चुनाव आयोग को चुनावी निष्ठा की रक्षा के लिहाज़ से सभी वीवीपीएटी पर्चियों की गणना ज़रूरी

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं। ये चुनाव 2024 में होने वाले आम चुनाव के लिए सेमीफ़ाइनल साबित हो सकते हैं। इसके बावजूद मतदान और मतगणना में इस्तेमाल हो रहे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVMs) नामक "ब्लैक बॉक्स" के सिलसिले में भारत के चुनाव आयोग (ECI) की ईमानदारी और निष्पक्षता को लेकर गहरे संदेह और खटके क़ायम हैं।
उत्तर प्रदेश में 10 फ़रवरी को चुनावी प्रक्रिया शुरू होने और 14 फ़रवरी को चुनाव के दूसरे चरण में जाते ही भारत के प्रधान मंत्री और सूबे के मुख्यमंत्री की ओर से किये जाने वाले आदर्श आचार संहिता के गंभीर उल्लंघन के आरोप लगाये जाने लगे।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 126 (3) उम्मीदवारों और प्रचारकों को मतदान ख़त्म होने से 48 घंटे पहले मतदाताओं को प्रभावित करने के लिहाज़ से चाहे टेलीविज़न हो या नाटकीय प्रदर्शन के माध्यम से हो, किसी भी तरह "चुनावी मामले" के आकलन करने से रोक देती है। आदर्श आचार संहिता की संहिता 1 और 2 निम्मनिखित बातों को निर्धारित करती है:
1. “कोई भी पार्टी या उम्मीदवार ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं होगा, जो मौजूदा विवादों को बढ़ा सकती है या आपसी नफ़रत पैदा कर सकती है या विभिन्न जातियों और समुदायों, धार्मिक या भाषा-भाषियों के बीच तनाव पैदा कर सकती है।
2. अन्य राजनीतिक दलों की आलोचना जब भी की जाये, उस आलोचना की सीमा उनकी नीतियों और कार्यक्रमों, पिछले रिकॉर्ड और काम तक ही सीमित हो। पार्टियों और उम्मीदवारों को निजी जीवन के उन तमाम पहलुओं की आलोचना करने से बचना चाहिए, जो दूसरे पार्टियों के नेताओं या कार्यकर्ताओं की सार्वजनिक गतिविधियों से जुड़े नहीं हो। असत्यापित या तोड़-मरोड़कर लगाये गये आरोपों के आधार पर बाक़ी दलों या उनके कार्यकर्ताओं की आलोचना से बचना चाहिए।”
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के टीवी पर दिये गये साक्षात्कार और सांप्रदायिक या जातिगत रंगों वाले भाषणों और सम्बोधनों के ज़रिये इस कानून और संहिता दोनों का खुले तौर पर उल्लंघन किया गया है। हालांकि, चुनाव आयोग के पास इस आरोप की सुनवाई की शक्तियां हैं,लेकिन शिकायत किये जाने के बावजूद उसने अपने कान-आंख मुंद रखे हैं। अगर पार्टियां आदर्श आचार संहिता का पालन करने में विफल रहती हैं और चुनाव आयोग की तरफ़ से इसका कारण बताने का उचित अवसर देने के बाद भी उसके कानूनी निर्देशों का पालन नहीं करती हैं ,तो चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 की धारा 16ए इसे किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल की मान्यता को निलंबित करने या वापस ले लेने की अनुमति देती है।
ईवीएम के ठीक से काम नहीं करने के अलावा अन्य गंभीर उल्लंघनों की भी ख़बरें आती रहती हैं। एक आरोप यह भी है कि उत्तर प्रदेश के कुछ मतदान केंद्रों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरें लगी हुई थीं। गड़ब़ड़ी करने की भी ख़बरें हैं, कुछ जगहों पर काफ़ी बड़े पैमाने पर ऐसे किये जाने की ख़बरें हैं। इससे भी बुरी बात यह है कि ऐसा लगता है कि जनादेश को ख़रीदने के लिए बड़े पैमाने पर "वोट के बदले नक़द पैसों" का सहारा लिया जा रहा है !
ये तमाम बातें चल रहे चुनावों की ईमनदारी और लोगों के जनादेश के लूट लिये जाने की संभावना को सामने ले आती हैं। ईवीएम वोटिंग से मुसीबतों में इज़ाफ़ा ही हुआ है। यह तो सबको मालूम ही है कि ईवीएम मतदान लोकतांत्रिक सिद्धांतों की उन ज़रूरी अपेक्षाओं का अनुपालन नहीं करता है,जिनमें कि हर एक मतदाता के पास यह सत्यापित करने के लिए प्रत्यक्ष ज्ञान और पात्रता होनी चाहिए कि उनका वोट उसे ही पड़ा है,जिसे वह देना चाहता था;वहीं दर्ज किया गया है,जहां वह चाहता था और उसी प्रत्याशी के पक्ष में गिना गया है,जिसे उसने वोट दिया था। यह हैकिंग, छेड़छाड़ और नक़ली वोट दिये जाने के ख़िलाफ़ प्रमाणित गारंटी भी नहीं देती है। ऐसे में यह मानकर चुनाव कराये जाने चाहिए कि ईवीएम से छेड़छाड़ की जा सकती है।
ईवीएम की जिस तरह की डिज़ाइन बनायी गयी है,जिस तरह से उसे अमल में लाया जाता है और जिस तरह इसके सॉफ़्टवेयर और हार्डवेयर दोनों के सत्यापन के नतीजे सार्वजनिक नहीं हैं, और इसकी पूरी समीक्षा की जा सके,इसका भी कोई विकल्प नहीं है। वोटर वेरिफ़िएबल पेपर ट्रेल यानी वीवीपीएटी सिस्टम मतदाताओं को वोट डालने से पहले इस पर्ची को सत्यापित कर पाने की अनुमति नहीं देता है। शुरू से आख़िरी तक की प्रक्रिया को सत्यापित कर पाने की कोई गुंज़ाइश नहीं होने की वजह से मौजूदा ईवीएम प्रणाली यक़ीन करने लायक़ नहीं रह गया है और इसलिए, लोकतांत्रिक चुनावों के लिए यह ठीक नहीं है।
इस तरह के चुनावों के साथ एक और संकट है। बीईएल और ईसीआईएल के ईवीएम पेटेंट की समय सीमा समाप्त होने के साथ ही इस उपकरण को एक्सेस कर पाना और इस्तेमाल कर पाना सभी के लिए सुलभ हो सकता है। यहां तक कहा जाता है कि जब यह पेटेंट चालू था, तब भी भारतीय चुनाव आयोग पर पसंदीदा कॉर्पोरेट संस्थाओं से ईवीएम की ख़रीद को लेकर प्रधान मंत्री कार्यालय से भारी दबाव था। चुनाव आयोग ने तब इसका विरोध किया था, लेकिन अब इसका कोई मतलब नहीं रह गया है,क्योंकि ईवीएम ख़ुद ही एक नक़ली उपकरण बनकर रह गया है। चुनाव आयोग की ओर से पूरी गोपनीयता बरती जाती है,ऐसे में यह किसी को नहीं पता होता है कि ईवीएम का मौजूद सेट कहां से आया है या उनके निष्पक्ष रूप से काम करने का स्तर क्या है।
इनमें से कुछ मामलों को कुछ हद तक हल करने के लिहाज़ से कम से कम एक सीमा तक वीवीपीएटी को शुरू किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने हर एक विधानसभा क्षेत्र में जहां-तहां से चुने गये पांच बूथों में इस वीवीपीएटी पर्चियों के मुक़ाबले ईवीएम वोटों को सत्यापित करने के लिए मानदंड निर्धारित किया है। इसके अलावा, हर ईवीएम में वीवीपैट लगाये जाते हैं, लेकिन नतीजे घोषित होने से पहले डाले गये और गिने जाने वाले वोटों को सत्यापित करने के लिए एक भी पेपर स्लिप की गिनती और मिलान नहीं किया जाता है। इससे चुनावों में होने वाले गंभीर धोखाधड़ी उजागर होती है।
मतदान में दोहराव से हालात और ख़राब हो रहे हैं, जो कि वीवीपैट के आने के बाद से हुआ है। अब दो वोट हैं- एक ईवीएम में दर्ज है और एक वीवीपैट से मुद्रित है। चुनाव आचरण (संशोधन) नियम, 2013 के नियम 56डी(4)(बी) में ईवीएम पर डाले गये और परिकलित मतपत्रों के इलेक्ट्रॉनिक मिलान पर वीवीपैट स्लिप की गिनती की प्रधानता का प्रावधान है। इसलिए, इस बात का कोई उचित कारण नहीं है कि सभी वीवीपैट पर्चियों की गिनती हर एक विधानसभा क्षेत्र में नहीं की जानी चाहिए, ताकि मतदाताओं के मन में यह संदेह दूर हो सके कि उनके वोटों को सही जगह दर्ज नहीं किया गया है और उनकी सही गणना नहीं की गयी है।
एक क़दम और आगे जाकर देखें,तो चूंकि वीवीपीएटी ईवीएम मेमोरी को पीछे छोड़ देता है, इसलिए चुनाव आयोग के लिए इलेक्ट्रॉनिक गिनती को जारी रखना व्यर्थ और समय और ऊर्जा,दोनों की बर्बादी है। नतीजों के ऐलान में ईमानदारी और सत्यनिष्ठा को सुनिश्चित करने के लिए इसे तो 100% वीवीपैट पर्चियों की गिनती में तब्दील कर देना चाहिए। चुनाव आयोग के लिए पुष्टि और और ऑडिटिंग के लिहाज़ से हमेशा ही ईवीएम मेमोरी की गिनती का विकल्प खुला रहता है।
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई क़ुरैशी के कार्यकाल के दौरान ये वीवीपीएटी शुरू किये गये थे। क़ुरैशी ने भी कहा है: “सभी वीवीपीएटी पर्चियों को गिना जा सकता है। इससे हमेशा के लिए बैलेट पेपर पर फिर से आने की मांग ख़त्म हो जायेगी। वीवीपीएटी पर्चियों की गिनती मतपत्रों को फिर से शुरू किये बिना ही काग़ज़ी मतपत्रों की तरह होगी, क्योंकि वीवीपीएटी पर्ची आकार में बहुत छोटे होते हैं, जिसमें सिर्फ़ एक उम्मीदवार का नाम होता है, जबकि मतपत्रों में एक से ज़्यादा उम्मीदवारों के नाम होते हैं…। इसलिए, आख़िर हम ईवीएम या वीवीपैट पर्चियों को गिनें या नहीं, इससे ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। सिर्फ़ इस प्रक्रिया को उलट देने, यानी कि वीवीपीएटी पर्चियों की गिनती से चुनावी प्रणाली की पारदर्शिता और विश्वसनीयता बढ़ जायेगी...।"
यह बात चुनाव आयोग के कुछ अधिकारियों के इस झूठे दावों को भी झूठ क़रार देती है कि नतीजों के ऐलान के लिए सभी वीवीपैट पर्चियों की गिनती में कई दिन लग जायेंगे। यह तो सबको मालूम है कि काग़ज़ी मतपत्र सिस्टम के तहत विशाल संसद या विधानसभा क्षेत्रों में भी मतों की गिनती की जाती थी और नतीजे 16 या 18 घंटों के भीतर घोषित कर दिये जाते थे। 100 फ़ीसदी वीवीपैट पर्चियों की गिनती में ज़्यादा समय नहीं लगेगा। अगर ज़रूरी हो, तो मतगणना की प्रक्रिया में मशीन की सहायता से तेज़ी लायी जा सकती है।
संविधान का अनुच्छेद 324(1) चुनाव आयोग को "संसद और हर एक राज्य के विधानमंडल और राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पदों के सभी चुनावों के लिए निर्वाचक नामावलियों की तैयारी के संचालन, निर्देशन और नियंत्रण के अधिदेश को पूरा करने के सिलसिले में पूरा अधिकार देता है।”
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसलों में अन्य बातों के साथ-साथ यह भी निर्धारित किया गया है कि अनुच्छेद 324 स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव को तेज़ी से कराने के घोषित उद्देश्य के लिए कार्य करने के लिहाज़ से शक्ति का भंडार है। शीर्ष अदालत ने कई मामलों में इस बात को सामने रखा है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संविधान की एक बुनियादी ख़ासियत है।
इसलिए, चुनाव आयोग को वोटों की गिनती की प्रक्रिया को बिना देर किये इसी तर्ज पर अधिसूचित करना चाहिए,क्योंकि इसके लिए वह पूरी तरह से सशक्त है और इसलिए उसके पास ऐसा नहीं कर पाने का कोई बहाना भी नहीं है। हालांकि, पांच राज्य के विधानसभाओं के चुनाव पहले ही शुरू हो चुके हैं, वोटों की गिनती 10 मार्च 2022 को होनी है। इसलिए, चुनाव आयोग को इन चुनावों को ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ कराये जाने को लेकर तुरंत आवश्यक अधिसूचना जारी कर देनी चाहिए।
आम बहुमत प्रणाली की भ्रांतियां जब अपारदर्शी मतदान और मतगणना प्रणाली के साथ जुड़ जाती हैं, तो ये भ्रांतियां एक निरंकुश, तानाशाही और कुलीन शासक प्रतिष्ठान को जन्म दे सकती हैं। यह लोकतंत्र के ख़त्म होने के ख़तरे की घंटी की तरह होगा।
(यह लेख न्यूज़क्लिक की शुरू की गयी उस श्रृंखला का पहला लेख है, जिसमें इस बात की जांच-पड़ताल की जा रही है कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में परिभाषित गुप्त मतदान क्या है और इसे लेकर जो अस्पष्टता है,उसे कैसे दूर किया जाये।)
लेखक एक पूर्व भारतीय सैनिक और आईएएस अधिकारी हैं। इन्होंने "इलेक्टोरल डेमोक्रेसी-एन इंक्वायरी इन द फ़ेयरनेस एंड इंटीग्रिटी ऑफ़ इलेक्शन इन इंडिया" नाम की किताब का संपादन किया है। इनके व्यक्त विचार निजी हैं।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें
https://www.newsclick.in/Election-Commission-Must-Count-All-VVPAT-Slips-Protect-Electoral-Integrity
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