तब निशाने पर गांधीजी थे, आज संविधान है!
सन् 1948 की 30 जनवरी को सांप्रदायिक-फासीवादियों ने 'राष्ट्रपिता' पर निशाना साधा। तब से वे लंबे समय तक समाज और सियासत में हाशिए पर रहे! लेकिन पिछले कुछ वर्षों से वे बड़ी ताकत के साथ उभरे हैं। इस बार 30 जनवरी के शहादत-दिवस को फिर रक्तरंजित किया गया! यह एक असमाप्त सिलसिले का हिस्सा है! इनका असल निशाना संविधान है! 30 जनवरी की हालिया घटना पर वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश का विश्लेषण:
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