महामारी भारत में अपर्याप्त स्वास्थ्य बीमा कवरेज को उजागर करती है

जैसे-जैसे हम 1 अप्रैल 2022 के ‘शुभ दिन’ के करीब पहुंच रहे हैं, स्वास्थ्य मोर्चे पर एक अच्छी खबर के साथ एक बुरी खबर भी है। अच्छी खबर यह है कि पूरे देश में कोरोना मामलों की संख्या प्रतिदिन दो हजार से नीचे आ गई है। बुरी खबर यह है कि इस लेख को लिखने के समय से बमुश्किल से एक सप्ताह बचा है, भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) ने अभी तक कोरोना-विशिष्ट स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों की वैधता को 31 मार्च 2022 से आगे नहीं बढ़ाया है। जिसका अर्थ है बीमा कंपनियां अब भविष्य में इन पॉलिसियों को जारी रखने के लिए बाध्य नहीं होंगी।
आम जनता के लिए इसका क्या मतलब है? इसका मतलब केवल यह है कि वे 1 अप्रैल 2022 के बाद ‘कोरोना रक्षक’ और ‘कोरोना कवच’ पॉलिसियों के तहत सस्ती कीमत पर बीमा कवर का लाभ नहीं उठा पाएंगे। उन पाठकों के लिए, जिन्होंने भारत में स्वास्थ्य बीमा विकास का बारीकी से अध्ययन नहीं किया है, आइए हम एक संक्षिप्त विवरण बतौर पुनर्कथन पेश करते हैं ।
एक पूर्वव्यापी अवलोकन
प्रारंभ में, यानि 2020 की शुरुआत में, बीमा कंपनियों ने इस बहाने कोविड -19 मामलों के उपचार को कवर करने से इनकार कर दिया था कि यह पहले से मौजूद बीमारी नहीं, बल्कि एक नई बीमारी है। लेकिन शुक्र है कि IRDAI ने हस्तक्षेप किया। 26 जून 2020 को, इसने सभी बीमा कंपनियों को- चाहे वे राज्य के स्वामित्व वाली हों या निजी- सभी पॉलिसीधारकों के लिए चल रही स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में कोविड -19 उपचार को भी शामिल करने का आदेश दिया। पहले तो कंपनियों ने यह कहते हुए विरोध किया कि इससे उनकी लागत बढ़ जाएगी। लेकिन बहुत जल्द महामारी द्वारा प्रस्तुत जबरदस्त स्वास्थ्य बीमा अवसर से उनकी व्यावसायिक प्रवृत्ति जागृत हो उठी। सभी ने कोविड-19 को कवर करने वाली स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों का विज्ञापन करना शुरू कर दिया। कोरोनावायरस ने उन्हें एक अत्यंत लाभकारी व्यवसाय उपलब्ध कराया!
IRDAI केवल उन्हें कोरोना मामलों को कवर करने का आदेश देने तक ही सीमित नहीं था। इसने कोरोना रक्षक और कोरोना कवच नामक दो अपेक्षाकृत कम लागत वाली कोरोना-विशिष्ट स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियां विकसित कीं और अनिवार्य कर दिया कि सभी बीमा कंपनियां अपनी अन्य पॉलिसियों के अलावा इन पॉलिसियों की पेशकश भी करें।
हालांकि, कोरोना कवच ने कोविड -19 अस्पताल में भर्ती होने के खर्च को प्रति दिन बीमा राशि का केवल 0.5% तक कवर किया और वह भी केवल अस्पताल में भर्ती होने के 15 दिनों की अधिकतम अवधि के लिए। यदि किसी व्यक्ति ने कोविड कवच के तहत 2 लाख रुपये का कवर खरीदा था, तो उसे केवल 1000 रुपये का दैनिक अस्पताल-भर्ती का खर्च कवर के तौर पर मिलना था, जहां निजी अस्पताल 15,000 रुपये से 20,000 रुपये प्रति दिन वसूलते हैं! मरीज अस्पताल में भर्ती होने से पहले के 15 दिनों के खर्च और अस्पताल में भर्ती होने के बाद के 30 दिनों के खर्च के कवर का भी हकदार था, जिसमें पीपीई किट, मास्क, दस्ताने और दवाओं आदि पर खर्च शामिल था।
अगर कोई बीमित व्यक्ति 72 घंटे से अधिक अस्पताल में भर्ती रहता है तो कोरोना रक्षक ने बीमित राशि का 100% देने की पेशकश की। IRDAI ने इन दोनों पॉलिसियों को सभी बीमा कंपनियों के लिये अनिवार्य कर दिया, चाहे वे निजी हों या राज्य के स्वामित्व वाली। लेकिन केवल 18 से 65 वर्ष की आयु के लोगों को ही कवर किया गया था। 65 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिक, जो कोविड -19 की सबसे अधिक चपेट में आते हैं, उन्हें छोड़ दिया गया। इसके अलावा, पॉलिसियां बहुत ही कम अवधि के लिए हैं। उदाहरण के लिए, कोरोना कवच केवल साढ़े तीन, साढ़े छह और साढ़े नौ महीने की अवधि के लिए उपलब्ध था, जिसके अनुसार प्रीमियम अलग-अलग था।
इन दोनों पॉलिसियों में से किसी ने भी पूरे एक वर्ष को कवर नहीं किया। एक बार जब वे समाप्त हो जाते, तो कुछ रियायती दरों पर स्वत: विस्तार का कोई प्रावधान नहीं था, जो कि कुछ अन्य पॉलिसियों के मामले में मानक था। केवल कुछ निजी बीमा कंपनियों ने पेशकश की कि पॉलिसी धारक इन कंपनियों के लिए अधिक आकर्षक शर्तों पर उनके द्वारा दी जा रही अन्य महंगी पॉलिसियों में माइग्रेट कर सकते हैं।
लेकिन इन पॉलिसियों के बारे में दुखद विडंबना यह थी कि लोगों को इनका लाभ तभी मिल सकता था जब वे सरकारी अस्पताल या सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त निजी अस्पताल में भर्ती हो जाते। पहली और दूसरी लहर के दौरान, सरकारी अस्पतालों ने भी मरीजों को भर्ती करने से इनकार कर दिया था और खाली बिस्तरों की कमी के कारण उन्हें लंबी प्रतीक्षा सूची में डाल दिया।
कोविड -19 रोगियों को केवल मामूली लाभ प्राप्त हुआ
IRDAI के अध्यक्ष डॉ. सुभाष सी. खुंटिया ने 29 जनवरी 2021 को बीमा दलाल संघ (Insurance Brokers’ Association) के वार्षिक शिखर सम्मेलन के एक वर्चुअल सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि इन दोनों पॉलिसियों ने 1.28 करोड़ लोगों को कवर किया था, कोरोना कवच ने 42 लाख लोगों की रक्षा की थी और कोरोना रक्षक ने 5.36 लाख लोगों की रक्षा की थी। हालांकि, डॉ. खुंटिया ने देश को यह नहीं बताया कि इन दो पॉलिसियों के तहत दावों के निपटान में बीमा कंपनियों द्वारा कितना पैसा खर्च किया गया था। हालांकि, जनरल इंश्योरेंस काउंसिल के आंकड़ों के आधार पर 20 अक्टूबर 2021 को बिजनेस लाइन में एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार, 13 अक्टूबर 2021 तक भारत में सभी बीमा पॉलिसियों (सिर्फ इन दोनों को ही नहीं) के तहत 25,96,072 बीमा दावे किए गए थे और इनमें से बीमा कंपनियों ने 20,859 करोड़ रुपये के दावों का निप्टान किया था। ये आंकड़े विरोधाभासी हैं। अगर हम डॉ. खुंटिया के आंकड़ों को सही मानें तो भी इन दोनों पॉलिसियों के तहत आने वाले 1.28 करोड़ लोगों में से 47.36 लाख लोगों को फायदा हुआ, यानी इन पॉलिसियों के दायरे में आने वालों में से केवल 37% लोग ही लाभान्वित हुए थे!
अन्यथा भी, ये संख्याएँ वास्तव में प्रभावशाली लग सकती थीं। लेकिन जब कोविड -19 से संक्रमित लोगों की संख्या की पृष्ठभूमि में देखा गया तो वे महत्वहीन हो गईं। जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (CSSE) के कोविड-19 डेटा रिपोजिटरी द्वारा 23 मार्च 2022 तक अपडेट किए गए आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 23 मार्च 2022 तक 5.17 लाख लोगों की मौत हो चुकी थी और रिपोर्ट किया गया कि 4.3 करोड़ कोरोना के मामले सामने आए थे।। इसका मतलब है कि कोरोना कवच और कोरोना रक्षक ने 13 अक्टूबर 2021 तक केवल 9% प्रभावितों को बीमा कवच की पेशकश की थी। पर अप-टू-डेट आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।
अब इन दो कोरोना-विशिष्ट पॉलिसियों के तहत मामूली लाभ भी खतरे में हैं, यदि IRDAI उन्हें 31 मार्च 2022 से आगे नहीं बढ़ाता है। पहले से ही, निजी बीमा कंपनियां इन पॉलिसियों के तहत कवरेज को कम कर रही हैं क्योंकि इन दो पॉलिसियों के तहत दावा अनुपात कथित रूप से कई के लिए 100% से अधिक है। इसका अर्थ है कि उन्हें इन दो पॉलिसियों के तहत उनसे एकत्र किए गए प्रीमियम की तुलना में अधिक दावों का निपटान करना पड़ा। तो, सबसे पहले, कई कंपनियों ने इन पॉलिसियों के तहत ऑनलाइन पंजीकरण बंद कर दिया। पॉलिसी चाहने वालों को बीमा एजेंटों से संपर्क करने के लिए कहा गया था, लेकिन बीमा एजेंटों को अनौपचारिक रूप से नए आवेदकों को चकमा देने और पंजीकृत नहीं करने का निर्देश दिया गया। उनमें से कुछ प्रीमियम बढ़ाने की योजना बना रहे हैं। यदि IRDAI पहली बार में ही अपने द्वारा डिज़ाइन की गई इन पॉलिसियों की वैधता का विस्तार करने में विफल रहता है, तो मुनाफाखोर बीमा कंपनियाँ इन पॉलिसियों को पूरी तरह से डंप कर देंगी।
अन्य बीमा पॉलिसियों के तहत न्यूनतम लाभ
कोरोना कवच और कोरोना रक्षक के अलावा, भारत सरकार ने 26 मार्च 2020 को स्वास्थ्य कर्मियों के लिए 50 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा कवर पेश किया।केंद्र ने प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY) के तहत कोविड -19 मामलों को कवर करने का भी फैसला किया, जो एक जीवन बीमा योजना है, जिसने एक कोरोना रोगी, जिसकी मृत्यु हो गई थी, के परिजनों को 2 लाख रुपये की पेशकश की।इनके अलावा, 2018 में लॉन्च हुई पीएम-जन आरोग्य योजना के तहत भी कोरोना मरीजों का इलाज किया गया, जिसे आयुष्मान भारत के नाम से भी जाना जाता है।
आइए देखें कि इन उपायों से कोरोना मरीजों को किस हद तक फायदा हुआ और इन कवचों में और क्या खामियां थीं।सरकारी स्वास्थ्य कर्मियों के लिए 50 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा कवर: सरकार ने दावा किया कि देश के सभी राज्यों में कार्यरत 22.12 लाख सरकारी स्वास्थ्य कार्यकर्ता इस योजना के तहत कवर किए गए थे। इनमें सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर, नर्स और अन्य पैरामेडिक्स, वॉर्डबॉय, आशा कार्यकर्ता, चिकित्सा सफाई कर्मचारी और लैब तकनीशियन आदि शामिल थे। लेकिन, पूरी तरह से गैर-जिम्मेदाराना कृत्य में, स्वास्थ्य मंत्रालय ने 24 मार्च 2021 को कोविड से पहले ही इस योजना को समाप्त कर दिया। कोविड-19 की दूसरी लहर तब चरम पर पहुची तक नहीं थी। अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कर्मियों के व्यापक विरोध के बाद, सरकार ने इसे केवल एक महीने के लिए 24 अप्रैल 2021 तक बढ़ा दिया। उस तारीख के बाद कोरोना के कारण मरने वाले सभी स्वास्थ्य कर्मियों को यह 50 लाख रुपये का कवर नहीं मिला। लगातार विरोध के बीच, सरकार ने घोषणा की कि एक नई योजना शुरू की जाएगी लेकिन आज तक उन्होंने ऐसा नहीं किया है।
सरकार ने इस योजना की घोषणा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज के बहुप्रचारित 1.7 लाख करोड़ रुपये के हिस्से के रूप में बड़ी धूमधाम से की। लेकिन महामारी के खिलाफ लड़ाई में कोविड -19 के कारण मरे स्वास्थ्य कर्मियों के परिवारों को वास्तव में कितना लाभ मिला? स्वास्थ्य मंत्री ने 3 फरवरी 2021 को राज्यसभा को सूचित किया कि कोविड -19 ने तब तक देश में 162 डॉक्टरों, 107 नर्सों और 44 आशा कार्यकर्ताओं का जीवन लील लिया था। 9 फरवरी 2022 को संसद में एक अन्य प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि देश में कुल 1616 स्वास्थ्य कर्मियों को इस योजना के तहत 808 करोड़ रुपये की बीमा राशि प्रदान की गई। सरकार के लिए कुल बिल बहुत मामूली था और उन्हें इसे कम से कम कुछ और वर्षों तक जारी रखना चाहिए था। कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है, लेकिन स्वास्थ्य कर्मियों को कुछ कवर देने वाली एकमात्र महत्वपूर्ण योजना जल्द ही गायब हो गई। अगर सरकार ने निजी अस्पतालों और अन्य निजी स्वास्थ्य केंद्रों में भी स्वास्थ्य कर्मियों को कवर किया होता, तो कुल बिल 2500 करोड़ रुपये से अधिक नहीं होता। यह कोविड -19 योद्धाओं के लिए भुगतान करने लायक कीमत थी जिन्होंने लोगों को बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी।
PMJJBY के तहत स्वास्थ्य बीमा कवर की सीमाएं: प्रधान मंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY) और प्रधान मंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाई) भारत में गरीबों के लिए पहले से ही चल रही दो स्वास्थ्य और दुर्घटना बीमा योजनाएं थीं। PMJJBY के तहत वार्षिक प्रीमियम 330 रुपये है और इसने 2 लाख रुपये के जीवन बीमा की पेशकश की। प्रधान मंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY) ने पूर्ण विकलांगता वाले दुर्घटना पीड़ितों के लिए 2 लाख रुपये की विकलांगता और उपचार कवर और आंशिक विकलांगता के लिए 1 लाख रुपये के कवर की पेशकश की। इसके लिए सालाना प्रीमियम सिर्फ 12 रुपये है। तो स्वाभाविक रूप से, PMJJBY के तहत नामांकित 10.27 करोड़ लोगों के मुकाबले, 23 करोड़ लोगों ने जनवरी 2022 तक PMSBY के तहत नामांकन किया था। सरकार ने PMSBY को कोरोना रोगियों को भी कवर करने के लिए विस्तारित करने से इनकार कर दिया और उन्हें केवल PMJJBY के तहत कवर किया। अगर उन्होंने उसे विस्तारित किया होता तो इससे दुगुने से ज्यादा लोगों को फायदा होता.
वैसे भी, PMJJBY के तहत लाभ की सीमा क्या थी? 2020-21 में, PMJJBY के तहत कुल 2,50,351 मौत के दावे दायर किए गए। इसमें से केवल 2,34,905 मामलों में 4698.10 करोड़ रुपये के बीमा दावों का भुगतान किया गया। दूसरे शब्दों में, भारत में कुल 4.3 करोड़ कोविड मामलों और 5 लाख कोविड -19 मौतों में से लगभग 2.3 लाख मामलों के लिए 5000 करोड़ रुपये से कम का भुगतान किया गया था।
आयुष्मान भारत के तहत कोविड -19 कवर: आयुष्मान भारत प्रधान मंत्री मो द्वारा शुरू की गई बहुप्रतीक्षित स्वास्थ्य बीमा योजना थी, जिसमें नामित निजी अस्पतालों में भी 5 लाख रुपये के इलाज का वार्षिक कवर था। लेकिन आज तक केवल 40% भारतीय आबादी को ही इस योजना के दायरे में लाया गया है। इसे विस्तारित करना आवश्यक था क्योंकि इस योजना के तहत कोरोना मरीजों के इलाज को भी कवर किया गया था।
3 दिसंबर 2021 को, केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री मनसुख मंडाविया ने लोकसभा में स्वीकार किया कि PM-JAY ने देश भर में केवल 0.52 मिलियन कोविड -19 अस्पताल-भर्ती के लिए भुगतान किया।इससे पहले, 30 नवंबर 2021 को, उन्होंने राज्यसभा को सूचित किया था कि आयुष्मान भारत के तहत 8.3 लाख कोविड मामलों का इलाज किया गया था, जिसमें आउट पेशेंट मामले भी शामिल थे।
इससे पता चलता है कि बहुप्रचारित आयुष्मान भारत गरीबों को पूर्ण बीमा कवर प्रदान करने में पूरी तरह विफल रहा है। महामारी जैसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल ने सरकार को सार्वभौमिक स्वास्थ्य बीमा (universal health insurance) की ओर बढ़ने का एक अच्छा अवसर प्रदान किया था । कम से कम वे आयुष्मान भारत के कवरेज को 40% आबादी से बढ़ाकर 50 या 60% आबादी तक कर सकते थे, जो महंगा निजी स्वास्थ्य बीमा वहन नहीं कर सकते।
महामारी की अवधि में बीमा कंपनियों के मुनाफे में उछाल आया, जबकि कोविड -19 रोगियों का इलाज मुख्य रूप से अपनी जेब से किया गया जनरल बीमा परिषद के आंकड़ों के अनुसार, जुलाई 2021 तक बीमा उद्योग को कुल 22,06,366 दावे प्राप्त हुए (2020-21 में 9,86,366 दावे और 2021-22 में 1.22 मिलियन मामले (जुलाई तक, दूसरी लहर को कवर करते हुए) इनमें से 17,93,616 दावों का बीमा उद्योग द्वारा निपटारा किया गया (2020-21 में 8,49,043 दावे और 2021–22 में 9,44,573 दावे)। निपटाए गए कुल दावों का मूल्य 2020-21 में 7833 करोड़ रुपये और वर्ष 2020 2021–22 में 9178 करोड़ रुपये, जो जुलाई 2021 तक कुल 17,011 करोड़ रुपये बनता है। लेकिन पॉलिसीधारकों द्वारा भुगतान किया गया प्रीमियम 2020–21 में 13% बढ़कर 58,572 करोड़ रुपये हो गया, जो सभी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के लिए 2019-20 के महामारी-पूर्व वर्ष में प्राप्त प्रीमियम 51,833 करोड़ रुपये से अधिक है। फिर से यह 2021-22 में 34% (केवल जुलाई तक) बढ़कर 69,457 करोड़ रुपये हो गया! दूसरे शब्दों में, बीमा कंपनियों को 70,000 करोड़ रुपये तक के दावे प्राप्त हुए और केवल 17,000 करोड़ रुपये तक के दावों का निपटान किया गया। इस प्रकार कोरोना महामारी बीमा कंपनियों के लिए एक वरदान साबित हुआ।
संसदीय समिति की सिफारिश के बावजूद, सरकार या IRDAI ने प्रीमियम पर कोई सीमा नहीं लगाई। निजी बीमा कंपनियों ने उसी तरह के कवर के लिए हास्यास्पद रूप से अधिक प्रीमियम एकत्र किया। उदाहरण के लिए, 5 लाख रुपये के कवर के लिए, एलआईसी (LIC) द्वारा एकत्र किए गए कोरोना कवच के तहत वार्षिक प्रीमियम 2400 रुपये था और उसी 5 लाख रुपये के कवर के लिए स्टार हेल्थ इंश्योरेंस ने वार्षिक प्रीमियम के रूप में 7428 रुपये और टाटा एआईजी ने 9864 रुपये एकत्र किए।
जनरल बीमा परिषद के आंकड़ों के अनुसार, निजी अस्पतालों में कोविड-19 के इलाज की औसत लागत रु. 1.54 लाख है। इसके विपरीत, प्रति मामले का औसत दावा निपटान केवल रु.95,622 था। इसका मतलब है कि भारत में लगभग 40% कोरोना रोगियों ने कोविड -19 के इलाज के खर्च को केवल अपने जेब से दिया।
हालांकि, जेएनयू के प्रोफेसर मनोज कुमार ने 400 कोविड -19 रोगियों का एक सर्वेक्षण किया और उस सर्वेक्षण में निजी अस्पतालों में प्रति मरीज की लागत दिल्ली में 2,97,577 रुपये थी। अगर महानगरों के पॉश स्टार अस्पतालों में कोरोना केयर पर होने वाले खर्च की यही हकीकत होती तो मध्यम वर्ग ने अपने कोरोना इलाज के खर्च का करीब 70 फीसदी अपनी जेब से खर्च किया ही होगा। यह महामारी के बाद स्वास्थ्य बीमा कवर लेने के लिए भारी भीड़ के बावजूद मध्यम वर्ग के बीच भारत में स्वास्थ्य बीमा की कम पहुंच को स्पष्ट रूप से उजागर करता है।
श्री आर. कुमार, जो पहले यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी में एक वरिष्ठ अधिकारी थे और जो सऊदी अरब में एक बहुराष्ट्रीय बीमा फर्म में एक कार्यकारी बन गए हैं। इन्होने न्यूज़क्लिक को बताया कि निजी बीमा कंपनियों को उच्च प्रीमियम वाले लोगों को लूटने के बजाय प्रीमियम नीचे लाना चाहिए। वे यदि अधिक संख्या में बीमा-रहित लोगों को कवर करते हैं तो अधिक पैसा कमा सकते हैं।सरकार को बीमा कंपनियों द्वारा एकत्र किए गए प्रीमियम पर एक सीमा तय करनी चाहिए और सरकारी योजनाओं द्वारा स्वास्थ्य बीमा कवर को 2024 के अंत तक बढ़ाना चाहिए। मामलों की संख्या कम हो सकती है लेकिन कौन जानता है कि ओमाइक्रोन के समान नया संस्करण आने वाले दिनों में कब हमला करेगा । कोविड कवच और कोविड रक्षक को 31 मार्च 2022 से आगे नहीं बढ़ाना आपराधिक उपेक्षा का कार्य होगा। आशा है कि स्वास्थ्य मंत्रालय या IRDAI में कोई सुनेगा! वैसे भी 28-29 मार्च की आम हड़ताल में इन मुद्दों को निश्चित ही शामिल किया जाना चाहिये। ।
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