चुनाव 2019 : शाह को गांधीनगर में ठाकरे, बादल और पासवान की ज़रूरत क्यों पड़ी?

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने शनिवार को कई बड़े नेताओं की मौजूदगी में गांधीनगर संसदीय क्षेत्र से नामांकन दाखिल किया। आप कहेंगे कि इसमें तो ऐसी कोई नई बात नहीं है। ये तो सामान्य है। लेकिन राजनैतिक गलियारे में जो गहमागहमी पैदा हुई है वह ये है कि उन्होंने शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे, 91 वर्ष की उम्र को पहुंच चुके पंजाब के अकाली दल नेता प्रकाश सिंह बादल और बिहार के लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख रामविलास पासवान उनके साथ थे। इनके अलावा बीजेपी नेता और कैबिनेट मंत्री राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी भी मौजूद थे।
चुनाव प्रचार के दौरान हर काम का एक उद्देश्य होता है। ख़ासकर जब आप सत्तारूढ़ पार्टी के अहम व्यक्ति हैं और प्रधानमंत्री के क़रीबी हैं। इसलिए इन नेताओं को पहले चरण के लिए ही आमंत्रित करने का कुछ उद्देश्य अवश्य है।
जब आप इसके बारे में सोचना शुरू करते हैं तो कुछ नई स्थितियां जन्म लेती हैं। और, ये सभी केवल एक ही ओर इशारा करती हैं कि अमित शाह घबराए हुए हैं।
गांधीनगर बीजेपी के लिए देश की सबसे सुरक्षित सीटों में से एक है। इस सीट पर 1989 के बाद से तीन दशक तक पार्टी का क़ब्ज़ा रहा है। आठ लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने गांधीनगर सीट पर हर बार क़ब्ज़ा जमाया। इस सीट के विजेताओं की सूची में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (1996 में) और पूर्व उप प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष एल.के. आडवाणी जैसे पार्टी के दिग्गज शामिल थे। आडवाणी यहां से छह बार चुनाव जीत चुके हैं। बीजेपी को इन आठ चुनावों में अक्सर 50% से अधिक वोट मिले हैं।
इसके तीन कारण हो सकते हैं : पहला, शाह गांधीनगर के मतदाताओं को प्रभावित करना चाहते हैं; दूसरा, वह सहयोगियों को प्रभावित करना चाहता हैं; और तीसरा, वह गुजरात में मतदाताओं को प्रभावित करना चाहते हैं। कहने की ज़रूरत नहीं है कि ये तीनों सच भी हो सकते हैं।
और ये सभी कारण मतदाताओं के असंतोष की बढ़ती भावना से उत्पन्न बीजेपी में हताशा को इशारा करते हैं। ये रोड शो नरेंद्र मोदी और बीजेपी से बढ़ते अलगाव को कम करने के लिए है।
शिवसेना और मुंबई कनेक्शन
बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पांच साल के कार्यकाल में शिवसेना लगातार बीजेपी और पीएम मोदी की आलोचना करती रही है। नोटबंदी, जीएसटी, बेरोजगारी से लेकर एयर स्ट्राइक तक मोदी सरकार के हर एक क़दम को महाराष्ट्र की इस पार्टी ने निशाना बनाया है। सेना प्रमुख ठाकरे का इस्तेमाल करके शाह संभवतः गांधीनगर और गुजरात में मतदाता असंतोष को ख़त्म करने की सोच रहे हैं।" हम अपनी आलोचनाओं के बावजूद भी एकजुट हैं"। इस संदेश से ऐसा ही लगता है खासकर जब दोनों दलों ने महाराष्ट्र में सीटों के बंटवारे को लेकर समझौता किया।
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शिवसेना का गुडविल गुजरात के व्यापारियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है जिनका मुंबई से गहरा नाता है। आप इसे पसंद करें या नहीं लेकिन महाराष्ट्र में और विशेष रूप से मुंबई में शिवसेना को एकजुट करने की शक्ति है। इसलिए ठाकरे को अपने पक्ष में करना इस शक्तिशाली और धनी व्यापारिक समुदाय के लिए एक संकेत है।
दलितों के लिए पासवान?
पांच साल के मोदी युग में बीजेपी को दलित समुदाय के समर्थन में देश भर में कमी आई है। याद रहे वर्ष 2015 में गुजरात के ऊना में दलित युवकों पर जानलेवा हमले हुए जहां दलित युवकों को सरेआम बुरी तरह पीटा गया और इस घटना का वीडियो बनाकर वायरल किया गया। इस घटना के चलते कई महीनों तक आंदोलन हुआ। इसके बाद की घटनाओं, अत्याचार क़ानून का बचाव करने में मोदी सरकार की विफलता की तरह विश्वविद्यालय के पदों के लिए रोस्टर सिस्टम, गोरक्षा के नाम पर लिंचिंग, भीमा-कोरेगांव जैसी घटनाओं ने दलित समुदायों को बुरी तरह नाराज़ कर दिया।
इसलिए शायद शाह सोच रहे हैं कि पासवान एक दलित नेता के रूप में गुजरात में और विशेष रूप से गांधीनगर में इस समुदायों को प्रभावित करेंगे। कुल 15 लाख मतदाताओं में से 8% दलित मतदाता हैं। हर फैसला मायने रखता है।
लेकिन यह एक बड़ा निशाना है क्योंकि दलित समुदायों के बीच पासवान की विश्वसनीयता पहले से ही कम है। वह चुपचाप इन वर्षों में बीजेपी/एनडीए का समर्थन करते रहे हैं जब दलितों पर हमले हो रहे थे। किसी भी स्थिति में गुजरात के दलितों पर उनका प्रभाव नगण्य है।
सभी सहयोगियों को प्रभावित करना
एनडीए के नेताओं को गांधीनगर में आमंत्रित करने का एक कारण यह भी हो सकता है कि शाह गठबंधन को अपनी और अपने सहयोगियों की ताकत दिखाना चाहते हैं। उधर बादल एक ऐसे राज्य से हैं जहां उनकी पार्टी पिछली विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ बुरी तरह हार गई। पासवान का संबंध बिहार से हैं जहां उनकी पार्टी और बीजेपी ने सत्ता हासिल करने के लिए विश्वासघाती नीतीश कुमार के साथ मिलकर स्पष्ट जनादेश का उल्लंघन किया जहां राष्ट्रीय जनता दल-कांग्रेस-छोटे दलों के गठबंधन से उन्हें कड़ी चुनौती मिल रही है। और शिवसेना महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ अल्पमत की सरकार चला रही है और चुनाव में कठिन चुनौती का सामना कर रही है। इसके बाद एक और मुश्किल विधानसभा चुनाव होना है।
शायद उन्हें बीजेपी के गढ़ गांधीनगर में बेहद आवश्यक फील-गुड लक्ष्य मिलेगा। लेकिन अगर वे ऐसा करते हैं और यदि उन्हें आमंत्रित करने का यह उद्देश्य है तो शाह अनुभव की कमी दिखा रहे है। ये सभी सहयोगी इस चुनौतीपूर्ण चुनाव में बहुत अनुभवी दिग्गज हैं और गांधीनगर जाकर मूर्ख नहीं बनने वाले हैं। वे शायद इसे शाह के पक्ष में मान रहे हैं और उन्हें संतुष्ट कर रहे हैं।
ख़ैर मामला जो भी हो, गांधीनगर शो बनावटी है और अपेक्षाकृत मुश्किल लड़ाई में मामूली वृद्धिशील फायदे की तलाश में पार्टी द्वारा एक निराशाजनक क़दम है।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।