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साहित्य-संस्कृति
तुम कैसे मारोगे-कितनों को मारोगे/तुम्हारे पास इतनी बंदूकें नहीं/जितने हमारे पास क़लम हैं
न्यूज़क्लिक डेस्क
साहित्य-संस्कृति
…‘सुंदरता के दुश्मनो, तुम्हारा नाश हो !’
न्यूज़क्लिक डेस्क
साहित्य-संस्कृति
वो मुझको मुर्दा समझ रहा है, उसे कहो मैं मरा नहीं हूं
न्यूज़क्लिक डेस्क
साहित्य-संस्कृति
...पूरे सिस्टम को कोरोना हो गया था और दुर्भाग्य से हमारे पास असली वेंटिलेटर भी नहीं था
न्यूज़क्लिक डेस्क
समाज
...कैसा समाज है जो अपनी ही देह की मैल से डरता है
न्यूज़क्लिक डेस्क
साहित्य-संस्कृति
क्या हुआ छिन गई अगर रोज़ी, वोट डाला था इस बिना पर क्या!
न्यूज़क्लिक डेस्क
साहित्य-संस्कृति
‘इतवार की कविता’: मेरी चाहना के शब्द बीज...
न्यूज़क्लिक डेस्क
साहित्य-संस्कृति
मुफ़्त में राहत नहीं देगी हवा चालाक है...
न्यूज़क्लिक डेस्क
साहित्य-संस्कृति
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
न्यूज़क्लिक डेस्क
संस्कृति
"ज़र्द पत्तों का बन, अब मेरा देस है…"
मुकुल सरल