भारत में स्थानिक पारिस्थितिकी को नज़रअंदाज़ कर लाए गए चीते : वैज्ञानिक

नई दिल्ली: अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि अफ़्रीकी चीतों को भारत में लाने का फ़ैसला उनकी स्थानिक पारिस्थितिकी पर विचार किए बग़ैर लिया गया। उन्होंने आगाह किया कि वन्य क्षेत्र में छोड़े गए चीतों का पड़ोसी गांवों में लोगों से संघर्ष हो सकता है।
स्थानिक पारिस्थितिकी का मतलब किसी प्रजाति की आवाजाही पर किसी स्थान विशेष के मौलिक असर और बहु प्रजाति वाले समुदायों की स्थिरता से होता है।
पिछले साल से नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से कुल 20 चीते मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क लाए गए।
नामीबिया में लीबनिज-आईजेडडब्ल्यू के ‘चीता रिसर्च प्रोजेक्ट’ के वैज्ञानिकों ने बताया कि दक्षिण अफ्रीका में चीता स्थिर सामाजिक-स्थानिक व्यवस्था में रहते हैं जिनका क्षेत्र व्यापक पैमाने पर फैला होता है और प्रति 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में एक चीता रहता है।
उन्होंने कहा कि कुनो नेशनल पार्क में चीतों के लिए योजना में यह माना गया कि शिकार का उच्च घनत्व होने से चीते का उच्च घनत्व बरकरार रहेगा जबकि इसका कोई सबूत नहीं है।
बृहस्पतिवार को पत्रिका ‘कंजर्वेशन साइंस एंड प्रैक्टिस’ में प्रकाशित एक पत्र में अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि चूंकि कुनो नेशनल पार्क छोटा है तो इसकी संभावना है कि वहां छोड़े गए चीता उद्यान की चारदीवारी के आगे निकलेंगे और इससे पड़ोसी गांवों के लोगों के साथ उनका संघर्ष हो सकता है।
कुनो नेशनल पार्क बिना बाड़ वाला करीब 750 वर्ग किलोमीटर वाला जंगली क्षेत्र है।
नामीबिया में चीता के स्थानिक व्यवहार के दीर्घकालीन अध्ययन से मिले नतीजों के आधार पर लीबनिज इंस्टीट्यूट फॉर जू और लीबनिज-आईजेडडब्ल्यू के वैज्ञानिकों ने क्षेत्र की वहन क्षमता को अधिक आंकने के खिलाफ आगाह किया।
उन्होंने कहा कि प्राकृतिक स्थितियों में चीतों के रहने की व्यवस्था प्रति 100 वर्ग किलोमीटर पर एक चीता होती है।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।