चुनाव 2019; गुजरात : सुरेंद्रनगर में सूखा और कृषि संकट बन सकता है बीजेपी का संकट!

सुरेंद्रनगर ज़िले के चोटिला गांव के किसान गमरुभाई चोगाभाई कागद के पास 35 बीघा ज़मीन है लेकिन वह मुश्किल से दस सदस्यों के अपने परिवार की आजीविका चला पाते हैं। कागद साल में 4 महीने ही खेती करते हैं और बाकी के महीनों में मज़दूरी करते हैं।
बातचीत में कागद न्यूज़क्लिक से कहते हैं, “2014 के लोकसभा चुनाव में मैंने बीजेपी को वोट दिया था। लेकिन इस बार मैं फिर बीजेपी को वोट नहीं दूंगा।"
कागद कहते हैं, “वर्ष 2014 में मैंने सोचा था कि हमारा गुजराती व्यक्ति नरेंद्र मोदी पहली बार केंद्र में सरकार बनाने की कोशिश कर रहा है इसलिए मैंने उन्हें वोट किया। सिर्फ मैं ही नहीं हमारे गांव के अधिकांश लोग इस उम्मीदवार को लेकर परेशान नहीं थे। मोदी के पक्ष में भावना की लहर थी जो इतनी सशक्त थी कि सभी ने बीजेपी को वोट दिया।”
सिंचाई योजनाओं की विफलता
गुजरात में सौराष्ट्र क्षेत्र का बारिश से वंचित सुरेंद्रनगर का इलाक़ा वर्षों से सिंचाई की कमी के कारण कृषि संकट का सामना कर रहा है। पिछले तीन वर्षों में दो वर्ष तो पूरी तरह से सूखाग्रस्त ही रहा। इसके अलावा वर्ष 2012 से कपास के एमएसपी में कमी के कारण किसानों की स्थिति और बदतर हो गई है।
गुजरात कृषि एवं सहकारिता विभाग की रिपोर्टों के अनुसार वर्ष 2015 में जारी आंकड़े के मुताबिक राज्य में सकल सिंचित क्षेत्र 56.14 लाख हेक्टेयर है जो कुल कृषि क्षेत्र का 45.97% है। हालांकि नर्मदा जल संसाधन के जल आपूर्ति तथा कल्पसार विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य भर में वर्ष2006-07 में सिंचाई के सभी साधनों से केवल 12,12,130 हेक्टेयर क्षेत्र सिंचित था जो वर्ष 2013-14 में घट कर 10,63,190 हेक्टेयर तक हो गया। इसके अलावा वर्ष 2016 के नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के अनुसार राज्य की सभी 22 सिंचाई योजनाओं के ज़रिये औसतन केवल 24% सिंचाई हुई है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2016-17 की नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी की रिपोर्ट के अनुसार नर्मदा की प्रमुख नहर के 17 साल पूरे होने के बाद भी नहर नेटवर्क का काम अधूरा है। इस रिपोर्ट के अनुसार खेतों तक पानी पहुंचाने वाली केवल 53.5% माइनर तथा सब-माइनर नहरों को पूरा किया गया है।
कागद कहते हैं, “सुरेंद्रनगर ज़िले के कृषि क्षेत्र का 70% से अधिक क्षेत्र नर्मदा के जलग्रहण क्षेत्र में आता है। सुरेन्द्रनगर के किसानों को पर्याप्त सिंचाई का पानी नहीं मिलता है।"
सुरेंद्रनगर के मोटा अरनिया गांव के किसान अजयभाई सांबद न्यूज़क्लिक से कहते हैं, “खेतों तक पानी पहुंचाने वाली छोटी नहरों की कनेक्टिविटी मूली तालुका तक बनाई गई है। वहां से नहरों के नेटवर्क को मोरबी ज़िले के हलवद तालुका की तरफ मोड़ दिया गया है ताकि कच्छ तक उद्योगों को पानी उपलब्ध हो पाए।”
“सुरेंद्रनगर ज़िले में दो प्रमुख बांध मोरसल और त्रिवेणी थांगा बांध हैं। पिछले तीन वर्षों से ये बारिश के पानी से वंचित थे। गुजरात सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों ने सौराष्ट्र नर्मदा अवतरण इरिगेशन (एसएयूएनआई) परियोजना की घोषणा की और उद्घाटन किया लेकिन इन बांधों को अभी तक कोई पानी नहीं मिला है।"
एक अन्य किसान कांतिभाई तमालिया कहते हैं, “दिसंबर 2017 में विधानसभा चुनाव के दौरान सरकार ने किसानों को आश्वासन दिया था कि मार्च 2018 तक पानी की आपूर्ति की जाएगी जिससे ज़ीरा, गेहूं और अरंडी के पांच चक्र की सिंचाई हो पाएगी। उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल के बयान ने किसानों को आश्वस्त किया और उन्होंने ज़ीरा बोया। हालांकि जनवरी 2018 तक ही पानी की आपूर्ति की गई जिसके परिणाम स्वरूप फसल ख़राब हो गई। पिछले साल ज़ीरा की खेती में सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा।”
अपारदर्शी फसल बीमा
वे कहते हैं, “एक और मुद्दा फसल बर्बाद होने पर फसल बीमा का दावा करने की जटिल और अपारदर्शी प्रक्रिया है जिसका सामना सुरेंद्रनगर के किसान कर रहे हैं। वर्ष 2015 से दो वर्षों तक सूखे की मार झेलने के बावजूद सुरेंद्रनगर के केवल 30% किसानों को बीमा कंपनियों से पैसा मिला है। अधिकांश किसान फसल बीमा प्रदान करने वाली कंपनी का नाम भी नहीं जानते हैं। जब कोई किसान ऋण लेता है तो सहकारी बैंक सरकारी एजेंसियों द्वारा चुनी गई कंपनी में से स्वतः बीमा शामिल कर देते है।”
चोटिला गांव के रामसिनभाई न्यूज़क्लिक से कहते हैं, “हम 40 वर्षों से कृषि कर रहे हैं। एक वर्ष में आठ महीने हम सूखे का सामना करते हैं और अपनी ज़मीन पर खेती करने में असमर्थ होते हैं। मोदी ने हमें सिंचाई के लिए पानी देने का आश्वासन दिया था जो हमें अभी तक नहीं मिला है। हर साल सिर्फ 4 महीने तक खेती करने के बाद हम काम की तलाश में अपना गांव छोड़ देते हैं। हममें से ज्यादातर लोग सुरेन्द्रनगर ज़िले में सायला गांव में पत्थर की खदान में या मोरबी ज़िले में चीनी मिट्टी के कारखानों में काम करते हैं। प्रति दिन लगभग 200 से 250 रुपये मिलता है जो हमारे परिवारों को चलाने, हमारे बच्चों को पढ़ाने या बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है।"
अपने परिवार की ज़मीन की तरफ इशारा करते हुए रामसिनभाई के भाई भीमसिनभाई कहते हैं, “देखिए हमारी ज़मीन पूरी तरह से सूख गई है। हमारे परिवार में 42 बीघा ज़मीन है लेकिन इसका कोई फायदा नहीं है। मैं 60 वर्ष का हूं और मज़दूरी करने में असमर्थ हूं।”
मालधारी किसान भीमसिनभाई आगे कहते हैं, “सिंचाई के पानी की कमी का असर सिर्फ हमारी फसल पर ही नहीं पड़ा। पिछले कुछ वर्षों में इतना सूखा रहा है कि हम पशुओं के चारे को उगाने में असमर्थ रहे हैं जिसे हम दो फसलों के बीच बोते थे। चूंकि हमारे पास अपने मवेशियों को खिलाने के लिए कुछ नहीं था इसलिए हमें उन्हें बेचना पड़ा। अगर हम मवेशियों को खिलाने के लिए चारा बाजार से खरीदते हैं तो दूध बेचने से उस चारा का लागत भी प्राप्त नहीं होता है।''
भीमसिनभाई
सुरेंद्रनगर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के कुल मतदाताओं में मालधारी का वोट लगभग 10 से 12% है। मालधारी के अलावा दलित लगभग 9%, पटेल लगभग 5 से 6% और दरबार का लगभग 7% वोट है। इन समुदायों की आबादी इस निर्वाचन क्षेत्र के ज्यादातर ग्रामीण इलाक़ों में केंद्रित है जहां कांग्रेस ने 2017 के विधानसभा चुनावों में छह सीटें जीती थीं। दूसरी तरफ बीजेपी ने सुरेंद्रनगर के शहरी क्षेत्र में पड़ने वाले वडवान विधानसभा सीट जीती थी जहां ब्राह्मणों, जैनों, कारदिया राजपूतों, नरोदा राजपूतों और सतवारों के मतदाताओं की संख्या अधिक है।
हालांकि कोली पटेल के मतदाताओं की संख्या अधिक है जो लगभग 18% है। ये ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में फैले हुए हैं।
कांग्रेस के उम्मीदवार सोमाभाई पटेल जो कोली पटेल की उप-जाति तलबदार पटेल से हैं जिन्होंने वर्ष 2009 में सुरेंद्रनगर सीट से लोकसभा चुनाव जीता था लेकिन बीजेपी के देवजीभाई फतेहपारा से लगभग 2 लाख वोटों से हार गए थे।
हालांकि फतेहपारा को इस बार उम्मीदवार नहीं बनाया गया है। बीजेपी ने पेशे से डॉक्टर महेंद्र मुंजपारा को उम्मीदवार बनाया है। ये राजनीति में नए हैं जो कोली पाटेल की उप-जाति चुअनरिया से हैं।
बीजेपी के एक स्थानीय कार्यकर्ता ने कहा, "शहरी वोटों पर बीजेपी भारी पड़ रही है और मोदी लहर में पार्टी ये सीट जीत जाएगी।"
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