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ख़बरों के आगे–पीछे: ऑपरेशन सिंदूर पर सरकार की नाकामी उजागर!

वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन अपने साप्ताहिक कॉलम में सैन्य अफ़सरों के ही बयानों के हवाले से सरकार की रणनीति पर सवाल उठा रहे हैं। साथ ही कांग्रेस अध्यक्ष खरगे के बयान के मतलब समझा रहे हैं।
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भारत के डिफेंस अताशे कैप्टन शिव कुमार (बाएं)।

 

अब यह साफ हो गया है कि सरकार ऑपरेशन सिंदूर को लेकर अनावश्यक रूप से सच्चाई छुपा रही है। पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने सिंगापुर में कहा कि भारत के लड़ाकू विमान गिरे थे। उनका कहना था कि कितने विमान गिरे यह मुद्दा नहीं है, बल्कि मुद्दा यह है कि क्यों गिरे? अब उस क्यों गिरे का जवाब दिया है कि इंडोनेशिया में भारत के डिफेंस अताशे कैप्टन शिव कुमार ने। उन्होंने जकार्ता में एक कार्यक्रम में कहा कि भारत के राजनीतिक नेतृत्व का निर्देश था कि पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों को निशाना नहीं बनाना है। इसलिए भारतीय सेना ने सिर्फ आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया और इस वजह से पाकिस्तान को मौका मिला कि उसने भारत के विमानों को मार गिराया। 

यह बयान दो बिंदुओं पर नरेंद्र मोदी सरकार के लिए असहज स्थिति पैदा करता है। पहला तो यही कि भारत को लड़ाकू विमान गंवाने पड़े। दूसरा यह कि सेना के हाथ उस हद तक नहीं खुले हुए थे, जैसा कि सरकार ऐलान करती रही है। पता नहीं कैसे भारत के राजनीतिक नेतृत्व को यह भरोसा था कि पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों पर हमला नहीं करेंगे तो वह भारत के अपनी सीमा में उड़ रहे विमानों को निशाना नहीं बनाएगा! यह समझदारी और खुफिया सूचना दोनों की विफलता है। अब यह साफ हो गया है कि पाकिस्तान तैयार था और जैसे ही भारत ने आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया उसने भारत की सीमा में उड़ रहे लड़ाकू विमानों को निशाना बना दिया। 

ईवीएम की तरह वैक्सीन का भी बचाव

दुनिया में कोई भी अगर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम में किसी तरह की गड़बड़ी बता दे तो भारत सरकार जज्बाती हो जाती है। भारत का चुनाव आयोग तो लड़ने मरने पर उतारू हो जाता है। पिछले दिनों तो चुनाव आयोग ने अमेरिका की इंटेलीजेंस नेटवर्क की प्रमुख को कह दिया था कि उनके यहां की ईवीएम हैक हो सकती है, लेकिन भारत की नहीं हो सकती। बहरहाल, भारत सरकार जैसे ईवीएम को लेकर जज्बाती हो जाती है वैसे ही वह कोविड वैक्सीन को लेकर भी हो जाती है। ऐसा लगता है कि जैसे कोविड वैक्सीन ने भारत सरकार को अपना ब्रांड एंबेसेडर या अपना वकील नियुक्त किया है। 

अभी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च आईसीएमआर और एम्स दोनों ने कहा है कि इन दिनों अचानक बढ़े दिल के दौरों में वैक्सीन की कोई भूमिका नहीं है। ठीक है, मान लेते हैं कि वैक्सीन की कोई भूमिका नहीं है। लेकिन कुछ न कुछ तो हुआ है, जो लोग चलते फिरते गिर कर मरने लगे है या 2०, 25 और 3० साल के पूरी तरह से स्वस्थ युवाओं को दिल का दौरा पड़ने लगा है! ऐसा क्यों हो रहा है, यह भी तो पता लगाना चाहिए। हालांकि पूरी दुनिया मान रही है कि वैक्सीन के साइड इफ़ेक्ट्स हुए हैं। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की रिसर्च में पता चला है कि मोटे और मधुमेह के मरीजों के शरीर में वैक्सीन की वजह से सूजन और रक्त का थक्का बनने की प्रक्रिया तेज हो जाती है। ऐसे कई और शोध हुए हैं, जिनसे वैक्सीन के साइड इफ़ेक्ट्स का पता चला है। कई वैक्सीन कंपनियों ने भी इसे स्वीकार किया है। लेकिन भारत सरकार ने अपनी ओर से सारी वैक्सीन को क्लीन चिट दे दी है।

खरगे ने क्या संदेश दिया?

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पिछले दिनों कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के बीच चल रहे सत्ता संघर्ष के बारे में पूछे जाने पर कहा कि इस बारे में फैसला कांग्रेस आलाकमान करेगा। उनके इस बयान पर भाजपा के कई नेताओं ने तंज करते हुए कहा कि खरगे सिर्फ दिखावे के लिए अध्यक्ष हैं और कांग्रेस का असली आलाकमान तो गांधी परिवार है। हालांकि कांग्रेस नेताओं के लिए इसका जवाब देना बहुत आसान है। वे भाजपा नेताओं से पूछ सकते हैं कि क्या भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भाजपा के आलाकमान हैं? सबको पता है कि भाजपा में आलाकमान का मतलब नरेंद्र मोदी और अमित शाह हैं। जैसे नड्डा भाजपा के आलाकमान नहीं है वैसे ही खरगे भी कांग्रेस के आलाकमान नहीं हैं। 

लेकिन सवाल है कि खरगे ने यह बात क्यों कही? उन्हें भी पता रहा होगा कि अगर वे कहेंगे कि मुख्यमंत्री का फैसला आलाकमान करेगा तो उनकी ऑथोरिटी को लेकर सवाल उठेगा। फिर भी उन्होंने यह बात कही। जाहिर है कि वे कोई संदेश देना चाहते थे। एक संदेश तो यह कि वे पार्टी में जो कुछ चल रहा है, उससे वे नाराज हैं। सूत्रों के मुताबिक सारे फैसले राहुल गांधी की ओर से केसी वेणुगोपाल करते हैं। दूसरा संदेश दूर की कौड़ी है। कहा जा रहा है कि फैसला खुद खरगे के बारे में होना है इसलिए उन्होंने कहा कि आलाकमान फैसला करेगा। गौरतलब है कि खरगे की पुरानी इच्छा कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनने की है। इसलिए कयास लगाए जा रहे हैं कि आखिरी ढाई साल के लिए उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। ऐसा होता है तो सिद्धारमैया और शिवकुमार दोनों चुप रह सकते हैं। लेकिन तब सवाल है कि अध्यक्ष कौन बनेगा? शिवकुमार को भी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा सकता है।

दोपहिया वाहनों पर टोल की ख़बर कहां से आई?

कुछ दिन पहले सोशल मीडिया में अचानक यह खबर आई और वायरल हो गई कि अब नेशनल हाईवे पर दोपहिया वाहनों को भी टोल टैक्स देना होगा। ऐसा लगा, जैसे सचमुच सरकार ने इसका फैसला कर लिया है और उसके बाद सूत्रों हवाले से खबर जारी की गई है। लेकिन चार-पांच घंटे के बाद इस खबर का खंडन आ गया। सरकार की ओर से सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने खुद इसका खंडन किया। उन्होंने सोशल मीडिया में पोस्ट डाल कर कहा कि सरकार ने ऐसा कोई फैसला नहीं किया है। अब सवाल है कि ऐसी खबर कहां से आई? क्या सरकार में किसी स्तर पर इसकी चर्चा हुई थी, जहां से खबर लीक हुई? 

इसी तरह कुछ दिन पहले खबर आई थी कि यूपीआई से होने वाले भुगतान पर सरकार शुल्क लगाएगी। संभावित शुल्क का ढांचा भी जारी कर दिया गया था। यह खबर भी कई घंटे तक चलती रही और फिर सरकार की ओर से इसका भी खंडन किया गया। इस तरह की खबरें चलना और उसके बाद उनका खंडन आना संदेह पैदा करता है कि कहीं सरकार कोई प्रयोग तो नहीं कर रही है? अगर विपक्ष या उसके इकोसिस्टम के लोग सरकार को बदनाम कराने वाली इस तरह की अफवाहें फैला रहे होते तो सरकार की ओर से निश्चित रूप से इसका संज्ञान लिया जाता और कोई न कोई कार्रवाई होती। लेकिन दोनों मामलों में कोई भी कार्रवाई होने की खबर नहीं है।

ब्लैक बॉक्स का डाटा विश्लेषण कब होगा?

अहमदाबाद में हुई विमान दुर्घटना को तीन हफ्ते से ज्यादा हो गए हैं लेकिन अभी तक दुर्घटनाग्रस्त विमान के ब्लैक बॉक्स के डाटा का विश्लेषण नहीं हुआ है। पहले खबर आई थी कि आग लगने की वजह से विमान का ब्लैक बॉक्स डैमेज हुआ है और उसका डाटा रिकवर करने के लिए उसे अमेरिका भेजा जाएगा। यह खबर आने के बाद से सरकार इसका खंडन करने में लगी है। कहा जा रहा है कि भारत में डाटा रिकवर कर लिया गया है और अब उसका विश्लेषण किया जाएगा। टुकड़ों-टुकड़ों में खबरें दी जा रही हैं कि डाटा का विश्लेषण होने मे 10 दिन का समय लगेगा। सवाल है कि अगर डाटा का विश्लेषण नहीं हुआ है तो हादसे के बारे में एक-एक करके खबरें कहां से आ रही हैं? 

हादसे के 18 दिन के बाद नागरिक विमानन राज्य मंत्री ने एक निजी टेलीविजन चैनल के कार्यक्रम में कहा कि सरकार साजिश के पहलू से भी इसकी जांच कराएगी। निश्चित रूप से हर पहलू से हादसे की जांच होनी चाहिए क्योंकि यह कोई मामूली हादसा नहीं है। इसमें 270 लोगों की जान गई है। लेकिन यह चिंताजनक बात है कि फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर मिल जाने के बाद भी अभी तक उसका डाटा विश्लेषण नहीं हो सका। उससे पहले ही विमानों के परिचालन में 10 तरह की खामियां निकाली जा चुकी हैं। अधिकारियों को हटाया जा चुका है। कई निष्कर्ष निकाले जा चुके हैं। आमतौर पर यह काम दो से तीन दिन में हो जाता है।

केंद्र के मंत्रियों में तालमेल नहीं

केंद्र सरकार के मंत्रियों में अपने शीर्ष नेतृत्व की जय-जयकार और विपक्षी नेताओं को हर मुद्दे पर देशद्रोही ठहराने के अलावा किसी भी मामले में तालमेल नहीं दिखता। यहां तक कि सरकारी कामकाज के मामले में भी एक ही मुद्दे पर अलग-अलग विभाग के मंत्रियों की राय में कोई तालमेल नहीं है। ताजा मामला ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल खट्टर और वन व पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव का है। खट्टर ने एक घोषणा की, जिसका 10 दिन के भीतर भूपेंद्र यादव ने मजाक बना दिया। वैसे खट्टर ने जो ऐलान किया था उसका मजाक सोशल मीडिया में पहले से बनने लगा था। उन्होंने कहा था कि अब एसी बनाने वाली कंपनियों को निर्देश दिया जाएगा कि वे ऐसा एसी बनाएं, जिसे 20 डिग्री से कम और 28 डिग्री से ज्यादा तापमान पर चलाया ही नहीं जा सके। बिजली बचाने के मकसद से उन्होंने यह नियम लागू करने का ऐलान किया था। खट्टर ने दावा किया था एसी का तापमान एक डिग्री बदलने से छह फीसदी बिजली की बचत होती है। इसलिए उन्होंने एसी का टेम्परेचर फिक्स करने का नियम जल्दी लागू करने की बात कही थी। 

लेकिन अब भूपेंद्र यादव ने कहा है कि निकट भविष्य में ऐसा करने की कोई योजना नहीं है। उन्होंने जिस अंदाज में खट्टर की बात का खंडन किया उससे खट्टर के आइडिया का मजाक ही साबित हुआ। यादव ने कहा कि हो सकता है कि 2050 के बाद ऐसा किया जाए। प्रधानमंत्री ने 2047 तक भारत को विकसित बनाने का ऐलान किया। यानी भारत जब विकसित राष्ट्र बन जाएगा उसके बाद ही खट्टर के आइडिया पर अमल होगा!

अन्ना डीएमके को गठबंधन सरकार मंजूर नहीं

तमिलनाडु में अन्ना डीएमके ने एक बार फिर भाजपा को झटका दिया है। दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन के करार की स्याही सूखी भी नहीं है और विवाद शुरू हो गया है। असल में अन्ना डीएमके की ओर से बहुत पहले से कहा जा रहा है कि राज्य में अगर सरकार बनाने की स्थिति बनती है तो सरकार सिर्फ उसकी बनेगी, वह एनडीए की सरकार नहीं होगी, यानी भाजपा को सरकार में शामिल नहीं किया जाएगा। फिर भी पिछले दिनों केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया कि अगले साल के विधानसभा चुनाव में एनडीए की जीत होगी और राज्य में एनडीए की सरकार बनेगी। इस बात को लेकर विवाद बढ़ गया है। विवाद इसलिए बढ़ा है कि तालमेल और गठबंधन के बावजूद अन्ना डीएमके को लग रहा है कि एनडीए की सरकार बनने का प्रचार हुआ तो पूरे गठबंधन को नुकसान होगा। इसीलिए पार्टी के लोग डीएमके बनाम अन्ना डीएमके चुनाव बनाना चाहते हैं। 

अगर एनडीए की सरकार बनाने की बात कही जाएगी तो डीएमके को यह कहने का मौका मिलेगा कि भाजपा की सरकार बन रही है तो भाजपा और आरएसएस का एजेंडा लागू होगा। इसमें भाषा से लेकर द्रविड संस्कृति और सनातन को लेकर चल रही सारी बहस फिर से शुरू हो जाएगी। इसीलिए अन्ना डीएमके नेताओं ने अमित शाह के बयान को खारिज किया और कहा कि राज्य में एनडीए की नहीं अन्ना डीएमके की सरकार बनेगी। मतलब साफ है कि अन्ना डीएमके ध्रुवीकरण का कोई मुद्दा डीएमके को नहीं देना चाहती है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

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