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यूपी : पुलिस द्वारा कथित पिटाई के बाद युवक ने की आत्महत्या

“आप मेरी पैंट खोलकर देख सकते हैं, आपको हर जगह ख़ून के धब्बे देखने को मिलेंगे” अपने दोस्तों को भेजे ऑडियो क्लिप में कथित तौर पर आपबीती सुनाई है गुरुग्राम में काम करने वाले एक दिहाड़ी मज़दूर ने रौशन लाल ने।
यूपी

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के 26 वर्षीय रोशन लाल ने जो कि दलित समुदाय से थे, और अपनी आजीविका के लिए हरियाणा के गुरुग्राम में रह रहे थे, ने फ़ैसला किया कि वह अपने गाँव फ़रिया पिपरिया जो कि लखीमपुर खीरी ज़िले में पड़ता है, की यात्रा पैदल ही पूरी करेंगे। यह फ़ैसला उन्हें इसलिये लेना पड़ा क्योंकि 24 मार्च से सारे भारत में 21 दिनों की तालाबंदी की घोषणा कर दी गई थी। लेकिन उन्होंने यह सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनका यह फैसला उसे मौत के मुहँ में धकेलने वाला सिद्ध होने जा रहा है। बुधवार के दिन रोशन लाल का शव पेड़ से लटका मिला है जिसकी वजह यह बताई जा रही है कि उसके द्वारा क्वारंटाइन नियमों के उल्लंघन के कारण यूपी पुलिस ने उसकी कथित तौर पर पिटाई की थी।

सूत्रों से पता चला है कि प्रधानमंत्री द्वारा लॉकडाउन की घोषणा के छह दिनों के बाद रोशन रविवार के दिन अर्थात 29 मार्च को अपने गाँव पहुँच गया था। गाँव वापसी के बाद से ही ज़िला प्रशासन के निर्देशों के चलते उसे गाँव के प्राथमिक स्कूल में 14 दिनों के लिए क्वारंटाइन (एकांतवास) के लिए रहने को विवश होना पड़ा था।

कथित तौर पर आत्महत्या करने से पहले रोशन ने फोन पर अपने संदेश की ऑडियो क्लिप बनाई और इसे अपने दोस्तों और परिवार के सदस्यों को भेज दी थी। इस संदर्भ में उन्होंने एक पुलिसकर्मी पर आरोप लगाए हैं और उसका नाम लेकर उसके ख़िलाफ़ कार्यवाही किये जाने की माँग की है, कि किस बेरहमी से इस पुलिसवाले ने उनकी पिटाई की थी। ऐसे ही एक ऑडियो क्लिप में 26 वर्षीय रौशन को कहते सुना जा सकता है “दोस्तों, यदि आपको मेरी बात पर विश्वास न हो रहा हो तो आपमें से कोई भी मेरी पैंट उतारकर देख सकता है। मेरे शरीर पर तुम्हें सिवाय खून के धब्बों के कुछ नजर नहीं आने वाला....अब इसके बाद मैं आत्महत्या करने जा रहा हूँ, क्योंकि अब मैं जीना नहीं चाहता। जब मेरा हाथ ही तोड़ डाला गया है तो अब मैं क्या कर सकता हूँ?”

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार कथित तौर पर अपनी जान लेने से पूर्व इस मृतक युवक ने तीन ऑडियो क्लिप रिकॉर्ड किये थे।

“मैं आप सबको ये भी बता दूँ कि यदि कोई भी मेरी मौत के बाद अगर यह दावा करे कि मैंने आत्महत्या इस वजह से की है क्योंकि मैं कोविद-19 की जाँच में पॉजिटिव पाया गया था तो यह सफेद झूठ होगा। मेरी जाँच निगेटिव आई थी, और मेरे पास इन सबके सुबूत हैं। मैं अपनी मर्ज़ी से मरने जा रहा हूँ। लेकिन मैं चाहता हूँ कि उस पुलिस वाले अनूप कुमार सिंह के खिलाफ कार्यवाही हो। उसने मुझे बड़ी बेरहमी से पीटा है और ये आत्महत्या मैं सिर्फ उसी की वजह से कर रहा हूँ” उसे अपने अंतिम क्लिप में काँपती आवाज़ में बोलते सुना जा सकता है। 

इस बीच रोशन के परिवार वालों ने दावा किया है कि रोशन ने हर तरफ मदद माँगी थी लेकिन कोई भी आगे नहीं आया, और इसी वजह से उसे यह कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा। 

समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता क्रांति सिंह इस मौत के पीछे की वजह के बारे में कहते हैं कि उन्हें पता चला था कि वापस लौटने पर रोशन ने खुद से एकांत में रहने के नियम का पालन कर रहा था। लेकिन जबसे प्रशासन की ओर से बाहर से आये लोगों को अलग-थलग रखने के आदेश आये, तब से उसे 14 दिनों के क्वारंटाइन में डाल दिया गया था।

वे दावा करते हैं कि “रोशन 30 और 31 मार्च को क्वारंटाइन में था। इसी बीच उसकी भाभी आई और उसे बताया कि घर में आटा खत्म हो गया है, और घर पर भी कोई नहीं है, इसलिये आटा चक्की से वह आटा लाकर दे दे। इसी वजह से वह बाहर निकला और आटा चक्की पहुँचा था। बाद में दो पुलिसकर्मी उसके पीछे-पीछे पहुँच गए। पहले तो उन्होंने उसके साथ गाली-गलौज की और फिर उसे मार-मार कर अधमरा कर दिया, जिसमें उसके बायाँ हाथ टूट गया।”

सपा नेता ने बताया कि उन्हें जानकारी प्राप्त हुई है कि इस सबसे रोशन बुरी तरह आहत था, उसने पहले तो किसी के हाथ आटे को घर भिजवाया और फिर खेतों में जाकर एक पेड़ से लटक कर ख़ुदकुशी कर ली।

“यूपी पुलिस पलायन करने वालों के साथ अछूतों जैसा व्यवहार कर रही है’

कोविड-19 की आड़ में उत्तर प्रदेश की पुलिस बेरोज़गारी की मार झेल रहे प्रवासी मज़दूरों को प्रताड़ित कर रही है और क्वारंटाइन में उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार कर रही है। इसे कई मीडिया में आई कई रिपोर्टों और वीडियोज़ में देखा जा सकता है, जिसमें एक घटना में तो वापस लौट रहे मज़दूरों पर केमिकल छिड़काव तक करते देखा जा सकता है।

यूपी के कई ज़िलों से इस प्रकार की अनेकों घटनाएं सुनने में आ रही हैं जिसमें यह आरोप लगाए जा रहे हैं कि कोरोनावायरस के चलते लॉकडाउन को कड़ाई से लागू कराने के नाम पर कुछ नौकरशाह और पुलिस अधिकारी न सिर्फ़ इन प्रवासी मज़दूरों को सार्वजनिक तौर पर बदनाम कर रहे हैं बल्कि क्वारंटाइन में रखने के दौरान भी लगातार प्रताड़ित कर रहे हैं।

“सबसे पहले तो गाँव वाले ही इन मज़दूरों को गाँव में घुसने नहीं दे रहे, और उसके बाद ग्राम प्रधान इनके साथ इस प्रकार पेश आ रहे हैं जैसे कि ये सब कोरोना से संक्रमित लोग हैं और कुछ वैसा ही व्यवहार पुलिस वाले भी कर रहे हैं। भयमुक्त वातावरण निर्मित करने के बजाय प्रशासन लोगों में अनजान भय व्याप्त करा रही है, जिसके चलते ये मजदूर बहिष्कृत हो रहे हैं” एक कार्यकर्ता ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया।

कार्यकर्ताओं का दावा है कि राज्य में कानून और व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार ने पुलिस को सारी शक्तियाँ दे दी हैं कि वे कोरोना महामारी को आगे फैलने से रोकने के नाम पर लाठी-डंडों का इस्तेमाल इन ग़रीब दिहाड़ी मज़दूरों को क्वारंटाइन में डाल रही है। 

कोविड-19 की जाँच निगेटिव, फिर भी क्वारंटाइन में रहने को मजबूर 

राम भवन (28 साल) एक दिहाड़ी मज़दूर हैं जो गोरखपुर जिले के एकला गाँव के निवासी हैं। वे दिल्ली एअरपोर्ट के पास पेंटर का काम करते हैं। वे पैदल चलकर किसी तरह बड़ी मुश्किलों से 30 मार्च को दिल्ली से अपने घर पहुँचे हैं। दो-दो बार कोविद-19 की जाँच में निगेटिव पाए जाने के बावजूद उन्हें अपने गाँव के प्राथमिक पाठशाला में अलग करके रखा जा रहा है।

“एकला बाज़ार के प्राथमिक पाठशाला में क्वारंटाइन के लिए पिछले चार दिनों से रखा जाने वाला मैं अकेला इंसान हूँ। सरपंच की ओर से मदद के नाम पर सिर्फ एक चारपाई मिली है, जबकि खाना, मास्क का प्रबंध मेरे परिवार वाले करके मुझे दे रहे हैं” वे आपबीती सुनाते हैं।

“दिल्ली से जब मैंने अपनी यात्रा आरंभ की थी तो कानपुर के पास डॉक्टरों के एक ग्रुप ने पुलिस की मौजूदगी में मेरी जाँच की थी। मुझे बताया गया कि उन्हें मुझमें कोविद-19 के कोई लक्षण नहीं मिले, इसलिये मैं आगे की यात्रा कर सकता हूँ। बाराबंकी में एक बार फिर से एक डॉक्टर ने मेरी जाँच की और इस जाँच में भी मैं ठीक पाया गया और मुझे घर जाने की इजाज़त दे दी गई। जब किसी तरह मैं अपने गाँव में प्रविष्ट हुआ तो सरपंच ने एक और बार मेरे जाँच पर जोर डाला और फैसला सुना दिया कि गाँव से बाहर स्थित प्राथमिक पाठशाला में मुझे रहना होगा। पिछले चार दिनों से मैं क्वारंटाइन के लिए यहाँ पड़ा हुआ हूँ। इस दौरान एक बार कुछ डॉक्टर यहाँ से गुजरे थे लेकिन उन्होंने मेरी कोई जाँच नहीं की और कह दिया कि मुझे किसी प्रकार के कोरोना वायरस के लक्षण नहीं हैं। जब मैंने यह बात सरपंच जी को बताई तो उनका कहना था कि जब तक डॉक्टर जाँच के बाद इसे साबित नहीं कर देता, तब तक तुम्हें इसी हालत में गाँव से अलग रहना ही होगा। 

राम का यह भी दावा है कि सरकार ऐसे क्वारंटाइन में रखे गए लोगों को ज़रूरी वस्तुएं जैसे कि भोजन, दवाइयां, हाथों के लिए सेनेटाईजर इत्यादि कुछ भी मुहैया नहीं करा रही।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कई कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाए हैं कि प्रशासन न तो क्वारंटाइन में रखे गये लोगों के लिए कोई भोजन का इंतज़ाम कर रही है और न ही इनके लिए कोई धनराशि ही जारी की गई है।

गोरखपुर में ऐसे बाहर से आए मज़दूरों को मदद पहुँचा रहे एक सामाजिक कार्यकर्ता ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए बताया कि “जो ग्राम प्रधान खुद में साधन सम्पन्न हैं, वे लोग अपनी जेब से इन लोगों को खाना खिला रहे हैं। लेकिन जहाँ पर ऐसा नहीं है वहाँ पर परिवार के सदस्य ऐसे क्वारंटाइन में रखे गए लोगों के लिए भोजन ला रहे हैं। ऐसे में भला कैसे क्वारंटाइन के नियमों का पालन किया जा सकता है?"

इस बीच मीडिया में आ रही ख़बरों से पता चला है कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने लॉकडाउन के नियमों को तोड़ने के नाम पर 6,000 से अधिक लोगों पर प्राथमिकी (एफ़आइआर) दर्ज कर दी हैं और तक़रीबन 19,000 लोगों को नामज़द कर रखा है।

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

UP: Dalit Youth Found Hanging From Tree After Allegedly Being Beaten up by Cops

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