चीन की अर्थव्यवस्था में वापस आ रहा है उछाल

चीन के साल 2022 के आर्थिक आंकड़े मंगलवार को बीजिंग में जारी किए गए। चौंकाने वाली बात यह है कि चीन की जीडीपी विकास दर घटकर 3 प्रतिशत रह गई है।
भारतीय दृष्टिकोण से, यह एक खुशी का पल हो सकता है कि चीन की अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है, जबकि भारत में वृद्धि लगभग 7 प्रतिशत (विश्व बैंक की भविष्यवाणी के अनुसार) है। क्या भारत मध्यम अवधि के दौरान चीन के बराबर आ सकता है?
यही वह जगह है जहाँ शैतान ठीक से पिक्चर में आता है। इस मामले की खास बात यह है कि चीन की 3 प्रतिशत की सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि इसकी अर्थव्यवस्था के साल-दर-साल विस्तार के मामले में 18 खरब डॉलर तक पहुंचती है।
मामले को परिप्रेक्ष्य में रखने के लिए, चीन की अर्थव्यवस्था भारत की अर्थव्यवस्था (जीडीपी:3.5 खरब डॉलर) के आकार का साढ़े पांच गुना अधिक है।
फिर भी, माना जा रहा है कि यह चीन का प्रतिकूल आर्थिक प्रदर्शन है, जबकि इसका कारण प्रतिकूल परिस्थितियों के संयोजन से उत्पन्न वे प्रतिकूल परिस्थितियां हैं जो 2022 की परिस्थितियों की विशेषता रही है – जिसमें कोरोनावायरस और भू-राजनीतिक तनाव से लेकर बार-बार अमेरिकी ब्याज दर में बढ़ोतरी और विश्व अर्थव्यवस्था के मंदी की ओर बढ़ने के कारण विदेशी मांग में गिरावट रही है।
शंघाई और दक्षिण चीन के ग्वांगडोंग प्रांत सहित विनिर्माण के केन्द्रों में कोविड के छिटपुट प्रकोपों ने स्थानीय कारखानों और रसद में उत्पादन को बाधित कर दिया है, और इसके साथ संपत्ति बाजार में छाई मंदी भी एक कारण है।
यह सर्वविदित है कि, पिछले एक साल में "ज़ीरो-कोविड" नीति ने चीनी की अर्थव्यवस्था पर बड़ा प्रभाव डाला है; जिसके तहत कारखानों को तब नुकसान हुआ जब श्रमिक लॉकडाउन में घरों में बंद रहे, और उपभोक्ताओं को अपने खर्च पर लगाम लगानी पड़ी क्योंकि वे वेतन और नौकरी दोनों खो चुके थे।
बाहरी कारण, रूस के खिलाफ पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव ने थोक वस्तुओं की कीमतों को बढ़ा दिया, जिससे चीन आयातित मुद्रास्फीति पर दबाव बढ़ गया। दूसरा, ऐतिहासिक हक़ीक़त यह है कि 1980 के बाद के दशकों के दौरान जैसे-जैसे चीनी अर्थव्यवस्था और अमेरिकी अर्थव्यवस्था नज़दीकि के साथ बढ़ी, तो चीनी अर्थव्यवस्था पर अमेरिकी मौद्रिक नीति की गहरा प्रभाव बढ़ा और वह मजबूत होता चला गया।
कहने का मतलब यह है कि अमेरिकी ब्याज दरें और चीनी अर्थव्यवस्था विपरीत रूप से संबंधित हैं, विशेष रूप से आयात, निर्यात और चीन-अमेरिका विनिमय दर में यह नज़र आता है। 2022 में अमेरिकी वित्तीय बाजार में असाधारण उतार-चढ़ाव देखा गया, जो चीन के लिए बुरी खबर थी।
बहरहाल, चीन की 3 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि की तुलना अमेरिका और जापान के साथ बहुत अनुकूल बात है – जो "नज़दीकि प्रतियोगी हैं" - जिनकी जीडीपी 2 प्रतिशत से कम (आईएमएफ अनुमानों के अनुसार) बढ़ी है। विश्लेषकों को वर्ष 2023 में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है, जो जीडीपी वृद्धि का 5 प्रतिशत से अधिक हो सकता है। (तुलना में, विश्व बैंक का अनुमान है कि वैश्विक विकास 2022 में 2.9 प्रतिशत से धीमी होकर 2023 में 1.7 प्रतिशत हो जाएगा, और अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद में 2023 में लगभग 0.5 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है, जो तीन दशकों में सबसे कमजोर पूर्वानुमान है।)
इसके भू-राजनीतिक प्रभाव भी हैं, क्योंकि चीन किसी भी अन्य प्रमुख आर्थिक शक्ति की तुलना में वैश्विक विकास में कहीं अधिक महत्वपूर्ण योगदान देने के मामले में बेहतर स्थिति में है, जो अनिवार्य रूप से विश्व समुदाय में बढ़ी उसकी प्रतिष्ठा की वजह से होगा और विदेश नीति के उद्देश्यों का लाभ उठाने के बड़े अवसर भी पैदा करेगा।
ग्लोबल ग्रोथ को सहारा देने में चीन के उपभोक्तामयी बाज़ार में उछाल बड़ा का अर्थ होगा क्योंकि इसकी विशाल बाजार क्षमता को अन्य अर्थव्यवस्थाओं, विशेष रूप से आसियान क्षेत्र, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में विकास के एक इंजन के रूप में देखा जाएगा।
प्रलय के दिन की भविष्यवाणियों के विपरीत, "शून्य-कोविड" नीति से दूर चीन का संक्रमण अपेक्षाकृत सुचारू रहा है। नए निज़ाम का उद्देश्य कोविड म्यूटेंट से निपटना है जो अत्यधिक संक्रामक हैं, लेकिन कम शक्तिशाली और कम खतरनाक भी है। कोविड के पहले हमलों से, भारत या अमेरिका के विपरीत, चीन में सैकड़ों-हजारों मानव जीवन बचाए गए थे।
दिलचस्प बात यह है कि चीन के नवीनतम आर्थिक आंकड़ों से यह भी पता चला है कि पिछले साल 3 प्रतिशत की विकास दर के बावजूद, देश की प्रति व्यक्ति जीडीपी 12,000 डॉलर के निशान से ऊपर रही है, जो विश्व बैंक द्वारा परिभाषित उच्च आय वाले देशों के करीब है।
समान रूप से, चीनी शेयर बाजार आशावाद के संकेतक बने हुए हैं। राजनीतिक दृष्टि से, यह मार्च में चीन की सबसे महत्वपूर्ण वार्षिक राजनीतिक सभाओं का मंच तैयार करता है, जो कि अर्थव्यवस्था को एक बार फिर बढ़ाने की उम्मीद जताता है।
भारतीय विश्लेषक दूसरे के बुरे हालात से जिस चीज को नजरअंदाज करते हैं, वह यह है कि उस देश के दुर्भाग्य और असफलताओं पर आधारित चीन के प्रति रवैया कहीं नहीं है। बजाय इसके चीनी अर्थव्यवस्था के आंकड़ों से कुछ गहन निष्कर्ष निकाले जाने चाहिए।
स्पष्ट रूप से, वैश्विक आर्थिक विकास में तेजी से गिरावट आने की संभावना है और 2023 में वैश्विक मुद्रास्फीति अभी भी उच्च स्तर पर बनी हुई है। प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं में ठहराव आने की संभावना है। यह कहना सही होगा कि यूरोपीय देश चीनी बाजार को शुरुआती आर्थिक सुधार की कुंजी के रूप में देखने के इच्छुक होंगे। चीन से अलग होकर वैश्विक आपूर्ति शृंखला को पुनर्गठित करना, कहने में आसान पर करना कठिन होगा।
दूसरा, अमेरिका अब एक विनिर्माण देश के रूप में चीन के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता है। क्योंकि बुनियादी ढांचे में, अंतर बहुत चौड़ा है। यूक्रेन ने दिखाया है कि अमेरिका के पास रूस से लड़ने की क्षमता नहीं है और उसे गठबंधन की जरूरत है। जब चीन की बात आती है तो यह अलग नहीं है।
निश्चित रूप से वाशिंगटन में चीनी अर्थव्यवस्था के आर्थिक आंकड़ों को बहुत गंभीरता से लिया जाएगा। अमेरिकी ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन दावोस में विश्व आर्थिक मंच के मौके पर बुधवार को ज्यूरिख में चीनी वाइस प्रीमियर (“आर्थिक जार”) लियू हे के साथ मिलने वाली थीं, जिसमें दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच “बातचीत बढ़ाई” जानी थी।
हालाँकि, दोनों शक्तियाँ बिगड़ते संबंधों को विराम देना चाहती हैं या कम से कम इसे नियंत्रण में रखना चाहती हैं। वे संकट से बचने की कोशिश करेंगे, हालांकि इसकी गारंटी नहीं है। खासतौर पर, यह वाशिंगटन ही है जिसने निरपवाद रूप से संबंधों के बिगड़ने की शुरुआत की थी।
पिछले हफ्ते वाशिंगटन में सीएसआईएस को संबोधित करते हुए, चीन पर बाइडेन के सलाहकार, कर्ट कैंपबेल ने बाली शिखर बैठक को "चीन के साथ एक नए रिश्ते की नींव बनाने का प्रयास" बताया। उन्होंने कहा कि 2023 "कुछ रास्ता बनाने का" वर्ष होगा, हालांकि अमेरिका-चीन संबंधों की प्रमुख विशेषता प्रतिस्पर्धी बनी रहेगी।
कैंपबेल ने संदेश दिया कि अमेरिका चाहता है कि यह "एक उत्पादक और शांतिपूर्ण प्रतियोगिता" हो जिसे दोनों देशों के लोगों के जीवन की बेहतरी के लिए इस्तेमाल किया जा सके।
एम॰के॰ भद्रकुमार पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।
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