ग्रेटा ‘टूलकिट’: दिशा रवि की गिरफ़्तारी और बिना सूचना के हिरासत में लिये जाने पर वरिष्ठ वकीलों ने उठाये सवाल

दिल्ली की एक अदालत द्वारा किसानों के विरोध से सम्बन्धित सोशल मीडिया पर "टूलकिट" बनाने और उसे साझा करने में कथित रूप से शामिल होने को लेकर 21 वर्षीय जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि को पांच दिन की पुलिस हिरासत में भेजने के फ़ैसले पर क़ानूनी विशेषज्ञों ने सवाल उठाये हैं। अन्य लोगों के अलावा,वरिष्ठ अधिवक्ता- रिबेका जॉन ने कहा कि मजिस्ट्रेट के आदेश में "न्यायिक कर्तव्यों की अनदेखी” के हैरतअंगेज़ संकेत हैं।
सोशल मीडिया पर किसान आंदोलन से सम्बन्धित उस "टूलकिट" के साथ कथित तौर पर शामिल होने के कारण 21 वर्षीय कार्यकर्ता-दिश रवि को दिल्ली पुलिस की एक साइबर सेल टीम ने शनिवार को बेंगलुरु से गिरफ़्तार कर लिया था,जिसे बाद में स्वीडिश जलवायु कार्यकर्ता-ग्रेटा थनबर्ग ने साझा किया था। पुलिस ने रवि को रविवार को दिल्ली की अदालत में पेश किया था और उन्हें सात दिन के लिए हिरासत में देने की मांग की थी। ड्यूटी मजिस्ट्रेट-देव सरोहा ने पुलिस को पांच दिनों तक पूछताछ करने की अनुमति दे दी।
सुनवाई के दौरान रवि कोर्टरूम के भीतर टूट गयीं और उन्होंने न्यायाधीश को बताया कि उन्होंने टूलकिट की केवल दो पंक्तियों को संपादित किया था और वह किसानों के विरोध का समर्थन करना चाहती थीं।
लाइवलॉ की सूचना के मुताबिक़,अधिवक्ता-रिबेका जॉन ने बताया कि दिल्ली की पटियाला हाउस अदालत में ड्यूटी मजिस्ट्रेट को यह सुनिश्चित करना चाहिए था कि रवि का प्रतिनिधित्व कोई वकील करे। जानी मानी क्रिमिनल वकील, जॉन ने फ़ेसबुक पर लिखा,“मजिस्ट्रेटों को रिमांड को लेकर अपने कर्तव्यों को गंभीरता से लेना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि संविधान के अनुच्छेद 22 के शासनादेश का बारीकी से पालन किया जाये। अगर सुनवाई के दौरान आरोपी का प्रतिनिधित्व करने वाला वकील मौजूद नहीं था,तो मजिस्ट्रेट को आरोपी के वकील के आने या वैकल्पिक रूप से इंतज़ार करना चाहिए था, उन्हें कानूनी मदद दी जानी चाहिए थी।”
जॉन ने सवाल उठाया है कि क्या ड्यूटी मजिस्ट्रेट ने पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ से इस बारे में पूछा कि बेंगलूरु की अदालतों से ट्रांजिट रिमांड के बिना रवि को दिल्ली की अदालत में क्यों पेश किया जा रहा था। जॉन ने आगे बताया कि रविवार को उस ड्यूटी मजिस्ट्रेट के लिए तो यही सबसे अच्छा होता कि वह "एक दिन की रिहासत पर लेते, ताकि अगले दिन नियमित अदालत में इस मामले की सुनवाई होती।" प्रभावी क़ानूनी प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने की मांग करते हुए जॉन ने कहा कि ड्यूटी मजिस्ट्रेट को किसी आरोपी को पांच दिन की पुलिस हिरासत में नहीं भेजना चाहिए।
इस बीच,वरिष्ठ अधिवक्ता-सौरभ कृपाल ने पूछा कि लोगों को गिरफ़्तार करने में जल्दबाज़ी क्यों दिखायी जाती है। उन्होंने ट्वीट किया,“अगर कोई दोषी है,तो मुकदमा चलाइये और सज़ा दीजिए। मुकदमा चलाने से पहले की जाने वाली गिरफ़्तारी (सज़ा के विकल्प के रूप में) असल में पुलिस का जांच-पड़ताल की ज़िम्मेदारी का अनुपालन नहीं करना है। यह हमें बतौर नागरिक सन्न कर देता है।”
कैंपेन फ़ॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफ़ॉर्म के बतौर संयोजक,एक बयान को साझा करते हुए सुप्रीम कोर्ट के वकील-प्रशांत भूषण ने इस गिरफ़्तारी को "अवैध और दुर्भावनापूर्ण" बताया है। इस समूह में न्यायमूर्ति पी.बी. सावंत, बतौर संरक्षक वरिष्ठ वकील और पूर्व केंद्रीय क़ानून मंत्री शांति भूषण के अलावे कई और लोग भी हैं।
Our Statement on Delhi Police's illegal&malafide arrest of environmental activist #DishaRavi for playing a small role in preparing a digital campaign toolkit for the farmer's protest. The Magistrate in mechanically remanding her to police custody also abdicated his responsibility pic.twitter.com/RMZSISlqLV
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) February 15, 2021
इस कैंपेन के बयान में कहा गया है कि दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल की तरफ़ से रवि की इस 'अवैध' गिरफ़्तारी से आपराधिक प्रक्रिया संहिता और संविधान में निर्धारित मानदंडों और प्रक्रियाओं का उल्लंघन हुआ है।
यह बताने के अलावा कि पुलिस ने बेंगलुरु की एक अदालत से रवि की ट्रांजिट रिमांड हासिल नहीं की थी, इस बयान में दावा किया गया कि रवि को क़ानूनी सलाह भी नहीं दी गयी या इसके लिए किसी और वकील को हासिल करने की गुंजाइश भी नहीं दी गयी, ये सभी अनुच्छेद 22 के अलग-अलग धाराओं का उल्लंघन हैं। इस बयान में कहा गया है," दिल्ली पुलिस की तरफ़ से की गयी इस तरह की ग़ैरक़ानूनी कार्रवाई को कानून की आड़ में अपहरण की तरह माना जायेगा।"
इस समूह ने ड्यूटी मजिस्ट्रेट के "कर्तव्य के पालन की इस अनदेखी" पर निराशा जतायी है। उनके बयान में कहा गया है,"मजिस्ट्रेटों को अनुच्छेद 22 के तहत महत्वपूर्ण संवैधानिक भूमिका इस तरह निभाना होता है, ताकि इस बात को सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी हिरासत को लेकर पुलिस क़ानून और प्रक्रिया का सख़्ती से पालन करे। हालांकि, सम्बन्धित मजिस्ट्रेट ने अपने कार्य को यांत्रिक तऱीके से अंजाम दिया है, जिसके चलते मानवाअधिकारों का गंभीर उल्लंघन हुआ है।" इस कैंपेन ने रवि की तत्काल रिहाई और ड्यूटी मजिस्ट्रेट के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग की है।
"टूलकिट" किसी भी मुद्दे को समझाने के लिए तैयार किया गया एक दस्तावेज़ होता है। यह इस बात की भी जानकारी देता है कि किसी को समस्या के समाधान के लिए क्या करना चाहिए। इसमें दरख़्वास्त के बारे में जानकारी, विरोध और जन आंदोलनों को लेकर जानकारी शामिल हो सकती है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री-अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को रवि की इस गिरफ़्तारी को "लोकतंत्र पर अभूतपूर्व हमला" क़रार दिया है। केजरीवाल ने ट्वीट किया,“21 साल की दिशा रवि की गिरफ़्तारी लोकतंत्र पर एक अभूतपूर्व हमला है। अपने किसानों का समर्थन करना कोई अपराध नहीं है।”
विभिन्न रिपोर्टों के मुताबिक़, पुलिस ने रवि पर टूलकिट को तैयार करने वालों में से एक होने और ‘प्रमुख षड्यंत्रकारी’ होने का आरोप लगाया है। पुलिस ने उनकी हिरासत की मांग करते हुए दावा किया कि वह भारत सरकार के ख़िलाफ़ एक बड़ी साजिश रचने की कोशिश कर रही थीं और पुलिस ने ख़ालिस्तान आंदोलन से सम्बन्धित उनकी कथित भूमिका का पता लगाने की बात की थी।
बेंगलुरु के एक निजी कॉलेज से बैचलर ऑफ़ बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातक रवि, जलवायु सुरक्षा को लेकर चल रहे एक आंदोलन- फ़्राइडेज़ फ़ॉर फ़्यूचर इंडिया’ नामक समूह के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील, कॉलिन गोंज़ाल्विस ने भी एनडीटीवी पर एक वाजिब सवाल करते हुए पूछा," आपके पास उस टूलकिट का जो भी संस्करण है, उससे हमें बतायें कि उस टूलकिट की कौन सी पंक्ति एक दंडनीय अपराध वाली है?"
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करे
Greta ‘Toolkit’: Senior Lawyers Question Activist Disha Ravi’s Arrest, Remand Without Counsel
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