क्यों बदहाल अर्थव्यवस्था के संकटमोचक बने ग्रामीण क्षेत्र में संकट के बादल मंडरा रहे हैं?

चालू वित्त वर्ष 2020-21 में अप्रैल-जून के दौरान अर्थव्यवस्था में 23.9 फीसदी की अब तक की सबसे बड़ी तिमाही गिरावट आई है। इस दौरान कृषि को छोड़कर मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन और सर्विस सेक्टर का प्रदर्शन खराब रहा है।
सरकार की तरफ से बताया गया है कि इस साल कृषि एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां सकारात्मक ग्रोथ की संभावना दिखाई दे रही है। अच्छे मानसून के कारण इस साल कृषि का रकबा भी बढ़ा है। लॉकडाउन में प्रवासी मजदूर गांव पहुंचे, इसके कारण भी कृषि कार्यों में तेजी आई है।
हालांकि अब कुछ ऐसे संकेत भी मिल रहे हैं जिसके कारण आने वाले समय में इस क्षेत्र की वृद्धि थम सकती है। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार के चिंता करने के लिए कम से कम तीन कारण हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक पहला कारण मंडियों के नए आंकड़े हैं जो बता रहे हैं कि बागवानी, दूध और मुर्गी पालन आदि क्षेत्रों के बाजार मूल्य में गिरावट आ रही है। इसकी एक बड़ी वजह ये है कि अभी भी रेस्टोरेंट और बैंक्वेट हॉल वगैरह बंद चल रहे हैं, शादी के कार्यक्रम का आयोजन बहुत सीमित संख्या के साथ ही किया जा रहा है।
दूसरा कारण प्रवासियों के अपने घरों को लौटने के कारण शहर से पैसे भेजने की दर में काफी कमी आई है। ये बिहार जैसे राज्यों के लिए काफी चिंताजनक हैं, क्योंकि यहां के निवासी शहरों में कमाकर अपने घर पैसे भेजा करते थे, जिससे उनकी आजीविका चलती थी।
एक आंकड़े के मुताबिक लगभग 5 करोड़ श्रमिक अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा गांवों में रहने वाले परिवारों को भेज रहे थे। इनके गांव लौटने से जहां शहर से गांव आ रही धनराशि बंद हो गई है वहीं ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर निर्भर होने वालों की संख्या बढ़ गई है।
साथ ही प्रवासियों द्वारा पैसे भेजने में गिरावट आने की वजह से कम आय वाले राज्य प्रभावित हुए हैं। साल 2017 के आर्थिक सर्वे के मुताबिक देश में कुल आंतरिक प्रवासियों की संख्या 13.9 करोड़ है और उद्योग अनुमानों के मुताबिक एक साल में देश के भीतर करीब दो लाख करोड़ रुपये भेजे जाते हैं।
प्रवासियों द्वारा भेजे जाने वाले पैसों में बिहार और उत्तर प्रदेश की 60 फीसदी हिस्सेदारी है, वहीं ओडिशा, झारखंड, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश पैसे प्राप्त करने वाले अन्य राज्य में शामिल हैं।
तीसरा कारण कोरोना वायरस का संक्रमण है। अब ये महामारी तेजी से शहरों से होते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में फैल रही है। चूंकि भारत के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य व्यवस्था बदहाल हालत में है इसलिए यह सबसे ज्यादा चिंता का कारण है।
गौरतलब है कि भारत की लगभग 66 फीसद आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। लॉकडाउन के बाद शहरों से मजदूरों के वापस आने से न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ा है, बल्कि शहरीकरण वाले विकास मॉडल का खोखलापन भी उजागर हुआ है।
हम गांवों की अर्थव्यवस्था पर एक नजर डाल लेते हैं। गांवों में रहने वाले करीब 65 प्रतिशत लोग खेती पर निर्भर करते हैं। हालांकि अभी शहरी क्षेत्रों से पलायन होने के चलते इस पर निर्भर लोगों की संख्या बढ़ गई है। साथ ही बड़े पैमाने पर लोग मनरेगा, निर्माण क्षेत्र में मजदूरी करके जीवन निर्वाह करते हैं। यहां भी पलायन के चलते लोगों की संख्या बढ़ी हुई है।
इसके अलावा ग्रामीण अर्थव्यवस्था में खेती एवं उससे जुड़ी गतिविधियां जैसे डेयरी, पोल्ट्री आदि से पैसा आता है। हालांकि लॉकडाउन के बाद से ही किसान सब्जी, फल, फूल, दूध, मछली, पोल्ट्री आदि की बिक्री सही से नहीं कर पा रहे हैं और उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है। और अब इनके बाजार मूल्य में गिरावट भी आ रही है। यानी स्थिति बदतर हो रही है।
अगर हम पैसे की बात करें तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पैसे तीन जगहों से आ रहे हैं। पहला सरकार द्वारा घोषित विभिन्न राहत पैकेज जैसे अतिरिक्त राशन, पीएम किसान, महिला जनधन खातों में भेजे गए 500 रुपये और वृद्ध एवं अन्य कमजोर वर्गों के खातों में जमा कराई गई 1000 रुपये की राशि आदि।
दूसरा स्रोत मनरेगा से मिलने वाली सौ दिनों की मजदूरी है। केंद्र सरकार ने मजदूरी में 20 रुपये की वृद्धि की है। कुछ राज्यों ने शहरों से लौटे श्रमिकों को भी नए मनरेगा कार्ड देने को कहा है।
तीसरा और सबसे बड़ा स्रोत खेती से होने वाली उपज को बेचकर हासिल होने वाला पैसा है। इसके अलावा पोल्ट्री, मत्स्य पालन, बागवानी आदि से होने वाली आय को भी इसमें जोड़ा जा सकता है।
ऐसे में ग्रामीण भारत को आर्थिक बदहाली से बचाने के लिए इन तीनों स्रोतों के लिए सरकार को कार्ययोजना बनानी चाहिए। दरअसल गरीबों एवं ग्रामीणों के लिए घोषित वित्तीय पैकेज आवश्यकताओं को देखते हुए काफी कम है और सरकार उम्मीदें कुछ ज्यादा ही लगाए बैठी हुई है। बेशक कृषि क्षेत्र कोरोना वायरस से प्रभावित अर्थव्यवस्था को उबारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है लेकिन ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सरकार को और पैसा डालने की जरूरत है।
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