यौन संबंध के लिए पूर्व में कंसेंट हर बार का लाइसेंस नहीं होता!

“इफ ए गर्ल से नो, इट मीन्स नो… फिर चाहे वो आपकी गर्लफ्रेंड हो, आपकी पत्नी हो या फिर अपने जिस्म को सौदा करने वाली सेक्स वर्कर”
ये डायलॉग साल 2016 में आई फिल्म ‘पिंक’ का है। पिंक ने लोगों के सामने लड़की की न को सिर्फ़ न समझने की बात कही। यौन संबंध में सहमति के महत्व को एक नए नज़रिए से समाज के सामने रखा। वही नज़रिया जिसके लिए महिला आंदोलन बरसों-बरस से लड़ाई लड़ाई रहा है। अब दिल्ली की एक अदालत ने इस बाबत एक महत्वपूर्ण बात कही है। अदालत के मुताबिक बलात्कार पीड़िता के पहले के अनुभवों से उसकी सहमति साबित नहीं होती। यानी अगर शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच पहले भी शारीरिक संबंध रह चुके हैं तो इस आधार पर ये नहीं कहा जा सकता कि पीड़िता ने अपने साथ यौन संबंध बनाने के लिए इस बार भी सहमति दी थी।
क्या है पूरा मामला?
दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में ईटी नाउ के एंकर और विश्लेषक वरुण हिरेमथ के ख़िलाफ़ बलात्कार मामले में जमानत याचिका पर सुनावाई चल रही थी। इस केस पर दोनों तरफ से तमाम तरह की दलीलें दी गईं। यहां बता दें कि वरुण मामले के सामने आने के बाद से ही फरार हैं।
अग्रिम जमानत के लिए दायर याचिका में बचाव पक्ष के वकील ने दावा किया कि वरुण को ‘गलत तरह से मामले में फंसाया’ गया है। दोनों ने सहमति से संबंध बनाए थे। महिला ने झूठा केस किया है, जो कुछ भी हुआ है उसमें उसकी पूरी तरह सहमति थी। कोर्ट में कुछ सबूतों को रखकर ये बताया गया कि आरोप लगाने वाली महिला आरोपी से मिलने के लिए पुणे से दिल्ली आई थी। जिसके बाद उसने आरोपी के साथ होटल में चेकइन किया।
आरोपी वरुण हिरेमथ
“पहले भी दोनों के बीच शारीरिक संबंध बने हैं”
आरोपी पक्ष ने बताया कि महिला ने होटल में चेकइन करते हुए अपनी आईडी भी दी, जिसका मतलब है कि वो अपनी मर्जी से होटल रूम में गई थी और ये सेक्शुअल रिलेशनशिप के लिए था। साथ ही कोर्ट को ये भी बताया गया कि पहले भी दोनों के बीच शारीरिक संबंध बने हैं।
इस याचिका में आगे यह आरोप भी लगाया गया कि मामले में एफआईआर दर्ज करने में तीन दिन का समय लगा क्योंकि क़ानूनी सलाह के आधार पर शिकायत में अपराध वाले पहलू जोड़े जा रहे थे।
बचाव पक्ष के वकील ने अदालत के सामने कहा था कि शिकायतकर्ता ने सहमति से आरोपी के साथ यौन संबंध बनाए थे तथा उसके शरीर पर विरोध का कोई निशान नहीं था जिससे पता चलता है कि उसने इसके लिए मना नहीं किया और इसकी इजाजत दी।
विरोध नहीं किया क्योंकि आरोपी नुकसान पहुंचा सकता था
कोर्ट ने शिकायतकर्ता महिला का बयान भी दर्ज किया गया, जिसमें कहा गया कि उस वक्त महिला विरोध नहीं कर सकती थी। क्योंकि अगर वो विरोध करती तो आरोपी के अग्रेसिव नेचर से उसे नुकसान पहुंचाया जा सकता था, उसे चोट लग सकती थी।
अदालत ने अपने फ़ैसले में क्या कहा
इस दौरान अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि अगर महिला ने कोर्ट के सामने ये कहा है कि जो कुछ भी हुआ, उसमें उसकी सहमति नहीं थी तो कोर्ट भी ये मानकर चलेगा कि उसने सहमति नहीं दी थी।
कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर दोनों के बीच पहले रिलेशनशिप था और दोनों सेक्शुअल बातचीत करते थे, तो इसका इंडियन एविडेंस एक्ट के सेक्शन 53ए में कोई मतलब नहीं है।
इसी सेक्शन की बात को आगे बढ़ाते हुए कोर्ट ने कहा, "अगर महिला ने अपने सबूत के तौर पर कोर्ट के सामने ये कहा कि जो कुछ भी हुआ उसमें उसकी सहमति नहीं थी, तो कोर्ट भी ये मानकर चलेगा कि उसकी कोई सहमति नहीं थी। ऐसी परिस्थितियों में इस स्तर पर किसी भी अनुमान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, हालांकि ये ट्रायल के वक्त होना चाहिए। लेकिन इस केस में आईओ ने अब तक जो भी सबूत इकट्ठा किए हैं और वॉट्सऐप-इंस्टाग्राम चैट ये बताने के लिए काफी हैं कि ये ऐसा केस नहीं है, जहां ऐसा अनुमान छूटा हुआ नजर आता है।"
अपराध की गंभीरता को देखते हुए अदालत ज़मानत देने के पक्ष में नहीं
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक पटियाला हाउस कोर्ट की फास्ट ट्रैक कोर्ट में एडिशनल सेशंस जज संजय खनगवाल ने जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, “आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोपों के नेचर को देखते हुए, उसके खिलाफ आईओ के जमा किए गए सबूतों, तथ्यों और अपराध की गंभीरता को देखते हुए मैं आरोपी को अग्रिम जमानत देने के पक्ष मे नहीं हूं।”
द वॉयर की रिपोर्ट के मुताबिक इससे पहले महिला की शिकायत में कहा गया था कि वे और हिरेमथ 21 फरवरी की सुबह दिल्ली के खान मार्केट में मिले और वे फिर चाणक्यपुरी के एक होटल में गए। दोनों पिछले तीन सालों से एक-दूसरे को जानते थे।
महिला की शिकायत में कहा गया, “मैं एक रेस्तरां में आरोपी से मिली… जहां आरोपी ने वाइन पी थी और मैंने किसी भी शराब का सेवन नहीं किया। उसके बाद आरोपी ने मुझे उसके साथ अपने होटल में जाने को कहा, जहां वह अपने परिवार के साथ रह रहा था। हालांकि, यहां इस बात पर जोर देना महत्वपूर्ण है कि मैं केवल आरोपी के साथ बातचीत करने और कुछ समय बिताने के लिए सहमत थी और किसी भी समय यह किसी भी यौन गतिविधि या संभोग के लिए सहमति का संकेत नहीं था।”
बिना सहमति बनाए यौन संबंध
शिकायत में आगे कहा गया है, “हालांकि होटल के कमरे में पहुंचने पर वह बिस्तर पर लेट गया और मैं उसके बगल में बैठ गई। इस दौरान आरोपी ने मेरी इच्छा के विपरीत मुझे चूमने की कोशिश की और मैंने धक्का देकर उसे दूर कर दिया लेकिन वो मेरी सहमति के बिना मेरी इच्छा के विरुद्ध ऐसा करता रहा।”
शिकायतकर्ता ने कहा कि आरोपी ने कई बार उनके निजी अंगों में जबरन उंगली डाली। शिकायत में कहा गया, ‘मैं हैरान थी और लगातार मना करती रही लेकिन वो नहीं रुका… उसने मेरी इच्छा के विरुद्ध और मेरी सहमति के बिना जबरदस्ती की।”
शिकायतकर्ता महिला के वकील जय देहाद्रई के अनुसार, हिरेनाथ पर आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार), धारा 342 (गलत तरीके से बंधक बनाना) और 509 (शब्द, इशारा या कार्य के माध्यम से किसी महिला की गरिमा भंग करने का उद्देश्य) के तहत मामला दर्ज किया गया है।
एफआईआर में कहा गया है, “इसके बाद आरोपी ने कहा कि मैंने होटल रूम के लिए ग्यारह हजार रुपये चुकाए हैं। मैं इतनी दूर दिल्ली आया और इन तीन सालों में तुम्हारा सहयोग करता रहा और तुम्हारे टैक्सी और खाने का बिल भरता रहा, तुम मेरे लिए एक चीज नहीं कर सकती।”
शिकायतकर्ता ने यह भी उल्लेख किया कि उन्हें वहां भागने की कोशिश करने पर गंभीर रूप से घायल होने का भी डर था। कथित घटना के बाद पीड़िता घर चली गई और दो दिन बाद पुलिस में औपचारिक शिकायत दर्ज कराई।
आरोपी ने कहा- परिवार किसी भी केस को हैंडल करने की क्षमता रखता है
सूत्रों के अनुसार, जब पीड़िता ने हिरेमथ को बताया कि उसने क्या किया है और कहा कि वे शिकायत दर्ज कराने जा रही हैं तब उसने माना कि पीड़िता ने उसे सहमति नहीं दी थी। इसके बाद आरोपी ने कहा कि उनका परिवार किसी भी केस को हैंडल करने की क्षमता रखता है। वरुण मुंबई कारोबारी के बेटे हैं।
गौरतलब है कि पितृसत्तात्मक समाज में न को आसानी से स्वकार नहीं किया जाता। अक्सर ये कहा जाता है कि लड़कियों की न में भी हां होती है लेकिन न अपने आप में एक पूरा वाक्य है, जिसमें हां की कोई गुंजाइश नहीं होती। इसे बोलने के लिए जितना साहस चाहिए, सुनने के लिए भी उतनी ही हिम्मत चाहिए। दुनिया भर में इस इनकार, मर्जी या कंसेंट को लेकर आंदोलन जारी हैं और कानून भी पारित हो रहे हैं। स्त्री-पुरुष संबंध तभी स्वस्थ ढंग से विकसित हो सकते हैं, जब न कहने में डर न लगे और इसे सुनने में अहं न टूटे।
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