कोरोना वायरस के ज़िक्र से जुड़े Zoology के पन्ने की असलियत क्या है?

एक होती है जानकरी। और एक होती है तकनीकी जानकारी। तकनीकी जानकारी की उम्मीद विशेषज्ञों से होती है और सामान्य जानकारी की उम्मीद तकरीबन सभी नागरिकों से होती है। इसलिए कक्षा दस तक सभी लोगों को सारे विषय पढ़ाए जाते हैं। कोरोना वायरस से चिंतित दुनिया में मौत का डर इतना गहरा है कि एक ख़तरनाक किस्म की सूचनाओं की उठापटक चल रही है। सोशल मीडिया में जूलॉजी (Zoology) यानी जंतु शास्त्र या प्राणी विज्ञान की किताब का एक पन्ना तैर रहा है। इस पन्ने में जुकाम शीर्षक के अंतर्गत बताई गयी बातों में कोरोना वायरस लिखा है। मोटे तौर पर यह लिखा है कि साधारण जुकाम कई तरह के वायरस से होता है। कुछ जुकाम कोरोना वायरस से भी होता है। ये सारे इसके लक्षण है ....... और यह दवा इसका इलाज है।
इस पेज के साथ जो दावा किया जा रहा है। वो इस तरह है-
“भाइयों काफी किताबों में ढूंढने के बाद बड़ी मुश्किल से कोरोना वायरस की दवा मिली है, हम लोग कोरोना वायरस की दवा ना जाने कहां-कहां ढूंढते रहे लेकिन कोरोना वायरस की दवा इंटरमीडिएट की जन्तु विज्ञान की किताब में दी गई है जिस वैज्ञानिक ने इस बीमारी के बारे में लिखा है उसने ही इसके इलाज के बारे में भी लिखा है और यह कोई नई बीमारी नहीं है इसके बारे में तो पहले से ही इंटरमीडिएट की किताब में बताया गया है साथ में इलाज भी। कभी-कभी ऐसा होता है कि डॉक्टर और वैज्ञानिक बड़ी-बड़ी किताबों के चक्कर में छोटे लेवल की किताबों पर ध्यान नहीं देते और यहां ऐसा ही हुआ है।
(किताब- जन्तु विज्ञान, लेखक- डॉ रमेश गुप्ता, पेज नं-1072)
भाइयों यह कोई फेक न्यूज़ नहीं है इसलिए मेरी आप से यह विनती है कि इस दवा को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि किसी कोरोना वायरस से ग्रसित मरीज का इलाज हो सके।”
अगर ईमानदारी से कहा जाए तो किताब के पेज़ पर लिखी बातों में कुछ भी ग़लत नहीं है। बस ग़लत तो है इसके साथ वायरल किया जा रहा दावा। आप इससे बिल्कुल भी गुमराह न हों।
इसकी वजह है क्योंकि केवल एक पेज सर्कुलेट हो रहा है। पेज़ से जुड़ा पूरा अध्याय सर्कुलेट नहीं हो रहा है। किताब के लेखक ने अध्याय में जरूर वायरस की पृष्ठभूमि की चर्चा की होगी। सबकुछ बताने के बाद ही जुकाम के बारें में बताया होगा। उसी क्रम में कोरोना वायरस का जिक्र हो गया होगा। अगर आप लिखने पढ़ते होंगे तो जरूर समझते होंगे कि हर लाइन में पृष्ठभूमि की चर्चा नहीं कर सकते। हर लाइन को हम टेक्निकल रूप नहीं दे सकते। एक बार पृष्ठभमि कहने के बाद जरूरी बात कहनी होती है और आगे बढ़ना होता है। उदारहण के तौर ऐसे समझिये कि हर बार यह नहीं बताना कि पीलीभीत उत्तर प्रदेश है और उत्तर प्रदेश, भारत में है। एक बार बताने के बाद आगे बढ़ जाना होता है। इस पन्ने में भी ठीक यही बात है इसलिए इसमें कुछ गलत नहीं है। गलत तब है जब कोरोना वायरस पर लाल निशन लगाकर इसे सोशल मीडिया के गलियारे में फैलाकर यह कहा जाए कि हमारे पास कोरोना वायरस का इलाज है। या इसका इलाज तो बहुत पहले ढूंढ लिया गया।
इस वैचारिक किस्म की बात के बाद हम समझने की कोशिश करते हैं कि आख़िरकार सच का सिरा है कहां?
तकनीकी शब्द में कहे तो कोरोना वायरस, वायरस की एक फैमिली है। जिस तरह से देश अपने आपको राज्यों में और राज्य आपने आपको जिलों में और जिले अपने आपको ब्लॉक में और ब्लॉक गांव में बांटते हैं। ठीक वैसे ही वायरोलॉजी की दुनिया में भी वायरस का स्पीसीज, जीन्स, फैमिली, आर्डर, क्लास, फाइलम, किंगडम जैसे खांचों में बंटवारा किया जाता है। मोटे तौर पर समझिये तो कुछ अलगावों के साथ एक ही तरह के गुणों वाले वायरस को एक फैमिली में रखा जाता है। यानी कोरोना वायरस न तो वायरस है और न ही एक वायरस का नाम है बल्कि यह वायरस की एक फैमिली का नाम है। सर्कुलेट किये जा रहे पेज में इसी वायरस पर चर्चा की जा रही है। इस फैमिली में चार सबग्रुप होते हैं- अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा।
यानी पहली बात हम यह समझ गए कि कोरोना वायरस मात्र एक वायरस नहीं है बल्कि फैमिली का नाम है। अब आगे बढ़ते हैं। कोरोना वायरस से इंसान और जानवर दोनों संक्रमित हो सकते है। इंसानों में सबसे पहले इसका संक्रमण साल 1960 में हुआ। कॉमन कोल्ड यानी जुकाम, साँस में आने वाली दिक्कते, मिडल ईस्ट रेसपोर्स्टरी सिंड्रोम, सीवियर एक्यूट रेस्पेरोट्री सिंड्रोम जैसी बीमारियां कोरोना वायरस फैमिली के वायरस से होती आ रही हैं।
यानी जुकाम शीर्षक के अंतर्गत पेज में कोरोना वायरस का ज़िक्र सही है। ग़लत तो उसके नाम से किया जा रहा दावा है। पेज में कोरोना वायरस फैमिली के उस नए वायरस का जिक्र नहीं है। जिससे इस समय दुनिया परेशान है। क्योंकि उस समय उसका पता ही नहीं था।
अब आप सवाल करेंगे कि इसे नया क्यों कहा जा रहा है? तो जवाब है कि कोरोनावायरस फैमिली में एक नए वायरस ने इंट्री मारी है। जिसका नाम है सार्स -कोव-2 ( SARS -COV-2) और इससे जो बीमारी हो रही है उसे COVID-19 नाम दिया गया है। CO यानी कोरोनावायरस, VI - यानी वायरस और D यानी डिजीज। 11 फरवरी 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा चीन के वुहान शहर से पहले इस वायरस और इससे होने वाली बीमारी के बारे में कोई जानकरी नहीं थी। यानी यह वायरस और बीमारी बिल्कुल नयी है।
अब आप यह भी पूछेंगे कि हर वायरस का नाम अलग क्यों रखा जाता है। नाम अलग इसलिए अलग रखा जाता है क्योंकि हर वायरस का जीनोम सीक्वेंस अलग होता है। आसान भाषा में समझिये तो यह कि हर वायरस का अलग पहचान पत्र होता है। अगर सही वाले पहचान पत्र यानी वायरस की जानकारी हो तभी दुनिया उससे लड़ने के लिए तैयार हो पाएगी। इसलिए आपने ख़बरों में सुना होगा कि चीन ने कोरोना वायरस के नए वाले सदस्य के जीनोम सीक्वेंसिंग को पूरी दुनिया के सामने रख दिया है। यानी दुनिया के देश आये और उसपर मिलजुलकर काम करे। इससे जुड़ी जानकरी एक दूसरे के साथ शेयर करे।
यहाँ तक हम यह समझ गया कि कोरोना वायरस, सार्स-2 और कोविड - 19 क्या है। यानी पेज में लिखी बहुत सारी बातें स्पष्ट हो गयीं। यह भी स्पष्ट हो गया कि जिस कोरोना वायरस का जिक्र पेज में किया जा रहा है, उसका मतलब वह नहीं है जिससे इस दुनिया परेशान है।
अब यह समझते हैं कि कोरोना वायरस, कॉमन कोल्ड यानी जुकाम और फ्लू में क्या अंतर होता है?
डॉ. पी. रघु राम (द एसोसिएशन ऑफ सर्जन्स ऑफ इंडिया के अध्यक्ष) से एनडीटीवी टीवी चैनल ने बात की। डॉ. रघु राम ने कोरोनो वायरस, फ्लू और आम सर्दी-जुकाम के बीच फर्क करने के कुछ तरीकों के बारे में बताया।
कोरोना वायरस के लक्षण
सूखी खांसी, बुखार और सांस फूलना एक साथ कोरोना वायरस के लक्षणों के रूप में पहचाने जा सकते हैं। सूखी खाँसी इस वजह से होती है कि इसमें फेफड़े शामिल हैं। सांस फूलना इसलिए होता है क्योंकि वायरस के संक्रमण से फेफड़ों के ऊतक और वायुमार्ग खराब हो चुका होता है। इस वायरल संक्रमण से किसी को बुखार हो जाता है। कोरोना वायरस में हमेशा खांसी, बुखार और सांस फूलना जैसे लक्षण शामिल होते हैं। हो सकता है कि कोई लक्षण दिखे भी नहीं। क्योंकि लक्षण दिखने में 14 दिन का समय भी लग सकता है।
अभी तक के आंकड़ें कह रहे हैं कि कोरोना वायरस से संक्रमित अस्सी फीसदी मामले से जुड़े लोग बिना किसी स्पेशल ट्रीटमेंट के ही सही हो गए। छह में से एक मामले में अधिक तकलीफ़ सहनी पड़ी।
इसका सबसे अधिक संक्रमण उनसे हुआ जिन्हें पता भी नहीं था कि उन्हें कोरोना वायरस है। यही कारण है कि फ्लू जैसे लक्षणों वाले अधिक से अधिक लोगों की बड़े स्तर पर जांच की जरूरत होती है।
फ्लू के लक्षण
फ्लू की बात करें तो यह एक बहती नाक से शुरू होता है, इसके बाद खांसी और बुखार होता है। कोरोना वायरस से संक्रमित बहुत कम लोगों ने खांसी के साथ बहती हुई नाक होने की सूचना दी है। यानी कोरोना वायरस में नाक नहीं बहती है।
कोरोना वायरस और फ्लू में अंतर
हालांकि, कोरोना वायरस और फ्लू के लक्षण देखने में एक जैसे लगते हैं, लेकिन ये दो अलग वायरस के परिवार से आते हैं। COVID-19, एक नोवेल कोरोना वायरस है, जिसके बारे में साल 2019 में पता चला, जो पहले कभी भी मनुष्यों में नहीं देखा गया था। वहीं, इंफ्लूएंज़ा वायरस यानी फ्लू के बारे में कई साल पहले पता चल गया था। विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना वायरस इंफ्लूएंज़ा और दूसरे ऐसे ही वायरस की तुलना में कई गुना तेज़ी से फैलता है।
कफ और कोल्ड के साथ तेज़ बुखार, बुरी तरह थकावट, पूरे शरीर में दर्द और ठंड लगना कॉमन फ्लू के लक्षण हैं। यही वजह है कि कोरोना वायरस के शुरुआती लक्षण और फ्लू के बीच अंतर को बताना मुश्किल है। सिर्फ टेस्ट की मदद से ही पता लगाया जा सकता है कि लक्षण कोरोना वायरस के हैं या फिर फ्लू के।
हालांकि, वास्तव में फर्क इस बात से पड़ता है कि इसके लक्षण को सामने आने में कितना समय लगता है। जब आप फ्लू के वायरस के चपेट में आते हैं तो लक्षण 2 से 3 दिनों में नज़र आने लगते हैं, जबकि कोरोना वायरस के लक्षणों में 2 से 14 दिन का समय लग सकता है। एक तरफ डॉक्टर्स और वैज्ञानिक नोवेल कोरोना वायरस के बारे में अभी भी रिसर्च कर रहे हैं, वहीं फ्लू अब भी दुनिया में सबसे बड़े स्वास्थ्य जोखिमों में से एक है। इसके इलाज के तरीकों में भी काफी फर्क होता है। एक तरफ जहां फ्लू के वैक्सीन और दवाइयां उपलब्ध हैं, वहीं कोरोना वायरस का अभी तक कोई इलाज नहीं है।
ये लक्षण कोई पत्थर की लकीर नहीं है कि ऐसे लक्षण दिखे तभी टेस्ट करवाया जाए। सबसे जरूरी बात यह है कि किसी को कोरोना वायरस है या नहीं यह जानकारी टेस्ट से सम्भव हो पायेगी। इसलिए अगर संदेह हो तो पहले आइसोलशन में जाइये और फिर अस्पताल में और डॉक्टर कहे तो टेस्ट करवाइये। खुद भी बचेंगे और दूसरों को भी बचाएंगे।
फेक न्यूज़ की तरफ फ़ैल रहे इस पन्ने में जिस एस्प्रिन और नेजल स्प्रे का नाम लिखा है, यह सारी दवाइयां बुखार, कॉमन कोल्ड और खांसी से बचने लिए दी जाती रही हैं। कोरोना वायरस से मरते हुए इंसान को बचाने में इनका कोई रोल नहीं है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की साइट पर साफ़-साफ़ शब्दों में सवाल पूछा गया है कि क्या कोरोना वायरस की दवा है? और साफ-साफ शब्दों में जवाब है कि अभी तक इसका कोई वैक्सीन नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की साइट से ही इलाज से जुड़ी कुछ और बातें भी समझ लेनी चाहिए। वायरस से लड़ने के लिए एंटीबायोटिक काम नहीं करते हैं। ये केवल बैक्टरिया से होने वाले संक्रमण के खिलाफ काम करते हैं। वायरस से लड़ने के लिए वैक्सीन की जरूरत होती है। अगर कोई डॉक्टर एंटीबायोटिक दे भी रहा है तो केवल रोकथाम के लिहाज से दे रहा है। इसलिए केवल डॉक्टर की सलाह पर ही एंटीबायोटिक लिया जाए।
कोरोना वायरस के मामले में सबसे अच्छी बात है कि बहुत सारे मामले अस्पताल की देख रेख में मिलने वाले सपोर्टिव केयर से ठीक हो जा रहे हैं। जैसे साँस की तकलीफ होने पर वेंटिलेटर की मदद मिल जाना। इसका कत्तई मतलब नहीं है कि कोरोना वायरस का कोई इलाज है। इसका केवल यही मतलब है कि बेहतर व्यवस्था और अस्पताल कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज को बचा सकते हैं।
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