कोरोना वायरस के ख़तरे के बावजूद पश्चिमी अफ़्रीकी देश गिनी में हुए चुनाव

22 मार्च को बहिष्कार की धमकियों, कोरोना वायरस के ख़तरों और हिंसा के बीच पश्चिमी अफ़्रीकी देश गिनी की जनता ने नई संसद चुनने के लिए वोट दिया। इसके अलावा एक रिफ़रेंडम भी जारी किया गया जिसके तहत देश के संविधान में महत्वपूर्ण बदलाव किए जाएंगे।
गिनी में अब तक कोरोना वायरस के दो मामलों की पुष्टि हो चुकी है।
गिनी की संसद नेशनल एसम्ब्ली में 114 सीटें हैं जिसके लिए 43 से ज़्यादा पार्टियों ने चुनाव लड़ा है। राष्ट्रपति अल्फा कोंडे की पार्टी रैली ऑफ़ द गिनियन पीपल को 2013 के चुनावों में 53 सीटें मिली थीं।
संसद चुनावों के अलावा जो महत्वपूर्ण संशोधन हो रहे हैं, उसके लिए जनमत संग्रह में वर्तमान पांच साल से सात साल तक की अवधि में वृद्धि शामिल है। इसका अर्थ यह भी है कि हालांकि प्रस्तावित दो कार्यकाल की सीमा संविधान में बनी रहेगी यदि प्रस्तावित संशोधन को लोगों की स्वीकृति मिल जाती है तो वर्तमान राष्ट्रपति अल्फा कोंडे फिर से चुनाव लड़ सकते हैं। उनका वर्तमान कार्यकाल दिसंबर में समाप्त हो रहा है।
अन्य प्रस्तावित बदलावों में लैंगिक समानता शामिल है। जिसके तहत शादी के तहत महिला जननांग विकृति को अवैध बनाने और तलाक में पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान अधिकार देने का प्रस्ताव है।
चुनाव के नतीजे आने अभी भी बाक़ी हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली पार्टी विपक्षी पार्टी यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फोर्सेस ऑफ़ गिनी(यूडीएफ़जी) और यूनियन ऑफ़ रिपब्लिकन फोर्सेस ने राष्ट्रपति के कार्यकाल अवधि बढ़ाने के प्रस्ताव का विरोध करते हुए चुनाव के बहिष्कार का आह्वान किया था।
नेशनल फ्रंट फॉर द डिफ़ेंस द्वारा प्रस्तावित संशोधनों के ख़िलाफ़ अक्टूबर 2019 से विरोध जारी है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार सरकार ने विरोध प्रदर्शनों के ख़िलाफ़ हिंसक रवैया अपनाया है, जिसकी वजह से अभी तक 32 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई है।
पहले वोटिंग 1 मार्च को होने वाली थी, लेकिन वोटिंग लिस्ट में कथित छेड़छाड़ की वजह से तारीख़ आगे बढ़ा दी गई। Regional group Economic Community of West African States (ECOWAS) ने इसमें हस्तक्षेप किया था और 2.4 मिलियन फ़र्ज़ी वोटरों को हटाने की मांग की थी।
पहले फ़्रांस द्वारा शासित गिनी की आबादी क़रीब 13 मिलियन है जिसमें से 5 मिलियन लोग वोट दे सकते हैं।
साभार : पीपल्स डिस्पैच
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