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दिल्ली के बाद लखनऊ में भी सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों पर शिकंजा, नोटिस देकर थाने में तलब

लॉकडाउन में ढील होते ही पुलिस सक्रिय हो गई है और प्रदर्शनकरियों को नोटिस देकर थाने पर तलब कर रही है। लखनऊ पुलिस द्वारा उन सभी महिलाओं को लगभग नोटिस दी गई है जो मुखरता से सीएए के विरोध में प्रदर्शन में शामिल हुईं थी।
 सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों पर शिकंजा
यह 23 मार्च की तस्वीर है। कोरोना संकट की वजह से 23 मार्च को अपने प्रदर्शन को स्थगित करते हुए महिला प्रदर्शनकारी लखनऊ घंटाघर पर अपने प्रतिनिधि के तौर पर अपने दुपट्टे छोड़ गईं थीं। जिन्हें पुलिस ने बाद में हटा दिया। फोटो : असद रिज़वी

दिल्ली के बाद लखनऊ में भी नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) विरोधी प्रदर्शनकारियों पर शिकंजा कसना शुरू हो गया है। सीएए का विरोध करने वाली महिलाओं के ख़िलाफ़ लखनऊ पुलिस ने कार्रवाई शुरू कर दी है। घंटाघर (हुसैनाबाद) पर सीएए के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान दर्ज हुईं एफ़आईआर में अब पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों को थाने पर तलब किया जा रहा है।

लखनऊ पुलिस द्वारा उन सभी महिलाओं को लगभग नोटिस दी गई है जो मुखरता से सीएए के विरोध में प्रदर्शन में शामिल हुईं थी। इसमें वह महिलाएँ भी हैं जो 19 दिसंबर को सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन में शामिल थी। पुलिस फ़ोन द्वारा प्रदर्शनकारियों को थाने पर तलब कर रही है। हाज़िर ना होने पर पुलिस घर पर नोटिस लेकर जा रही है।

प्रदेश भर में 19 दिसंबर 2019 को हुए प्रदर्शन के क़रीब एक महीने बाद 17 जनवरी 2020 को लखनऊ के घंटाघर पर सीएए के विरोध में महिलाओं ने धरना प्रदर्शन शुरू किया था। दिल्ली के शाहीन बाग़ के तर्ज़ पर शुरू हुआ प्रदर्शन, प्रशासन के साथ एक समझौते के बाद, 23 मार्च में कोविड-19 के मद्देनज़र स्थगित किया गया।

प्रदर्शन के दौरान बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारियों पर मुक़दमे भी लिखे गए। इसके अलावा घंटाघर से गिरफ़्तार करके कई प्रदर्शनकारियों और छात्र नेताओ को जेल भी भेजा गया। छात्र नेता पूजा शुक्ला, नितिन राज आदि को घंटाघर से गिरफ़्तार कर के जेल भेजा गया और रिहाई मंच के मोहम्मद शोएब आदि को भी हिरासत में लिया गया था। बता दें कि घंटाघर प्रदर्शन के ज़्यादातर मुक़दमे ठाकुरगंज कोतवाली में लिखे गए हैं।

लॉकडाउन में ढील होते ही पुलिस सक्रिय हो गई है और प्रदर्शनकरियों को नोटिस देकर थाने पर तलब कर रही है। सदफ़ जाफ़र जिन्हें 19 दिसंबर 2019, को प्रदर्शन के दौरान गिरफ़्तार करके जेल भेजा गया था। उनको ठाकुरगंज थाने पर तलब किया गया। सदफ़ जाफ़र जब अपने वकील के साथ थाने पहुँची तो उनको धारा 41 (क) के दो नोटिस दिए गए।

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इन नोटिस के अनुसार उन पर भारतीय दंड संख्या अधिनियम 1860 की धारा 145,147,188, 283 और 353 के तहत मुक़दमे दर्ज हैं। इस के अलावा प्रदर्शन में शामिल होने के लिए सदफ़ जाफ़र पर आपराधिक क़ानून (संशोधन) अधिनियम 1932 की धारा 7 के तहत भी मुक़दमा दर्ज किया गया है।

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सदफ़ जाफ़र ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा की उन पर इस आंदोलन को लेकर पहले ही से कई मुक़दमे चल रहे हैं और वह ज़मानत पर रिहा हुई हैं। वह कहती हैं अब नई नोटिस की धाराओं से लगता है कि बदला लेने की बात कहने वाली योगी सरकार प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ कुछ कठोर करवाईं करने के लिए पृष्ठभूमि तैयार कर रही है।

उधर प्रदर्शन में शामिल प्रसिद्ध उर्दू शायर मुनव्वर राना की बेटी सुमैया राना को भी पुलिस द्वारा नोटिस भेजा गया है, जबकि अज्ञात लोगों की ओर से उनको फ़ोन पर धमकियाँ भी मिल रही हैं। सुमैया राना का कहना है कि “पुलिस ने मुझे घंटाघर के प्रदर्शन को लेकर नोटिस भेजा है, लेकिन मुझको जान से मारने की मिल रही धमकियों पर मुक़दमा नहीं लिखा गया है”।

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उन्होंने बताया कि पुलिसकर्मी स्वयं उनके घर 16 जून नोटिस लेकर आये थे। जिस के अनुसार उनके विरुद्ध ठाकुरगंज थाने में अपराध संख्या 24/20 में धारा 145,147,188 और 283 के अंतर्गत मुक़दमा दर्ज है।

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सुमैया राना ने बताया कि उन्हें अज्ञात लोगों द्वारा अलग-अलग नम्बरों से जान से मारने कि धमकियाँ मिल रहीं हैं। जिसकी शिकायत कॉल डिटेल के साथ लखनऊ पुलिस से कई महीने पहले की गई थी। परंतु एफ़आईआर दर्ज करना तो दूर, पुलिस ने अर्ज़ी तक को स्वीकार तक नहीं किया।

सीएए के विरुद्ध आंदोलन में मुखर रही सुमैया राना कहती हैं कि वह कोविड-19 के विरुद्ध जंग में लगी हैं और सरकार उन पर मुक़दमा लगा रही है। उन्होंने कहा भारतीय जनता पार्टी अपने संकल्प पत्र में बेटियों और महिलाओं की सुरक्षा कि बात करती है। मगर जब महिलाएँ संविधान के अंतर्गत प्रदर्शन करती हैं तो उन पर मुक़दमे लगते हैं और सफ़ूरा ज़रगर की तरह जेल भेज दिया जाता है।

सामाजिक कार्यकर्ता उज़्मा परवीन जो अपने एक वर्षीय बच्चे के साथ घंटाघर आती थीं, उनके घर भी पुलिस नोटिस लेकर पहुँची। उज़्मा के अनुसार वह कोविड-19 महामारी के दौरान स्वच्छीकरण का काम कर रही हैं। इस बीच उनके घर पुलिस गई और उनको दो नोटिस मिले हैं। जिन में विभिन धराओं 147,188,283 और 353 आदि में उन पर मुक़दमे दर्ज होने का ज़िक्र है।

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उज़्मा परवीन के अनुसार उन पर प्रदर्शन के दौरान एक दर्जन से अधिक मुक़दमे दर्ज हुए। जिसमें कुछ में उनको अदालत से राहत भी मिली है। वह बताती हैं की उनके प्रदर्शन में शामिल होने की सज़ा उनके पति को भी मिली। उनके पति को प्रदर्शन के दौरान गिरफ़्तार करके जेल भेजा गया। जो बाद में ज़मानत पर रिहा हुए।

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पुलिस सूत्रों के अनुसार जिन प्रदर्शनकरियों पर मुक़दमा दर्ज हैं सब को नोटिस भेजा जा रहा है।

क़ानून के जानकार मानते हैं अभी पुलिस सिर्फ़ नोटिस देकर तलब रही है लेकिन प्रदर्शनकारियों को भविष्य में बड़ी क़ानूनी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। प्रसिद्ध अधिवक्ता सैयद मोहम्मद हैदर बताते हैं कि जिन प्रदर्शनकारियों पर पहले से भी मुक़दमें हैं उनके लिए काफ़ी कठिनाई हो सकती है। वह यह भी कहते हैं कि अगर भविष्य में पुलिस मौजूदा धाराओं के अतिरिक्त और धाराएँ जोड़ती है तो यह प्रदर्शनकारियों के लिए चुनौतिपूर्ण होगा।

क़ानून के जानकार हैदर कहते हैं कि अगर पुराने मुक़दमों जैसे 19 दिसंबर 2019 से नये मामले जोड़े जाते हैं तो पुलिस भविष्य में सख़्त कार्रवाई कर सकती है और प्रदर्शनकारियों की क़ानूनी लड़ाई भी पेचीदा हो जाएगी।

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