अरावली+उन्नाव रेप केस: जनता के आंदोलन की पहली जीत
साल 2025 का आख़िरी सोमवार (29 दिसंबर) इस बात का गवाह बना कि जनता अगर उठ खड़ी हो तो फिर सरकारों और शीर्ष अदालत को भी उनकी आवाज़ सुननी पड़ती है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अरावली मामले में जहां अपने ही फ़ैसले पर रोक लगा दी, वहीं उन्नाव रेप केस में दोषी बीजेपी के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की ज़मानत पर रिहाई पर भी रोक लगा दी।
रेप सर्वाइवर के साथ महिलाओं की एकजुटता काम आई
उन्नाव रेप सर्वाइवर की लड़ाई काम आई। काम आई उन महिलाओं की एकजुटता जो उनके साथ खड़ी हुईं। और शायद उन लोगों को शर्मिंदगी हुई हो जो कुलदीप सेंगर के पक्ष में खड़े थे। ख़ासतौर पर उस तथाकथित पुरुष आयोग और उस महिला को जो “आई सपोर्ट कुलदीप सेंगर” की तख़्ती लेकर जंतर-मंतर पर खड़े हुए थे।
आपको मालूम है कि उत्तर प्रदेश के उन्नाव में 2017 में हुए नाबालिग के साथ रेप मामले में दोषी बीजेपी के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की उम्र कैद की सज़ा पर दिल्ली हाईकोर्ट ने रोक लगाते हुए जमानत के लिए हरी झंडी दे दी थी। हालांकि वह रेप सर्वाइवर के पिता की हत्या के मामले में भी जेल में सज़ा काट रहा है। इसलिए वह तुरंत बाहर नहीं आ सका। लेकिन रेप मामले में उसकी सज़ा के स्थगन ने पूरे देश ख़ासकर महिला समाज को हिला दिया और दिल्ली में महिलाएं जिनमें छात्राएं बड़ी संख्या में शामिल रहीं, रेप सर्वाइवर के परिवार के साथ सड़कों पर उतर आईं।
महिलाओं के बढ़ते दबाव से मजबूर होकर सीबीआई को हाईकोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील करनी पड़ी।
यह महिलाओं के आंदोलन का ही नतीजा है कि CJI को भी कहना पड़ा कि - जज से भी गलती हो सकती है। कहना पड़ा हम अमूनन जमानत रद्द नहीं करते पर यहां केस अलग है. हम हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कुलदीप सेंगर को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
यह भी उल्लेखनीय है कि सीबीआई ने अपनी अपील में सुप्रीम कोर्ट के साल 1997 के एल.के. आडवाणी बनाम सीबीआई फैसले का हवाला दिया है। इससे यह सवाल केंद्र में आ गया है कि क्या विधायक को पॉक्सो (POCSO) कानून के तहत 'लोक सेवक' माना जा सकता है या नहीं?
हालांकि बहुत लोगों का कहना है कि इस मामले को इस तकनीकी पेच में उलझाने की ज़रूरत नहीं। क्योंकि मामला अपने आप में ही गंभीर है। और पता नहीं कि इस तर्क के अंतिम परिणाम क्या होंगे।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद रेप सर्वाइवर ने कहा कि वह इस फ़ैसले से खुश हैं, लेकिन लड़ाई अभी बाक़ी है।
अरावली केस में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही फ़ैसले पर रोक लगाई
जनता के आंदोलन की दूसरी जीत हुई अरावली मामले में। सोमवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की सिफ़ारिशों के बाद अरावली की जिस परिभाषा को स्वीकार किया था उस पर रोक लगा दी है।
29 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने कहा है कि "अरावली पहाड़ियों की परिभाषा से जुड़े 20 नवंबर के आदेश को फ़िलहाल स्थगित रखा जाए, क्योंकि इसमें कई ऐसे मुद्दे हैं जिनकी और जांच की ज़रूरत है।"
पीठ ने अरावली पहाड़ियों की परिभाषा को लेकर पहले बनी सभी समितियों की सिफ़ारिशों का आकलन करने के लिए एक नई उच्चस्तरीय समिति गठित करने का प्रस्ताव भी दिया है.
अब इस मामले की अगली सुनवाई 21 जनवरी को होगी.
आपको मालूम है कि अरावली दुनिया की सबसे पुरानी पर्वतमालाओं में से एक है, जो राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और राजधानी दिल्ली तक फैली हुई है।
मोदी सरकार की सिफारिश पर जब सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की परिभाषा बदली तो लगभग पूरे उत्तर भारत में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए ।
मोदी सरकार की जिन सिफ़ारिशों को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया था उसके अनुसार अरावली की 100 मीटर से ऊंची पहाड़ी को ही पहाड़ माना गया था और उससे नीचे की पहाड़ियां अरावली से बाहर हो गईं थीं। और वहां क़ानूनी रूप से खनन और दोहन किया जा सकता था। इससे ख़तरा पैदा हो गया था कि पहले से अवैध खनन झेल रही अरावली पूरी तरह नष्ट हो जाएगी।
पर्यावरणविदों का कहना है कि सिर्फ़ ऊँचाई के आधार पर अरावली को परिभाषित नहीं किया जा सकता। बल्कि इसके महत्व को समझना ज़रूरी है। ये पहाड़ियां गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के लिए एक महत्वपूर्ण लाइफलाइन का काम करती हैं। भूजल संरक्षित करती हैं, हवा संरक्षित करती हैं। आंधी-तूफ़ान जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बचाती हैं।
जनता की आवाज़ मोदी सरकार ने भले अनसुनी की लेकिन सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई। यानी ये सुबूत है कि जनता की आवाज़ हमेशा ज़ाया नहीं जाती। हालंाकि यह तत्कालिक पहली जीत है। दोनों फ़ैसले रद्द नहीं हुए हैं, बल्कि उनपर स्थगन हुआ है और काफ़ी दांव पेच बाक़ी हैं। देखना होगा कि अगली सुनवाइयों में क्या कुछ होता है।
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