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कटाक्ष : भागवत, एक तेरा ही सहारा!

जीएसटी का गिफ़्ट हो या मणिपुर का दौरा, या भागवत जी का जन्मदिन, मोदी जी कुछ भी करते हैं तो विपक्ष वाले हाय-हाय कर सगुन ही बिगाड़ देते हैं। पढ़िए राजेंद्र शर्मा का व्यंग्य
GST CARTOON
कार्टून सतीश आचार्य के X हैंडल से साभार

 

मोदी जी जैसा विपक्ष रामजी किसी दुश्मन को भी नहीं दें। बताइए, मोदी जी की फोटो देखते ही, इनके पेट में दर्द होने लगता है। अब मोदी जी ने देश को जीएसटी वाला गिफ्ट दिया है या नहीं? गिफ्ट भी सुनते हैं कि डबल-डबल है। और सबसे बड़ी बात यह कि मोदी जी ने गिफ्ट त्योहार के बड़े वाले सीजन में दिया है, जो दशहरा-दीवाली तक जाता है। अब क्या इस गिफ्ट के बदले में, गिफ्टार्थी लोग मोदी जी को एक थैंक यू भी नहीं दे सकते हैं। 

बेशक, थैंक यू जरा बड़ा सा रखना पड़ेगा, आखिरकार मोदी जी का गिफ्ट भी तो खासा बड़ा है। दीवाली गिफ्ट और रिटर्न गिफ्ट में, थोड़ा अनुपात तो होना ही चाहिए। और भैया आम पब्लिक के हिस्से की हम नहीं कहते, पर उद्योग-धंधे वालों को तो मोदी जी ने बड़ा वाला ही गिफ्ट दिया है। जितना बड़ा धंधे वाला, उतना ही बड़ा गिफ्ट।

पर बड़े धंधे वालों ने थैंक यू मोदी जी, धन्यवाद मोदी जी, कमाल मोदी जी वगैरह के विज्ञापन तरह-तरह के मीडिया में जरा से छपवा क्या दिए, विपक्ष वालों ने ऐसे शोर मचाना शुरू कर दिया जैसे इन विज्ञापनों में उनकी गांठ से पैसे जा रहे हों। यानी पैसा किसी का लग रहा है, फोटो किसी की छप रही है और हाय-हाय कोई कर रहा है? इसी को कहते हैं, तेली का तेल जले, मशालची की छाती फटे! पर यह मुहावरा सुनने के बाद भी, मजाल है जो इन विपक्षियों को रत्तीभर शर्म आयी हो। उल्टे पलटकर कहते फिर रहे हैं कि गिफ्ट देने और बदले में गिफ्ट लेने तक तो फिर भी गनीमत थी, पर मोदी जी तो थैंक यू भी गला दबाकर कहलवा रहे हैं। 

मंत्रालय में मोदी जी के खास अफसर, मीडिया में जाने से पहले थैंक यू के एक-एक विज्ञापन को देखकर क्लीयरेंस दे रहे हैं। उद्योगपतियों को अपने चरणों में कितना झुकाओगे, मोदी जी! पर क्या यह भी संपदा निर्माताओं के  बीच मोदी जी की लोकप्रियता से खिसियाए विपक्ष की खिसियानी दलील ही नहीं है? वर्ना चरणों में झुकाने में कितना-कितना क्या होता है? अधिकतम तो दंडवत है। और दंडवत तो वे बेचारे पहले ही खुशी-खुशी हुए पड़े हैं। मोदी जी किसी का गला क्यों दबाने लगे!

जीएसटी वाले थैंक यू मोदी जी को उद्योगपतियों का गला दबाने का मामला बताकर बदनाम करने से पेट नहीं भरा, तो मोदी जी के मणिपुर के दौरे के पीछे पड़ गए। और कुछ नहीं मिला तो यही कि मणिपुर तो 2023 की मई से जल रहा था, अब सवा दो साल के बाद क्यों जा रहे हैं मोदी जी? बताइए, ये क्या सिर्फ विरोध करने के लिए हैं। अब तक मोदी जी मणिपुर नहीं गए थे, तो विपक्षी इसकी शिकायत करते थे कि मोदी जी मणिपुर क्यों नहीं जाते। और तो और, कुछ विरोधी तो बाकायदा दिनों की गिनती करने में लगे हुए थे कि कितने दिन हो गए, मोदी जी को मणिपुर गए बिना। और अब मोदी जी जा रहे थे, तो भाई लोगों ने पलटकर यह कहना शुरू कर दिया कि अब सवा दो साल बाद क्यों जा रहे हैं? मोदी जी सवा दो साल बाद भी उसी लिए जा रहे थे, जिस लिए इन सवा दो सालों में पहले कभी भी जा सकते थे। फैंसी ड्रैस में फोटो खिंचवाने, रोड शो में मोदी-मोदी कराने, मणिपुर से अपना पुराना रिश्ता बताने, साथ खड़े रहने का दावा करने और हजार-पंद्रह सौ करोड़ रुपये की परियोजनाओं के तोहफे का एलान करने। पर पहले नहीं गए, अब जा रहे थे। क्योंकि नागपुर की पाठशाला में पढ़ाया गया था, सब्र का फल मीठा होता है? तब गए, जब लड़-भिड़ के सब थक कर निढाल हो गए। गो बैक के नारे लगाने वालों के भी गले में जोर नहीं बचा।

पर विपक्ष वालों ने फिर भी हाय-हाय कर के मोदी जी का सगुन को बिगाड़ ही दिया। तीन घंटे के कार्यक्रम में से मोदी जी को जो आधा घंटा नाच-गाने का आनंद लेते हुए गुजारना था, उसमें भाई लोगों ने भांजी मार दी। स्वागत में नाच का विरोधियों ने इतना शोर मचाया, इतना शोर मचाया, कि मणिपुर वालों भी ने कहना शुरू कर दिया कि अभी तो चिताएं ठंडी भी नहीं हुई हैं, शोक  के बीच में हम नाचकर कैसे दिखाएं? हमारी आंखों के आंसू अभी सूखे भी नहीं हैं, बरसती आंखों से स्वागत के गीत कैसे गाएं? नतीजा यह कि इतनी प्रतीक्षा के बाद मोदी जी गए भी, पर स्वागत में नाच-गाना नहीं हुआ। फैंसी ड्रैस और कलगी वाले फैंसी हैट का प्रदर्शन, सिर्फ मोदी जी के भरोसे रह गया। और तो और विपक्षियों की कांय-कांय से इंद्र देव भी चिढ़ गए और उन्होंने गुस्से से बारिश करा दी, जिससे मोदी जी का हैलीकॉप्टर यात्रा का प्रोग्राम खटाई में पड़ गया। कारों के काफिले में सफर करना पड़ा, पर रोड शो  कैंसल हो गया। वो तो सडक़ के किनारे स्कूली बच्चों को खड़ा करा के शासन ने दौरे की शान रख ली, वर्ना विरोधियों ने सवा दो साल के इंतजार पर पानी ही फिरवा दिया था।

और इतने पर भी विरोधियों ने बस थोड़े ही कर दी। उल्टे भगवा कुनबे में ही झगड़ा लगाने पर तुले हुए हैं और वह भी बेबात। मोदी जी ने भागवत जी को एक प्रशस्ति लेख लिखकर जरा लंबा हैप्पी बर्थ डे क्या कर दिया, भाई लोग लग गए बाल की खाल निकालने में। कह रहे हैं कि भागवत जी का बर्थ डे तो हर साल ही आता है, पर ग्यारह साल में इससे पहले तो कभी मोदी जी ने ऐसा धमाकेदार हैप्पी बर्थ डे नहीं किया था। पचहत्तरवें बर्थ डे पर ही यह खास मेहरबानी क्यों? लगता है कि पचहत्तर की संख्या ही कुछ खास है। मोदी जी का भी पचहत्तरवां बर्थ डे बस आया ही समझिए। तो क्या मोदी जी, भागवत जी को यह संदेश दे रहे हैं कि दिल करे तो मेरे बर्थडे पर आप भी ऐसे ही मेरी प्रशस्ति कर देना, बस। पर रिटायरमेंट का लफ्ज कोई अपनी जुबान पर नहीं लाएगा और कलम पर लाने का तो खैर सवाल ही नहीं उठता है। जाहिर है कि यह सारी कयासबाजी भी झूठी है। भागवत जी तो पहले ही कह चुके हैं कि संघ का स्वयंसेवक कभी रिटायर्ड नहीं होता है। पर उसमें भी एक डंक है। साथ में जोड़ा है कि जब तक संघ सेवा कराए। यानी जब तक भागवत जी रिटायरमेंट की घंटी नहीं बजाएं। पर पड़ोसियों की तरह, जेन ज़ी वाले यहां भी घंटी बजाने पर उतर आए तो? भागवत, एक तेरा ही सहारा है!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)

 

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