Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

40 से ज़्यादा वरिष्ठ वकीलों ने अवमानना मामले में बड़ी बेंच और ओपन कोर्ट में सुनवाई की मांग की

एक संयुक्त बयान में कहा गया है कि प्रशांत भूषण के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को “तब तक प्रभावी तौर पर लागू न किया जाये” जबतक आपराधिक अवमानना के मानकों पर एक बार फिर से समीक्षा नहीं कर ली जाती है।
सर्वोच्च न्यायालय

नई दिल्ली: वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय के अवमानना मामले में फैसले पर निराशा जाहिर करते हुए क़ानून के 41 दिग्गजों ने “न्याय की भ्रूण हत्या” को रोकने के लिए इस मामले पर पुनर्विचार करने के लिए ओपन कोर्ट और एक बड़ी बेंच में इस मामले की सुनवाई किये जाने की माँग की है।

उच्चतम न्यायालय और आम जन को सम्बोधित करते हुए इस संयुक्त बयान में कहा गया है कि “हमारा इस बारे में दृढ़ विश्वास है कि जबतक कि महामारी के बाद एक बड़ी बेंच के समक्ष खुली अदालत में बैठकर आपराधिक अवमानना के मानकों की समीक्षा नहीं कर ली जाती, इस मामले में फैसले को प्रभावी न बनाया जाये। हमें इस बात का पूर्ण विश्वास है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस विषय पर पिछले 72 घंटों में जिस प्रकार से आम जनमानस द्वारा चारों ओर अपने विचारों को प्रकट किया गया है, उस पर ध्यान दिया होगा, और न्याय की भ्रूण हत्या को रोकने के लिए उन सभी सुधारात्मक क़दमों को उठाने का निश्चय किया होगा जिससे कि आमतौर जो भरोसा और सम्मान नागरिकों का न्यायिक व्यवस्था पर बना रहता है, उसे बहाल रखा जा सके।”

हस्ताक्षरकर्ताओं में दुष्यंत दवे, नवरोज एच सीरवाई, कामिनी जायसवाल, मिहिर देसाई, संजय हेगड़े, मेनका गुरुस्वामी, राजू रामचंद्रन सहित कई अन्य लब्ध-प्रतिष्ठित वकील शामिल हैं।

भूषण के ट्वीट का जिक्र करते हुए इस बयान में कहा गया है: “जहाँ हममें से कुछ का मत श्री प्रशांत भूषण के दो ट्वीट की सलाह और अंतर्वस्तु को लेकर भिन्न हो सकता है, लेकिन हम सभी इस बात को लेकर एकमत हैं कि इसमें अदालत की अवमानना का कोई इरादा या विशेष प्रतिबद्ध नहीं था। विशेषकर जब इसे सामान्य मानक के साथ तुलना करते हैं जिसमें “न्याय कोई तन्हा गुण नहीं है.....उसे सामान्य मनुष्य की टिप्पणियों के बावजूद, छानबीन और सम्मान इन दोनों ही प्रक्रियाओं के बीच से गुजरने देना चाहिए।”

पूरे बयान को नीचे पढ़ें -

सर्वोच्च न्यायालय और समस्त भारतीय आम जन के नाम जारी वक्तव्य 

श्री प्रशांत भूषण वाले अवमानना मामले में, हम सभी लोग, जिनके नाम नीचे दिए गए हैं भारत के विभिन्न बार में प्रैक्टिस करते हैं, ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को निराशा के साथ इसका संज्ञान लिया है। एक संवैधानिक लोकतंत्र में कानून का राज बनाए रखने के लिए एक स्वतंत्र न्यायपालिका का निर्माण स्वतंत्र न्यायाधीशों और वकीलों से मिलकर तैयार होता है। पारस्परिक सम्मान और बिना किसी दबाव के कार्य करने की आजादी ही बार और बेंच के बीच के सौहार्द्यपूर्ण सम्बन्धों की ख़ास पहचान है। इस संतुलन में यदि किसी भी प्रकार के एकतरफा झुकाव, वो चाहे इस तरफ हो या दूसरी तरफ, यह अपनेआप में संस्था और राष्ट्र दोनों के लिए ही हानिकारक है।

एक स्वतंत्र न्यायपालिका का अर्थ यह नहीं है कि इसमें न्यायाधीश किसी भी प्रकार की जाँच और टिप्पणी से परे हो। वकीलों का यह दायित्व है कि वे किसी भी प्रकार की कमियों के बारे में निर्भीक होकर उसे बार के संज्ञान में ला सकते हैं। जबकि हममें से कुछ कि श्री प्रशांत भूषण के उन दो ट्वीट की सलाह और सामग्री से से मत भिन्नता हो सकती है, लेकिन हम सभी इस बात को लेकर एकमत हैं कि इसमें कहीं से भी न्यायालय की अवमानना का इरादा या प्रतिबद्धता जाहिर नहीं होती है। विशेषकर जब इसे सामान्य मानक के साथ तुलना करते हैं जिसमें “न्याय कोई तन्हा गुण नहीं है.....उसे सामान्य मनुष्य की टिप्पणियों के बावजूद, छानबीन और सम्मान इन दोनों ही प्रक्रियाओं के बीच से गुजरने देना चाहिए।”

जहाँ श्री प्रशांत भूषण सर्वोच्च न्यायालय के एक अच्छे वकील के तौर पर जाने जाते हैं, और उन्हें आम इंसान के तौर पर नहीं देखा जा सकता। लेकिन उनके ट्वीट में ऐसा कुछ भी असामान्य नहीं है, जोकि आमतौर पर न्यायालय के कामकाज को लेकर हाल के वर्षों में सार्वजनिक मंचों और सोशल मीडिया में आये दिन देखने और पढने को न मिलता रहता हो। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों तक ने कुछ इसी तरह के विचार व्यक्त किए हैं।

जनता की निगाह में इस फैसले से न्यायालय के अधिकारों के प्रति विश्वास नहीं पैदा होता। उल्टा यह वकीलों को मुखर होकर अपने विचारों को व्यक्त करने से हतोत्साहित ही करेगा। न्यायाधीशों द्वारा विशेष अधिवेशन वाले दिनों से लेकर और उसके बाद के घटनाक्रम को देखें तो आप पायेंगे कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए यह बार ही है जो, सबसे पहले आगे आया है। यदि बार को अवमानना के खतरे के तहत खामोश करा दिया गया तो यह न्यायालय की ही स्वतंत्रता और अंततः उसकी ताकत को कम करने वाला साबित होगा। यदि बार खामोश कर दिए जाते हैं तो वे मजबूत अदालत का नेतृत्व नहीं कर सकते।

हम सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विद्वान अटॉर्नी जनरल की उपस्थिति की घोर उपेक्षा के प्रति अपनी घोर निराशा का इजहार करते हैं, जोकि एक बेहद सम्मानीय के साथ-साथ बेहद प्रतिष्ठित वकील रहे हैं। इस मामले में उनकी बहुमूल्य राय लेने से इंकार कर दिया गया था, जोकि अवमानना कानून के लिहाज से भी अनिवार्य है।

हमारा इस बारे में दृढ़ मत है कि जबतक महामारी के बाद एक बड़ी बेंच के समक्ष खुली अदालत में बैठकर आपराधिक अवमानना के मानकों की समीक्षा नहीं कर ली जाती, इस मामले में फैसले को प्रभावी न बनाया जाये। हमें इस बात का पूर्ण विश्वास है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस विषय पर पिछले 72 घंटों में जिस प्रकार से आम जनमानस द्वारा चहुँऔर विचारों को प्रकट किया गया है, उस पर ध्यान दिया होगा, और न्याय की भ्रूण हत्या को रोकने के लिए उन सभी सुधारात्मक क़दमों को उठाने का निश्चय किया होगा जिससे कि आमतौर जो भरोसा और सम्मान नागरिकों का न्यायिक व्यवस्था पर बना रहता है, उसे बहाल रखा जा सके।

हस्ताक्षरकर्ता

1. Mr. Janak Dwarkadas

2. Mr. Navroz H Seervai

3. Mr. Darius J Khambata

4. Mr. Jayant Bhushan

5. Ms. Vrinda Grover

6. Mr. Bishwajit Bhattacharyya

7. Mr. Dushyant Dave

8. Mr. Huzefa Ahmadi

9. Mr. Arvind Datar

10. Mr. Mihir Desai

11. Mr. Anoop Feroze George Choudhary

12. Ms. June Choudhary

13. Mr. Ravindra Srivastava

14. Ms. Kamini Jaiswal

15. Mr. Prashanto Chandra Sen

16. Ms. R. Vaigai

17. Mr. Sattvik Verma

18. Mr. Amarjit Singh Chandhiok

19. Ms. Karuna Nundy

20. Mr. Sriram Panchu

21. Mr. Percy Kavina

22. Ms. Meenakshi Arora

23. Mr. Nakul Dewan

24. Mr. Ritin Rai

25. Mr. Anip Sachthey

26. Mr. Shekhar Naphade

27. Mr. Rajiv Nayyar

28. Mr. Shyam Divan

29. Mr. Lalit Bhasin

30. Mr. Pallav Shishodia

31. Mr. PP Khurana

32. Mr. Chander Uday Singh

33. Mr. Sanjay R Hegde

34. Mr. Ramji Srinivasan

35. Mr. Raju Ramachandran

36. Mr. Suhrith Parthasarathy

37. Mr. Kailash Vasdev

38. Dr. Menaka Guruswamy

39. Mr. Mustafa Doctor

40. Mr. Kirti Uppal

41. Mr. Pranjal Kishore

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Over 40 Senior Advocates Call for Open Court, Larger SC Bench on Contempt Issue

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest