Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

ख़बरों के आगे-पीछे: कर्नाटक में वोट चोरी के नए मामले उजागर!

अपने साप्ताहिक कॉलम में वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन कर्नाटक में वोट चोरी के कई अन्य मामलों का ज़िक्र कर रहे हैं। साथ ही 12 राज्यों में शुरू हुई SIR की प्रक्रिया व अन्य राज्यों की राजनीति पर बात कर रहे हैं।
VOTE CHORI
फ़ाइल फ़ोटो

लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने दो बार प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कर्नाटक की दो विधानसभा सीटों पर मतदाता सूची में गड़बड़ी के जरिए 'वोट चोरी’ का आरोप लगाया था। उन्होंने पहले कहा था कि लोकसभा चुनाव के दौरान बेंगलुरू की एक लोकसभा सीट के तहत आने वाली महादेवपुरा विधानसभा सीट पर गड़बड़ी हुई थी। बाद मे प्रेस कॉन्फ्रेंस करके उन्होंने अलंद विधानसभा सीट पर गड़बड़ी का आरोप लगाया। इसके बाद कर्नाटक सरकार ने एक विशेष जांच टीम यानी एसआईटी बना कर जांच शुरू कराई। इस एसआईटी की जांच में पता चला है कि छह हजार से ज्यादा नाम काटने का जो आवेदन चुनाव आयोग की वेबसाइट पर डाला गया था उसके लिए प्रति व्यक्ति 80 रुपए का भुगतान किया गया था। हालांकि अभी एसआईटी की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई है लेकिन उसे लेकर अब एक और खबर आई है। बताया जा रहा है कि महादेवपुरा और अलंद के अलावा कम से कम दो और विधानसभा सीटों पर मतदाता सूची से नाम काटने का प्रयास किया गया था। 

जांच टीम को पता चला है कि 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले एक डाटा सेंटर से बहुत व्यवस्थित तरीके से दो और विधानसभा सीटों पर नाम काटने का आवेदन चुनाव आयोग की वेबसाइट पर डाला गया था। ये दोनों सीटें कलबुर्गी जिले में हैं। जांच से जुड़े एक अधिकारी के मुताबिक कलबुर्गी शहर की सीट पर करीब 35 हजार वोट प्रभावित करने की कोशिश हुई थी, जिनमें ज्यादातर अल्पसंख्यक थे। दिलचस्प बात यह है कि डाटा सेंटर चलाने वाले दो अल्पसंख्यक ही है, जिनके खाते में कही से पैसे ट्रांसफर हुए हैं। दोनों से पूछताछ हुई है और उनके लैपटॉप जब्त कर लिए गए हैं।

विपक्षी राज्यों में चुनाव आयोग की चुनौती

चुनाव आयोग ने देश भर में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण एसआईआर की प्रक्रिया शुरू कर दी है। पहले चरण में 12 राज्यों में एसआईआर कराया जाएगा, जिनमें वे पांच राज्य- पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी भी शामिल हैं, जहां अगले साल चुनाव होने वाले हैं। इसके लिए सारी तैयारी हो गई है और चुनाव आयोग ने तय किया है कि बिहार की तरह हर राज्य में अधिकतम तीन महीने में एसआईआर का काम पूरा कर लिया जाएगा। लेकिन सभी राज्यों में बिहार जैसे हालात नहीं हैं। बिहार में एनडीए की सरकार है, जिसकी वजह से राज्य के प्रशासन और स्थानीय प्रशासन ने चुनाव आयोग के साथ पूरा सहयोग किया और निर्धारित अवधि मे जैसे-तैसे एसआईआर का काम पूरा हो गया। लेकिन क्या विपक्षी पार्टियों के शासन वाले राज्यों में ऐसा हो पाएगा? अगले साल जिन राज्यों में चुनाव होने वाले है उनमें से तीन राज्यों में विपक्षी पार्टियों की सरकार है। हालांकि इन सरकारों ने एसआईआर के लिए तैयारी कर ली है और अपने बूथ लेवल एजेंट्स को जरूरी निर्देश दिए हैं। लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि राज्य प्रशासन और स्थानीय प्रशासन का बहुत सहयोग नहीं मिलेगा। बिहार में गड़बड़ी की जितनी खबरें आई थीं, उससे ज्यादा खबरें पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल से आएंगी और चुनाव आयोग के कामकाज पर सवाल उठेंगे। कुल मिलाकर चुनाव आयोग की साख पर उठते सवालों की वजह से विपक्षी शासन वाले राज्यों में एसआईआर का काम आसान नहीं होगा।

भारत और अमेरिका की बातों में फिर विरोधाभास

पता नहीं ऐसा क्या हो गया है कि भारत और अमेरिका में किसी बात पर सहमति नहीं बन पा रही है। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच टेलीफोन पर बात हो रही है तो उसमें भी दोनों तरफ से अलग-अलग बातें कही जा रही हैं। भारत सरकार की ओर से दबी जुबान में अमेरिका की बात का खंडन किया जा रहा है। एक बार भी भारत ने दो टूक अंदाज में नहीं कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप झूठ बोल रहे हैं। सबसे ताजा मामला दिवाली की बधाई के लिए आए फोन का है। ट्रंप ने फोन करके मोदी को दिवाली की बधाई दी। इसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया में कहा कि उनकी मोदी के साथ व्यापार, आतंकवाद और पाकिस्तान के साथ संबंध सुधार को लेकर बात हुई। दूसरी ओर मोदी ने सोशल मीडिया में जो पोस्ट डाली उसमें उन्होंने पाकिस्तान का जिक्र नहीं किया। बाद में भारत की ओर से कहा गया कि पाकिस्तान को लेकर दोनों नेताओं के बीच कोई बात नहीं हुई। 

इससे पहले ट्रंप ने कहा था कि मोदी ने भरोसा दिलाया कि भारत अब रूस से तेल नहीं खरीदेगा। इस पर भी भारत की ओर से कहा गया कि ऐसी कोई बात नहीं हुई है। हालांकि भारत ने ट्रंप की बात का खंडन नहीं किया। ट्रंप ने अपने बयान में यह भी कहा था कि भारत में नियुक्त अमेरिकी राजदूत सर्जियो गोर ने मोदी से मुलाकात की थी। पहले बयान के बाद ट्रंप चार बार यह बयान दे चुके हैं कि भारत अब रूस से तेल नहीं खरीदेगा। एक बार तो यह बात उन्होंने व्हाइट हाउस की दिवाली पार्टी में भी कही, जहां अमेरिका में भारत के राजदूत विनय क्वात्रा और बड़ी संख्या में भारतीय लोग मौजूद थे।

फड़णवीस ने क्यों कहा कि दिल्ली दूर है?

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने यह कह कर सबको चौकाया है कि दिल्ली अभी दूर है। उन्होंने एक कार्यक्रम में अचानक यह बात कही। अहम सवाल यही है कि क्या फड़णवीस ने यह बात अपने लिए कही है और यह संदेश दिया है कि वे दिल्ली के बारे में नहीं सोच रहे हैं और अगर सोच भी रहे थे तो उन्होंने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं? 

गौरतलब है कि संघ के सबसे चहेते फड़णवीस को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकारियों में गिना जाता है। अमित शाह के साथ योगी आदित्यनाथ और फड़णवीस की चर्चा होती है। माना जा रहा है कि फड़णवीस ने अपनी दावेदारी वापस ले ली है। हालांकि उनके करीबी लोगों का कहना है कि पहली बार फड़णवीस ने अपनी दावेदारी पेश की है। 'दिल्ली दूर है’ कह कर उन्होंने बताया है कि वे दिल्ली की तैयारी कर रहे हैं लेकिन अभी दिल्ली दूर है। यह भी कहा जा रहा है कि उन्होंने प्रदेश भाजपा के नेताओं और सहयोगी पार्टियों को भी यह संदेश दे दिया है कि वे मुंबई छोड़ कर अभी कहीं नहीं जा रहे हैं। 

गौरतलब है कि शिव सेना नेता एकनाथ शिंदे के साथ उनके संबंध अच्छे नहीं हैं और शिंदे बार-बार दिल्ली की दौड़ लगाते रहते हैं। वे हाल में दिल्ली आकर प्रधानमंत्री मोदी से मिले। अमित शाह से भी उनकी मुलाकात नियमित होती है। इसीलिए कहा जा रहा है कि फड़णवीस ने उन्हें भी मैसेज दे दिया है कि वे भले ही कितनी बार दिल्ली जाएं, लेकिन अभी फड़णवीस दिल्ली नहीं जाने वाले हैं।

सबको याद आए सीताराम केसरी

बिहार में चुनाव हैं तो सबको सीताराम केसरी याद आ गए। कांग्रेस के दिवंगत नेता सीताराम केसरी की 24 अक्टूबर को 25वीं पुण्यतिथि थी। इस मौके पर कांग्रेस के पुराने मुख्यालय 24, अकबर रोड में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया, जिसमें राहुल गांधी शामिल हुए। उधर उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में एक चुनावी सभा में कांग्रेस पर हमला किया और कहा कि कांग्रेस ने सीताराम केसरी को अपमानित किया था। मोदी ने कहा कि कांग्रेस ने केसरी से अध्यक्ष पद छीन लिया था। सीताराम केसरी के बहाने मोदी ने कांग्रेस को पिछड़ा विरोधी भी बताया। सीताराम केसरी को गुजरे 25 साल हो गए है और इन 25 सालों में कभी भी कांग्रेस या भाजपा को उनकी याद नहीं आई। लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में सबको केसरी याद आ रहे हैं, वैसे ही जैसे सबको कर्पूरी ठाकुर याद आ रहे हैं। असल में इस बार का बिहार चुनाव जाति गणना के बाद का पहला चुनाव है, जिसमें हर छोटी बड़ी जाति बहुत अहम हो गई है। छोटी बड़ी सारी जातियां अपनी आबादी के हिसाब से सत्ता में हिस्सेदारी के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही है। इनमें भी सबसे ज्यादा लड़ाई अति पिछड़ी जातियों को लेकर है, जिन पर भाजपा का सबसे पहला दावा रहता है। 

इस बार कांग्रेस भी इस खेल में है। राहुल गांधी ने अति पिछड़ी जातियों के लिए अलग से घोषणापत्र जारी किया है। बहरहाल, इसमें कोई संदेह नहीं है कि सीताराम केसरी का कार्यकाल बहुत विवादास्पद रहा। प्रधानमंत्री बनने की हड़बड़ी में उन्होंने संयुक्त मोर्चा की सरकार गिरवाई और अंत में अध्यक्ष पद भी गंवाया। उन्होंने सोनिया गांधी के सक्रिय राजनीति में आने के रास्ते में बाधा डाली, जिसका खामियाजा उनको भुगतना पड़ा था।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest