मुंह को ढक लो मगर ज़ेहन को खोल लो...

इतनी नफ़रत को लेकर किधर जाओगे
तुम कोरोना से पहले ही मर जाओगे!
मुंह को ढक लो मगर ज़ेहन को खोल लो
वरना अपनी ग़लाज़त से भर जाओगे
हाथ हमसे मिलाओ न बेशक मगर
दिल मिला लोगे जल्दी उबर जाओगे
घर में रहना ज़रूरी है लेकिन ज़रा
बेघरों से भी पूछो, किधर जाओगे?
हां, बीमारी बड़ी है, ये सच है मगर
भूख सबसे बड़ी, सच में मर जाओगे
हां, डरो हर बीमारी, बुराई से तुम
क्या भलाई से भी तुम मुकर जाओगे!
है ये क़ुदरत का पैग़ाम सुन लो ‘सरल’
गर सुधर जाओगे तो संवर जाओगे
- मुकुल सरल
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