जन्मशताब्दी : रामावातार शास्त्री एक लोकप्रिय और प्रतिबद्ध सासंद थे

पटना। प्रख्यात स्वाधीनता सेनानी व पटना के पूर्व सांसद रामावतार शास्त्री के जन्मशताब्दी वर्ष के मौके पर 'जनशक्ति' भवन में स्मृति समारोह का आयोजन किया गया। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा आयोजित इस समारोह में संस्कृतिकर्मी अनीश अंकुर द्वारा रामावतार शास्त्री के जीवन पर लिखित पुस्तिका ' रामावतार शास्त्री: जीवन और जनसरोकार' लोकार्पण किया गया।
लोकार्पण करने वालों में थे प्रसिद्ध पत्रकार उर्मिलेश, प्रख्यात कवि आलोकधन्वा, अवकाशप्राप्त प्रशासनिक पदाधिकारी व्यास जी, चर्चित चिकित्सक डॉ. सत्यजीत, कैलाशचंद्र झा, पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो. नवल किशोर चौधरी, बिहार विधान परिषद के सदस्य केदारनाथ पांडे, सीपीआई के बिहार राज्य सचिव रामनरेश पांडे, सीपीआई (एम) के अरुण मिश्रा, सीपीआई के पूर्व राज्यसभा सांसद नागेंद्र नाथ ओझा, प्रसिद्ध हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ एच. एन दिवाकर कुमार, रामबाबू कुमार आदि शामिल थे।
आगत अतिथियों का स्वागत रामलला सिंह ने किया। पहले वक्ता थे रामावतार शास्त्री के भांजे दीनानाथ प्रसाद।
सीपीआई के राज्य सचिव रामनरेश पांडे ने रामावातार शास्त्री के संबन्ध में कहा " बिहार के कम्युनिस्ट आंदोलन के प्रेरणादायी शख्सियत थे रामावतार शास्त्री। स्वाधीनता आंदोलन के साथ किसान आन्दोलन, मज़दूर आंदोलन तथा शांति आंदोलनों की उन्होंने अगुआई की। इन्हीं आंदोलनों को आगे बढ़ाने की चाह में पहले कांग्रेस फिर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी होते हुए वे कम्युनिस्ट पार्टी में आये। आमलोगों के लिए सहज-सुलभ सांसद के रूप में उनकी प्रशंसा दूसरे दलों के लोग भी किया करते थे। जननेता होने के साथ-साथ रामावतार शास्त्री पत्रकार व लेखक भी थे। 'जनशक्ति' से उनका संबन्ध जीवनपर्यंत बना रहा।"
रामावतार शास्त्री के साथ काम कर चुके बुजुर्ग कम्युनिस्ट नेता रामलोचन सिंह ने कहा " रामावतार शास्त्री तीन बार पटना के सांसद रहे। पहली बार में 1967 में संसद के सदस्य बने। संसद में सबसे ज्यादा सवाल पूछने के कारण उन्हें नॉर्थ इंडिया के 'कट मोशन का हीरो' कहा जाता था। इसके साथ-साथ पार्टी के प्रति उनकी प्रतिबद्धता बड़ी मजबूत थी तथा मज़दूरों के संघर्षों से कोई समझौता नहीं करते थे।"
सुप्रसिद्ध पत्रकार उर्मिलेश ने अपने संबोधन में कहा "रामावातार शास्त्री जेनुइन कम्युनिस्ट थे। तेरह साल उन्होंने जेल में बिताए। ऐसे लोगों का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाना चाहिए। मैं पटना में 1983 में पत्रकारिता करने आया था तब शहर में वामपन्थ का अच्छा-खासा दबदबा था। रामावातार शास्त्री तथा उनके साथ अन्य कम्युनिस्ट नेताओं के प्रति मेरा आकर्षण तभी से था। मैंने उनको काम करते, जनता के बीच जाते हुए, नेतृत्व करते हुए देखा था। जिस साल रामावातार शास्त्री की मृत्यु हुई उसी साल यानी 1988 में ही कर्पूरी ठाकुर की भी मृत्यु हुई थी। "
व्यास मिश्रा ने रामावतार शास्त्री को याद करते हुए कहा " लेखक ने शोध करके, मेहनत करके यह पुस्तिका तैयार की है। रामावतार शास्त्री जैसा व्यक्ति जिसके पिता की मृत्यु हो जाये, जिसे दूसरी मां ने पाला हो और वह 9 साल की अवस्था में बेंत की सजा पाए यह जानकर लगता है कि नई पीढ़ी को इसे पढ़कर प्रेरणा मिलेगी। रामावतार शास्त्री 1942 में स्वामी सहजानन्द सरस्वती के जमींदार विरोधी आन्दोलन में शामिल होते हैं। जमींदारी अमानुषिक व्यस्था थी। अपने 39 वर्षों की सरकारी सेवा के बाद मैं आज बिल्कुल इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि यदि आप लोग मजबूत नहीं हुए तो देश फिर से बंटवारे की दिशा में बढ़ सकता है। पुस्तिका पढ़कर मुझे यह भी लग रहा है कि इस पुस्तिका को उपन्यास में तब्दील किया जा सकता है।"
चर्चित चिकित्सक और श्री सीताराम आश्रम ट्रस्ट के सचिव डॉ सत्यजीत सिंह ने कहा "मेरा गांव शास्त्री जी के संसदीय क्षेत्र में आता था। मेरे पिताजी कम्युनिस्ट थे लेकिन गांव के लोग उस तरह से कम्युनिस्ट न थे लेकिन दूसरी विचारधारा के लोग भी शास्त्री जी से जुड़ाव रखते थे। वे हमेशा पोस्टकार्ड रखा करते थे। चिट्ठी के माध्यम से हर किसी के जन्मदिन वगैरह को याद कर सम्पर्क बनाये रखते थे। मेरा घर कम्युनिस्ट पार्टी के बगल में था इस कारण बड़े-बड़े नेता भी आते थे। पार्टी कैडर के अलावा भी उनका आधार बहुत बड़ा था।"
चर्चित हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. एच.एन दिवाकर ने रामवातार शास्त्री से परिचय के पुराने दिनों को याद करते हुए कहा " जब मैं मेडिकल स्टूडेंट हुआ करता था तब मैं उन्हें देखा करता था कि सांसद होते हुए भी वे किसी की साइकिल पर बैठकर मेरे हॉस्टल आया करते थे। जितने भी पीड़ित और सताए हुये लोग हैं सबको समान दृष्टि से देखते थे भले ही उसकी जाति कुछ भी क्यों न हो। किसी पर जुल्म होता देख बर्दाश्त नहीं करते थे। वे समझते थे कि हम सांसद बने हैं तो हमें जनता की आवाज उठानी है।"
अमेरिकी दूतावास के पूर्व राजनीतिक सलाहकार कैलाशचंद्र झा ने कहा "मैं 1967 के चुनाव में रामावातार शास्त्री का पोलिंग एजेन्ट था। मैं कम्युनिस्ट विचारधारा से जुड़ा नहीं हूं। रामावतार शास्त्री की खूबी यह थी कि वे दूसरे विचार रखने वाले मेरे जैसे लोगों को भी प्रभावित कर सकते थे।"
प्रो. नवल किशोर चौधरी ने बताया "वे सहज, सरल, सर्वसुलभ थे। मानवीय संवेदनाओं से युक्त प्रतिबद्ध व्यक्ति थे।"
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ( मार्क्सवादी) के पूर्व केंद्रीय समिति सदस्य अरुण मिश्रा ने रामावातार शास्त्री को याद करते हुए कहा " रामावतार शास्त्री का डेरा सीटू दफ़्तर के बगल में था। उनको कभी मैं सब्जी का झोला लेकर चलते, कभी सीढ़ियों से ऊपर चढ़ते देखा करता था तो बहुत उत्सुकता होती थी कि जो व्यक्ति तीन तीन बार से सांसद है वह इतना सरल है। उन्हें पैदल चलने वाले सांसद माना जाता था।"
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के बुजुर्ग नेता मोहम्मद जब्बार आलम ने शास्त्री जी की वैचारिकी के संबध में बताया " उनका सपना सत्ता नहीं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन था। 1947 में सत्ता परिवर्तन का सपना पूरा हुआ। आज हमें व्यवस्था परिवर्तन करना है। रामावतार शास्त्री का मानना था कि व्यवस्था परिवर्तन क्रांतिकारी संगठन के बिना संभव नहीं है।"
लोकार्पण समारोह को हिंदी के प्रख्यात कवि आलोक धन्वा, विधान पार्षद और बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के महासचिव केदार नाथ पांडे, अनीश अंकुर ने भी संबोधित किया।
समारोह का संचालन जयप्रकाश ने किया।
जन्मशताब्दी आयोजन में पटना और आसपास के इलाकों के बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी, साहित्यकार, रंगकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता, ट्रेडयूनियनों के नेतागण, वामदलों के प्रतिनिधि सहित समाज के विभिनम क्षेत्रों के लोग मौजूद थे।
प्रमुख लोगों में थे कथान्तर के सम्पादक राणा प्रताप, कथाकार मीरा मिश्रा, व्यंग्यकार अरुण शाद्वल, वरिष्ठ कवि मुकेश प्रत्यूष, युवा कवि चन्द्रबिंद सिंह, पूर्व पुलिस महानिरीक्षक उमेश प्रसाद सिंह, एटक के राज्य महासचिव ग़ज़नफर नवाब, राज्य अध्यक्ष अजय कुमार, सुनील सिंह, मोहन प्रसाद , अब्दुल मन्नान, गोपाल शर्मा, चित्रकार राकेश कुमुद, विश्वजीत कुमार, देवरत्न प्रसाद, इंदु , कुलभूषण गोपाल, पुष्यमित्र, विनीत राय, जीतेन्द्र कुमार, मदन लाल वर्मा, विजय नारायण मिश्रा, राजीव जादौन, महेश रजक, अमन, अवध, मधुसूदन, बी.एन विश्वकर्मा, विकास कुमार, शिक्षाविद अक्षय कुमार, अनिल कुमार राय , इमरान गनी, गुलाम सरवर आज़ाद, तारिक फतेह, मंगल पासवान , सुमन्त शरण, अशोक कुमार सिन्हा, अमरनाथ आदि।
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