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दिल्ली MCD : 22 फ़रवरी को तीसरी बार होगा मेयर का चुनाव

दिल्ली की जनता द्वारा दिए गए जनादेश को पलटने के लिए भाजपा की दो महीने लंबी चली लड़ाई को सुप्रीम कोर्ट ने आख़िरकार शांत कर दिया।
MCD
फाइल फ़ोटो।

आखिरकार, दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के चुनाव होने के ढाई महीने बाद, विधिवत रूप से इसके काम शुरू करने का रास्ता साफ़ हो गया है। स्थानीय निकाय देश की राजधानी में स्वच्छता, निर्माण विनियमन, प्राथमिक शिक्षा, आदि सहित कई प्रकार के कार्यों की देखभाल करता है, जो काम अब तक अधर में लटके हुए थे – और वे सभी काम जैसे संघर्ष कर रहे थे - जबकि राजधानी में सत्ता हड़पने का घृणित तमाशा चल रहा था। 4 दिसंबर, 2022 को हुए चुनावों में, आम आदमी पार्टी ने बीजेपी को हराकर 134 सीटें जीतीं थी, जिसे 104 सीटें मिली थीं। बीजेपी 15 साल से एमसीडी पर काबिज थी और 2020 के राज्य विधानसभा चुनावों में यही उसकी करारी हार का कारण बनी थी।

एमसीडी में हार के बाद से, भाजपा की राज्य इकाई ने महापौर के चुनाव में रुकावट डालने के लिए सदन में कई बाधाएं पैदा की, जिसके कारण कई अन्य महत्वपूर्ण कार्य रुक गए थे। यही कारण है कि उप-महापौर का चुनाव नहीं हो सका, और सबसे महत्वपूर्ण कार्य, स्थायी समिति का चुनाव रुक गया - जो प्रभावी रूप से निर्णय लेने वाली संस्था है। भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए उपराज्यपाल ने आम आदमी पार्टी पर शिकंजा कसने में सक्रिय भूमिका निभाई थी। पिछले ढाई महीने की घटनाओं से पता चलता है कि भाजपा लोगों की इच्छा, चुनावी जनादेश और नागरिकों के कल्याण की कितनी परवाह करती है। चुनाव हारने के बाद भी, वे किसी भी तरह से जनादेश को हड़पने की कोशिश कर रहे थे। सदन में भाजपा और आप पार्षदों के बीच शारीरिक टकराव और मारपीट भी देखी गई है।

भाजपा ने चुनावी जनादेश को जिस कुटिल तरीके से विफल करने की कोशिश की, उसे समझने के लिए सबसे पहले एमसीडी की कार्यप्रणाली को नियंत्रित करने वाले कानूनों को समझना जरूरी है।

दिल्ली नगर निगम अधिनियम में 10 स्थानीय विशेषज्ञों को सदन के सदस्य के रूप में मनोनीत करने का प्रावधान है। इनका नामांकन उपराज्यपाल द्वारा किया जाता है। स्वाभाविक रूप से, उन्होंने उन 10 लोगों को नामांकित किया जो भाजपा समर्थक थे। बीजेपी द्वारा इन एल्डरमेन का इस्तेमाल आप को मिले बहुमत को कम करने और मेयर के पद पर कब्जा करने के साथ-साथ स्थायी समिति में अपने सदस्यों के लिए बहुमत को हासिल करने की योजना थी।

17 फरवरी को, सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश और मौखिक टिप्पणियों में यह स्पष्ट कर दिया कि संविधान के अनुच्छेद 243आर और दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 की धारा 3(3) इस दृष्टिकोण को बरकरार रखती है कि प्रशासक द्वारा नामित व्यक्तियों को मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव का मतदान करने का अधिकार नहीं है। इसने यह भी स्पष्ट किया कि मेयर, पहली बैठक में चुने जाने के बाद, पीठासीन अधिकारी के रूप में कार्य करेगा और डिप्टी मेयर और स्थायी समिति का चुनाव करेगा, जिसके लिए नामांकित सदस्य (अर्थात, एल्डरमेन) मतदान नहीं कर सकते हैं। इसके साथ ही अब यह तय है कि मेयर और डिप्टी मेयर पदों पर आप की जीत होगी। 

स्टैंडिंग कमेटी का चुनाव

इस समिति में 18 सदस्य होते हैं - उनमें से छह नगरसेवकों में से चुने जाते हैं और अन्य 12 एमसीडी के 12 क्षेत्रों में से प्रत्येक की वार्ड समितियों से चुने जाते हैं।

स्थायी समिति के लिए छह नगरसेवकों का चुनाव तरजीही (preferential) देने वाली मतदान प्रणाली के जरिए होता है, जो 250 सदस्यों की पूरी ताकत वाले सदन से होता है, जिसका अर्थ है कि प्रत्येक उम्मीदवार को जीतने के लिए 36 मत हासिल करने की जरूरत होती है। आप के पास 134 नगरसेवक होने के कारण, उसे स्थायी समिति में चार सदस्य मिलेंगे, जबकि भाजपा को 104 सदस्यों (और एक निर्दलीय का समर्थन करने वाले) को दो सदस्य मिलेंगे। लेकिन अगर आप इस मिश्रण में 10 एल्डरमेन जोड़ दें, तो समीकरण बदल जाएंगे। बीजेपी को सदन से ही चार सदस्य मिल सकते थे। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर इस संभावना पर पानी फेर दिया है।

लेकिन एक और संभावना है। यदि कांग्रेस अपनी नौ सीटों के साथ अनुपस्थित रहने पर राजी हो जाती है, तो सदन की प्रभावी ताकत कम हो जाएगी और भाजपा को तीन स्थायी समिति के सदस्य मिल सकते हैं।

हालाँकि, असली लड़ाई स्थायी समिति के शेष 12 सदस्यों के लिए होगी, जो वार्ड समितियों से चुने जाते हैं, क्योंकि एल्डरमैन यहां मतदान कर सकते हैं और वे इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। वार्ड समितियां उस क्षेत्र में आने वाले वार्डों के सभी नगरसेवकों से बनी होती हैं, साथ ही उस क्षेत्र से नामित सभी एल्डरमैन भी उसमें होते हैं। 12 क्षेत्रों में से, आप के पास आठ क्षेत्रों में अधिकांश नगरसेवक हैं जबकि भाजपा के पास चार क्षेत्रों में बहुमत है। इसका मतलब यह है कि जोन से आप अपने आठ सदस्यों और भाजपा अपने चार सदस्यों का स्थायी समिति में चुनाव करा सकती थी।

लेकिन अब एल्डरमेन के नामांकन से यह स्थिति बदल गई है। किसी एक जोन से नामित किए जा सकने वाले एल्डरमेन की संख्या की कोई सीमा नहीं है। यदि वांछित हो तो सभी 10 एक जोन से हो सकते हैं। एलजी ने जो किया वह यह था कि 10 एल्डरमेन में से चार-चार सिविल लाइंस और नरेला जोन से और दो सेंट्रल जोन से नामित किए गए थे। इसका मतलब है कि आप ने सिविल लाइंस और नरेला जोन में अपना बहुमत खो दिया है। मध्य क्षेत्र में आप को कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ेगा। इसलिए, यह स्थायी समिति के लिए चुने जाने वाले 12 में से छह सदस्यों को जीता पाएगी, इस संभावना के साथ कि यह घटकर पांच भी हो सकती है। इसके उलट बीजेपी को छह या सात भी मिल सकते हैं।  

चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एल्डरमैन सदन में मतदान नहीं कर सकते हैं, तो सदन द्वारा चुने गए स्थायी समिति के सदस्यों में आप को चार या तीन और भाजपा को  लिए दो या तीन मिल सकते हैं। जोन से दोनों पार्टियों के लिए उस छह में से प्रत्येक को जोड़ें तो आप को दस या नौ और भाजपा को आठ या नौ मिल सकते हैं। यदि कांग्रेस अनुपस्थित रहती है तो स्थायी समिति में दोनों दलों के नौ-नौ सदस्य हो सकते हैं या यहां तक कि समान भी हो सकते हैं। 

यह एक ऐसा जटिल गणित था जिसे भाजपा ने दिल्ली के लोगों द्वारा दिए गए स्पष्ट जनादेश को पलटने के लिए इस्तेमाल में लाना था – जबकि आप के पास बहुमत था और परिणामस्वरूप, निर्णय लेने का अधिकार उसे था। एल्डरमेन के जरिए और इस पैंतरेबाज़ी से,  एमसीडी में वास्तविक निर्णय लेने की शक्तियों पर खुले तौर पर कब्जा नहीं करने पाने के कारण भाजपा को कामकाज को पंगु बनाने का मौका मिलेगा। लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्ध होने और लोगों की इच्छा का सम्मान करने के उनके बार-बार के दावे इन तथ्यों से धुंधले होते नज़र आते हैं। 

सौभाग्य से, सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा के सत्ता हथियाने पर रोक लगा दी और मनोनीत एल्डरमेन के माध्यम से जनादेश को पलटने की पूरी साजिश पर पानी फेर दिया है। लेकिन इस खेदजनक प्रकरण ने एक बार फिर से उन गहराईयों को उजागर कर दिया है जिनका इस्तेमाल  भाजपा नगर निगम में भी सत्ता हथियाने के लिए कर रही थी। 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के किए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Calculus of Delhi Municipal Power-Grab Finally Fails

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