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ख़बरों के आगे-पीछे: आठवें वेतन आयोग का गठन क्यों टाल रही है सरकार?

वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन अपने साप्ताहिक कॉलम में कूटनीतिक मोर्चे पर भारत की स्थिति से लेकर देश के विभिन्न राज्यों की राजनीति और हालात पर बात कर रहे हैं।
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कूटनीतिक मोर्चे पर भारत को फिर झटका

पाकिस्तान के खिलाफ कूटनीतिक मोर्चे पर मात दर मात खा रहे भारत की उम्मीदों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद की फंडिंग की निगरानी करने वाली संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी एफएटीएफ ने भी गहरा झटका दिया है। उसने आतंकवाद की फंडिंग के मामले में पाकिस्तान को क्लीन चिट दे दी है। असल में पिछले दिनो एफएटीएफ ने पहलगाम कांड के 55 दिन बाद पहला बयान जारी करके कहा था कि यह कोई साधारण घटना नहीं है। इस तरह की घटना के लिए परदे के पीछे से बड़ी फंडिंग की जरुरत होती है। उसके इस बयान से भारत को उम्मीद जगी थी कि पाकिस्तान पर शिकंजा कसेगा। लेकिन पहलगाम पर बयान देने के एक दिन बाद एफएटीएफ ने पाकिस्तान पर अपनी स्थिति साफ करते हुए कहा कि पाकिस्तान 2022 में किए गए वादों के मुताबिक आतंकवाद की फंडिंग रुकवाने और आतंकवाद की नकेल कसने के लिए काम कर रहा है। एफएटीएफ की एक अहम बैठक अगस्त मे होने वाली है। भारत चाहता है कि पाकिस्तान को संदिग्ध देशों की ग्रे सूची में डाला जाए। इसका असर यह होता है कि बिना कुछ कहे ग्रे सूची वाले देशों को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं की फंडिंग रुक जाती है। गौरतलब है कि हाल ही में पाकिस्तान को आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक और एडीबी तीनों ने कर्ज देने की घोषणा की है। भारत ने इसे भी रुकवाने की कोशिश की थी लेकिन किसी वित्तीय संस्था ने भारत की नहीं सुनी। अब एफएटीएफ ने भी झटका दे दिया है। 

रील बनाने वाले मंत्रियों से नाराज़गी

पता नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के नेताओं ने महसूस किया है या नहीं लेकिन किसी भी हादसे के समय वहां पहुंच कर रील बनवाने वाले मंत्रियों को लेकर लोगों की नाराजगी बढ़ रही है। सोशल मीडिया में लोग इसे अच्छा नही मान रहे हैं। वे चाहते हैं कि मंत्री ठोस कार्रवाई करें और नतीजा दें। वे उनकी रील्स नहीं देखना चाहते हैं। यहां तक कि भाजपा के समर्थक भी इसकी आलोचना करते हैं। 

अभी तेलुगू देशम पार्टी के नेता और नागरिक विमानन मंत्री राममोहन नायडू निशाने पर हैं। वे अहमदाबाद में विमान हादसे की जगह पर गए तो उनकी रील बनाई गई। प्रधानमंत्री मोदी की भी रील वायरल हो रही है। इसे लेकर सोशल मीडिया में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। इससे पहले रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव भी खूब निशाने पर रहे थे। बालासोर रेल हादसे के समय उनका रील बनवाना लोगों को बिल्कुल पसंद नहीं आया था। उस हादसे में 297 लोगों की जान गई थी। तब भी किसी की जवाबदेही तय नहीं हुई और अब 275 लोग विमान हादसे में मरे हैं तब भी किसी की जवाबदेही तय नहीं हुई है। कोई इस्तीफा नहीं हुआ है। उलटे मंत्रियों की कई एंगल्स से शूट की गई रील्स देखने को मिल रही हैं, स्लो मोशन का इस्तेमाल है और बैकग्राउंड म्यूजिक भी लगी हुई है।

ऐसे ही विदेश मंत्री एस जयशंकर भी सोशल मीडिया में लोगों के निशाने पर रहते हैं। उनकी एक रील आई थी, जिसमें तेज म्यूजिक था और उनकी आंखों से लेजर लाइट निकल रही थी। उस रील को लेकर उनका बहुत मजाक बना। 

स्टालिन का तमिल अस्मिता का दांव

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार के खिलाफ नया मोर्चा खोला है। हिंदी भाषा और सनातन विवाद के बाद अब उन्होंने किलाडी की खुदाई के बहाने तमिल सभ्यता को सिंधु घाटी और वैदिक सभ्यता के समकालीन या प्राचीन दिखाने का दांव चला है। असल में किलाडी में हो रही खुदाई में ऐसे सबूत मिल रहे हैं, जिनसे वहां कोई 2600 साल पहले नगरीय सभ्यता का अस्तित्व प्रमाणित होता है। स्टालिन का दावा है कि खुदाई से इसकी प्राचीनता स्थापित हो गई है लेकिन भारत सरकार जान बूझकर इसके निष्कर्षों को स्वीकार नहीं कर रही है और आगे की खुदाई के रास्ते में बाधा डाल रही है। इस खुदाई से संगम युग का कालखंड पहले से स्थापित अवधि से तीन सौ साल पीछे जाता है। तमिलनाडु सरकार आरोप लगा रही है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग आगे की खुदाई में अड़ंगा डाल रहा है। 

हालांकि केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिल भाषा को सबसे प्राचीन और समृद्ध बता चुके है, लेकिन शेखावत भी किलाडी की खुदाई के निष्कर्षों को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा है कि इस मामले में और दस्तावेजों और प्रमाणों की जरुरत है। अभी जो प्रमाण मिले हैं उनसे अंतिम तौर पर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता है। दूसरी ओर स्टालिन इन प्रमाणों को अकाट्य मान कर तमिल सभ्यता की श्रेष्ठता का दावा कर रहे हैं।

कांग्रेस कार्यालय पर ईडी की गाज

भ्रष्टाचार के मामले में प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने अब नेताओं के साथ-साथ राजनीतिक दलों की गर्दन दबाने का खेल भी शुरू कर दिया है। पहले शराब नीति घोटाले में आम आदमी पार्टी को और उसके बाद एक कथित बैंक घोटाले मे केरल में सीपीएम के एक जिला कार्यालय को आरोपी बनाने के बाद अब खबर है कि छत्तीसगढ़ के सुकमा में ईडी ने कांग्रेस का कार्यालय जब्त कर लिया है। 

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के कथित शराब घोटाले में ईडी ने कांंग्रेस नेता और पूर्व मंत्री कवासी लखमा को आरोपी बनाया है। ईडी का कहना है कि लखमा ने शराब घोटाले के 65 लाख रुपए का इस्तेमाल पार्टी कार्यालय बनाने में किया इसलिए पार्टी कार्यालय सीज कर दिया गया है। इससे पहले ईडी ने नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया और राहुल गांधी को आरोपी बनाया लेकिन कांग्रेस को आरोपी नहीं बनाया। हालांकि उसमे भी यह संभावना बनी हुई है कि आगे कभी कांग्रेस पार्टी को भी आऱोपी बनाया जा सकता है। हालांकि नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी ने कांग्रेस के दो बैंक खाते सीज कर दिए थे और ऐन चुनाव के समय पैसे का उसका स्रोत बंद कर दिया था। कांग्रेस के सौ करोड़ रुपए से ज्यादा खातों में फंस गए थे। सो, ऐसा लग रहा है कि नेताओं के बाद ईडी अब पार्टियों पर भी शिकंजा कसेगी और उनके कार्यालय से लेकर बैंकखाते तक सब सीज कर देगी।

अमेरिका से भारत डरा हुआ क्यों?

कूटनीति स्तर पर भारत इतनी दयनीय स्थिति में कभी नहीं रहा, जितना इस समय है। अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप लगातार भारत को अपमानित कर रहे हैं लेकिन भारत की ओर से गोलमोल तरीके से ट्रंप की बातों का जवाब दिया जा रहा है। अब या तो ट्रंप सच बोल रहे हैं कि उन्होंने व्यापार और टैरिफ का भय दिखा कर भारत और पाकिस्तान का युद्ध रुकवाया इसलिए भारत उनको झूठा नहीं ठहरा पा रहा है या अगर ट्रंप झूठ बोल रहे है तो भारत इतना डरा हुआ है कि उनके झूठ को झूठ नहीं कह पा रहा है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति ट्रंप के साथ 35 मिनट तक टेलीफोन पर बात की। लेकिन इस बारे में उन्होंने खुद कुछ नहीं बताया, जबकि इससे पहले हर विदेशी नेता के साथ टेलीफोन पर होने वाली बात का ब्योरा खुद प्रधानमंत्री अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर देते थे। इसी से संदेह पैदा होता है। मोदी और ट्रंप की बातचीत का ब्योरा विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने दिया और कहा कि प्रधानमंत्री ने ट्रंप दो टूक अंदाज में कहा कि पाकिस्तान से बातचीत करके भारत ने सीजफायर किया था। इधर मिसरी ने सुबह यह बात कही और शाम होते होते उधर ट्रंप ने 15वीं बार दोहराया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान का युद्ध रुकवाया। अब भी अगर भारत की ओर से ट्रंप का नाम लेकर नहीं कहा जाता है कि वे झूठ बोल रहे हैं तो प्रधानमंत्री की वार्ता और विदेश सचिव के बयान की क्या साख रह जाएगी?

आठवें वेतन आयोग का गठन नहीं हुआ

केंद्र सरकार ने इस साल 16 जनवरी को दिल्ली के विधानसभा चुनाव के दौरान आठवें वेतन आयोग की घोषणा की थी। ऐन चुनाव के बीच सरकार ने इसकी घोषणा की, जिसका उसको बड़ा फायदा मिला। सरकारी कर्मचारियों की बहुलता वाली नई दिल्ली सीट पर भाजपा के प्रवेश वर्मा ने आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल को हरा दिया था। लेकिन घोषणा के पांच महीने बाद भी अभी तक आठवें वेतन आयोग को लेकर कोई पहल नहीं हुई है। 16 जनवरी की घोषणा में कहा गया है कि आयोग की सिफारिशें जनवरी 2026 से लागू होगी। घोषणा के पांच महीने बीत जाने के बाद भी आयोग का गठन नहीं होने से कर्मचारियों में नाराजगी है। अखिल भारतीय राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ की ओर से नौ जुलाई को हड़ताल करने की घोषणा की है। महासंघ की ओर से कहा गया है कि सरकार आयोग के गठन में इसलिए देरी कर रही है ताकि उसे जनवरी 2026 से कर्मचारियों को इसका लाभ नहीं देना पड़े। हालांकि अगर आयोग का गठन देर से भी हो और सिफारिशें देर से आएं तब भी सरकार जनवरी 2026 से उसका लाभ दे सकती है। उसमें कर्मचारियों को बकाया की राशि एकमुश्त मिलेगी। लेकिन सवाल है कि केंद्र सरकार ऐसा क्यों करना चाह रही है। जब उसने 16 जनवरी को आयोग की घोषणा कर दी तो उसका गठन करने मे इतना समय क्यों लग रहा है? जाहिर है कि सरकार ने चुनावी लाभ ले लिया और अब चुप्पी साध ली है। 

हरियाणा में पुलिस भर्ती की दिलचस्प कहानी

दिल्ली के अखबारों में 16 जून को एक छोटी सी खबर छपी कि हरियणा मे पुलिस कांस्टेबल की भर्ती रद्द कर दी गई है। राज्य मे 5600 कांस्टेबल भर्ती होने थे, जिसे रद्द कर दिया गया है और नए सिरे से प्रकिया शुरू करने की बात कही गई है। भारत में ऐसा अक्सर होता रहता है। जितनी भर्ती परीक्षा होती हैं उससे कई गुना ज्यादा परीक्षाएं रद्द होती हैं। इसलिए परीक्षा रद्द होना बडी खबर नही है। असली खबर यह है कि 5600 कांस्टेबल बहाल करने का विज्ञापन पिछले साल विधानसभा चुनाव के दिन निकला था। यानी जिस दिन हरियाणा में मतदान हो रहे था उस दिन राज्य के कर्मचारी चयन आयोग ने 5600 कांस्टेबल की वैकेंसी निकाली। कहने की जरुरत नहीं है कि लोगों के मतदान पर इसका बड़ा असर हुआ होगा। इसीलिए कांग्रेस ने इस पर आपत्ति भी जताई थी। देश में चुनाव आयोग नामक संस्था का पतन नहीं हुआ होता तो यह सब कुछ होता ही नहीं। इसलिए कांग्रेस की आपत्ति बेमतलब रही। सरकार का मकसद पूरा हो गया। हजारों नौजवानों ने आवेदन किया लेकिन बहाली की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ी। अब कांग्रेस की आपत्ति का बहाना बना कर इसको रद्द कर दिया गया है। इस मामले को अदालत में ले जाने का भी कोई मतलब नहीं है, क्योंकि वहां सुनवाई हो ही जाएगी, इसकी कोई गारंटी नहीं। अगर अदालत ने सरकारी फैसले के खिलाफ कोई आदेश जारी कर भी दिया तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि सरकार उसका पालन करेगी। 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

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