मज़दूरों के प्रति कोरोना से अधिक क्रूर है हमारी सरकारें!

दिल्ली: वैश्विक महामारी कोरोना आज पूरी दुनिया के लिए ख़तरा बनी हुई है लेकिन भारत में मज़दूरों के लिए जितना खतरनाक यह वायरस उससे अधिक खतरनाक सरकार की नीतियां हैं। हमारी सरकारें लगातार अमानवीयता के नया कीर्तिमान बना रही है।
सरकार के तमाम दावों के बावजूद बड़ी संख्या में प्रवासी मज़दूर पैदल, साइकिल रिक्शा यहां तक की सीमेंट के गाड़ियों में जानवरों की तरह भर कर अपने घर जा रहे हैं। रहने और खाने की बेहतर सुविधा न होने के चलते प्रवासी मज़दूर किसी भी हालत में अपने घर जाना चाहते हैं लेकिन हमारी सरकारों को कोई फर्क ही नहीं पड़ता है।
लंबे समय तक उनकी कोई सुध नहीं ली गई लेकिन जब स्थिति बदतर हो गई तो सरकार ने तीन दिन पहले विभिन्न राज्य सरकारों से प्रवासी मज़दूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए इंतज़ाम करने को कहा। इसके बाद केरल और तेलंगाना जैसे राज्यों ने इस दिशा में कदम उठाए तथा रास्ते के लिए भोजन आदि के इंतजाम के साथ मज़दूरों को उनके गृह नगर भेजा।
वहीं, कई राज्यों में मज़दूरों से रेल और बस टिकट के नाम पर मोटी रकम वसूली की खबरें आई। तो वहीं कई राज्यों की सरकार अपने प्रवासी मज़दूरों को ले जाने और भेजने के लिए अभी भी इच्छुक नहीं दिख रही है। इसमें बिहार सबसे बड़ा उदाहरण है।
गृह मंत्रालय का ताजा फ़रमान
इस सबके बीच 3 अप्रैल शाम को गृह मंत्रालय का ताजा फ़रमान आया। इसमें लॉकडाउन में घर जाने की मिली छूट वापस ले ली। इस सर्कुलर के मुताबिक छूट का आदेश उनके लिए नहीं है, जो रोजगार के चलते घर से दूर आराम से रह रहे हैं। छूट उन लोगों के लिए भी नहीं होगी जो किसी वजह के बिना अपने घर जाना चाहते हैं। यानी यह केवल उन प्रवासी मज़दूरों/छात्रों/श्रद्धालुओं के लिए होगा जो लॉक डाउन की घोषणा से तुरंत पहले ही अपने राज्यों से बाहर आए थे।
इसका विरोध भी हो रहा है वाम दलों इसके ख़िलाफ़ 5 तारीख को विरोध करने का आह्वान किया है जबकि सोनिया गांधी ने कहा है कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी हर जरूरतमंद श्रमिक के घर लौटने की रेल यात्रा का टिकट खर्च उठाएगी।
इसी तरह राष्ट्रीय जनता दल ने बिहार सरकार को अपनी तरफ़ से 50 ट्रेन देने का प्रस्ताव दिया है। उन्होंने कहा कि "हम ग़रीब बिहारी मज़दूर भाईयों की तरफ़ से इन 50 रेलगाड़ियों का किराया असमर्थ बिहार सरकार को देंगे। सरकार आगामी 5 दिनों में ट्रेनों का बंदोबस्त करें, पार्टी इसका किराया तुरंत सरकार के खाते में ट्रांसफ़र करेगी।"
देखने वाली बात यह है कि जो काम सरकार को करना चाहिए वो प्रस्ताव विपक्ष की तरफ से आ रहा है लेकिन रेलवे ने राज्य सरकारों से केवल 15 % खर्च लेने की बात कही है। कांग्रेस के समर्थन वाली महाराष्ट्र सरकार भी मज़दूरों से किराया वसूल रही है। इन सब में जो मूल में है कि सरकार को 40 दिनों से बेकाम मज़दूरों से पैसा मांगना कसी भी सूरत में उचित नहीं है। इसके लिए राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही बराबर की ज़िम्मेदार हैं।
गरीब मज़दूरों से कंगाली में किराये की वसूली
पहले 21 दिन फिर 19 दिन और अब 14 दिन के लॉकडाउन ने पूरे देश के मज़दूरों घरो में रहने के लिए मज़बूर किया गया। इस दौरान उनके पास कोई आमदनी नहीं हुई। यहां तक की बड़ी संख्या में मज़दूरों के सामने भोजन का संकट भी आ गया है।
ऐसे में महाराष्ट्र से एक चौंकाने वाली खबर आई है। द क्विंट की खबर के मुताबिक भिवंडी से उत्तरप्रदेश के गोरखपुर के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाई गई थी। लेकिन इसमें करीब 90 सीटें खाली रह गईं। किसी तरह अपने घर लौटने की आस में स्टेशन पहुंचे 100 से ज्यादा मजदूरों को वापस लौटना पड़ा। इन मजदूरों के पास टिकट खरीदने के पैसे नहीं थे। श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में मजदूरों को स्लीपर क्लास टिकट और बीस रुपये खाने के अतिरिक्त देने हैं।
इस बीच मुंबई से बीजेपी विधायक अतुल भातकालकर ने कहा है कि राज्य सरकार को जिम्मेदारी लेनी ही होगी।
यह कोई अकेली घटना नहीं है। पूरे देश का यही हाल है। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक कर्नाटक में सरकार ने मजदूरों को बस से उनके घर भेजने की इजाजत दी। बड़ी संख्या में मज़दूर बेंगलुरु के बस स्टैंड पहुँच गए। इस के बाद मज़दूरों से सामान्य किराये की जगह तीन गुना किराया वसूला गया। बिहार के किशोर ने अख़बार से बात करते हुए कहा कि प्रति व्यक्ति 2000 रुपये लिये गए। महीने भर से एक पैसा कमाया नहीं है, इतना किराया कहां से देंं?
कर्नाटक परिवहन निगम ने 39 रुपये प्रति किलोमीटर किराये का फेयर चार्ट जारी किया है जबकि एसी कार किराये पर लीजिए तो उसका किराया 15 रुपये प्रति किलोमीटर हैं। कांग्रेस ने सरकार के इस निर्णय का विरोध किया और डीके शिवकुमार बस स्टैंड पहुंचकर मज़दूरों से मिले। और परिवहन निगम को अपनी पार्टी की ओर से एक करोड़ रुपये दिए।
डीके शिवकुमार ने बीजेपी के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार की आलोचना की और शिवकुमार ने अपने एक ट्वीट में कहा कि वर्किंग क्लास और मजदूरों को उनके घर तक मुफ्त में पहुंचाया जाए। साथ ही उनके खाने और पानी की भी व्यवस्था बस स्टैंड पर की जानी चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि कर्नाटक सरकार को उनसे जिस प्रकार की भी मदद की जरूरत हो वह करने को तैयार हैं, लेकिन कर्नाटक सरकार को अब जागना होगा और लोगों की परेशानियों को देखना होगा।
हालाँकि मीडिया में खबर आने और किरकिरी होने के बाद कर्नाटक सरकार ने मज़दूरों से किराया न लेने का फैसला किया।
इसी तरह की एक तस्वीर और वीडियो महाराष्ट्र में काम करने वाले 14 मजदूर और 4 अन्य लोग जो सीमेंट मिक्सर मशीन के अंंदर घुसकर लखनऊ जा रहे थे। उनकी सामने आई। हालांकि मध्यप्रदेश के इंंदौर में पुलिस ने इन्हें पकड़ लिया।
देश की राजधानी दिल्ली की केजरीवाल सरकार के बड़े बड़े सारे दावों के बाद भी दिल्ली में मज़दूर भूख से परेशान हैं। यही कारण जब बिहार के सात दिहाड़ी प्रवासी मज़दूरों से भूख बर्दाश्त नहीं हुआ तो वो लोगो 27 अप्रील को साइकिल से ही अपने घर को चल दिए। इस दौरान रास्ते में ही एक मज़दूर ने दम तोड़ दिया। ये सभी मज़दूर बिहार के खगड़िया के थे जो दिल्ली से 1300 किलोमीटर दूर है।
मजदूरों की शिकायत है कि जब उनकी रोजी छिन गई, खाने तक के पैसे नहीं हैं तो फिर वो टिकट का पैसा कहां से लाएंगे?
इस पर अपने फेसबुक पर टिप्पणी करते हुए पत्रकार कृष्णकांत ने लिखा कि सरकार को चाहिए कि इस संकट काल में गरीबों की किडनी निकाल ले। गरीब लोग हैं, उनका खून निकाल कर व्यापार भी किया जा सकता है। इस सरकार से हम इससे ज्यादा की उम्मीद नहीं कर सकते। देश में 1200 से ज्यादा लोगों को कोरोना लील गया है। करोड़ों गरीबों पर पहाड़ टूटा है, ऐसे में सरकार बहादुर को वसूली सूझ रही है।
वाम दलों का विरोध
वाम दलों ने प्रवासी मजदूरों से घर पहुंचाने के एवज में उनसे पैसा वसूलने के सरकार के आदेश की कड़ी निंदा की है और इसे मजदूर और मानवता विरोधी कदम बताया है। इसके खिलाफ वाम दलों ने 5 मई को लॉकडाउन के नियमों का पालन करते हुए 11 बजे से 3 बजे तक धरना देने का आह्वान किया है।
वाम नेताओं ने कहा है कि देशव्यापी विरोध के बाद अंततः सरकार प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने पर सहमत हुई है। लेकिन , केन्द्र सरकार ने अपनी जिम्मेवारी से पल्ला झाड़ते हुए ट्रेन किराया राज्य से वसूलने की बात की है। इधर बिहार सरकार ने किराया देने से इन्कार करते हुए इसे मजदूरों से वसूलने की घोषणा की है। विडंबना यह है कि पीएम केयर फंड में करोड़ों - अरबों रुपए जमा हैं और प्रधान मंत्री मोदी इसे मजदूरों पर खर्च करना नहीं चाहते। पूरा बोझ भुखमरी-बेरोजगारी की मार झेल रहे मजदूरों पर ही डाला जा रहा है।
उन्होंने मांग की कोरोना लॉकडाउन के दरम्यान घर लौटने के दौरान रास्ते में, भूख, आत्महत्या, दुर्घटना, भीड़ हिंसा आदि में अनेक लोगों को जान गवांनी पड़ी है। ऐसे तमाम मृतक मज़दूरों के परिवारों को पीएम केयर फंड से 20-20 लाख रुपये का मुआवजे देना चाहिए। यह मौत नहीं हत्या है जिसके लिए सरकार जिम्मेवार है।
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