आखिर क्यों जरुरी है तर्कसंगत सोच के लिए लड़ना?

मालेगांव ब्लास्ट के मुख्य आरोपी लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित को सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मिलने के बाद बुधवार को रिहा कर दिया गया। पुरोहित को 9 साल बाद इस बिनाह पर बेल मिली कि उनके खिलाफ सबूतों में अंतर्विरोध पाए गए हैं । उन्हें लेने बाकायदा आर्मी की गाड़ियों का एक काफिला नवी मुंबई के तजोला जेल पंहुचा। 9 साल बाद जेल से बाहर आने के बाद पुरोहित ने कहा "आर्मी मेरी उम्मीद पर खरी उतरी है और मेरे आर्मी के सहकर्मी हमेशा से मेरे साथ खड़े रहे हैं। मुझे कभी भी नहीं लगा कि मैं आर्मी से अलग हूँ "
श्रीकांत पुरोहित को 2008 में ATS ने मालेगांव धमाके कराने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। ATS के उस समय के अध्यक्ष हेमंत करकरे ने मालेगांव धमाकों की साज़िश का खुलासा किया, साथ ही उन्होंने एक हिन्दुत्ववादी संगठन "अभिनव भारत" को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराया । इस संगठन के नेटवर्क की जांच के दौरान ही हेमंत करकरे की मुंबई के 26 /11 के हमले के दौरान मौत हो गयी। इसके बाद 2011 में यह केस NIA को सौंप दिया गया।
सितम्बर 2008 में दो बम धमाके हुए, जिसमें 7 लोगों की मौत हुई और 100 लोग घायल हुए। ATS ने इस मामले में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, पुरोहित और रिटायर्ड मेजर उपाध्याय को गिरफ्तार किया। इसी मामले की जांच के दौरान ‘अभिनव भारत’ नामक संस्था का नाम सामने आया। ATS की जांच के मुताबिक श्रीकांत पुरोहित ने कुछ और साथियों के साथ 2007 में ‘अभिनव भारत’ संस्था बनाई थी। जांच के दौरान यह भी पता चला कि पुरोहित ने मालेगांव धमाकों में आर डी एक्स पहुंचाने का काम भी अपने ज़िम्मे लिया था।
‘अभिनव भारत’ का मकसद भारत का संविधान हटाकर हिन्दू स्मृतियों और वैदिक परंपरा को स्थापित करना था । साथ ही भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की जगह हिन्दू राष्ट्र बनाना था। पुरोहित का मानना था कि जो भी उनकी इस मुहिम के खिलाफहोगा उन्हें खत्म कर दिया जायेगा। इस आतंकवादी संस्था की मुलाकातों में प्रज्ञा ठाकुर, श्रीकांत पुरोहित के साथ स्वामी असीमानंद भी शामिल थे।
2010 में असीमानंद ने ये कबूल किया कि उन्होंने मक्का मस्जिद , अजमेर शरीफ , मालेगांव और समझौता एक्सप्रेस में धमाके करवाये थे । पर 2011 में वो अपने बयान से पलट गए और कहा कि ये बयान उन्होंने NIA के दबाव में दिया था। इसी दौरान भगवा आतंकवाद के एक और संगठन ‘सनातन संस्था’ का नाम सामने आने लगा । 2008 में इस संस्था के 6 लोगों को ठाणे में एक धमाका करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। इस घटना के मुकदमें में 2 लोगों को इसमें दोषी पाया गया , पर बाद में वे बेल पर रिहा हो गये। इसके बाद संस्था से जुड़े लोगों को गोवा में हुए ब्लास्ट के लिए भी आरोपी बनाया गया। पर 2013 की घटनाओं के बाद इस संस्था का नाम फिर से सुर्ख़ियों में आ गया। 2013 में नरेंद्र दाभोलकर और उनके बाद कामरेड पानसरे और कलबुर्गी की हत्या का आरोप ‘सनातन संस्था’ से जुड़े लोगों पर लगा। ये तीनों ही लोग देश में तर्क संगत विचारों के प्रचार के लिये समर्पित थे । इसी वजह से वे अंध विश्वास फ़ैलाने वाली इस संस्था के निशाने पर आ गए थे। नरेंद्र दाभोलकर की संस्था ने बताया की उन्हें सालों से क़त्ल करने की धमकियां मिल रही थीं। सनातन संस्था की हिन्दू जनजागृति समिति वेबसाइट पर नज़र डाली जाये, तो उसमें साफ़ तौर पर अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफ़रत और हिन्दू राष्ट्र बनाने का प्रोग्राम मिलता है। इसके अलावा इसकी वेबसाइट पर हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने की टाइमलाइन दी गयी है। वेबसाइट के अनुसार 2025 तक हिन्दू राष्ट्र स्थापित कर लिया जायेगा।
अगर महाराष्ट्र के इतिहास पर नज़र डाली जाये तो ये यह पता चलता है कि यह राज्य अम्बेडकरवादी और वामपंथी आंदोलनों का गढ़ रहा है। महाराष्ट्र में ‘प्रतिसरकार का आंदोलन’ और बाद में ट्रेड यूनियन आंदोलन इसकी एक बड़ी मिसालें हैं । पर 70 के दशक में शिव सेना के उभार के साथ हिन्दुत्व और क्षेत्रवाद की राजनीति का भी उभार हुआ, जिसने वहां के ट्रेड यूनियन आंदोलन की कमर तोड़ दी। इसी के साथ बाबरी मस्जिद के 1992 में ढहाए जाने के बाद इस राजनीति ने और तेज़ी से सर उठाना शुरू किया। इस सब के बावजूद नरेंद्र दाभोलकर और पानसरे द्वारा चलायी जा रही मुहीम इन कट्टर पंथी संगठनो के लिए मुश्किलें पैदा कर रही थी।
गौरतलब है कि बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और पुरोहित दोनों को बेल मिल गयी है साथ ही साथ असीमानंद सबूतों के आभाव में बरी हो गये हैं। साथ ही ‘सनातन संस्था’ के बारे में भी सत्ता पक्ष का रवैया भी काफी नरम रहा है। उनसे जुड़े किसी भी व्यक्ति को सजा नहीं हुई और ना ही इस संस्था पर रोक लगी है । इस बात में कोई शक नहीं है, कि आरएसएस और इन आतंकी संगठनों का लक्ष्य हिन्दू राष्ट्र की स्थापना है। इसी वजह से इनके गतिविधियों को न सिर्फ नज़र अंदाज़ किया जा रहा है बल्कि अंदरूनी तौर पर समर्थन भी दिया जा रहा है।
यहाँ एक और बात जोड़ने की आवश्यकता है कि सेना ने जिस तरह पुरोहित का समर्थन किया है , ये एक खतनाक चलन की ओर इशारा कर रहा है ।आर्मी के कुछ रिटायर्ड जनरलों द्वारा लगातार हिंदूवादी मुहिमों का समर्थन किया जा रहा है। 2014 के बाद ये प्रवति काफी बढ गयी है, जिसको दक्षिण पंथियों ने हवा देनी शुरू की है।
इस तरह से राष्ट्रवाद की आड़ में तर्क संगत सोच पर लगातार वार जारी है। भगवा आतंकवाद , गौ रक्षकों की मुहिम और तार्किक सोच पर हमला देश में फासीवाद के बढ़ते कदमों की आहट सुना रहे हैं। इसे हराने के लिये तर्क संगत विचारधारा के प्रचार के साथ कानूनी लड़ाई लड़ना भी ज़रूरी है।
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