ख़तरे की घंटी!, स्कूल खुलने के बाद टीचर्स और स्टूडेंट्स में कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं!

‘जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना संक्रमण के बीच ये नारा तो दे दिया लेकिन शायद उनकी ही सरकार अब इसे गंभीरता से अपनाने के मूड में नज़र नहीं आती। महामारी के बीच बिना किसी पुख्ता सुनियोजित तैयारी के गृह मंत्रालय ने देश भर में स्कूलों को खोलने की गाइडलान्स जारी कर दीं, लेकिन अब कई राज्यों में स्कूलों के खुलते ही कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों ने केंद्र सरकार और डॉक्टरों की चिंता बढ़ा दी है।
क्या है पूरा मामला?
गृह मंत्रालय की ओर से जारी गाडइलाइन के बाद से उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश सहित देश में लगभग 10 राज्यों में स्कूल खोल दिए गए हैं। बाकी राज्यों में स्कूल खोलने को लेकर अभी भी मंथन जारी है। बच्चों को स्कूल भेजना सुरक्षित है या नहीं, इसी चिंता के बीच ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज यानी एम्स ने कोरोना मामलों को लेकर ताजा रिपोर्ट जारी की है, जिसने हर किसी की चिंता बढ़ा दी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्कूल खुलने के बाद से कई जगहों पर टीचर्स और स्टूरडेंट्स के कोविड पॉजिटिव पाए जाने की खबरें आई हैं। इसमें सबसे चिंताजनक बात ये है कि सभी पॉजिटिव मरीजों में से 40 प्रतिशत मरीज़ एसिम्टोमेटिक पाए गए यानी वे संक्रमित तो हैं लेकिन उनमें लक्षण नहीं है।
एम्स ने यह आंकड़ा कोरोना संक्रमण की संवेदनशीलता और इसके जांच करने के विभिन्न तरीकों को लेकर आयोजित वर्चुअल प्लेटफॉर्म नेशनल ग्रैंड राउंड में पेश किया। इसमें देश भर के डॉक्टर शामिल थे।
12 साल से कम उम्र के बच्चे सबसे अधिक संक्रमित
रिपोर्ट के मुताबिक इन सभी मरीजों में 73.5 प्रतिशत बच्चे 12 साल से भी कम उम्र के थे। इस तरह के बच्चों में कोरोना का संक्रमण तो होता है, लेकिन वो दिखाई नहीं देता है। ऐसे में ये पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि कौन सा बच्चा कोरोना पॉजिटिव है और कौन सा नहीं।
रिपोर्ट की माने तो हर 4 में से 3 कोरोना संक्रमित बच्चों में कोई लक्षण नहीं दिखाई दिए जो दूसरे बच्चों के लिए काफी खतरनाक हैं। डॉक्टर्स का मानना है कि ऐसे में अगर संक्रमित बच्चा स्कूल जाता है तो वह अपने सहपाठियों और स्कूल वालों को भी संक्रमित कर सकता है। इस तरह कोरोना संक्रमण का एक तरह से चैन रिएक्शन शुरू हो सकता है।
आंध्र प्रदेश में 262 विद्यार्थी और लगभग 160 शिक्षक कोरोना पॉजिटिव
इस रिपोर्ट की पुष्टि इस बात से भी होती है कि आंध्र प्रदेश में स्कूल खुलने के बाद पिछले 3 दिनों में 262 विद्यार्थी और लगभग 160 शिक्षक कोरोना पॉजिटिव पाए गए। राज्य में 2 नवंबर से कक्षा 9वीं और 10वीं के छात्रों के लिए स्कूल शुरू हो गए हैं।
हालांकि इस संबंध में स्कूल शिक्षा आयुक्त वी चिन्ना वीरभद्रदू ने कहा कि संक्रमित छात्रों की संख्या 262 है, जो चार लाख छात्रों का 0.1 प्रतिशत भी नहीं है। ऐसे में यह कहना सही नहीं है कि स्कूल जाने की वजह से छात्र संक्रमित हुए। लेकिन हरियाणा जैसे कई अन्य राज्यों से भी बच्चों और शिक्षकों के संक्रमण की खबरें सामने आ रही हैं, जो निश्चित तौर पर ख़तरे की घंटी जरूर है।
बच्चों, शिक्षकों, अभिभावकों के स्वास्थ्य की ज़िम्मेदारी किसकी?
गौरतलब है कि देश में कोविड-19 के मामलों की संख्या 84 लाख के पार हो गई है। नए मामलों की रफ्तार कम जरूर हुई है लेकिन खतरा अभी भी बरकरार है। इसी बीच, सितंबर और अक्टूबर के महीने में कई राज्यों ने स्कूलों के दरवाज़े खोल दिए थे। नवंबर में भी कुछ राज्यों ने स्कूल खोले हैं और कई राज्य अभी खोलने की तैयारी में हैं। लेकिन ऐसे में बच्चों के साथ-साथ अभिवावक और शिक्षक भी अपने स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं।
लखनऊ के सीएमएस में पढ़ने वाले रजत की मां अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहती हैं, “मेरा बेटा 12वीं का छात्र है, इस साल बोर्ड परीक्षाओं की टेंशन तो है ही लेकिन उससे कहीं ज्यादा कोरोना का डर है। आप स्कूल में अन्य बच्चों के साथ कैसे सुरक्षित महसूस कर सकते हैं। वॉशरूम की सफाई, कक्षाओं में सैनिटाइजेशन, कोरोना प्रोटोकॉल का पालन होता है या नहीं ये आप कैसे सुनिश्चित करेंगे। अगर बच्चा संक्रमित हो जाता है तो उसका पूरा घर-परिवार भी संक्रमित हो जाएगा, फिर इसकी ज़िम्मेदारी किसकी होगी?”
कई बच्चों और अभिवावकों की चिंता ट्रांसपोर्ट को लेकर भी है। एक ओर एक ही बस में अलग-अलग इलाकों से आने वाले बच्चों से संक्रमण का खतरा है तो वहीं कई जगह स्कूलों ने वाहन की सुविधाएं ही बंद कर दी हैं क्योंकि फिलहाल स्कूलों में 50 फीसदी बच्चे ही आ रहे हैं ऐसे में कई दूर-दराज से आने वाले कई छात्र अब चाहकर भी स्कूल नहीं आ पा रहे हैं।
हरियाणा के एक निजी स्कूल में शिक्षिका प्रतीक्षा फोगाट कहती हैं, सरकार ने अपनी एसओपी में सारी जिम्मेदारी स्कूलों पर डालकर अपना पल्ला झाड़ लिया है। कोरोना प्रोटोकॉल स्कूल में कितना फॉलो हो पाएंगे ये तो कहना मुश्किल है लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि फिलहाल बिना किसी व्यवस्था और ब्लू प्रिंट के स्कूलों को नहीं खोलना चाहिए था। हमें ये समझना होगा की स्कूल एक सार्वजनिक जगह है जहां अलग- अलग इलाकों से शिक्षक और बच्चे आते हैं, क्या हमारी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सरकार की नहीं है?
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