदिवासी वोट की अपनी पारंपरिक राजनीति छोड़ कर आदिवासी वोट की मृग मरीचिका में भटक रही है।

पानी पर राजनीति चुनाव के लिए

पंजाब और हरियाणा के बीच पानी को लेकर पहले भी विवाद होता रहा है, जैसे दिल्ली और हरियाणा के बीच होता है। इसी तरह का विवाद तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच भी होता है। लेकिन ऐसा कभी सुनने को नहीं मिला कि राज्यों के बीच इतना तनाव हो जाए कि पुलिस की तैनाती होने लगे और बांध प्राधिकरण के अधिकारियों को बंधक बनाया जाने लगे। इस तरह के फिल्मी डायलॉग भी सुनने को कभी नहीं मिले कि एक बूंद पानी नहीं दिया जाएगा। लेकिन इस बार पंजाब सरकार ने भाखड़ा नहर के पानी को लेकर हरियाणा के साथ इसी तरह की लड़ाई छेड़ दी है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि हरियाणा को एक बूंद पानी नहीं देंगे। उन्होंने भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड यानी बीबीएमबी को पानी छोड़ने से रोक दिया। वहां पुलिस का पहरा बैठा दिया ताकि कोई पानी नहीं छोड़ सके। यहां तक कि बीबीएमबी के अधिकारियों को बंधक भी बनाया गया। 

असल में आम आदमी पार्टी दिल्ली की सत्ता से बाहर हो गई है और हरियाणा में भी वह बुरी तरह पिट चुकी है। इसलिए सारा फोकस पंजाब पर है। पंजाब में हरियाणा का पानी रोक कर मुख्यमंत्री मान अपने को पंजाबी हितों का चैंपियन बताने में लगे हैं। वे पंजाबियों के हित और उनकी अस्मिता का कार्ड खेल रहे हैं। किसानों के आंदोलन को कुचलने के बाद उनके लिए जरूरी हो गया है कि कोई दूसरा भावनात्मक दांव चला जाए। पानी की यह लड़ाई विशुद्ध रूप से 2027 के चुनाव की तैयारी के लिए है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

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