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कोरोना संकट: लॉकडाउन में ढील और संक्रमण में इज़ाफ़ा

एक तरफ कोरोना संकट के बाद लागू राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन में सरकार ढील दे रही है तो दूसरी तरफ वायरस संक्रमितों की संख्या में बढ़ोतरी भी हो रही है। ऐसे में सरकार का पूरा जोर ज़्यादा से ज़्यादा टेस्ट करने पर होना चाहिए।
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Image courtesy: India Today

देश में कोरोना वायरस के मामलों में शुक्रवार को 1,684 की वृद्धि हुई जो भारत में अब तक एक दिन में सामने आए सर्वाधिक मामले हैं। इसी तरह शुक्रवार से शनिवार सुबह तक 24 घंटों में 1429 मामले सामने आए। इस तरह 24 घंटों में औसतन 1500 मरीज़ों की वृद्धि हो रही है।

इस तरह संक्रमण के कुल मामलों की संख्या आज, 25 अप्रैल को 24 हज़ार से पार यानी 24,506 हो गई। वहीं, सरकार ने कहा कि महामारी का प्रकोप नियंत्रण में है और यदि राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लागू न किया जाता तो संक्रमण के मामलों की संख्या अब तक एक लाख तक पहुंच चुकी होती। सरकारी अधिकारियों ने महामारी के 'नियंत्रण में होने' का श्रेय लॉकडाउन और मजबूत निगरानी नेटवर्क तथा विभिन्न नियंत्रण कदमों को दिया।

इस बीच, गृह मंत्रालय ने शुक्रवार रात देश के लाखों दुकानदारों को खुशखबरी दे दी। मंत्रालय ने एक आदेश जारी कर शनिवार सुबह से सभी राज्‍यों और केंद्रशासित प्रदेशों में रजिस्‍टर्ड दुकानों को शर्तों के साथ खोलने की अनुमति दी है। हालांकि शॉपिंग मॉल्‍स और शॉपिंग कॉम्‍प्‍लेक्‍स अभी नहीं खुलेंगे। यह छूट केवल उन्‍हीं दुकानों को है जो नगर निगमों और नगरपालिकाओं के क्षेत्राधिकार में नहीं आते हैं।

सरकार ने अपने आदेश में कुछ शर्तें भी लागू की हैं। इसके मुताबिक, सभी दुकानें संबंधित राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों के स्थापना अधिनियम के तहत रजिस्‍टर्ड होनी चाहिए। इन दुकानों में अधिकतम 50 पर्सेंट स्‍टाफ को ही काम करने की छूट है। साथ ही उन्‍हें सोशल डिस्‍टेंसिंग के नियमों का भी पालन करना होगा। दुकान में काम करने वालों को मास्‍क भी लगाना पड़ेगा।

निसंदेह खेती किसानी, फैक्टरियों के बाद दुकानों में दी गई गई छूटों से प्रारंभिक स्तर की कुछ आर्थिक गतिविधियां पटरी पर आ सकती हैं। इससे एक बड़े तबके की रोजी-रोटी पर लगा ताला भी खुलेगा। हालांकि इसमें सबसे बड़ी चुनौती सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराने की रहेगी।

इस काम में जरा भी ढिलाई बरती गई तो खतरा बहुत बढ़ जाएगा क्योंकि इन छूटों से लोगों की आवाजाही बढ़ेगी और लोग समूह में जुटेंगे भी। ऐसे में फैक्ट्री और दुकान मालिकों को पूरी जवाबदेही खुद पर लेनी होगी क्योंकि इसके लिए हर जगह पुलिस नहीं लगाई जा सकती।

गौरतलब है कि लॉकडाउन को लंबे समय तक लागू करके नहीं रखा जा सकता है। फिक्की के मुताबिक राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की वजह से हर रोज 40 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। इस हिसाब से पिछले 21 दिनों में 7-8 लाख करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान है। फिक्की का कहना है कि इस साल अप्रैल से सितंबर के बीच 4 करोड़ लोगों की नौकरियां खतरे में हैं। इसी तरह सच्चाई यह है कि लॉकडाउन से हमारी अर्थव्यवस्था तकरीबन बैठ गई है। आर्थिक गतिविधियां जल्दी पटरी पर नहीं लौटीं तो बेरोजगारी और भुखमरी की समस्या गंभीर हो सकती है।

इसके अलावा लोगों के धैर्य की भी एक सीमा है। वे आखिर कब तक घरों में बंद रह सकते हैं? कुछ लोगों की शारीरिक और मानसिक बीमारियां बेकाबू हो सकती हैं। इसी तरह बड़े पैमाने पर छात्र, प्रवासी मजदूर और दूसरे लोग देश भर के अलग अलग हिस्सों में फंसे हुए हैं। उन लोगों के लिए भी खाने का संकट बड़ा होता जा रहा है। लेकिन दूसरी तरफ सामाजिक सक्रियता शुरू होने के साथ ही संक्रमण बड़े पैमाने पर बढ़ सकता है। ऐसे में एक ही रास्ता है कि सोशल डिस्टेंसिंग को जीवन पद्धति का हिस्सा बनाया जाय।  

बकौल डब्ल्यूएचओ, कोरोना अभी लंबे समय तक रहने वाला है। ऐसे में इस वायरस से निपटने की जिम्मेदारी अब हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था पर है। सरकार को इस लॉकडाउन के दौर में अपनी स्वास्थ्य सेवा-संरचना को सर्वोच्च प्राथमिकता देकर ठीक करने की जरूरत है। इसमें किसी को संदेह नहीं है कि देश की स्वास्थ्य व्यवस्था बदहाल हालात में है। पिछले एक महीने में भी इस स्थिति में बहुत बदलाव नहीं आया है।

पूरे देश से पीपीई समेत सुरक्षा उपकरणों की कमी और अब तो टेस्टिंग किट के काम न करने की खबरें आ रही हैं। गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिश के अनुरूप टेस्टिंग ही इस बीमारी से निपटने का विकल्प हो सकता है। दुनिया के कई देशों ने यही रास्ता अख्तियार किया है और कोरोना से निपटने में सफलता हासिल की है।

भारत के पास भी यही एकमात्र विकल्प है। लॉकडाउन में दी गई ढील काबिलेतारीफ है लेकिन जब तक ज्यादा से ज्यादा लोगों का टेस्ट नहीं हो जाएगा तब तक हर छूट बेमानी है।

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