कुकी विधायकों, नागरिक संगठनों का बीरेन सिंह सरकार से बातचीत नहीं करने का फ़ैसला

मणिपुर के कम से कम आठ आदिवासी विधायकों और कई नागरिक संगठनों ने एक बयान में कहा कि उन्होंने हाल में जातीय हिंसा से प्रभावित इस राज्य की एन बीरेन सिंह की अगुवाई वाली सरकार के साथ किसी तरह की बातचीत नहीं करने का फैसला किया है।
मणिपुर में चिन-कुकी-मिजो-जोमी-हमार जातीय समूहों से जुड़े अनेक नागरिक संगठनों और राज्य के जनजातीय विधायकों ने राज्य में तनावपूर्ण स्थिति पर चर्चा करने के लिए बुधवार को मिजोरम की राजधानी आइजोल में बैठक की थी। इनमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक भी शामिल हैं।
बयान में कहा गया, ‘‘बैठक में संकल्प लिया गया कि मौजूदा संकट का सामना एकजुट होकर किया जाएगा और मौजूदा मणिपुर सरकार के साथ कोई संवाद या बातचीत नहीं की जाएगी।’’
बयान के अनुसार बैठक में यह फैसला भी हुआ कि अन्य समूहों के साथ समान राजनीतिक एजेंडे पर पहुंचने के लिए व्यापक स्तर पर विचार-विमर्श किया जाए।
बैठक में शामिल रहे एक आदिवासी संगठन के एक नेता ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि कुकी बहुल जिलों के लिए अलग केंद्रशासित प्रदेश के रूप में अलग प्रशासन या अन्य किसी राजनीतिक सुरक्षा मानक पर व्यापक बातचीत की गयी।
भाजपा के सात विधायकों समेत दस कुकी विधायकों ने गत 12 मई को केंद्र सरकार से अनुरोध किया था कि राज्य में बहुसंख्यक मैईती समुदाय और आदिवासियों के बीच हिंसक संघर्ष के मद्देनजर चिन-कुकी-मिजो-जोमी-हमार समुदाय के लिए अलग प्रशासन का गठन किया जाए।
हालांकि, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने इस मांग को खारिज कर दिया और कहा कि मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता को हर कीमत पर बचाया जाएगा।
इस बीच, मणिपुर के हिंसा से प्रभावित लोगों का मिजोरम में आना जारी है और अब तक 6,663 लोग मिजोरम में शरण दिए जाने की मांग कर चुके हैं। एक अधिकारी ने बुधवार को यह जानकारी दी।
गौरतलब है कि अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मैईती समुदाय की मांग के विरोध में तीन मई को 10 पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' आयोजित किए जाने के बाद पूर्वोत्तर राज्य में हिंसक झड़पें हुईं थीं।
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