महाराष्ट्र : रिफ़ाइनरी पर लिखना क्या पत्रकार की मौत की वजह बना?

''सरकार को सोचना चाहिए कि अगर पत्रकारों का ऐसे ही सफाया होता रहा तो जो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है वो धीरे-धीरे गिर जाएगा''
ये उस अख़बार (महानगरी टाइम्स) के मुख्य संपादक सदाशिव केरकर का कहना है जिसके एक पत्रकार की एक्सीडेंट में मौत हो गई। मौत की असल वजह क्या है ये तो जांच का विषय है लेकिन जो बात डरा रही है वो है लगातार जन सरोकार की आवाज़ बनने वाले पत्रकारों को चुप करने की कोशिश।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में प्रेस को चौथा स्तंभ माना जाता है। लेकिन पिछले साल (2022) जब वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत की रैंकिंग जारी हुई तो शायद देश के पत्रकारों को हैरानी नहीं हुई होगी। हमारा देश 180 देशों की लिस्ट में 150 वें स्थान पर था। जबकि इससे पहले उसकी रैंकिंग 142 वीं थी।
प्रेस की आज़ादी की गिरती रैंकिंग को समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं रहा। ग्राउंड पर काम करने वाले लोगों से जुड़े असल मुद्दों को उठाने वाले पत्रकार उस वक़्त ही चर्चा में आते हैं जब उन्हें उठाकर जेलों में डाल दिया जाता है या फिर जब वो दुनिया से रुख़सत हो जाते हैं। लोगों की आवाज़ को एक स्टोरी में समेटने की बजाए ये पत्रकार सालों साल कई बार एक ही मुद्दे से बंधे रहते हैं। उस स्टोरी से जुड़ी हर हलचल को रिपोर्ट करते हैं। सालों एक ही स्टोरी पर काम करने वाले पत्रकार कब जनसरोकार के मुद्दों, आंदोलन का हिस्सा बन जाते हैं उन्हें ख़ुद ही नहीं पता चलता।
महाराष्ट्र के एक पत्रकार शशिकांत वारिशे की मौत चर्चा में है। शशिकांत महाराष्ट्र के रत्नागिरी में एक मराठी अख़बार 'महानगरी टाइम्स' में काम करते थे वो लंबे समय से कोंकण में रिफ़ाइनरी परियोजना का विरोध कर रहे लोगों से जुड़ी ख़बरों पर काम कर रहे थे और इसी से जुड़ी एक ख़बर उनकी जिंदगी की आख़िरी रिपोर्ट साबित हुई।
कौन थे शशिकांत वारिशे और क्या है पूरा मामला ?
शशिकांत वारिशे रत्नागिरी में मराठी में छपने वाले अख़बार 'महानगरी टाइम्स' से बहुत लंबे समय से जुड़े थे। बहुत ही साधारण से परिवार से आने वाले वारिशे के घर में इस वक़्त कोहराम मचा है, बूढ़ी मां, भाई, पत्नी और बच्चे रो-रोकर बस इंसाफ़ की ही गुहार लगा रहे हैं।
वारिशे, महाराष्ट्र के रत्नागिरी में रिफ़ाइनरी जो रत्नागिरी रिफ़ाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड (Ratnagiri Refinery & Petrochemicals Ltd.-RRPCL) से जुड़ी है उसके खिलाफ़ उठ रही आवाज़ को रिपोर्ट कर रहे थे। 6 फ़रवरी को महानगरी टाइम्स में एक बड़ी ख़बर छपी, जिसमें एक कथित भू-एजेंट पंढरीनाथ आंबेरकर का ज़िक्र था, इस रिपोर्ट के साथ कुछ पोस्टर पब्लिश किए गए और साथ ही आंबेरकर को एक आपराधिक इमेज वाला शख़्स बताते हुए सवाल किया गया कि इस शख़्स की पीएम, सीएम, और उपमुख्यमंत्री के साथ तस्वीर क्यों है? हालांकि इस रिपोर्ट के साथ उनकी बाइलाइन नहीं थी। लेकिन बताया ये जा रहा है कि आंबेरकर को इसकी जानकारी थी कि वारिशे लंबे वक़्त से इस मुद्दे पर काम कर रहे हैं।
इस रिपोर्ट के छपने के महज़ कुछ घंटे बाद वारिशे के एक्सीडेंट की ख़बर आई। बताया जा रहा है कि एक SUV ने उनकी स्कूटी को टक्कर मार दी जिसमें वो बुरी तरह से ज़ख़्मी हो गए, उन्हें अस्पताल ले जाया गया लेकिन इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।
पुलिस कार्रवाई
घटना के एक दिन बाद 7 फ़रवरी को इस मामले में आंबेरकर को गिरफ़्तार कर लिया गया।
इस मामले पर बात करने के लिए हमनें रत्नागिरी के एसपी धनंजय कुलकर्णी को फोन किया तो उन्होंने किसी कार्यक्रम में होने की वजह से बाद में फोन करने को कहा। लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो जिस गाड़ी से पत्रकार शशिकांत वारिशे का एक्सीडेंट हुआ था वो आंबेरकर ही चला रहा था। इस मामले में पुलिस ने पहले गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया था लेकिन बाद में हत्या का मामला भी जोड़ दिया।
इस मामले में रत्नागिरी के एक लोकल पत्रकार से हमारी बात हुई जिन्होंने बताया कि वारिशे इकलौते पत्रकार थे जो इस मुद्दे को लगातार उठा रहे थे, उन्होंने RRPCL (Ratnagiri Refinery & Petrochemicals Ltd) पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा, ''लगभग सभी स्थानीय पत्रकारों को RRPCL ने मैनेज कर लिया था, वारिशे इकलौते पत्रकार थे जो इस मुद्दे पर बने रहे।''
इसके अलावा हमारी एक स्थानीय शख़्स से बात हुई जो 2009 से कोंकण इलाके़ में ही काम कर रहे हैं, वो पर्यावरण को होने वाले नुक़सान के प्रति लोगों को जागरुक करने की कोशिश कर रहे हैं। वो रिफ़ाइनरी की वजह से पर्यावरण को होने वाले नुकसान के बारे में लोगों को लगातार बता रहे हैं। उन्होंने बताया कि कोई भी पत्रकार इस मुद्दे पर काम नहीं कर रहा था लेकिन पिछले दो-तीन साल से वारिशे उनसे जुड़े थे और इस मुद्दे पर लोगों की बात अख़बार में लिख रहे थे। उन्होंने आरोप लगाया कि आंबेरकर ने रिफ़ाइनरी के लिए जहां गांव के कुछ लोगों को लालच देकर ज़मीन ले ली वहीं कुछ लोगों को डरा-धमका कर भी ज़मीन बेचने पर मजबूर किया। उनका कहना है कि शुरुआत में रिफ़ाइनरी का कई पार्टियों ने विरोध किया लेकिन धीरे-धीरे सभी पार्टियां शांत हो गईं।
बहुत ख़ास है कोंकण का ये इलाक़ा
इस शख़्स ने बताया कि, "यहां छोटी-बड़ी कोई भी परियोजना ठीक नहीं है इससे हमारे पर्यावरण को नुक़सान होगा।"
अख़बार के मुख्य संपादक सदाशिव केरकर की प्रतिक्रिया
महानगरी टाइम्स के संपादक से जब हमनें पूछा कि शशिकांत वारिशे की रिपोर्ट बाइलाइन क्यों नहीं थी?
तो उन्होंने साफ़ किया कि, ''ये स्टोरी वारिशे की ही थी वो रत्नागिरी के ब्यूरो चीफ़ थे, वो लगातार इसपर लिख रहे थे, रही बात बाइलाइन की तो हम अक्सर नहीं देते''
केरकर के मुताबिक़ वारिशे करीब दस साल से उनके अख़बार से जुड़े थे और बिना सबूत के कोई स्टोरी नहीं करते थे लेकिन वो अंदेशा जताते हैं कि इस स्टोरी के पीछे बहुत कुछ ऐसा लगता है जो अब जांच का विषय है।
साथ ही उन्होंने बताया, ''कल (10 फरवरी को) मुंबई में पत्रकार एक बड़ा मोर्चा निकालने वाले हैं जिसमें महाराष्ट्र के हर ज़िले के पत्रकार शामिल होंगें।''
इसके अलावा मुंबई प्रेस क्लब की तरफ़ से भी एक संदेश जारी किया गया है जिसमें महाराष्ट्र सरकार से इस मामले में तुरंत सख्त क़दम उठाने की मांग की गई है।
संसद में उठेगा मुद्दा?
इस मामले पर हमनें रत्नागिरी से शिवसेना सांसद विनायक राऊत से भी बात की। हमनें पूछा कि क्या ये मुद्दा संसद में उठ सकता है?
जवाब-बिल्कुल, मैं इस मामले में प्रधानमंत्री को ख़त लिखने वाला हूं और साथ ही मैं इस मुद्दे पर संसद में भी बात करने वाला हूं।
वहीं इस पूरे घटनाक्रम के दौरान जानकार कुछ सवाल भी उठा रहे हैं :
क्या आरोपी आंबेरकर का रिफ़ाइनरी से कोई संबंध था?
क्या आरोपी का कोई पॉलिटिकल कनेक्शन भी है?
क्या शशिकांत वारिशे की मौत एक कथित भू-माफिया का नाम लिखने की वजह से हुई या फिर कहानी कुछ और ही है?
'महानगरी टाइम्स' ने आरोपी आंबेरकर पर आज फिर एक स्टोरी की है जिसमें उन्होंने आरोपी की SUV गाड़ी पर लगे RRPCL के स्टिकर पर सवाल उठाए हैं।
ऐसे में अब आरोपी आंबेरकर का रिफ़ाइनरी से कोई संबंध है या नहीं, हादसे के पीछे आरोपी पर की गई स्टोरी है या वजह कुछ और है ये जांच का विषय है।
लेकिन एक सवाल जो सबसे बड़ा है वो ये कि जिस तरह से देश में आवाज़ उठाने वाले पत्रकारों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है उसमें ऐसा ना हो कि जो गिने-चुने पत्रकार लोकतंत्र की साख बचाने की जुगत में लगे हैं उनकी आवाज़ भी दबा दी जाए।
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