कोविड की दूसरी लहर से कैसे मुकाबला कर रहे हैं श्रमिक

श्रमिक वर्ग को दो मोर्चों पर लड़ना पड़ रहा है- पूंजीपति वर्ग और उसकी सरकार से और ख़तरनाक कोरोना वायरस से भी।
कुछ प्रारंभिक भटकाव व नुकसान सहने के बाद, भारतीय श्रमिक मार्च 2020 से जनवरी 2021 की महामारी की पहली लहर से मुकाबला करने लगे। नई चुनौतियां सामने आईं। मालिकों द्वारा नए हमले शुरु हुए, क्योंकि वे कोविड-19 के अपने हिस्से का संकट मजदूरों पर थोपने लगे। श्रमिकों ने नई मांगे सूत्रबद्ध कीं। सबसे बड़ा संकट था प्रवासी मजदूरों का और उन्होंने नई परिस्थिति का मुकाबला अद्भुत संयम के साथ किया। मई मध्य तक पीक पर पहुंचने के बाद कोविड की दूसरी लहर अब कम होने के संकेत दिखा रही है, पर अभी भी मरने वालों की संख्या प्रतिदिन 4000 से ऊपर है।
हमें मानना पड़ेगा कि श्रमिक वर्ग, खासकर आवश्यक सेवाओं में लगे वर्कर काफी खतरों का सामना कर रहे थे, पर उन्होंने हमारे जीवन को चलाते रहने के लिए बहुत बड़ी कुर्बानियां दी हैं- अपने परिवार से दूर रहना, शारीरिक कष्ट झेलना और मौत तक को गले लगाना।
भारतीय रेल ने स्वीकारा कि 5000 रेलवे कर्मी कोविड-19 की चपेट में आए थे। बैंक कर्मचारियों की यूनियन एबीईए ने भी घोषणा की कि 3000 बैंक कर्मी कोविड के चलते प्राण गंवा बैठे। डाक कर्मचारियों ने मांग की कि उन्हें भी फ्रंटलाइन वर्कर का दर्जा दिया जाए, पर सरकार ने, ऐसा न करके मरने वालों के लिए केवल 10 लाख मुआवजे की घोषणा की, जबकि अन्य फ्रंटलाइन श्रमिकों के लिए यह 50,000 रुपये है। दिल्ली सरकार ने तो फ्रंटलाइन वर्कर (frontline worker) के मरने पर 1 करोड़ रुपये मुआवजे की घोषणा की है।
शुरुआती पैरालिसिस के बाद से श्रमिक आंदोलन ने नई परिस्थिति में अपने आप को खड़ा कर लिया। 2020 के अंत में ग्रासरूट स्तर पर यहां-वहां कुछ बिखरे हुए प्रतिरोध दिखाई पड़े, खासकर जब लॉकडाउन हटाया गया।
पंजाब में स्वास्थ्यकर्मियों ने संघर्ष छेड़ा और कांग्रेस सरकार ने अपने असली रूप में आकर राष्ट्रीय स्वस्थ्य मिशन के 1400 श्रमिकों को निष्कासित कर दिया। अलबत्ता कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य सरकार की इस मनमाने मजदूर-विरोधी कदम को वीटो नहीं किया है।
पूर्वी दिल्ली के गुरु तेग बहादुर अस्पताल की नर्सों ने हाल में प्रदर्शन किया, वह भी अपने लिए नहीं, बल्कि कोविड मरीजों के लिए ऑक्सिजन की मांग को लेकर। उन्होंने चेतावनी भी दी कि वे अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर जा सकती हैं। बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ ने 10,000 रु. प्रतिमाह कोविड सेवा राशि, पीपीई किट, 10 लाख का स्वास्थ्य बीमा और मरने पर 50 लाख मुआवजे की मांग की है। दिल्ली के शव-दाह गृहों के कर्मचारी भी टीकाकरण में वरीयता की मांग कर रहे थे। हैदराबाद में कई श्रमिक कोविड की चपेट में आ रहे थे पर उन्हें अपने ही अस्पताल में बेड नहीं मिल पा रहा है। स्वास्थ्यकर्मियों के एसोसिएशन मांग कर रहे थे कि फ्रन्टलाइन वर्करों को अस्पताल बेड में 10 प्रतिशत का आरक्षण दिया जाए।
लापरवाह नौकरशाही ने डाक कर्मचारियों को फ्रंटलाइन वर्कर का दर्जा नहीं दिया, जबकि लॉकडाउन और पुलिस उत्पीड़न के बावजूद भी वे डाक पहुंचाते रहे। वे भी मांग कर रहे थे कि उन्हें फ्रंटलाइन वर्कर का दर्जा दिया जाए। बेंगलुरु के सफाई कर्मचारियों ने भी पीपीई किट के लिए आवाज़ उठाई। ये कुछ प्राथमिक संकेत हैं कि मजदूर आंदोलन पुनः खड़ा हो रहा है। सार्वजनिक प्रदर्शन मार्च अंत तक हुए पर अप्रैल से बंद हो गए, क्योंकि कोविड-19 के दूसरी लहर पीक कर रही थी।
दूसरी लहर के बाद कोई सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन नहीं
व्यापक तौर पर ट्रेड यूनियन नेतृत्व ने समझ लिया था कि दूसरी लहर आने के बाद भी सार्वजनिक प्रतिरोध करना उचित नहीं होगा। सीटू के वरिष्ठ नेता इलंगोवन रामलिंगम ने न्यूज़क्लिक को बताया कि तमिलनाडु के सीटू नेतृत्व ने अपनी सभी इकाइयों को निर्देश दिया है कि सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन न करें। वे कहते हैं, ‘‘आज हमारी पहली जिम्मेदारी है लोगों के जीवन की रक्षा करना। हम लापरवाह और उश्रृंखल व्यवहार नहीं कर सकते क्योंकि इससे श्रमिकों के जीवन को खतरा होगा।’’
पर श्री रामलिंगम ने बताया कि सांगठनिक कार्यवाही ऑनलाइन जारी है-ज़ूम मीटिंगों, वाट्सऐप ग्रुपों और टेलिग्राम के माध्यम से। संघर्ष भी जारी है, पोस्टर-तख़्ते बनाकर, कार्टून बनाकर या नारे लिखकर उन्हें वाट्सऐप ग्रुपों में भेजना या सोशल मीडिया के जरिये प्रचारित करना। उन्होंने बिज़नेस लाइन में श्री सीपी चंद्रशेखर के एक लेख का हवाला देते हुए बताया कि उन्होंने एक सर्वे का जिक्र किया है जिसके अनुसार राहत पैकेज केवल उन लोगों को दिया जा रहा है जो राशन कार्ड धारी हैं पर 22 प्रतिशत गरीबों के पास तो राशन कार्ड है ही नहीं।
तमिलनाडु के एक अन्य वरिष्ठ ट्रेड यूनियन नेता, एस कुमारस्वामी ने भी कहा कि कोविड-18 की दूसरी लहर ने यह असंभव बना दिया है कि श्रमिक सार्वजनिक प्रतिरोध करें, पर श्रमिक-अधिकारों की रक्षा करने के लिए कोर्ट में कानूनी कार्यवाही चल रही है, और कुछ सफलताएं भी हासिल हुई हैं। उन्होंने कहा, ‘‘फ्रंटलाइन अस्पताल कर्मियों को पिछली बार की तरह न्यूनतम अतिरिक्त पारितोषक नहीं दिया जा रहा है, जबकि दूसरी लहर में उन्हें अधिक खतरनाक भारतीय वेरिएंट बी.1.617 का मुकाबला करना पड़ रहा है। इसलिए नई मांगें उठ रही हैं और हम उनकी वकालत करने में पीछे नहीं रहेंगे’’
दूसरी बात यह है कि यद्यपि प्रदर्शन नहीं हो रहे हैं, श्रमिक आंदोलन के कार्यकर्ताओं का सारा जोर मानवीय राहत पर है-जैसे कि कोविड-संक्रमित कर्मचारियों, उनके परिवार और रिश्तेदारों को गाड़ी का जुगाड़ करके अस्पताल पहुंचाना, उनके लिए बेड, ऑक्सिजन और दवाओं का प्रबंध करना, आदि। यह केरल और चेन्नई के कुछ हिस्सों में तो नियम बन गया है।
जहां तक लॉकडाउन की बात है, इस सवाल पर ट्रेड यूनियनों के अलग-अलग मत है। जबकि कुछ यूनियनों ने तय कर लिया है कि वे लॉकडाउन की मांग नहीं करेंगे क्योंकि मनमाने तरीके से लॉकडाउन करने से पहली लहर के दौरान मजदूरों की मुसीबतें बढ़ी थीं, परंतु यदि सरकार दूसरी लहर जैसी विशेष परिस्थिति में लॉकडाउन करती है, तो वे उसका विरोध नहीं करेंगे। दूसरी ओर क्योंकि उद्योग लॉकडाउन और सार्वजनिक परिवहन के अभाव के बावजूद चल रहे हैं, उद्योगों में लॉकडाउन की मांग श्रमिकों के बीच लोकप्रिय मांग बन गई है। कई प्रमुख यूनियनें भी औद्योगिक क्षेत्र में लॉकडाउन और उद्योगों की बंदी की मांग कर रहे हैं।
नए राहत पैकेज की बढ़ती मांग
पुदुचेरी के एआईसीसीटीयू नेता, एस बालासुब्रमनियम ने न्यूज़क्लिक को बताया कि वे पेटिशन के जरिये मांग कर रहे हैं कि लॉकडाउन के नए दौर में श्रमिकों व गरीबों को तत्काल राहत पैकेज दिया जाए, पर इसको श्रम विभाग जरा भी तवज्जो नहीं दे रहा। फिर भी, लोगों की बढ़ी हुई अपेक्षाओं को देखते हुए कुछ सरकारों को मांग मानने के लिए बाध्य होना पड़ा। केरल सरकार ने तय किया है कि 2 जून से प्रतिमाह हर परिवार को 50 किलो चावल और अन्य सामग्री के साथ कैश दिया जाएगा। तमिलनाडु सरकार ने तय किया है कि के. करुणानिधि के जन्मदिन, 3 जून को नये राहत पैकेज की घोषणा की जाएगी। अबतक केंद्र और अधिकतर उत्तर भारतीय राज्यों की ओर से ऐसी कोई घोषणा नहीं हुई है। तो अखिल-भारतीय पैमाने पर नए राहत पैकेज की मांग लोकप्रिय बनेगी और इसपर मजदूर वर्ग मुखर होगा।
भयावह सेकेंड वेव और कोविड-19 मामलों में तीव्र वृद्धि तथा मौतों पर मई दिवस ने ट्रेड यूनियनों को सार्वजनिक गतिविधियों के लिए अवसर प्रदान किया, हालांकि सामाजिक दूरी बनाए रखते हुए। लॉकडाउन के दौरान कर्मचारी के मुआवजे का अधिकार, खासकर अस्थायी व ठेके पर काम करने वाले मजदूरों के लिए, समस्त औद्योगिक संस्थानों में मालिक के खर्च पर श्रमिकों के लिए वैक्सीन और पीपीई किट, अधिक अस्पताल बेड, ऑक्सिजन और दवाएं; साथ ही कोविड-19 संबंधी स्वास्थ्य उपकरणों के दामों पर कैप आदि मुद्दे देश के कई औद्योगिक केंद्रों में मई दिवस के अवसर पर उठाए गए। इन कार्यक्रमों में फ्रंटलाइन वर्करों की भारी तादाद रही।
प्रतिरोध का तरीका सार्वजनिक हो या न हो, श्रमिक आंदोलन विभिन्न रूपों में अपनी राह व संतुलन तलाश ही लेता है, भले ही कितनी ही असाधारण कठिन परिस्थिति क्यों न हो।
(लेखक श्रम व आर्थिक मामलों के जानकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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