बिम्सटेक सैन्य सहयोग की एक मुश्किल शुरुआत

एक रिपोर्ट के मुताबिक़ नेपाल के एक आधिकारिक स्रोत ने बताया है कि पुणे में बे ऑफ बंगाल मल्टी-सेक्टरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन (बिम्सटेक) सैन्य अभ्यास को छोड़ने के लिए सरकार द्वारा फैसला करने का मतलब भारत को अपमानित करना नहीं था। इसके बजाय रिपोर्ट में कहा गया है कि नेपाल की स्थिति द्विपक्षीय अभ्यासों के विपरीत नहीं है, लेकिन बहुपक्षीय अभ्यासों पर सहमत होने से पहले अधिक विचार-विमर्श की आवश्यकता है। यह बयान ऐसे समय आया है जब कई अटकलें लगाईं जा रही है कि नेपाल की नज़दीकी चीन से बढ़ रही है और सिचुआन में सागरमाथा फ्रैंडशिप-2 संयुक्त सैन्य अभ्यास के साथ-साथ चीन के साथ हाल ही में हस्ताक्षरित ट्रांजिट एग्रीमेंट जो स्थल अवरूद्ध (लैंडलॉक्ड) इस देश को चीनी बंदरगाहों तक पहुंच के लिए रास्ता मुहैया कराता है। वहीं दूसरी तरफ नेपाली प्रेस ने इस बारे में ज़्यादा कुछ विचार व्यक्त नहीं किया है, और इसके बजाय बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के साथ-साथ समूह के व्यापार पहलू पर ध्यान केंद्रित करने से पहले काठमांडू में जल्दबाजी वाले कार्यों को शामिल किया है।
बिम्सटेक एक क्षेत्रीय समूह है जिसमें सात देश- बांग्लादेश, भूटान,भारत, म्यांमार, नेपाल, श्रीलं
काठमांडू में हाल ही में संपन्न शिखर सम्मेलन ने एक घोषणा पत्र तैयार किया जिसने समूह की इन प्रतिबद्धताओं की पुष्टि की: ग़रीबी उन्मूलन, परिवहन तथा संचार, व्यापार तथा निवेश, आतंकवाद तथा अंतर्राष्ट्रीय अपराध का मुक़ाबला करना, पर्यावरण और आपदा प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा, प्रौद्योगिकी,
इस साल जून महीने में भारतीय सेना ने बिम्सटेक सदस्य देशों के बीच आतंकवाद विरोधी अभियानों पर केंद्रित एक सप्ताह तक चलने वाले संयुक्त सैन्य अभ्यास की घोषणा की थी जो सितंबर में होना था। हालांकि, अभ्यास शुरू होने से कुछ ही दिन पहले 8 सितंबर को नेपाल ने घोषणा की कि वह अभ्यास में शामिल नहीं होगा। इसके बजाय, नेपाल ने एक पर्यवेक्षक भेजा, ऐसा ही थाईलैंड ने भी किया चूंकि उसने भी संयुक्त अभ्यास करने से
यह देखते हुए कि कोलकाता की तुलना में टियांजिन की दूरी तीन गुना ज़्यादा है ऐसे में यह बैकअप के विकल्प के तौर पर सेवा दे सकती है। नेपाल के लिए बैकअप का विकल्प रखना ज़रूरी है क्योंकि सितम्बर 2015 की सीमा नाकाबंदी ने देश को लगभग अपंग बना दिया था। ईंधन की कमी के अलावा अप्रैल महीने में भूकंप आने के बाद के संकट से निकल रहे इस देश में निर्माण सामग्री और दवाइयों की काफी कमी थी। इस स्थिति को जिन चीजों ने और ज़्यादा बढ़ा दिया वह था कि नेपाली समुदाय के सबसे महत्वपूर्ण त्योहार दशाई-तिहाड़ के दौरान हुई नाकाबंदी।
नेपाल की अनुपस्थिति पर विशेष रूप से टिप्पणी किए बिना16 सितंबर को समापन समारोह में सेना प्रमुख बिपिन रावत ने कहा था कि भौगोलिक कारण से नेपाल और भूटान जैसे देशों का झुकाव भारत की तरफ रहेगा। दिलचस्प बात यह है कि द हिंदू में एक संपादकीय ने इस तरह की टिप्पणियों के ख़िलाफ़ चेतावनी दी, मुख्य रूप से इसलिए कि "ऐसी टिप्पणियां भारत के छोटे पड़ोसियों को कमज़ोर करती हैं और भ्रामित कर रही हैं। आधुनिक तकनीक और कनेक्टिविटी परियोजनाएं अच्छे संबंधों के ज़मानतदार के रूप में भूगोल की भूमिका को खुद में समेट सकती हैं।" सेना प्रमुख की टिप्पणियों पर द हिंदू के विचार धीरे-धीरे भारत से दूर जा रहे नेपाल की स्थिति पर प्रकाश डाल सकती हैं।
वर्ष 1950 की भारत नेपाल के शांति और मैत्री संधि की प्रमुख व्यक्तियों के समूह द्वारा समीक्षा की जा रही है। इस संधि को नेपाल में एकतरफा माना जाता है और यह दो संप्रभु राष्ट्रों के बीच एक समझौते का प्रतिनिधित्व नहीं करता है, बल्कि एक निम्न और श्रेष्ठ के बीच की कोई चीज है। एक अन्य मुद्दा जो एक भूमिका निभा सकती है वह है संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ कम्यूनिकेशन कम्पैटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट (COMCASA) पर भारत का हस्ताक्षर करना। यह समझौता नेपाल के ख़िलाफ़ निर्देशित नहीं किया जाए,लेकिन इसे संयुक्त राज्य अमेरिका की चीन को रोकने का हिस्सा माना जाता है। इस पृष्ठभूमि में चीन में धारणा यह हो सकती है कि बिम्सटेक अभ्यास का उद्देश्य उसी
हालांकि, नेपाल ने कहा है कि यह द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास के विपरीत नहीं है, इससे संकेत मिलता है कि नेपाल अपने दो पड़ोसियों के साथ एक त्रिपक्षीय संबंध बनाने के लिए स्वतंत्र है।
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