झारखंड में भी गूंजा ‘वोट चोर–गद्दी छोड़’ का नारा, विधानसभा में SIR के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पास

“वोट चोर, गद्दी छोड़” का नारा इन दिनों अब झारखंड में भी गुंजायमान हो रहा है। न सिर्फ़ सड़कों के जन अभियानों में बल्कि विधानसभा के सदन तक में। जिसे लेकर सियासत का तापमान काफी सरगर्म सा हो गया है। 26 अगस्त को झारखंड विधानसभा के जारी पूरक मानसून सत्र के तीसरे दिन का सत्र उस समय काफी हंगामेदार हो गया जब सत्र के शुरू होते ही सत्ता पक्ष के विधायक एसआईआर के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शित करने लगे। विपक्षी भाजपा व NDA विधायकों को संबोधित करते हुए “वोट चोर, गद्दी छोड़” के नारे लगाने लगे। जवाब में भाजपा-NDA विधायक भी खड़े होकर नारेबाजी करते हुए सत्ता पक्ष का विरोध करने लगे। सदन में भारी शोर-शराबे का माहौल के देखते हुए सदन की पहली पाली की कारवाई दो बार स्थगित करनी पड़ गयी।
बाद में सत्र के शुरू होते ही कांग्रेस विधायक दल नेता ने केंद्र सरकार पर जनता के मताधिकार छिनने का आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग से SIR अविलम्ब वापस लेने की मांग की। इसके बाद सत्ता पक्ष के कई विधायक वेल में घुसकर ‘वोट चोर, गद्दी छोड़’ का नारा लगाते हुए सरकार से इसके खिलाफ प्रस्ताव लाने की मांग करने लगे।
दूसरी पाली में संसदीय कार्यमंत्री ने SIR के विरोध में सरकार की ओर से सदन में प्रस्ताव पेशा किया। जिसका सत्ता पक्ष के सभी विधायकों ने ज़ोरदार समर्थन किया।
झारखंड सरकार के संसदीय कार्य मंत्री ने सदन में SIR के खिलाफ प्रस्ताव पेश करते हुए केंद्र की भाजपा सरकार पर आरोप लगाया कि वह गरीबों-वंचितों के वोट का अधिकार छीनने पर अमादा है। जबकि हमारे देश की एकता-अखंडता इसलिए अक्षुण्ण है क्योंकि यहाँ एक मजबूत संसदीय-लोकतांत्रिक व्यवस्था मौजूद है। जिसे कमज़ोर करने के लिए मौजूदा केंद्र की सरकार चुनाव आयोग का इस्तेमाल करके जनता के मताधिकार को ही ख़त्म करना चाहती है। SIR के नाम पर ऊटपटांग शर्तें थोप कर बड़ी संख्या में लोगों के नाम काटे जा रहे हैं। कागज दिखाने की बाध्यता लागू करने कि गलत प्रक्रिया लागू कर लाखों गरीबों-वंचितों के नाम मतदाता-सूची से काटकर उनके वोट देने के अधिकार को छीना जा रहा है। SIR की मौजूदा थोपी गयी प्रक्रियाएं लोकतंत्र की जड़ों को कमज़ोर करने की साजिश है।
बाद में स्पीकर ने सदन में सत्ता पक्ष के बहुमत होने का हवाला देकर प्रस्ताव को ‘स्वीकृत और पारित घोषित’ कर दिया।
उधर विपक्ष भाजपा नेताओं ने झारखंड के लिए भी SIR को अनिवार्य ज़रूरत बताते हुए सत्ता और उसके सभी घटक दलों पर वोट के लिए “बंगलादेशी घुसपैठी” को मतदाता बनाने की साजिश करार दिया।
बिहार में SIR के नाम पर बड़े पैमाने पर गरीबों, राज्य में रोज़गार नहीं मिलने से बाहर कमाने गए ‘प्रवासी मजदूरों’ तथा अल्पसंख्यकों को मतदाता सूची से बाहर किये जाने का आरोप लगाते हुए झारखंड के वामदलों और INDIA गठबंधन ने कड़ा विरोध जताया। साथ ही भाजपा व NDA गठबंधन द्वारा झारखंड में भी SIR लागू करने की मांग का भी तीखा विरोध किया।
गत 12 अगस्त से ही SIR के विरोध में ‘राज्यव्यापी प्रतिवाद अभियान’ शुरू किया गया। जिसके तहत भाकपा माले के नेतृत्व में राजधानी रांची के धुर्वा स्थित मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय के समक्ष विरोध प्रदर्शित किया गया। इसके पूर्व बिरसा चौक से- ‘वोट चोर, गद्दी छोड़’, मताधिकार बचाओ- लोकतंत्र बचाओ, संविधान बचाओ’ का नारा लगाते हुए विरोध-मार्च निकाला गया। जो चुनाव आयोग कार्यालय तक गया। जहां मुख्य निर्वाचन अधिकारी को एक ज्ञापन भी सौंपा गया।
उक्त ज्ञापन के माध्यम से- मशीन द्वारा पठनीय मतदाता सूची उपलब्ध कराने, बिहार में जारी SIR प्रक्रिया पर अविलम्ब रोक लगाने तथा झारखंड के लिए प्रस्तावित SIR प्रक्रिया को रद्द करने के साथ साथ संसद में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा केन्द्रीय चुनाव आयोग पर लगाए गए आरोपों का तथ्यपरक जवाब देने की मांग की गयी।
ज्ञापन के माध्यम से चुनाव आयोग से यह भी कहा गया कि– “मताधिकार, भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद है और देश के संविधान द्वारा प्रत्येक भारतीय को यह अधिकार हासिल है। मताधिकार से किसी को भी वंचित करना या फर्जी वोटरों को जबरन शामिल करना, लोकतंत्र की देह और आत्मा पर सीधा प्रहार है। इसलिए हर सच्चे भारतीय नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह वोट देने के संविधानिक अधिकार के प्रति जागरूक रहे और इसकी रक्षा करे। ताकि बरसों की जद्दोजहद और शहादतों से हासिल आजादी से मिले गणतंत्र को सुरक्षित रखा जा सके। भारत निर्वाचन आयोग, निष्पक्ष चुनाव संचालन और हर नागरिक के मताधिकार और साफ़-सुथरा व पारदर्शी मतदान के प्रति खुद को कर्तव्यबद्ध बनाए।”
ज्ञापन में बिहार में SIR के बाद 65 लाख लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाये जाने का ज़िक्र करते हुए चुनाव आयोग से तथ्यपरक सूची आम मतदाता-जनता के बीच जारी कर नाम काटे जाने जाने के कारणों को बताये जाने की भी मांग की गयी।
इन दिनों केंद्र की सरकार जनता से हर काम डीजिटली करने पर खूब दबाव डाल रही है, लेकिन आम जनता को सरकार द्वारा डिजिटल माध्यम से विधिवत जानकारी देने में साफ़ कोताही साफ़ दिख रही है।
सनद रहे कि चंद महीने पूर्व संपन्न हुए राज्य विधान चुनाव के समय “बंगलादेशी घुसपैठी’ और “डेमोग्राफी चेंज” का मुद्दा प्रदेश भाजपा और NDA गठबंधन दलों का मामला केन्द्रीय चुनावी मुद्दा था। जिसे अपने जनादेश में राज्य की जनता ने सिरे से नकारते हुए अपना जनादेश NDA के विरोध दिया और राज्य की सत्ता से भाजपा-NDA गठबंधन को बाहर रहना पड़ा।
बहरहाल, कई जानकारों का यह मानना है कि– मौजूदा केंद्र की सरकार द्वारा बिहार विधानसभा चुनाव में “SIR” फार्मूला से चुनाव में जीत की गारंटी की जो कवायद की जा रही है, आनेवाले दिनों में इस फार्मूले को वह सभी गैर-भाजपा शासित राज्यों में लागू करने की हरचंद कवायद करेगी ही। देखना है कि लोकतंत्रपसंद ताकतें कैसे इस चुनौती का सामना करती हैं!
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार, संस्कृतिकृर्मी और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं।)
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